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'द कपूर्स' के पितामह जिनकी आवाज़ के चलते दृष्टिहीन भी उनकी मूवी देखने जाते थे

आज बरसी है.

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मुग़ल-ए-आज़म में पृथ्वीराज कपूर.
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29 मई 2021 (Updated: 29 मई 2021, 06:31 AM IST) कॉमेंट्स
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सलीम तुझे मरने नहीं देगा, और हम अनारकली तुझे जीने नहीं देंगे'

ये डायलॉग सुना नहीं कि थिएटर हो या घर, सब खामोश हो जाते थे. हर जगह सन्नाटा छा जाता था. क्योंकि अकबर बोल रहे थे. पृथ्वीराज कपूर, बड़े पर्दे के उस अकबर के किरदार को कौन भूल सकता है? 'मुग़ल-ए-आज़म', जिसे हिंदी सिनेमा की ऑल टाइम ग्रेट बनाने में पृथ्वीराज का अहम योगदान रहा था. उन्होंने अकबर की भूमिका जिस शिद्दत से निभाई थी कि उसके बाद लोग अकबर की कल्पना ही पृथ्वीराज कपूर के रूप में करने लगे. बाद में अकबर का किरदार काफी लोगों ने किया लेकिन जब बादशाह अकबर का नाम लिया जाता है तो 'मुग़ल-ए-आज़म' के पृथ्वीराज ही याद आते है.

पाकिस्तान से आए थे पृथ्वीराज

पृथ्वीराज कपूर 3 नवंबर, 1906 को पैदा हुए. शहर था पंजाब का लयालपुर. जो अब पाकिस्तान में है. पापा पुलिस अफसर थे. शुरुआती पढ़ाई लयालपुर और लाहौर में ही हुई. वकील बनना चाहते थे तो पेशावर के एडवर्ड कॉलेज चले गए. वहां 2 साल का कोर्स किया. पृथ्वी का पहला प्यार फिल्में नहीं थीं. उन्हें थिएटर ज्यादा पसंद था. इसलिए जो भी पैसा कमाते सब थिएटर में लगा देते थे.

1928 में पैसे उधार लेकर मुंबई का रुख़ किया. शुरुआती दौर में इंपीरियल फ़िल्म कंपनी में काम किया. पहली फ़िल्म मिली 'एक्स्ट्रा'. साल 1929 की फ़िल्म 'सिनेमा गर्ल' में लीड रोल मिला. ये वो वक़्त था जब फिल्में साइलेंट हुआ करती थीं. पृथ्वीराज ने करीब 9 साइलेंट फिल्में की. सन् 1931 में पहली टॉकी फ़िल्म आई. नाम था 'आलम आरा'. इस फ़िल्म में पृथ्वीराज ने छोटा सा रोल किया. 1941 में आई फ़िल्म 'सिकंदर' ने बड़े पर्दे पर कमाल कर दिया. भारत में इसके 112 शहरों में कुल 2662 शो हुए.

विविध भारती के एक शो को रिकॉर्ड करते टाइम पृथ्वीराज ने अपने बारे में कहा-


मैंने फ़िल्म 'एक्स्ट्रा' में अनपेड ही काम किया था. 1 अक्टूबर, 1929 को मैंने पहला मेकअप किया. 2 अक्टूबर के शुभ दिन पर ‘पूज्य बापू’ के जन्म दिवस पर डायरेक्टर स्वर्गीय ‘बाबुती प्रसाद मिश्रा’ ने ऐलान कर दिया कि मैं उनका लीड मैन हूं. मैंने 16 बरस स्टेज पर काम किया. तो उस वक़्त मैं अपना कोई प्ले देख नहीं पाता था. क्योंकि जब आप काम कर रहे होते हैं, तब आप खुद को देख नहीं सकते. उस टाइम, हम देखने वालों की नज़रों को देखते है. जो देखा है, हमेशा दूसरों की निगाहों में ही देखा है. मैंने स्टेज को नहीं अपनाया. फ़िल्म में आने से पहले स्टेज ने मुझे अपनाया है. जब मैं तीसरी, चौथी में पढ़ता था. ‘हरीशचंद्र’ के ड्रामे में गणपत, धनपत दो दोस्तों में से एक मैं था. उसके लिए मुझे इनाम मिला. ऐसे ही आगे और ड्रामे करते रहे. जिससे स्कूल में, कॉलेज में काफी प्रोत्साहन मिला.

पृथ्वीराज की शादी बचपन में ही हो गई थी. उस वक़्त वो महज 17 साल के थे. पत्नी का नाम था रामसर्नी मेहरा. शादी के कुछ साल बाद बेटे का जन्म हुआ. नाम रखा गया राज कपूर. ये साल 1924 की बात है. इसके बाद उनके 2 बेटे ओर हुए. शम्मी कपूर और शशि कपूर. देवी और नंदी नाम से दो बेटे और थे, जिनकी अलग-अलग कारणों ने मौत हो गई थी.


पृथ्वीराज कपूर के बेटे शशि कपूर (बाएं) और शम्मी कपूर.
पृथ्वीराज कपूर के बेटे शशि कपूर (बाएं) और शम्मी कपूर.

पृथ्वी थिएटर

पृथ्वीराज की जिंदगी में एक अहम पड़ाव आया साल 1944 में. इसी साल उन्होंने पृथ्वी थिएटर की शुरुआत की. यहां कुछ बेहतरीन नाटक परफॉर्म किए जाने लगे जिनमें राज कपूर भी नजर आने लगे थे. पृथ्वी को-एक्टर्स को मोटीवेट करते लेकिन थिएटर को झटका तब लगा जब राज कपूर ने फिल्मों में जाने का मन बना लिया. साल था 1946. पृथ्वीराज ने थिएटर जारी रखा. हिंदुस्तान के हर कोने में जाकर शो किए. कुछ बरस वो अकेले कलकत्ता में ही रहे. धीरे-धीरे पृथ्वी को भी इस बात का एहसास हो गया कि थिएटर से पैसा कमाना आसान नहीं है. वो भी ट्रेवलिंग थिएटर कंपनी से. उन्होंने थिएटर भी करना जारी रखा लेकिन एक बार फिर से फिल्मों की ओर आ गए.

1954 में 'पैसा' डायरेक्ट की. इसी दौरान उनकी आवाज़ खराब हो गई. लिहाजा कुछ वक़्त के लिए फिल्मों से ब्रेक ले लिया. पृथ्वी थिएटर को भी इनके नाटक से दूर होने के कारण काफी नुकसान हुआ. बेटे शशि कपूर और पत्नी जेनिफ़र ने थिएटर ग्रुप को बचाने के लिए अपनी कोशिश जारी रखी. पृथ्वी थिएटर को शेक्सपियर थिएटर में मर्ज कर दिया. दोनों के मिलने से नया नाम रखा गया, 'शेक्सपियराना'.


पृथ्वी थिएटर.
पृथ्वी थिएटर.

जाने-माने फ़िल्म क्रिटिक और इतिहासकार प्रदीप सरदाना ने उनकी फिल्म 'सिकंदर' के बारे में बताया-


'सिकंदर' एक बहुत ही ऐतिहासिक फ़िल्म है. सोहराब मोदी और पृथ्वीराज कपूर दोनों ही बहुत उम्दा कलाकार रहे हैं. इसमें कोई शक नहीं है. जब ये टॉकी शुरू हुआ तो 1931 में सबसे पहली फ़िल्म 'आलम आरा' आई. उसमें पृथ्वीराज कपूर को लिया गया. उस वक़्त सायलेंट फ़िल्में चलती थी. जिसमें डायलॉग नहीं होते थे. सिर्फ एक्शन से बात होती थी. तो किसी ऐसे कलाकार को लेना था जिसकी आवाज में दम हो. इसी तरह सोहराब मोदी रहे. जो अपनी आवाज़ के लिए जाने जाते थे. इन दोनों कलाकारों के अभिनय और आवाज़ के कारण ही आगे चलकर नेत्रहीन लोग भी इनकी फ़िल्म देखने जाते थे. इनकी आवाज़ सुनकर ही उनको मज़ा आता था. दोनों कलाकार 'सिकंदर' के अंदर इकट्ठे हुए. पापाजी ने सिकंदर की भूमिका की और सोहराब मोदी ने पोरस की.
हालांकि फ़िल्म के बीच में ऐसा हुआ कि दोनों के बीच में किसी बात को लेकर मन मुटाव हो गया. 'सिकंदर' जब बन रही थी तो आउटडोर शूटिंग शेड्यूल चल रहा था. सोहराब मोदी बहुत सख़्त थे. वक़्त के भी वो बहुत पाबंद थे. लेकिन पृथ्वीराज कपूर ने देखा कि बड़े कलाकारों को सारी सुविधाएं मिली हुई हैं. बाकी 70-80 लोगों को एक ही हॉल में ठहराया हुआ है. जहां एक ही वॉशरूम है. वो लोग जल्दी-जल्दी तैयार होते. पर हर दिन कोई ना कोई लेट हो ही जाता. सोहराब मोदी उनको बुरी तरह डांटते. एक दिन पृथ्वीराज ने कह दिया मैं आज काम नहीं करूंगा. सोहराब ने पूछा क्या हुआ. तब उन्होंने बताया कि देखिए ये बात है. जब तक इन लोगों की समस्या हल नहीं होगी. मैं काम नहीं करूंगा. तब सोहराब ने उनकी परेशानी समझी और उन लोगों की मदद की.

जब पृथ्वीराज कपूर गर्म रेत पर नंगे पैर चलकर गए

पृथ्वी विलास की को राइटर दीपा गहलोत बताती हैं -


"इतने बड़े स्टार होने के बावजूद भी उनमें नखरे नहीं थे. मैंने सुना है कि मुग़ल-ए-आज़म के टाइम पर एक सीन था. जिसमें गर्म रेत पर चलकर अजमेर में मन्नत मांगने जाना था. उस वक़्त पृथ्वीराज सच में गर्म रेत पर चले थे. क्योंकि उनको लगा कि असली इफैक्ट आने के लिए यही सही है.

जब पृथ्वीराज कपूर का नाम दिलीप कुमार और मधुबाला के ऊपर रखा गया 

क्रिटिक प्रदीप सरदाना ने बताया -


दिलीप कुमार और मधुबाला चाहते थे कि फिल्म क्रेडिट्स में उनका नाम पहले आए. क्योंकि वो फ़िल्म के हीरो-हीरोइन हैं. पृथ्वीराज का नाम पहले कैसे आ रहा है? पृथ्वीराज ने कहा, दे दो यार, उनका नाम पहले दे दो. उन्होंने कहा नहीं साहब, हीरो आप हैं इस फ़िल्म के. वो ये भूल रहे हैं. ये फ़िल्म ‘सलीम अनारकली’ नहीं है. ये फ़िल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ है. डायरेक्टर के. आसिफ इस बात पर अड़ गए और पृथ्वीराज कपूर का नाम पहले दे दिया.

जब राज कपूर ने अपने पापा को कार खरीदने के लिए एक ब्लैंक चेक दिया

पृथ्वीराज कपूर ने अपनी पहली आमदनी से 1938 मॉडल की ओपल कार खरीदी थी. उन्होंने सालों तक उसे नहीं बदला. कई साल बाद जब राज कपूर स्टार बन गए तो उन्होंने अपने पिता को कार खरीदने के लिए एक ब्लैंक चेक दिया. पृथ्वीराज ने उस पर अमाउंट की जगह लिखा, ‘विद लव’ और अपनी जेब में रख लिया. जब भी उनसे कोई मिलने आता, वो बड़े गर्व से राज कपूर का दिया हुआ ब्लैंक चेक दिखाते. पचास के दशक के अंत में कहीं जा के उन्होंने अपने लिए एक ‘स्टैन्डर्ड हैराल्ड’ कार खरीदी. जिसे वो खुद ड्राइव किया करते थे.

माइक पर बोलना पसंद नहीं था

पृथ्वीराज को माइक इस्तेमाल करने से नफ़रत थी. ‘रोयल ओपरा हाउस’ में जब उनका नाटक खेला जाता तो बिजली के पंखे बंद कर दिए जाते. दर्शकों को हाथ से झन्नी वाले पंखे दिए जाते. 50 के दशक तक पृथ्वीराज की आवाज़ इतनी खराब हो चुकी थी कि एक फ़िल्म ‘तीन बहुरानियां’ में उनकी आवाज़ किसी और अभिनेता ने डब की थी.


पृथ्वीराज कपूर.
पृथ्वीराज कपूर.

29 मई 1972 में पृथ्वीराज की 66 साल की उम्र में कैंसर के कारण मौत हो गई. जब उनके शव को उनके माटुंगा वाले घर में लाया गया तो राज कपूर ने अपनी मां से कहा पापाजी आ गए. उन्होंने उनके शव के अंतिम दर्शन नहीं किए. वो उनके जिंदा रहने की याद को ताउम्र अपने दिल में रखना चाहती थी. जब उनके बेटे उनकी अस्थियों को लेकर हरिद्वार जा रहे थे, तो उन्होंने शशि और शम्मी से कहा कि वो उनके पास ही रहे और हरिद्वार ना जाएं. पृथ्वीराज के जाने के 16 दिन बाद यानी 14 जून को उनकी पत्नी रामसर्नी की भी मौत हो गई थी. वो दोनों ही काफी समय से कैंसर से जूझ रहे थे.

पृथ्वीराज की कुछ मशहूर फ़िल्मों के कुछ फेमस डायलॉग

मुग़ल-ए-आज़म (1960)


# बाखुदा, हम मोहब्बत के दुश्मन नहीं, अपने उसूलों के गुलाम है. एक गुलाम की बेबसी पर गौर करोगी तो शायद तुम हमें माफ कर सको.

सिकंदर (1941)


# हमने आज तक किसी को सलाम नहीं किया लेकिन आप बहादुर हैं. हम आपको सलाम करते हैं.

आवारा (1951)


# मेरा भी यही ऊसूल रहा है. दुनिया बकती है तो बकने दो.

राजकुमार (1964)


# कुछ भी कहो कुछ भी करो, मुझे राजकुमार चाहिए… अपना राजकुमार.



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