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कौन हैं सत्यपाल मलिक, जिनके माथे जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग करने का दाग लगा

51 साल बाद कोई नेता जम्मू-कश्मीर का गवर्नर बनाया गया था.

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जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक, जिन्होंने विधानसभा भंग कर दी है.
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स्वाति
22 नवंबर 2018 (Updated: 22 नवंबर 2018, 01:58 PM IST) कॉमेंट्स
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सत्यपाल मलिक. जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल. 21 नवंबर को उन्होंने विधानसभा को भंग करने का ऐलान किया. ऐसा करके वो राज्य की एक पुरानी परंपरा में शामिल हो गए हैं. जम्मू-कश्मीर में विधानसभा भंग करने और गवर्नर रूल लगाने की रवायत काफी पुरानी रही है. यूं सत्यपाल सिंह हमेशा-हमेशा के लिए इस हिस्ट्री का पार्ट हो गए हैं. हिस्ट्री पढ़ने और जानने की चीज है. इसीलिए हम आपको सत्यपाल सिंह की थोड़ी सी प्रोफाइल बता रहे हैं.
सत्यपाल मलिक जब सियासत में एंट्री कर रहे थे, उस वक्त वो राम मनोहर लोहिया से बेहद प्रभावित थे.
सत्यपाल मलिक जब सियासत में एंट्री कर रहे थे, उस वक्त वो राम मनोहर लोहिया से बेहद प्रभावित थे.

उत्तर प्रदेश में बागपत नाम का जिला है. यहां हिसावाड़ा नाम का एक गांव है. दिसंबर 1946 में यहीं पर पैदा हुए थे सत्यपाल मलिक. ये उन दिनों की बात है, जब उत्तर प्रदेश यूनाइटेड प्रोविंस कहलाता था. दो साल के थे, तो पिता गुजर गए. शुरुआती पढ़ाई यहीं आस-पास के स्कूलों में हुई. कॉलेज पढ़ने के लिए मेरठ गए. यहां मेरठ कॉलेज से पहले बीएससी किया. फिर कानून भी पढ़े. यहीं पर स्टूडेंट पॉलिटिक्स में भी आए. उस दौर में सत्यपाल मलिक पर राम मनोहर लोहिया के समाजवाद का बड़ा असर था.
पहले चौधरी चरण सिंह और बाद में राजीव गांधी ने सत्यपाल मलिक को राज्यसभा के लिए भेजा था.
पहले चौधरी चरण सिंह और बाद में राजीव गांधी ने सत्यपाल मलिक को राज्यसभा के लिए भेजा था.

पॉलिटिक्स में एंट्री का साल था 1974. सत्यपाल शामिल हुए लोक दल में. चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा. अपनी होम सीट बागपत से जीतकर विधानसभा भी पहुंचे. 1974 से 1977 तक विधायक रहे. फिर 1980 में चरण सिंह ने ही उन्हें राज्यसभा भेजा. 1984 में चरण सिंह का साथ छोड़कर सत्यपाल मलिक ने कांग्रेस जॉइन किया. इस बार राजीव गांधी ने उन्हें राज्यसभा भेजा. बोफोर्स घोटाला सामने आने के बाद 1987 में उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया. यहां से निकले, तो 1988 में जनता दल में चले गए. यहां पर थे विश्वनाथ प्रताप सिंह. सत्यपाल वी पी सिंह के करीबी माने जाते थे. यहीं से 1989 में पहली बार लोकसभा भेजे गए. सीट थी अलीगढ़ की. वी पी सिंह ने उन्हें मंत्री भी बनाया. यहां भी बहुत दिन नहीं टिके सत्यपाल मलिक. 1996 में उन्होंने मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली.
सत्यपाल सिंह पहले पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के करीबी थे. बाद में वो मुलायम के करीब आ गए और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए.
सत्यपाल सिंह पहले पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के करीबी थे. बाद में वो मुलायम के करीब आ गए और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए.

बीजेपी में इनकी एंट्री हुई 2004 में. जब बीजेपी में आए, तब पॉलिटिक्स में एक तरह से बेरोजगार ही थे. बीजेपी की तरफ से इन्होंने चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा. मगर जीत नहीं पाए. हारने के बाद भी बीजेपी में इन्हें अहमियत मिली. वजह शायद ये थी कि सत्यपाल मलिक जाट नेता हैं. पार्टी ने इन्हें संगठन के काम में लगाया. जाट आंदोलन के बाद के दिनों में जाटों के बीच बीजेपी को लेकर नाराजगी बढ़ी. इसे दूर करने की कोशिश में ही शायद सत्यपाल मलिक की अहमियत और बढ़ गई. सितंबर 2017 में पार्टी ने उन्हें बीजेपी किसान मोर्चा की जिम्मेदारी से आज़ाद करके फिर बिहार का राज्यपाल बनाया गया. रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति भवन भेजने के बाद ये जगह खाली हो गई थी. कहा गया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जाटों को अपनी तरफ लुभाने के लिए ऐसा किया गया.
जब रामनाथ कोविंद राष्ट्रपतित बन गए, तो सत्यपाल मलिक बिहार के राज्यपाल बनाए गए थे.
जब रामनाथ कोविंद राष्ट्रपतित बन गए, तो सत्यपाल मलिक बिहार के राज्यपाल बनाए गए थे.

अगस्त 2018 में सत्यपाल मलिक बिहार से जम्मू-कश्मीर पहुंचे. उनसे पहले जम्मू-कश्मीर के गवर्नर थे एन एन वोहरा. दशकों बाद एक पॉलिटिशन को जम्मू-कश्मीर का गवर्नर बनाया गया था. इससे पहले इस पोस्ट पर किसी प्रशासकीय अधिकारी, या डिप्लोमैट या फिर किसी पुलिस अफसर या सेना से जुड़े शख्स को नियुक्त करने की रवायत चली आ रही थी.

कर्ण सिंह के बाद त्यपाल मलिक पहले ऐसे नेता हैं, जो जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने हैं. और वो भी ऐसे नेता, जिनके पास अलग-अलग पार्टियों में काम करने का अनुभव है.

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सत्यपाल मलिक को कई पार्टियों का अनुभव है. अलग-अलग विचारधाराओं की राजनीति करने वाली पार्टियों में वो रह चुके हैं. सोचिए, जिन वी पी सिंह ने एक जमाने में लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा रुकवाई थी, उनके करीबी हुआ करते थे सत्यपाल मलिक. और अब वो खुद बीजेपी में हैं. राजनीति बहुत एक्जॉटिक और कमाल-कमाल वैरायटी के अनुभवों का नाम है. इन तमाम अनुभवों के बीच सत्यपाल मलिक के रेज्यूमे में अब एक और एक्सपीरियंस जुड़ गया है. विधानसभा भंग करने वाला अनुभव. केंद्र का अजेंडा आगे बढ़ाने वाले राज्यपाल की भूमिका निभाने का अनुभव. आगे देखते हैं कि वो और किन-किन भूमिकाओं में नजर आते हैं.


 

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