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सेना का वो जवान, जिसने अकेले ही 72 घंटों में चीन के 300 सैनिक मार डाले थे

1962 के भारत-चीन युद्ध के सबसे बड़े हीरो की कहानी.

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वो जगह जहां शहीद जसवंत सिंह का स्मारक है
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रुचिका
21 अगस्त 2017 (Updated: 21 अक्तूबर 2017, 03:53 PM IST) कॉमेंट्स
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साल 1962 में वो 17 नवंबर का दिन था, जब चीनी सेना ने चौथी बार अरुणाचल प्रदेश पर हमला किया. चीन का मकसद साफ़ था- अरुणाचल प्रदेश पर पूरी तरह से कब्ज़ा करना. ये तब की बात है जब इंडो-चाइना वॉर छिड़ा हुआ था. लेकिन तब चीन के लक्ष्य के बीच दीवार बनकर खड़े हो गए गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के राइफलमैन जसवंत सिंह रावत.

इंडो-चाइना वॉर 20 अक्टूबर, 1962 से 21 नवंबर, 1962 तक चला. लेकिन 17 नवंबर से 72 घंटों तक जसंवत सिंह जिस बहादुरी के साथ चीनी सेना का सामना करते रहे, वो उनके अदम्य वीरता और शौर्य की कहानी है. 19 अगस्त को इस वीर जवान का जन्मदिन है.

जसंवत सिंह की बहादुरी के किस्से:

#1. नूरारंग की इस लड़ाई में चीनी सेना मीडियम मशीन गन (MMG) से ज़ोरदार फायरिंग कर रही थी, जिससे गढ़वाल राइफल्स के जवान मुश्किल में थे. ऐसे वक़्त में गढ़वाल राइफल्स के तीन जवानों ने युद्ध की दिशा बदलकर रख दी. ये थे राइफलमैन जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोक सिंह और राइफलमैन गोपाल सिंह. ये तीनों भारी गोलीबारी से बचते हुए चीनी सेना के बंकर के करीब जा पहुंचे और दुश्मन सेना के कई सैनिकों को मारते हुए उनसे उनकी MMG छीन ली.

jaswant singh machine

इससे पहले कि त्रिलोक और जसंवत MMG लेकर भारतीय खेमे में सुरक्षित पहुंचते, बचे हुए चीनी सैनिकों ने उन पर गोलियों चला दीं. वो शहीद हो गए. फिर MMG को भारतीय बंकर तक पहुंचाने का काम गोपाल सिंह ने किया. यही वो घटना थी, जिसकी वजह से चीनी सेना का अरुणाचल प्रदेश को जीतने का ख़्वाब महज़ ख़्वाब रह गया.

#2. अरुणाचल प्रदेश में जसवंत सिंह की वीरता की एक और कहानी सुनाई जाती है. 17 नवंबर 1962 को हुए इस हमले में गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के ज्यादातर जवान मारे जा चुके थे. जसवंत सिंह अकेले ही 10 हज़ार फीट ऊंची अपनी पोस्ट पर डटे हुए थे. ऐसे में उनकी मदद दो स्थानीय लड़कियों ने की. इनके नाम थे सेला और नूरा. ये दोनों मिट्टी के बर्तन बनाती थीं.

jaswant singh memo

इनकी मदद से जसवंत सिंह ने अलग-अलग जगहों पर हथियार छिपाए और चीनी सेना पर ज़ोरदार हमला बोल दिया. वो चीनी सेना की एक पूरी टुकड़ी से अकेले लड़ रहे थे. लगातार. इस लड़ाई में जसवंत सिंह ने अकेले ही 300 से ज़्यादा चीनी सैनिकों को मार गिराया था.

#3. चीनी सैनिकों को मारते-मारते जसवंत खुद भी बुरी तरह से घायल हो चुके थे. चीनी सैनिकों ने उन्हें बंदी बनाकर मार डाला. लेकिन तब तक भारतीय सेना की और टुकड़ियां युद्धस्थल पर पहुंच गईं और चीनी सेना को रोक लिया. इस बहादुरी के लिए जसवंत सिह को महावीर चक्र और त्रिलोक सिंह और गोपाल सिंह को वीर चक्र दिया गया.

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जिस जगह पर जसवंत सिंह शहीद हुए थे, उस जगह उनकी याद में एक झोपड़ी बनाई गई है. इसमें उनके लिए एक बेड लगा हुआ है और उस पोस्ट पर तैनात जवान हर रोज़ बेड की चादर बदलते हैं और बेड के पास पॉलिश किए हुए जूते रखते हैं.


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