The Lallantop
Advertisement

13 दिसंबर, जब संसद पर हमला हुआ और भारत ने पाकिस्तान से युद्ध की जगह बातचीत का रास्ता चुना

दुनिया के सामने ये बहुत बड़ी मिसाल थी.

Advertisement
Img The Lallantop
font-size
Small
Medium
Large
13 दिसंबर 2020 (Updated: 12 दिसंबर 2020, 05:15 IST)
Updated: 12 दिसंबर 2020 05:15 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
साल था 2001. दिसंबर 13. कानपुर के चकेरी में मैं ठंड से कांप रहा था. पतला स्वेटर पहने अपने भाई का इंतजार कर रहा था. वो एयरफोर्स का मेडिकल देने गया था. मैं मोरल सपोर्ट बन के गया था. पर ठंड इतनी कि दिन में ही शाम हो गई थी. मैं जहां खड़ा था, वहां पेड़ थे. लोग भी नहीं थे. एक कुत्ता था. वो कभी वहीं पड़े रहता, कभी निकल लेता. उसे देख के जान में जान आती. क्योंकि पर्सनली मैं भूतों पर विश्वास करता हूं. अकेले में लगता है कि कोई आ जाएगा. पर वहां से मैं हिल नहीं रहा था. क्योंकि भाई ने बोला था कि यहीं रहना. मैं आया दो घंटे में. भाई को दी गई जुबान की कीमत होती है. अगर वहां से हिला और भाई आ गया तो कैसे ढूंढेगा. उस वक्त फोन तो था नहीं.
फिर हिम्मत हारकर, बड़ा सोच-विचारकर मैं उस जगह की सीध में थोड़ा चल के कॉर्नर पर खड़ा हो गया. वहां कुछ लोग आग ताप रहे थे. कुछ गरमा-गरमी भी हो रही थी. मैं भी वहीं खड़ा हो गया. पर जब उनकी बातें सुनीं तो ठंड खत्म हो गई. पता चला कि इंडियन पार्लियामेंट पर अटैक हुआ है. इतना बम आया था कि आधा पार्लियामेंट उड़ जाता. आधे से ज्यादा सांसद मारे जाते. अंधाधुंध गोलियां चली थीं. ये वो अटैक था जो सक्सेसफुल होता तो दुनिया में अब तक का हुआ सबसे बड़ा हमला होता. ऐसा कभी नहीं हुआ था. एक देश की संसद को उड़ा देना बहुत ही दुस्साहसिक काम था. वॉर से नीचे कुछ ना होता. हालांकि इतना भी कम नहीं था लड़ाई के लिए. भारत की ये अग्निपरीक्षा थी. उस दिन.
लश्कर-ए-तैय्यबा और जैश-ए-मोहम्मद के ट्रेन किए 9 आतंकवादी कार में आए. कारों पर होम मिनिस्ट्री और पार्लियामेंट के लेबल लगे हुए थे. उस वक्त राज्य सभा और लोक सभा दोनों स्थगित थे. पार्लियामेंट बिल्डिंग में एक साथ कई सांसद खड़े थे. आतंकवादी कार से सीधा अंदर घुस गए. सिक्योरिटी की ये बहुत भयानक गलती थी. क्योंकि कारों में ए के 47, ग्रेनेड, पिस्टल भरे पड़े थे. पाकिस्तान से सीधा कॉन्टैक्ट हो रहा था.
आतंकवादी हड़बड़ी में थे. कार ले जाकर सीधा उप-राष्ट्रपति कृष्णकांत की गाड़ी में ठोंक दिए. बाहर निकले और दनादन फायरिंग शुरू कर दी.
Indian-Parliament-attack
कमांडो

सीआरपीएफ की कॉन्स्टेबल कमलेश कुमारी यादव ने सबसे पहले देखा और आगाह करना शुरू किया.पर उनको गोली लग गई और उनकी मौत हो गई. आतंकवादी फायरिंग करते रहे. पर उनका बम फटा नहीं. एक इतनी हड़बड़ी में था कि बम उसके अंदर ही पिघलने लगा था. वो तड़फड़ाने लगा था. सीआरपीएफ और पुलिस ने तुरंत मोर्चा संभाल लिया था. एक घंटा तक गोलियां चली. सारे आतंकवादी मार दिए गए. 5 पुलिसवाले भी मरे. एक माली भी मारा गया. पर बारूद का सामना करने के लिए ये सारे खड़े थे. एक भी नेता को कुछ नहीं हुआ. इन द लाइन ऑफ ड्यूटी मरने वालों ने ड्यूटी पूरी की थी.
indi

जब आगे जांच हुई तो चार लोग पकड़े गए. अफजल गुरु, शौकत हुसैन, गिलानी और नवजोत संधू. नवजोत संधू को 5 साल की सजा हुई. क्योंकि उस पर जानकारी छिपाने का आरोप था. बाकी को मौत की सजा हुई. अफजल को तो फांसी हो भी गई. 12 साल बाद. गिलानी के खिलाफ सबूत नहीं मिले. वो छूट गया. जबकि उसे हमले का मास्टर माइंड बताया गया था. वो दिल्ली यूनिवर्सिटी में टीचर था. शौकत को आजीवन कारावास हुआ. पर अच्छे व्यवहार की वजह से उसे सजा पूरी होने के 9 महीने पहले ही छोड़ दिया गया.
024
गिलानी, अफजल गुरु और शौकत हुसैन

20 दिसंबर 2001 को भारत ने कश्मीर और पंजाब के बॉर्डर पर सेना को इकट्ठा करना शुरू कर दिया. 1971 की लड़ाई के बाद पहली बार इतनी संख्या में सेना इकट्ठा हुई थी. एकदम युद्ध छिड़ने ही वाला था. पर दुनिया भर से हस्तक्षेप होने लगा. सबसे ज्यादा दबाव अमेरिका की तरफ से था. क्योंकि अमेरिका में उसी साल हमला हुआ था. और वो अफगानिस्तान में लड़ाई लड़ रहे थे. इसके लिए उनको सबसे ज्यादा पाकिस्तान की जरूरत थी. कहते हैं कि भारतीय सेना बॉर्डर पर लड़ने के लिए व्याकुल हो रही थी. पर इंतजार ने फ्रस्ट्रेट कर दिया था. ये भारत के लिए बहुत मुश्किल घड़ी थी. लोग उस घड़ी का कांटा पकड़ के झूल जाना चाहते थे. कि समय आगे ना बढ़े. आग कम ना हो. जंग हो के रहे. पर ये सच है कि जंग से भला तो नहीं ही होता. गुस्सा निकल जाता. 5 मरे थे. और मरते. कैसे झेलते?
फिर भारत ने वो किया जो दुनिया में किसी देश ने नहीं किया था. माफी और बात की शुरूआत. यहीं से पॉलिसी चेंज हुई. ये वो पॉलिसी थी जो भविष्य में सबकी पॉलिसी का आधार बनेगी. अभी तक वही होते आया था कि खून का बदला खून से लेंगे. पर इससे निकलता कुछ नहीं. सबसे ताकतवर पॉलिसी वही है कि अपने आप को सुरक्षित और ताकतवर बनाओ. सामने वाले को बातों से डिप्लोमैटिकली झुकाओ. सुनने में कमजोर सा लगता है. पर ये सबसे सुरक्षित पॉलिसी है. उसके बाद भारत और अमेरिका के संबंध बहुत बदले. तब से भारत ने प्रगति ज्यादा की है. उतावलेपन की बजाय दूरदर्शिता ज्यादा जरूरी थी. भारत ने दुनिया के सामने ये नज़ीर रखी थी. वक्त के साथ इसे याद रखा जाएगा. भारत चाहता तो हमला कर सकता था. कोई कुछ नहीं कर पाता. भारत के पास वजह थी और ताकत भी. कोई दबा ना पाता.


यासीन भटकल, इंडियन मुजाहिदीन का पहला आतंकी जिसे दोषी पाया गया

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

Advertisement

Advertisement

Advertisement