The Lallantop
Advertisement

नूह में हिंसा भड़की या भड़काई गई? खट्टर सरकार और हरियाणा पुलिस के पास क्या इसका जवाब है?

आखिर हरियाणा में मचे बवाल का जिम्मेदार कौन है?

Advertisement
nuh violence
नूह हिंसा में दो होम गार्ड और एक आम आदमी की मौत
pic
आयूष कुमार
1 अगस्त 2023 (Updated: 1 अगस्त 2023, 22:35 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

पथराव, आगजनी, फायरिंग, हत्या. जिधर देखेंगे उधर जली हुई गाड़ियां, टूटे हुए कांच, बिखरे हुए पत्थर दिखेंगे. और दिखेगी नफरत. एक दूसरे को मारने-काटने की नफरत. ये राजधानी दिल्ली से सिर्फ 80 किलोमीटर दूर पड़ने वाले हरियाणा के नूह का मंजर है. यहां से शुरु हुआ पागलपन बढ़ते-बढ़ते दिल्ली के ठीक बगल में पड़ने वाले गुरुग्राम तक पहुंच गया. इतनी भीषण हिंसा हुई कि एक दिन तो प्रेस भी मामले को ढंग से रिपोर्ट नहीं कर पाई. पुलिस वालों पर गोलियां चल गईं. कोई जान बचाने मंदिर में छिपा तो किसी को मस्जिद में घुस के मार डाला गया. 

नूह की इस कहानी का एक सिरा है. जिस पर बात किए बिना बवाल की तह तक नहीं पहुंचा जा सकता.

हम पूरी घटना बताएंगे. लेकिन पहले आप नक्शे पर नूह को समझ लीजिए. हरियाणा और राजस्थान के कुछ इलाकों को मिलाकर बनता है मेवात रीजन है. इसी रीजन में नूह भी आता है. यहां 80 फीसदी मुस्लिम आबादी है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, यहां की आबादी तकरीबन 11 लाख है. इसमें 80 फीसदी मुस्लिम हैं. यहां के पिछड़ेपन की बात करेंगे तो आप 1947 से भी तुलना कर सकते हैं. क्योंकि आज़ादी के बाद से देश तो आगे बढ़ गया. लेकिन शायद मेवात वहीं ठहर गया. मीडिया रिपोर्टस की माने तो 2018 की नीति आयोग की रिपोर्ट में नूह की गिनती सबसे पिछड़े जिलों में की गई. यहां पुरुषों की साक्षरता दर यहां 70 फीसदी है और महिलाओं की तो सिर्फ 37 फीसदी.

लेकिन बीते कुछ सालों से अगर आप गौर करें तो मेवात राजनीतिक तौर पर ज्वलंत हो गया है. गौहत्या और गोरक्षा इस इलाके के सबसे हॉट टॉपिक हैं. यहां महापंचायतें होती हैं. जिनमें दूसरे समुदाय के लिए भड़काऊ बयानबाजी होती है. और सबसे अहम ये कि सब प्रशासन और सरकार की निगरानी में हो रहा है. आप नूह या मेवात के साथ महापंचायत को गूगल या यूट्यूब पर सर्च करके देख सकते हैं. हम क्या कह रहे हैं, आप अच्छे से समझ जाएंगे.

इसी नूह में 'बृज मंडल जलाभिषेक यात्रा' निकलनी थी. यात्रा बहुत पुरानी नहीं है, तीन साल से ही आयोजन हो रहा है. 31 जुलाई को यात्रा निकलना तय था. लेकिन यात्रा से दो दिन पहले ही मोनू मानेसर का एक वीडियो आता है. मोनू मानेसर का कच्चा चिट्ठा आपको विस्तार से भी बताएंगे लेकिन अभी संक्षिप्त में समझ लीजिए. मोनू बजरंग दल का सदस्य है. खुद को गौ रक्षक कहता है. इसी साल 15 फरवरी को हरियाणा के भिवानी में नासिर और जुनैद के जले हुए शव मिले थे. इस हत्या कांड में मोनू मानेसर नामजद है.

इसी मोनू मानेसर ने नूह में यात्रा से दो दिन पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया. वीडियो में ये खुद को बजरंग दल का प्रांत गोरक्षा प्रमुख बताता है. और कहता है कि वो बृज मंडल यात्रा में अपनी टीम के साथ शामिल होगा. और लोगों से अपील करता है कि बढ़-चढ़ कर इस धार्मिक यात्रा में शामिल हों. मोनू मानेसर का वीडियो आप खुद देख लीजिए.

ये मैसेज एक माचिस की तीली थी. जो अभी जली नहीं थी. मोनू का ये मैजेस जैसे ही वायरल हुआ, मुस्लिम पक्ष ने विरोध करना शुरू कर दिया. नूह के स्थानीय बताते हैं कि मुस्लिम समाज से जुड़े लोगों ने सोशल मीडिया पर मोनू मानेसर के खिलाफ पोस्ट लिखे. यानी एक बात पर गौर करिए. नूह का माहौल पूरे दो दिन से तनावपूर्ण था. हिंसा 31 जुलाई को जाकर शुरू हुई. माने खट्टर सरकार के पास तैयारी का पूरा अवसर था. लेकिन वो वो उस अवसर को धरे बैठे रहे.

31 तारीख की सुबह नल्हड़ से यात्रा होनी थी. यात्रा का आयोजन बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता कर रहे थे. नल्हड़ से शुरू होकर यात्रा शहर के अलग-अलग मंदिरों से होते हुए श्रंगार मंदिर तक जानी थी. कार्यक्रम शुरू हो रहा था. मोनू मानेसर पहुंचा नहीं था. और अंततः भाजपा ज़िलाध्यक्ष गार्गी कक्कड़ ने हरी झंडी दिखाकर यात्रा को रवाना कर दिया. स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि दूसरी तरफ के लोगों ने जीत का ऐलान कर दिया. कहा गया कि आखिरकार मोनू नहीं आया. जीत हो गई है.

लेकिन बात अभी खत्म नहीं हुई थी. यात्रा के चलते-चलते भी ये कयास और अफवाहें बरकरार रहे कि मोनू बीच यात्रा में आ सकता है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये दावा भी किया गया कि मोनू मानेसर यात्रा में शामिल होने के लिए आ रहा था. पर पुलिस ने उसे मानेसर में ही रोक दिया. हालांकि इन खबरों की पुष्टि नहीं हुई है. खबरें ये भी आईं कि विश्व हिंदू परिषद के ही कुछ आला अधिकारियों ने मोनू को यात्रा में शामिल होने से मना किया था. अगर इन बातें में दम है, तो इसका मतलब यही हुआ आयोजक और प्रशासन - दोनों जानते थे कि मोनू के यात्रा में शामिल होने से माहौल खराब होने की संभावना है. इतने में बृज यात्रा जब तिरंगा चौक पहुंची तो ये अफवाह फैल गई कि मोनू मानेसर आ गया है.

माचिस की तीली में आग लगा दी गई थी. बवाल मच गया. पत्थरबाजी, तोड़फोड़, आगजनी शुरू हो गई. थोड़ी ही देर में पूरा शहर हिंसा में जद में था. हिंसा जब शुरू हुई तो यात्रा में शामिल लोगों ने खुद को बचाने के लिए नल्हड़ मंदिर में छिपना मुनासिब समझा. लेकिन मंदिर से निकलने का संकरा रास्ता था. सामने हथियारबंद भीड़ थी. बताया जा रहा है कि इस दौरान पहाड़ी के ऊपर से भीड़ फायरिंग भी कर रही थी. यानी मंदिर में जो लोग छिपे थे वो फंस गए.

यहां एक बार फिर खट्टर सरकार पर सवाल खड़े होते हैं. जिस नाटकीयता के साथ यात्रा पर हमला हुआ, पहाड़ी पर से फायरिंग हुई, उसका संकेत यही है कि दूसरे पक्ष ने तैयारी की थी. और इस तैयारी में हथियारों को भी इकट्ठा किया गया था. ये सब होता रहा और पुलिस की इंटेलिजेंस विंग सोती रही. ऐसी तस्वीरें भी हैं, जिनमें यात्रा में शामिल लोगों के पास तलवारें और बंदूकें नज़र आईं. प्रशासन की कथित अनुमति से निकली यात्रा, जिसके साथ पुलिस खुद भी चल रही थी, उसमें ऐसे हथियारों पर गौर क्या तभी गया, जब बवाल हो गया? इन सवालों के जवाब मनोहर लाल खट्टर और अनिल विज को देने होंगे.

इस तरह के सवालों की हमारे पास लंबी सूची है. फिलहाल घटनाक्रम पर लौटते हैं. मोनू के आने की अफवाह से दंगा भड़क गया. लोग जान छिपाने मंदिर में छिपे. जब ये बात मीडिया में आई तो हरियाणा के गृहमंत्री ने मीडिया से कहा कि मंदिर में तीन से चार हजार लोग फंसे थे. उन्हें रेस्क्यू करने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल भेजा जा रहा है. बहरहाल, आस-पास के ज़िलों से अतिरिक्त पुलिसबल पहुंचा. हमलावर भीड़ को तितर-बितर किया गया. और मंदिर में फंसे लोगों को रेस्क्यू किया गया.

हालांकि तब पूरा नूह हिंसा की चपेट में आ चुका था. दोनों तरफ के लोग एक दूसरे को मारने-काटने को आतुर थे. इस हिंसा में 3 लोगों की मौत हुई. दो होमगार्ड और एक आम नागरिक की जान चली गई. 50 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. दंगाइयों ने 80 से ज्यादा गाड़ियों को आग लगा दी.

तिरंगा चौक के बाद नूह के बड़खली इलाके में भी भयानक हिंसा हुई. उपद्रवियों ने फायर ब्रिगेड की गाड़ी फूंक दी. वहां खड़ी गाड़ियों में तोड़फोड़ हुई. पुलिस चौकी में भी भीड़ में जमकर उत्पात मचाया.

इसके अलावा नूह के साइबर थाने में जमकर फोड़फोड़ की गई. साइबर थाने में तैनात सिपाही के मुताबिक करीब एक हजार लोगों की भीड़ ने थाने पर हमला किया. थाने के बाहर खड़ी चार गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया. SHO की दो गाड़ियों में तोड़फोड़ की गई. थाने के मेन गेट को तोड़ने की कोशिश की गई. नहीं टूटा तो गेट में बस घुसा दी.

हिंसा के दौरान दंगाइयों का अमानवीय रूप भी दिखा. नूह चौक से कुछ दूर पर अलवर हॉस्पिटल है. वहां चार घायल पुलिसकर्मियों का इलाज चल रहा था. भीड़ ने पहले अस्पताल के बाहर लगे CCTV को तोड़ा. उसके बाद अस्पताल पर भी हमला किया. इसके अलावा नूह में एक बेकरी पर भी हमला हुआ.

नूह से फैली हिंसा की चपेट में गुरुग्राम भी आया. 31 जुलाई और 1 अगस्त की दरमियानी रात गुरुग्राम के सेक्टर 57 में भीड़ ने एक मस्जिद को आग लगा दी. पुलिस का कहना है कि मस्जिद पर 70-80 लोगों की भीड़ ने हमला किया था. मस्जिद में सिर्फ आग ही नहीं लगाई गई. फायरिंग भी हुई. इस हमले में मस्जिद के एक नायब इमाम की मौत हो गई जबकि एक और शख्स घायल है. बताया जा रहा है कि जिस मस्जिद में आग लगाई गई थी वो अंडर कंस्ट्रक्शन थी. ये बात सही है कि वहां कुछ निर्माण चल रहा था. लेकिन वो एक मस्जिद थी, जहां नियमित रूप से लोग नमाज़ अदा करने जाते थे. सेक्टर 57 की मस्जिद के अलावा सोहना में भी हिंसा हुई. सोहना के दुकानों में तोड़फोड़ हुई. आगजनी हुई.

नूह में दंगाइयों ने ना वर्दी की कद्र की, ना मानवता की. कई पुलिसकर्मी घायल हुए. लेकिन यहां सवालों के घेरे में पुलिस प्रशासन भी है. बृज मंडल यात्रा की इजाजत पहले से ले ली गई थी. मोनू मानेसर का वीडियो आ गया था. मोनू मानेसर के विरोध में भी वीडियो सोशल मीडिया पर तैर रहे थे. शहर में माहौल पहले से ही तनावपूर्ण था. यानी हिंसा की संभावना पहले से थी. तो पर्याप्त पुलिसबल को क्यों नहीं तैनात किया गया? क्या लोकल इंटेलिजेंस की तरफ से कोई इनपुट नहीं था?

हालांकि, राज्य के गृहमंत्री अनिल विज का दावा है कि पुलिस फोर्स तो पर्याप्त तैनात थी. तो ये बताइए गृहमंत्री जी, कि फिर हिंसा इतने बड़े स्तर पर होने क्यों दी गई? इन सवालों के जवाब विज कब देंगे, कोई नहीं जानता. फिलहाल वो एक अलग टेंजेंट पर अपनी बात रख रहे हैं. जांच से पहले ही कह दे रहे हैं कि मोनू मानेसर का इस बवाल से लेना देना नहीं है.

इतना ही नहीं, मोनू का एक वीडियो और आया जिसमें लिखा था- जब कह दिया तो आना ही है. मोनू एक अकेला नाम हो सकता है. लेकिन वो एक पूरे तंत्र का प्रतिनिधित्व करता है. मोनू मानेसर और उसके लोग इस हिंसा के जिम्मेदार हैं या नहीं, ये जांच के बाद सामने आ ही जाएगा. लेकिन यहां जरूरी है मोनू का इतिहास जानना.

मोहित यादव उर्फ मोनू मानेसर हरियाणा के बजरंग दल का सदस्य है. साल 2011 में मोनू, बजरंग दल से जुड़ा था. मोनू ने मानेसर के एक पॉलीटेक्निक कॉलेज से डिप्लोमा किया है. मोनू हरियाणा सरकार की गोरक्षक टास्क फोर्स का जाना-पहचाना चेहरा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मोनू और उसका नेटवर्क साल 2017 से एक्टिव है. उसके मुखबिरों का नेटवर्क हरियाणा के पानीपत, सोनीपत, गुरुग्राम, रेवाड़ी, नूह, पलवल और झज्जर समेत कई अन्य शहरों में फैला हुआ है. जहां उसकी टीम और बजरंग दल के लोग हरियाणा पुलिस के साथ मिलकर काम करते हैं.

मोनू सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव है. उसके अच्छे खासे फॉलोवर्स हैं. फेसबुक पर करीब 83 हजार और यूट्यूब पर दो लाख लोग मोनू मानेसर को फॉलो करते हैं. मोनू अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर कथित गोतस्करों का पीछा करने के वीडियो अपलोड करता रहता है. इन वीडियोज में वो कई बार ‘जब तक तोड़ेगा नहीं, तब तक छोड़ेगा नहीं’ लिखकर शेयर करता है. वो ट्रकों पर ऊपर चढ़कर फोटो खिंचवाता है और फिर उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करता है. उसके मुताबिक, ये ट्रक कथित गोतस्करी में शामिल होते हैं. नेशनल हाइवे पर पूरे ट्रैफिक के बीच जिस तरह मोनू और उसके लोग ट्रक्स को चेज़ करते हैं, बीच ट्रैफिक में गोलियां चलाते हैं, ये सब सोशल मीडिया पर मौजूद वीडियो में नज़र आता-रहता है.

लेकिन मोनू पर जो आरोप लगे हैं उनका कथित गौरक्षा से दूर दूर तक लेना देना नहीं है. पहला मामला. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक मोनू और उसकी टीम ने 28 जनवरी को तावड़ू में गोतस्करी के शक में एक 22 साल के युवक को पकड़ा था, जिसका नाम वारिस था. मोनू के सोशल मीडिया अकाउंट पर इसका वीडियो भी डाला गया. वारिस के घरवालों ने कहा कि मोनू ने उसकी पिटाई की, जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई. घरवालों का कहना है कि वीडियो में मोनू वारिस और उसके साथियों से पूछताछ करता नजर आ रहा है. हालांकि पुलिस ने कहा कि वारिस की मौत एक्सीडेंट में हुई है. पुलिस का कहना है कि वारिस अपने दोस्तों के साथ जा रहा था. इस दौरान उसकी गाड़ी एक टैंपो से टकरा गई.

दूसरा मामला. इसी साल 15 फरवरी को राजस्थान के भरतपुर के रहने वाले नासिर और जुनैद की हत्या कर दी जाती है. उनका शव गाड़ी में जला हुआ मिलता है. आरोप लगे कि उनका अपहरण करके हत्या की गई है. और इसमें मोनू मानेसर भी शामिल है. इन आरोपों का खंडन तो खूब हुआ लेकिन राजस्थान पुलिस ने जब मामले की चार्जशीट बनाई तो उसमें मोनू मानेसर को भी आरोपी बनाया गया. मानेसर तब से फरार था.

और मोनू मानेसर एक बार फिर खबरों में आया हरियाणा का नूह जलने लगा.

ऐसी ही एक घटना दिल्ली में हुई थी. शनिवार, 29 जुलाई. जगह: नांगलोई. मुहर्रम का ताज़िया जा रहा था. झड़प हुई और भीड़ पुलिस से भिड़ गई. पुलिस पर पत्थर फेंके गए. इस बलवे में कुल 12 पुलिस कर्मा घायल हुए.
मामले में तीन FIR दर्ज की गईं. FIR के मुताबिक़, SHO प्रभु दयाल ने बताया कि आरोपियों के पास चाकू, तलवारें, लोहे की छड़ें और लाठियां थीं. जुलूस में 7 हज़ार से ज़्यादा लोग थे. शाम 5 बजे के आसपास ताज़िया सूरजमल स्टेडियम पहुंचा और अंदर न जाने देने पर धक्का-मुक्की करने लगा. इसी के बाद हिंसा और पथराव शुरू हुआ. गाड़ियों को तोड़ा गया. दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने मीडिया को बताया, झड़प के बाद बेक़ाबू भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा.

दूसरी घटना, उत्तर प्रदेश के बरेली की. रविवार, 30 जुलाई को ज़िले के चक महमूद और जोगी नवादा इलाक़े में दो समुदाय के लोग आमने-सामने आ गए. कैसे? कांवड़ियों का रूट तय था, कि अमुक रास्ते से जुलूस निकलेगा. उन्होंने रूट बदल दिया. ज़िद की, कि वो इसी रास्ते से डीजे बजाकर निकलेंगे, जहां मुस्लिम आबादी हो. मुसलिम समुदाय ने कावड़ियों के नए रूट का विरोध किया. दोनों तरफ़ से जमकर नारेबाज़ी होने लगी. इलाके़ में तनाव बढ़ गया. डीएम, एसएसपी समेत 5 थानों की पुलिस, पीएसी और आरएएफ की फोर्स मौके पर पहुंच गई. कई घंटों तक कांवड़ियों को समझाने का प्रयास किया गया. लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं. उल्टा डीजे बजा कर प्रदर्शन करने लगे. प्रदर्शन को उग्र होता हुआ देख पुलिस ने कांवड़ियों पर लाठी चार्ज कर दिया. भीड़ को क़ाबू में करने के लिए आंसू गैस के गोले भी दागे.

माने दोनों जगहों पर भीड़ की ज़िद थी, कि रूट बदलो. उस रूट से निकलेंगे जहां कलेश की पूरी शंका हो.

आप हिंसा के इस पैटर्न पर गौर कीजिए. कि किस तरह सुनियोजित तरीके से हिंसा का एक माहौल तैयार किया जा रहा है. जहां छोटी-छोटी बातें बहुत बड़े विवादों में तब्दील हो जा रही हैं. हम आप दो दिन में इस खबर से आगे बढ़ जाएंगे. सोचिए उन पुलिस वालों के परिजनों के बारे में, जिन्हें सिर्फ इसलिए मार डाला गया कि वो अपनी ड्यूटी कर रहे थे. सोचिए उन बेगुनाह लोगों के बारे में, जिन्हें भीड़ ने क्यों मार डाला, भीड़ को भी नहीं पता था. ये सब आपको चिंतित नहीं करता, तो आपको अपनी चिंता भी करनी चाहिए.

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement