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1857-1947 तक शहीद हुए भारतीयों की हर जानकारी यहां मिलेगी

डिक्शनरी ऑफ मार्टर्स में 13,500 शहीदों के ब्यौरे दर्ज हैं.

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शहीदों के नाम संजोने का ये सिलसिला यूपीए-1 के दौर में शुरू हुआ था. इसे पूरा किया गया मौजूदा एनडीए सरकार के दौर में.
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रजत
8 मार्च 2019 (Updated: 13 मार्च 2019, 07:25 AM IST) कॉमेंट्स
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शहीद. एक ऐसा शब्द, जिसे लेकर हाल के दिनों में काफी चर्चा और बहस हुई. मांग उठी कि CRPF के लोगों को भी शहीद का दर्जा मिले. तब सरकार ने बताया था कि शहीद को कोई परिभाषा सेना में इस्तेमाल नहीं होती. लेकिन शहादत भावनात्म मुद्दा भी है. कई बार आपने उन मीडिया रिपोर्ट्स पर गौर किया होगा जिनमें पूछा जाता है कि आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए जान देने वाले नायकों को वो आधिकारिक तौर पर शहीद मानती है कि नहीं. तब सरकार पसोपेश में पड़ जाती थी. लेकिन अब एक अच्छी चीज़ हुई है. भारत में डिक्शनरी ऑफ मार्टर्स बनाने का काम पूरा हो गया है. 7 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिक्शनरी ऑफ मार्टर्स के आखिरी खंड को लॉन्च किया.
इस डिक्शनरी के 3 खंड यूपीए के दौर में लॉन्च किए गए थे. आखिरी दो खंड मोदी सरकार के दौर में लॉन्च हुए.
इस डिक्शनरी के 3 खंड यूपीए के दौर में लॉन्च किए गए थे. आखिरी दो खंड मोदी सरकार के दौर में लॉन्च हुए.

डिक्शनरी ऑफ मार्टर्स
डिक्शनरी ऑफ मार्टर्स का मतलब है वो डिक्शनरी जिसमें शहीदों के नाम दर्ज हों. इसमें ब्रिटिश हुकूमत से भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले नायकों के नाम दर्ज हैं. इसे संजोने का काम किया है इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टॉरिकल रिसर्च (ICHR) ने. इस डिक्शनरी में साल 1857 में हुए पहले विद्रोह से लेकर आजादी मिलने तक हुए शहीदों का ब्यौरे दर्ज हैं.
डिक्शनरी में शहीद की परिभाषा क्या है? इस डिक्शनरी में मार्टर्स यानी शहीद शब्द का इस्तेमाल उस व्यक्ति के लिए किया है जो-
किसी एक्शन या हिरासत में मारे गए या आजादी मांगने के लिए सूली पर चढ़ा दिए गए.
इस डिक्शनरी में इंडियन नेशनल आर्मी और मिलिटरी में रहे लोगों का नाम भी हैं जो ब्रिटिश हुकूमत से लड़ते हुए शहीद हुए. इस डिक्शनरी में 1857 के संग्राम के अलावा 1919 में हुए जलियांवाला बाग, असहयोग आंदोलन (1920-22), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34), और भारत छोड़ो आंदोलन  (1942-44) के शहीदों को शामिल किया गया है. इनके अलावा 1915 से 34 तक चले कई क्रांतिकारी आंदोलनों के शहीदों को भी जगह दी गई है. ब्रिटिश हुकूमत में किसानों और आदिवासियों ने कई आंदोलन किए थे. इन्हें भी डिक्शनरी में शामिल किया गया है. इसके अलावा, इंडियन नेशनल आर्मी (1943-45) के बलिदान को भी शामिल किया गया है. आखिर में रॉयल इंडियन नेवी के विद्रोह को भी जोड़ा गया है.
नेता जी सुभाष चंद्र बोस की बनाई इंडियन नेशनल आर्मी में रहे जवानों को भी इस डिक्शनरी में शामिल किया गया है.
नेता जी सुभाष चंद्र बोस की बनाई इंडियन नेशनल आर्मी में रहे जवानों को भी इस डिक्शनरी में शामिल किया गया है.

कितने नाम हैं डिक्शनरी में
पांच खंडों में छपी इस डिक्शनरी में 13,500 शहीदों का ब्यौरे हैं. इन खंडों को इलाके के हिसाब से बांटा गया है.
#पहले खंड के दो हिस्से हैं. इसमें 4400 से ज्यादा शहीदों की जानकारी दर्ज की गई है. ये सभी शहीद-
दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल से थे.
#दूसरे हिस्से में 3500 शहीदों की जानकारी है. ये शहीद-
यूपी, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और जम्मू कश्मीर को शामिल किया गया है.
#तीसरे खंड में 1400 शहीदों की जानकारी है. ये सभी शहीद-
महाराष्ट्र, गुजरात और सिंध के रहने वाले थे.
#चौथे खंड में-
नॉर्थ-ईस्ट, बंगाल, बिहार, झारखंड, और उड़ीसा के 3300 शहीदों के ब्यौरे दर्ज हैं.
#पांचवे और आखिरी खंड में 1450 शहीदों का नाम दर्ज है. इसमें दक्षिण भारत के राज्यों को शामिल किया गया है.
ये शहीद आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडू और केरल के रहने वाले थे.
कुल पांच खंडों में छपी इस डिक्शनरी में पहले और दूसरे खंड के दो-दो हिस्से हैं. ऐसी डिक्शनरी को बनाने का पहला प्रयोग 1969 में हुआ था.
कुल पांच खंडों में छपी इस डिक्शनरी में पहले और दूसरे खंड के दो-दो हिस्से हैं. ऐसी डिक्शनरी को बनाने का पहला प्रयोग 1969 में हुआ था.

कैसे बनाई गई ये डिक्शनरी इस डिक्शनरी को बनाने के लिए ICHR की मदद की नेशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया और नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी ने. एक समाचार चैनल से बात करते हुए इस डिक्शनरी के कार्यकारी संपादक राजननीश शुक्ला ने बताया कि
 लोग शहीदों के बारे में जनना चाहते हैं लेकिन कोई खास जानकारी उपलब्ध नहीं थी. पहले 1857 से 1947 तक शहीद हुए करीब 14000 शहीदों की पहचान की. इन सभी शहीदों का आजादी के लिए किया संघर्ष इस डिक्शनरी में दर्ज़ है. इसके लिए ग्राउंड पर जाकर चीजें जांची गई हैं. विचारधारा और राजनीतिक जुड़ाव को किनारे रखते हुए डिक्शनरी में शहीदों का नाम दर्ज किया गया है.
कब शुरू हुआ था काम? काम शुरु हुआ था 2009 में. 1857 की लड़ाई की 150वीं सालगिरह पर संस्कृति मंत्रालय ने इस डिक्शनरी को बनाने का काम शुरू किया था. पहले 3 खंड 2011 से लेकर 2014 के बीच आए. बाकी दो खंड मोदी राज में आए. इनमें दक्षिण और पूर्व के शहीदों के नाम हैं.
भारत सरकार की ओर से भगत सिंह को शहीद ना मानने की अफवाह उड़ी थी. जिसके बाद सरकार ने सरकार ने इसपर सफाई दी. पुरानी डिक्शनरी के हिसाब से भगत सिंह और साथियों को शहीद का दर्जा दिया गया है.
भारत सरकार की ओर से भगत सिंह को शहीद ना मानने की अफवाह उड़ी थी. जिसके बाद सरकार ने सरकार ने इसपर सफाई दी. पुरानी डिक्शनरी के हिसाब से भगत सिंह और साथियों को शहीद का दर्जा दिया गया है.

पहले भी आई हैं इस तरह की डिक्शनरीज़ इस तरह का पहला प्रयोग 1969 में हुआ था. नाम दिया गया था- Who’s who of Indian Martyrs. इसके बाद 1972 और 1973 में दो और खंड आए थे. इन तीनों खंडों के संपादक रहे थे P.N. Chopra. उस समय शहीद की परिभाषा थी-
वो देशभक्त जो आजादी की लड़ाई में मारे गए या जिन्हें फांसी की सजा मिली हो.
भारत में कुछेक किताबों में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को अलग-अलग हवालों से उग्रवादी कहा जाता रहा है. इसपर भारी विवाद होता रहा. 2017 के आसपास अफवाह उड़ी कि भारत सरकार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को शहीद नहीं मानती. सरकार ने इस बात से इंकार कर दिया. लेकिन स्थिति ज्यादा साफ नहीं हो पाई. आखिर में नवंबर 2018 के पहले हफ्ते में केंद्रीय सूचना आयोग ने गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर जानकारी चाही कि क्या भगत सिंह और साथियों को शहीद का दर्जा दिया जा सकता है? और अगर नहीं, तो क्या कारण है? गृह मंत्रालय ने जवाब भी दिया. कहा कि गृह मंत्रालय ऐसी सूची नहीं रखता. मामला नेशनल आर्काइव्स को भेज दिया गया. न्यूज़ 18 की वेबसाईट पर छपी एक रिपोर्ट में राजननीश शुक्ला बताते हैं कि
नई डिक्शनरी में P.N Chopra की बनाई डिक्शनरी की तरह भगत सिंह और साथियों को शहीद माना गया है. इस डिक्शनरी में उग्रवादी और आतंकवादी जैसे शब्दों से परहेज किया गया है. 
भगत सिंह पर रिसर्च करने वाले और जेएनयू में डीन रहे प्रफेसर चमन लाल कहते हैं कि
देश में आजतक सरकारों ने शहीदों के नाम का इस्तेमाल सिर्फ जनता को खुश रखने के लिए किया है. भगत सिंह की लड़ाई सिर्फ अग्रेजों से नहीं थी. वो जमींदारों, गरीबों और मज़दूरों का शोषण करने वाले हर शख्स से लड़ रहे थे. ऐसे शहीदों के नाम पर अफवाह उड़कार सब अपने अपने फायदे देखते हैं.
प्रफेसर चमन लाल को हाल ही में दिल्ली सरकार ने भगत सिंह आर्काइव्स में एडवाइज़र नियुक्त किया है.
प्रफेसर चमन लाल को हाल ही में दिल्ली सरकार ने भगत सिंह आर्काइव्स में एडवाइज़र नियुक्त किया है.
बहरहाल, ये डिक्शनरी एक नायाब दस्तावेज़ है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी.


वीडियो- बतौर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का पहला राजनीतिक भाषण

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