भगवान के अवतार परशुराम की अम्मा एक बार गंगा नदी से पानी लाने गईं. नदी में गंधर्वराज चित्ररथ कुछ अप्सराओं के साथ क्वालिटी टाइम बिता रहे थे. परशुराम की अम्मा चित्ररथ से अट्रैक्ट हो कर वहीँ रुक गईं और भूल गईं कि परशुराम के पापा के हवन का समय हो गया है.
जब घर पहुंचीं तो याद आया कि पाप के लेवल का काम हो गया है उनसे, तो हाथ जोड़कर खड़ीं हो गईं. पर एक ऋषि के गुस्से पर कोई जोर नहीं होता, और ऋषि जमदग्नि तो गुस्सा किंग परशुराम के भी पापा थे. लड़कों को बोला, काट डालो अपनी अम्मा को. लड़के बेचारे अम्मा को भला कैसे मारते? पापा और गुस्साए. तब तक परशुराम आए. पापा ने कहा, बेटा परशु, खत्म कर दो इन गद्दारों को.
परशुराम भी ऐसे वैसे आदमी नहीं थे, थे बड़े चालाक. खटाक से अम्मा और भाइयों को मार दिया. जब पापा ने उनसे खुश होकर पूछा कि मेरी बात मानने के बदले में तुम्हें क्या चाहिए, तो उन्होंने मांगा कि मां और भाई ज़िंदा हो जाएं और जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाएं.
(श्रीमद्भागवत महापुराण, नौवां स्कंध, सत्रहवां अध्याय)