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जब किशोरी अमोणकर की मां ने कहा, दोबारा तानपूरे को हाथ मत लगाना

सोमवार की रात गान सरस्वती कही जाने वाली गायिका किशोरी अमोणकर चल बसीं.

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फोटो - thelallantop
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आशीष मिश्रा
3 अप्रैल 2017 (Updated: 3 अप्रैल 2017, 09:34 PM IST)
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शास्त्रीय संगीत गायिका किशोरी अमोणकर का निधन हो गया है. मुंबई में उनके ही घर में. वो प्रभादेवी में रहती थीं, वहीं उन्होंने आखिरी सांस ली. बताते हैं, उन्होंने रात का खाना खाया और सोते-सोते नींद में ही चल बसीं. अभी दिल्ली में बहुत दिनों बाद उन्होंने गाया था. दस रोज़ भी न हुआ होगा. 26 मार्च की बात है. दो दिन का भीलवाड़ा सुर संगम हुआ था, कमानी ऑडिटोरियम में वहीं गाया था. हिंदुस्तानी संगीत जिन लोगों के कारण भी जाना जाता है, उनमें किशोरी बहुत ही बड़ा नाम थीं. वो अपने ख्याल, ठुमरी और मीरा के भजनों के लिए जानी गईं. इसके अलावा उनके चाहने वाले मांड और राग भैरवी के लिए भी उनको याद रखेंगे.
Kishori Amonkar 3

अमोणकर 85 बरस पहले 10 अप्रैल 1932 को जन्मीं थीं. सन 1987 में उन्हें पद्म भूषण और साल 2002 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. उनकी शुरुआती गुरु अंजनीबाई मालपेकर थीं. भिंडीबाजार घराने की. अंजनीबाई की ख्याति इसी से समझिए कि उनके शिष्यों में कुमार गंधर्व और किशोरी अमोणकर जैसे नाम हैं. राजा रवि वर्मा की 'लेडी इन द मून लाइट' में आप जिनका चेहरा पाते हैं वो अंजनीबाई ही थीं.
https://www.youtube.com/watch?v=GJnjyN-n_zE
किशोरी की मां का नाम मोघूबाई कुर्दीकर था. पिता तभी चल बसे थे जब वो छह साल की थीं. वो अपनी मां के नाम से इसलिए भी जानी जाती हैं क्योंकि खुद उनकी मां बहुत बड़ी सिंगर थीं. उन्होंने जयपुर घराने के गायन सम्राट उस्ताद अल्लादिया खान से शिक्षा पाई थी. अब अगर अल्लादिया खान का रुतबा आपको समझना हो तो ये जानिए कि उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत का गौरी-शंकर कहा जाता था. (पढ़ें माउंट एवरेस्ट!) जिस जयपुर घराने की प्रवर्तक लोग किशोरी अमोणकर को कहते हैं, वो जयपुर-अतरौली घराना उन्हीं अल्लादिया का बसाया हुआ है.
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Source| Kishori Amonkar Facebook page| Ajay Ginde

उनकी मां बहुत बड़ी सिंगर थीं. पर सच ये भी है कि उस दौर में उन्हें वो सम्मान नहीं मिलता था जिसकी वो हकदार थीं. ये बात खुद किशोरी कहती थीं. जिस समय उनकी मां गाया करतीं, वो उनकी दशा देखतीं और तब ही उन्होंने तय किया कि जब वो बड़ी कलाकार बनेंगी ऐसा कुछ बर्दाश्त नहीं करेंगी. तभी तो वो होटल के सुईट में रुकती थीं. उनके लिए कार अनिवार्य होती और भुगतान सलीके से किया जाता.
Kishori Amonkar 2

ये बात यहां तक आई कि लोग उन्हें एकांतप्रिय, तुनकमिजाज़, मनमौजी और दबाकर रखने वाली भी कहने लगे. इसका जवाब भी उन्होंने एक बार दिया था. कहा कि भले बनो तो लोग इसका मतलब ही नहीं समझते. और हम उन लोगों में से हैं, जो अपनी कला से लोगों का भला करने निकले हैं. हम कैसे बुरे हो सकते हैं. रही बात एकांतप्रिय होने की तो उन्होंने अपने आध्यात्मिक गुरु का नाम लेते हुए कहा, मैं तो बस उनसे बात करती हूं.
Kishori Amonkar 5
किशोरी अमोणकर को सुनना जानने वाले उन्हें यूं भी याद रखते हैं कि जितना उनके गले जौनपुरी, पटट् बिहाग, अहीर और भैरव जैसे राग लगते थे, उतना ही अच्छा वो ठुमरी, भजन और खयाल भी गाती थीं.
Kishori Amonkar 4

जब मां ने कह दिया कि फिल्मों में गाना तो तानपुरा दोबारा मत छूना 

वैसे तो फ़िल्मी गानों से बहुत दूर ही रहती थीं. फिर भी उन्होंने कुछ फ़िल्मी गाने गाए, इसके पीछे भी एक किस्सा है. सन 1964 में जब वो वी. शांताराम की फिल्म का गाना गाने बढीं तो उनकी मां ने ये तक कह दिया था कि इसके बाद फिर वो कभी अपना तानपुरा न छुएं. लेकिन किशोरी ने गाना गया. गाना लिखा था हसरत जयपुरी ने और फिल्म थी 'गीत गाया पत्थरों ने'.
गाना ये वाला था.

https://youtu.be/vqhGbcIFlnY

आख़िरी बार जिस फिल्म में गाया, उसमें इरफ़ान भी थे 

इसके बाद उन्होंने जो गाना गया था वो गोविंद निहलानी की फिल्म का था. 'एक ही संग' अफ़सोस वो गाना कॉपराईट के कुछ पेंच के कारण आप भारत में नहीं सुन पाएंगे. वैसे ये फिल्म 'दृष्टि' थी. जब आई तो कैलेण्डर में साल 1990 बता रहा था. इस फिल्म में डिम्पल कपाड़िया, शेखर कपूर के साथ एक कलाकार और था जिसे अब आप इरफ़ान नाम से जानते हैं. इस फिल्म में अमोणकर ने तीन गाने गाए. एक ही संग के दो वर्जन, एक 'बाजत घन मृदंग' और दूसरा 'मेघा झर झर बरसत रे'. ये गाना हम आपके लिए ले आए हैं.
https://www.youtube.com/watch?v=tepT3nl7Ri4

अब कोई सम्मान नहीं चाहिए 

ये फिल्म थी और उसके बाद किशोरी कभी बॉलीवुड या फ़िल्मी गानों की ओर नहीं गईं. कहने वाले उन्हें गान सरस्वती कहते थे, गान सरस्वती विदुषी किशोरी अमोणकर. कोई और क्या कहता था शंकराचार्य ने उन्हें गान सरस्वती कहा था, फिर तो 'ताई', उनके चाहने वाले उन्हें इसी नाम से बुलाते हैं, ताई को किसी सम्मान की इच्छा नहीं रह गई. जब गातीं तो एक लंबा हिस्सा अपने आलाप को देतीं, इंटरव्यू में बतातीं भी थीं. 'लोग कहते हैं कि मैंने आलापी से जयपुर-अतरौली घराने में योगदान दिया है.' ये भी बतातीं कि मैं अपने गाने की सबसे निर्मम समीक्षक खुद ही हूं. पर होता ऐसा भी है कि खुद के गाने से मनचाहा सा कुछ मिल जाए तो खुश भी हो जाती हूं.

जब बताया कि पसंद आता है, आलिया भट्ट की फिल्म का गाना 

वैसे ऊपर जो फ़िल्मी गानों की बात चली, ऐसा भी नहीं था कि ताई को फ़िल्मी गानों से कोई अलगाव सा था. 'द हिंदू' के एक पत्रकार से पिछले साल के आखिरी महीनों में बात करते हुए उन्होंने ये कहा था कि 'मैं फ़िल्मी गाने सुनती ही नहीं पसंद भी करती हूं, ये अभी कोई पंजाबी गाना आया है, मैं तैनू समझावां की, जिसने भी गाया है, अच्छा गाया है, उसमें राग बड़े टफ से हैं लेकिन उसने बड़े सही से गाया है.
Source| Kishori Amonkar Facebook page
Source| Kishori Amonkar Facebook page

बताती थीं कि उनकी मां जब सिखाती थीं तब वो संगीत के बारे में नहीं बताती थीं, वो बस गाती थीं और मैं दोहराती थी. मैं बिना कुछ पूछे बस उन्हें दोहराती जाती थी. स्थाई और अंतरा तो वो तीसरी बार गाती भी नहीं थीं. हमें दो बार में ही काम चलाना पड़ता था. मां की बात चली तो एक बहुत सही बात कही थी, जो अब और मानीखेज हो गई है. उन्होंने कहा था 'मेरी मां ने कहा था, मरने से पहले दूसरों के लिए कुछ अच्छा कर जाओ, मैं वही कर रही हूं.'

जब पत्रकार को होटल से लौटा दिया  

किशोरी अमोणकर, मीडिया से बहुत बात नहीं करती थीं, इंटरव्यू भी बड़ी मुश्किल से मिलते हैं, जिसमें उन्होंने कुछ बातें शेयर की हों. वजह ये थी कि ये सब करने लगतीं तो अपने रियाज़ से और दूसरों को सिखाने से दूर रह जातीं. एक बार तो इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार दिल्ली में उनके होटल के बाहर से बैरंग लौट आए थे. बाद में पत्रकार उनके घर तक पहुंचे और तब जाकर इंटरव्यू मिल सका था. लेकिन ये इंटरव्यू इतना आसान भी न था. ताई ने कहा, तुम लोग यहां तक आए तो चलो ठीक है. पर सवालों के पहले मुझे ये जानना है कि तुम्हें म्यूजिक के बारे में कितना पता है?
एक और इंटरेस्टिंग किस्सा है, जब उनसे भारत रत्न के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'वो तो सचिन तेंदुलकर तक को मिल चुका है. अगर सरकार का यही फैसला है. तो अच्छा यही है कि मुझे उस कैटगरी में शामिल न ही करो.'  


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