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OECD का ये फैसला भारत में मौज काट रही मल्टीनेशनल कंपनियों को सिरदर्द देने वाला है?

सही पकड़े, मामला टैक्स से जुड़ा है.

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OECD 38 देशों की एक संस्था है, जिसका हिस्सा भारत भी है. फ़ोटो- आजतक.
23 दिसंबर 2021 (Updated: 23 दिसंबर 2021, 16:36 IST)
Updated: 23 दिसंबर 2021 16:36 IST
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ऑर्गेनाइजेशन फ़ॉर इकनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलेपमेंट यानी कि OECD ने मल्टीनेशनल कंपनियों पर 15 प्रतिशत ग्लोबल टैक्स लगाने का फ़ैसला लिया है. 20 दिसम्बर को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर उसने इस फैसले का ऐलान कर दिया. भारत भी 38 देशों की सदस्यता वाले OECD का हिस्सा है, इसलिए उसके इस फैसले का असर यहां भी पड़ेगा. मल्टीनेशनल कंपनियों के 15 प्रतिशत टैक्स भरने को लेकर अभी भारत सरकार का कोई भी प्रावधान नहीं है. फ़िलहाल वो किसी भी मल्टीनेशनल कंपनी को पूरी टैक्स रियायत दे सकती है. लेकिन OECD के इस नए फ़ैसले के बाद आने वाले बजट में सरकार को ये प्रावधान करना पड़ेगा. क्या है OECD? OECD 1961 में 38 देशों की सरकारों को मिलाकर बनाई गई एक इंटर-गर्वन्मेंटल संस्था है. इसका उद्देश्य इन 38 देशों और दुनिया के बाक़ी देशों के आर्थिक विकास और व्यापार को बढ़ावा देना है. ये एक ऐसा मंच है जिसमें सरकारें अपने अनुभवों को साझा करती हैं और उनके सामने आने वाली आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक चुनौतियों का समाधान निकालती हैं. OECD का कार्यालय फ्रांस की राजधानी पेरिस में है. भारत के साथ अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, कोरिया जैसे देश इसमें शामिल हैं. ये तो हुआ OECD का छोटू सा परिचय. अब मुद्दे पर आते हैं. मौजूदा नियमों के मुताबिक़, भारत में घरेलू निजी कंपनियों के अलावा मल्टीनेशनल कंपनियों को भी टैक्स भरना पड़ता है. उन्हें भारत में की कमाई के हिस्से पर टैक्स देना होता है. इसमें रियायत देने का पूरा अधिकार भारत सरकार को है. और भी सदस्य देश ये रियायत देते हैं. लेकिन OECD के फ़ैसले के बाद हर एक सदस्य देश में मल्टीनेशनल कंपनियों को न्यूनतम 15 प्रतिशत टैक्स भरना पड़ेगा. अगर वे ऐसा नहीं करतीं तो इन देशों के पास कंपनियों के ख़िलाफ़ ज़्यादा टैक्स या जुर्माना लगाने का अधिकार होगा. 112 अरब रुपए टैक्स ज़्यादा भरा जाएगा OECD के इन नियमों में कुछ और बातों का ज़िक्र भी है. इनमें एक 'पिलर टू मॉडल' की बात की गई है. इस मॉडल के तहत अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण और वैश्वीकरण से उत्पन्न होने वाली कर चुनौतियों का समाधान करने पर भी ज़ोर दिया गया है. भारत सहित G20 2021 समिट में हिस्सेदारी करने वाली सरकारों को एक सटीक टेम्पलेट सौंपा गया है जिससे ऐसे मसलों का निवारण हो सके. इन नियमों के तहत जिस भी मल्टीनेशनल कंपनी का टोटल रेवेन्यू 63 अरब रुपये होगा, उस पर ये ग्लोबल टैक्स लागू होगा. OECD का अनुमान है कि इससे सालाना दुनियाभर में अतिरिक्त कर राजस्व के रूप में लगभग 112 अरब रुपए भरे जाएंगे. जाहिर है इससे भारत और अन्य देशों में सक्रिय मल्टीनेशनल कंपनियों की टेंशन बढ़ने वाली है. भारत सरकार देती है भारी टैक्स रियायत ऊपर हमने बताया कि भारत में मल्टीनेशनल कंपनियों को भारी टैक्स रियायत दी जाती रही है. 20 सितंबर 2019 को बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने कॉर्पोरेट घरानों का टैक्स 30 प्रतिशत से कम करके 22 प्रतिशत कर दिया था. इसके अलावा नई मैन्युफ़ैक्चरिंग कंपनियों के लिए इसे 25 प्रतिशत से कम करके 15 प्रतिशत कर दिया था. पिछले 28 सालों में की गई कॉर्पोरेट टैक्स कटौतियों में ये सबसे ज़्यादा था. 2014 से 2019 के बीच केंद्र में अपने पहले कार्यकाल के दौरान BJP सरकार ने कॉर्पोरेट घरानों को टैक्स में भारी छूट प्रदान की थी. इन बीते सालों के बजट दस्तावेजों के मुताबिक़ कंपनियों को कुल 4.32 लाख करोड़ की रियायत दी गई है, जो हर साल बढ़ती है. 2014-15 में 65,067 करोड़ रुपए से बढ़कर 2018-19 में लगभग 1.09 लाख करोड़ रुपए की रियायत दी गई थी. ये तमाम रियायतें या छूट पाने वाली कई कंपनियां मल्टीनेशनल थीं.

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