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नॉर्थ कोरिया गुब्बारों में क्या भरकर भेज रहा?

दो देशों के बीच कचरे से लड़ाई लड़ी जा रही है. मामला इतना बढ़ गया कि एक देश को सेना उतारनी पड़ी है. आशंका है कि ये आगे चलकर असली वाली जंग में बदल सकती है. ये मामला नॉर्थ कोरिया और साउथ कोरिया के बीच का है.

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नॉर्थ कोरिया की सेना (फोटो-गेट्टी)
25 जून 2024 (Published: 07:44 PM IST) कॉमेंट्स
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आपको ये सुनकर हंसी आ सकती है. मगर ये सच है. दो देशों के बीच कचरे से लड़ाई लड़ी जा रही है. मामला इतना बढ़ गया कि एक देश को सेना उतारनी पड़ी है. आशंका है कि ये आगे चलकर असली वाली जंग में बदल सकती है. ये मामला नॉर्थ कोरिया और साउथ कोरिया के बीच का है. 

तो समझते हैं-

- नॉर्थ कोरिया और साउथ कोरिया में कैसी जंग शुरू हुई?
- रूस ने अमरीका को क्यों बोला, खामियाजा भुगतना होगा?
- और, अमरीका ने अपने सबसे बड़े दुश्मन से डील क्यों की?

गुब्बारे में कचरा (फोटो- गेट्टी)

दरअसल, मई 2024 से नॉर्थ कोरिया गुब्बारे में कचरा भरकर साउथ कोरिया भेज रहा है. अब तक वो ऐसे 15 सौ से ज़्यादा गुब्बारे साउथ कोरिया की सीमा में भेज चुका है. इन गुब्बारों में मानव मल, पुराने कपड़े, मोज़े और सिगरेट के बड्स जैसी चीज़ें होती हैं. पिछले कुछ दिनों से ऐसे गुब्बारों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है. वो भी तब, जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में नॉर्थ कोरिया का दौरा करके लौटे हैं. पुतिन 24 बरस के बाद नॉर्थ कोरिया गए थे. साउथ कोरिया भी नॉर्थ कोरिया के बलून कैंपेन का जवाब देने लगा है. आधिकारिक तौर पर उसने बॉर्डर पर बड़े-बड़े लाउडस्पीकर लगाए हैं. इनमें नॉर्थ कोरिया के ख़िलाफ़ प्रोपेगैंडा वाले मैसेज बजाए जाते थे. 2018 में इनको हटा लिया गया था. मगर बलून वॉर के बीच इसको दोबारा शुरू किया गया है.

नॉर्थ कोरिया के बॉर्डर पर लगे लाउडस्पीकर (फोटो-गेट्टी)


ग़ैर-सरकारी स्तर पर, साउथ कोरिया के एक्टिविस्ट्स गुब्बारे उड़ा रहे हैं. उनके गुब्बारों में नॉर्थ कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग-उन की आलोचना वाले पर्चे, म्युजिक सीडीज़ और फ़िल्मों के कैसेट्स वगैरह होते हैं. कहने-सुनने में ये मज़ाकिया लग सकता है. मगर दोनों देशों ने इसको गंभीरता से लिया है. साउथ कोरिया ने जून की शुरुआत में छह साल पुराना सैन्य समझौता तोड़ दिया. ये समझौता नॉर्थ कोरिया के साथ शांति स्थापित करने की कोशिशों के तहत किया गया था. कई जगहों पर फ़ौज भी तैनात की गई है. वे गुब्बारों में किसी केमिकल या बायोलॉजिकल हथियार की जांच कर रहे हैं. आम लोगों को कहा गया है कि वे ख़ुद से पैकेट ना खोलें. 24 जून को साउथ कोरिया के राष्ट्रपति योन सुक योल ने कहा कि नॉर्थ कोरिया जानबूझकर हमें उकसा रहा है. हमारी तैयारी पूरी है. ऐसी किसी भी कोशिश का क़रारा जवाब दिया जाएगा.

गुब्बारे उड़ाते साउथ कोरिया के  एक्टिविस्ट्स (फोटो- गेट्टी)

इस बयान के कुछ देर बाद राष्ट्रपति योल ने अमरीका के एक एयरक्राफ़्ट कैरियर का भी दौरा किया. ये कैरियर फिलहाल साउथ कोरिया के तट पर रुका है. 1994 के बाद से पहली बार कोई मौजूदा साउथ कोरियाई राष्ट्रपति अमरीकी एयरक्राफ़्ट कैरियर पर खड़ा हुआ. इस घटनाक्रम के बाद दोनों देशों का तनाव नए मुक़ाम पर पहुंच गया है. इस तनाव की शुरुआत कब हुई थी? दूसरे विश्युद्ध से पहले कोरिया एक था. 1910 में उसपर जापान ने क़ब्ज़ा कर लिया था. अगस्त 1945 में जापान पर परमाणु बम गिरे. उसको सरेंडर करना पड़ा. कोरियन पेनिनसुला भी छोड़ना पड़ा. जापान के जाने के बाद अमरीका और सोवियत संघ ने आधा-आधा हिस्सा अपने कंट्रोल में ले लिया. नॉर्थ की तरफ़ सोवियत संघ था. जबकि साउथ में अमेरिकी सैनिक तैनात थे. 1948 में यूनाइटेड नेशंस (UN) की निगरानी में साउथ में चुनाव कराए गए. नॉर्थ ने इसका बायकॉट किया. नतीजा मानने से मना कर दिया. 15 अगस्त 1948 को साउथ वालों ने रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया की नींव रखी. ये आगे चलकर साउथ कोरिया कहलाया. 09 सितंबर 1948 को नॉर्थ में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया की स्थापना की गई. इसको हम नॉर्थ कोरिया के नाम से जानते हैं. इसके दो बरस बाद यानी 1950 में कोरियन वॉर शुरू हुआ. नॉर्थ कोरिया की तरफ़ से सोवियत संघ और चीन ने सेना भेजी. साउथ कोरिया की मदद अमेरिका ने की. 25 लाख से अधिक लोग मारे गए. कोई नतीजा नहीं निकला. 1953 में संघर्षविराम हो गया. मगर कभी औपचारिक तौर पर युद्ध खत्म नहीं हुआ है. दोनों देशों के बीच की सीमा भी निर्धारित नहीं हो पाई. अभी दोनों देश संघर्षविराम वाली लाइन को बॉर्डर मानते हैं. इसको डिमिलिटराइज़्ड ज़ोन (DMZ) के नाम से जाना जाता है.


बलून वॉर क्यों?

गुब्बारे सस्ते होते हैं. उसमें जान-माल के नुकसान का डर नहीं होता. गुब्बारे को बिना किसी सपोर्ट के दूर तक भेजा जा सकता है. इसलिए, इतिहास में इनका इस्तेमाल प्रोपेगैंडा वॉर के तहत होता था.
1.  1950 का कोरियाई युद्ध
कोरिया वॉर के दौरान UN ने लड़ाई रोकने की कोशिश की. उसने नॉर्थ कोरिया में पर्चे गिराए. जिसमें युद्ध रोकने की बात लिखी हुई थी. फिर नॉर्थ कोरिया ने भी ये तरीका अपनाया. उसने भी साउथ कोरिया की तरफ गुब्बारों में बांधकर पर्चियां भेजीं. इनमें हथियार डालने की बात लिखी हुई थी. लेकिन ये पर्चियां सिर्फ युद्ध रोकने तक सीमित नहीं रहीं. इन पर्चियों से एक-दूसरे के ख़िलाफ़ प्रोपेगैंडा फैलाया जाने लगा. 

ऐसी करोड़ों पर्चियां साउथ कोरिया ने गुब्बारे में बांधकर नॉर्थ कोरिया भेजी थी. इसमें एक तरफ़ भूख और ग़रीबी से परेशान मां और बच्चे की तस्वीर है. दूसरी तरफ़ नॉर्थ कोरिया के तत्कालीन सुप्रीम लीडर किम इल-सुंग की तस्वीर है. इस पर्ची में नॉर्थ कोरिया की गरीबी के लिए सुप्रीम लीडर को ज़िम्मेदार बताया जा रहा है. इसमें लिखा है, कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ गुरिल्ला लड़ाई में हमारी मदद करें.

किस तरह की पर्चियां में गिराई गईं?
- एक-दूसरे की सरकार की आलोचना वाले पत्र. जिससे जनता में असंतोष पैदा हो.
- जंग के दौरान एक-दूसरे की जनता को सरेंडर करने की ताक़ीद की जाती.  
- कुछ पर्चों में लिखा रहता था ये आपकी सुरक्षा के लिए ज़रूरी प्रमाणपत्र है. अगर आप इन्हें अपने पास रखेंगे तो बच जाएंगे.

इन पर्चियों को कोरियाई भाषा में पीरा कहा जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, सिर्फ नवंबर 1950 तक दोनों-देश एक दूसरे के यहां 12 करोड़ से ज़्यादा पर्चियां गिरा चुके थे.  

2. जुलाई 1953 में दोनों देशों के बीच युद्धविराम हुआ. लेकिन पर्चे गिरने बंद नहीं हुए. 1960 के दशक में नॉर्थ कोरिया के तत्कालीन सुप्रीम लीडर किम इल-सुंग ने इन पर्चों को प्रचार का साधन बना लिया. वो अपनी उपलब्धियां छपवाकर पूरे नॉर्थ कोरिया में गिरवाते. इसमें लिखा होता कि कैसे उनके दौर में नॉर्थ कोरिया ने विकास किया है.

- नॉर्थ कोरिया ने युद्ध के बाद साउथ कोरिया में सैनिकों के लिए गुब्बारे के ज़रिये ऐसे पर्चे भी भेजे, जिनमें अच्छे जीनव का वादा किया गया था. पर्चों में लिखा होता कि अगर कोई सैनिक नॉर्थ कोरिया आएगा तो उसे इनाम दिया जाएगा. साथ ही पक्की नौकरी, घर और जीवन भत्ता का भी वादा किया जाता.    

साउथ कोरिया का जवाब

जंग के कुछ साल बाद तक तो साउथ कोरिया की सरकार भी ऐसे पर्चे, गुब्बारे में बांधकर सीमा पार भेजती रही. मगर 2000 के बाद से इसका ज़िम्मा साउथ कोरिया के नागरिकों और मानवाधिकार संगठनों ने उठा लिया. वे नॉर्थ कोरिया की सुप्रीम लीडर और उनकी नीतियों की आलोचना वाली पर्चियां भेजने लगे. फिर आया 2018 का साल. दोनों देशों के बीच एतिहासिक समझौता हुआ. इसमें शांति की बात कही गई. मिलिट्री डील भी हुई. कहा गया कि एक दूसरे देश पर जबरन सैन्य बल का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.
2018 के समझौते से लगा कि वाक़ई दोनों देशों के बीच शांति कायम हो जाएगी. इसी क्रम में साउथ कोरिया ने नॉर्थ कोरिया की तरफ कोई भी पर्ची या गुब्बारा भेजने पर पाबंदी लगा दी. क़ानून बनाया कि जो भी ऐसा करता पाया गया उसे 3 साल तक की जेल हो सकती है. इस कानून की आलोचना भी हुई. 2023 में संवैधानिक अदालत ने इस क़ानून को अवैध घोषित कर दिया. हालांकि, उससे पहले भी लोगों ने पर्चियां भेजनी बंद नहीं की. 2020 में नॉर्थ कोरिया में इतनी पर्ची भेजी गई कि उसने नाराज़ होकर दोनों की सीमा पर बना लाइज़ॉन ऑफ़िस ही उड़ा दिया. ये ऑफ़िस 2018 की डील के बाद बनाया गया था. ताकि दोनों देशों के प्रतिनिधि वहां पर बातचीत कर सकें. अप्रैल 2022 में एक मानवाधिकार कार्यकर्त्ता ने नॉर्थ कोरिया की तरफ 20 बड़े गुब्बारे भेजे. इनमें सुप्रीम लीडर किम जॉन उन और उनके परमाणु कार्यक्रम की आलोचना की गई थी.      

हालिया मुद्दा

जैसा कि हमने शुरुआत में बताया. मई 2024 तक नॉर्थ कोरिया लगभग 15 सौ गुब्बारे भेज चुका है. क्या निकला है इन गुब्बारों में? कचरा, मानव मल, पुराने कपड़े आदि.

साउथ कोरिया ने क्या कहा?
लोगों से ऐसे कचरे को ना छूने के लिए कहा. कहा, घर से भी देखकर निकलें. गुब्बारों से गिरते सामान से भी बचकर चलें. हालांकि, इस कचरे से संक्रमण होने के चांस कम हैं इसलिए चिंता की बात नहीं है. साउथ कोरिया की सरकार के मुताबिक़, ज़्यादातर कपड़े डोनेट किए हुए लगते हैं. फटे-पुराने हैं. इससे नॉर्थ कोरिया की ख़राब आर्थिक हालत का पता चलता है. दरअसल, नॉर्थ कोरिया के भेजे गए गुब्बारों में जींस निकला है. जींस पहनना नॉर्थ कोरिया में प्रतिबंधित है. इसके अलावा कपड़ों में वेस्टर्न कार्टून केरेक्टर के प्रिंट हैं. जैसे मिकी माउस, विनी द पू और हैलो किट्टी. ये सब नॉर्थ कोरिया में बैन हैं. जिससे ये कपड़े और सामान बाहर से दान किया हुआ मालूम होता है.

साउथ कोरिया का बदला

- उसने नॉर्थ कोरिया की सीमा में बड़े-बड़े स्पीकर लगा दिए हैं. इन स्पीकर में किम की आलोचना वाला समाचार सुनाया जाता है. इन समाचारों में किम द्वारा लगाई गईं पाबंदी की चर्चा होती है. उनके परमाणु कार्यक्रमों की आलोचना होती है.
- स्पीकर से कोरियन पॉप गानें बजाए जाते हैं. किम ने ये गाने नॉर्थ कोरिया में बैन किए हुए हैं.

साउथ कोरिया गुब्बारों में क्या भेज रहा है?
- साउथ कोरिया के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी नॉर्थ कोरिया की तरफ कई गुब्बारे भेजे हैं.
- किताबें हैं जिनमें साउथ कोरिया के कल्चर के बारे में लिखा हुआ है.
- USB पिन हैं. जिनमें साउथ कोरिया की फ़िल्में और गाने हैं. दोनों ही नॉर्थ कोरिया में बैन हैं.
- चॉकलेट पाइज़ भी हैं. क्योंकि ये भी नॉर्थ कोरिया में प्रतिबंधित है. 2014 में नॉर्थ कोरिया ने कहा था कि इसे खाने से सेहत ख़राब होती है. इसलिए, इसपर प्रतिबंध लगाया जा रहा है. लेकिन असल वजह थी इस डिश के बीचे का वेस्टर्न आईडिया. ये केक अमेरिका में बना. साउथ कोरिया में फ़ेमस हुआ. नॉर्थ कोरिया में भी इसके चाहने वाले बढ़ गए. इसलिए किम ने इसपर पाबंदी लगा दी. पाबंदी लगने के कुछ महीने बाद ही साउथ कोरिया ने गुब्बारे से इसकी बड़ी खेप नॉर्थ कोरिया भेजी थी. चॉकलेट पाईज़ की दीवानगी ऐसी है कि नॉर्थ कोरिया में इसको ब्लैक मार्केट में बेचा जाता है.    

ये था हमारा बड़ी ख़बर . अब सुर्खियां जान लेते हैं.
पहली सुर्खी रूस से है. रूस-यूक्रेन जंग का दायरा फैलने की आशंका बढ़ गई है. अब अमरीका भी रूस का निशाना बन सकता है. दरअसल, 24 जून को रूस ने अमरीका की लिन ट्रेसी को समन भेजा. आरोप लगाया कि अमरीका ‘प्रॉक्सी वॉर’शुरू कर रहा है. इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.

रूस नाराज़ क्यों?

23 जून को यूक्रेन ने सेवस्तोपूल पर मिसाइल दागा था. इस हमले में चार लोग मारे गए. इनमें दो बच्चे थे. इसके अलावा, 150 से अधिक लोग घायल भी हुए. सेवस्तोपूल, क्रीमिया का सबसे बड़ा शहर है. 2014 में रूस ने क्रीमिया पर क़ब्ज़ा कर लिया था. बाद में अपना प्रांत भी घोषित कर दिया. इंटरनैशनल कम्युनिटी इसको अवैध मानती है. रूस की डिफ़ेंस मिनिस्ट्री ने दावा किया कि हमले में अमरीका में बनी ATACMS मिसाइलों का इस्तेमाल हुआ. प्रोग्रामिंग भी अमरीका ने की. इसके बाद तो रूस बुरी तरह भड़क गया. रूसी सत्ता-प्रतिष्ठान के केंद्र क्रेमलिन ने कहा कि ये बर्बरता है. अमरीका, रूसी बच्चों की हत्या कर रहा है. 24 जून को रूस के विदेश मंत्रालय ने अमरीकी राजदूत को बुलाकर आपत्ति जताई. ये इशारा भी दिया कि हमले का बदला लिया जाएगा. रूस कैसे बदला लेगा, ये अभी साफ़ नहीं है. मगर इसका संकेत व्लादिमीर पुतिन के दो बयानों में मिलता है,
- पहला बयान 06 जून का है. उस रोज़ पुतिन ने कहा था कि हम पश्चिमी देशों के दुश्मनों को लॉन्ग-रेंज की मिसाइलें दे सकते हैं. उनकी वॉर्निंग जो बाइडन बाइडन के उस फ़ैसले के बाद आई थी, जिसमें यूक्रेन को अमरीकी हथियारों से रूस के अंदर हमला करने की परमिशन दी गई थी. उससे पहले यूक्रेन, अमरीकी हथियारों का इस्तेमाल डिफ़ेंस के लिए कर रहा था.
- दूसरा बयान 20 जून को आया. उस रोज़ पुतिन वियतनाम में थे. वहां प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बोले, अगर साउथ कोरिया ने यूक्रेन को हथियार दिए तो हम भी नॉर्थ कोरिया को हथियार भेज सकते हैं.

रूस लंबे समय से यूक्रेन को हथियार देने वाले देशों को निशाना बनाने की धमकी दे रहा है. मगर वो सीधी लड़ाई में शामिल होने से बचना चाहता है. इसलिए, पश्चिमी देशों के दुश्मनों को हथियार देने की बात कह रहा है. सेवस्तोपूल अटैक ने उसको अच्छा बहाना दे दिया है.

सेवस्तोपूल अटैक पर किसने क्या कहा?
- यूक्रेन ने हमले को जायज़ ठहराया. राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की के सलाहकार मिखाइल पोदोलिक ने कहा कि क्रीमिया असल में एक बड़ा मिलिटरी कैंप है. इसलिए, वो एक वैध टारगेट है.
- अमरीका बोला, हम यूक्रेन को उसकी संप्रभुता की रक्षा के लिए हथियार दे रहे हैं.

दूसरी सुर्खी ब्रिटेन से है. ख़ुफ़िया दस्तावेज छापने वाली वेबसाइट विकीलीक्स के फ़ाउंडर जूलियन असांज रिहा हो गए हैं. वो पिछले पांच बरसों से ब्रिटेन की जेल में बंद थे. उनके ऊपर ख़ुफ़िया दस्तावेज़ चुराने, अमरीकी नागरिको की जान ख़तरे में डालने समेत कुल 18 चार्ज़ थे. अमरीका उनको अपने यहां प्रत्यर्पित करने की कोशिश कर रहा था. मगर हर बार कहीं ना कहीं मामला फंस जा रहा था. अंत में अमरीकी अधिकारियों ने असांज के साथ डील कर ली. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, असांज ने ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से राष्ट्रीय सुरक्षा के दस्तावेज हासिल करने का एक आरोप स्वीकार किया. बदले में उन्हें जेल से रिहाई मिली है. असांज अगले कुछ दिनों तक नॉर्थ मेरियाना आईलैंड्स की राजधानी साइपेन में रहेंगे. ये प्रशांत महासागर में बसा द्वीप है. ऑस्ट्रेलिया के क़रीब. इसपर अमरीका का कंट्रोल है. असांज, साइपेन की अदालत में पेश होंगे. वहां उनको पांच बरस की सज़ा सुनाई जाएगी. इतना समय वो ब्रिटेन की जेल में काट चुके हैं. अदालती कार्यवाही की औपचारिकता पूरी होने के बाद असांज ऑस्ट्रेलिया जा सकेंगे. वो ऑस्ट्रेलिया के ही नागरिक हैं.

क्या कहानी है असांज की?

- ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुए. पेशे से कंप्युटर स्पेशलिस्ट थे. 2006 में विकीलीक्स की स्थापना की. मकसद, सीक्रेट जानकारियों को पब्लिक के सामने लाना.
- विकीलीक्स के हाथ सबसे बड़ा जख़ीरा 2009 में लगा. यूएस आर्मी की ख़ुफ़िया अधिकारी चेल्सी मैनिंग ने सीक्रेट फ़ाइल्स विकीलीक्स पर अपलोड कीं. इसमें वो वीडियो था, जिसमें अमरीकी फ़ौजी हेलिकॉप्टर से आम नागरिकों और रॉयटर्स के पत्रकारों की हत्या करते दिख रहे थे. इसके अलावा, इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान वॉर से जुड़ी फ़ाइलें और अमरीकी दूतावासों से भेजे गए डिप्लोमेटिक केबल्स भी थे. ग्वांतनामो बे का रिकॉर्ड भी था.
- 2010 में विकीलीक्स ने जानकारियां पब्लिश करनी शुरू कर दीं. इसके कुछ समय बाद ही मैनिंग को गिरफ़्तार कर लिया गया. उनको 2013 में जासूसी क़ानून के तहत 35 बरस की सज़ा सुनाई गई. जनवरी 2017 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उनकी सज़ा कम कर दी. चार महीने बाद मैनिंग को जेल से रिहा कर दिया गया.
- 2010 में मैनिंग के साथ-साथ असांज के ख़िलाफ़ भी जांच शुरू हुई थी. अमरीका उनपर मुकदमा चलाने का रास्ता तलाश रहा था. इसी बीच स्वीडन ने यौन शोषण के केस में असांज के ख़िलाफ़ अरेस्ट वॉरंट जारी कर दिया.
- 2012 में असांज ब्रिटेन में थे. वहां यौन शोषण के केस में बेल की शर्तों का उल्लंघन किया. गिरफ़्तारी की तलवार लटकने लगी. फिर लंदन में इक्वाडोर के दूतावास में शरण ले ली. 2019 तक वहीं रहे.
- 2019 में स्वीडन ने असांज के ख़िलाफ़ जांच बंद कर दी. उसी बरस इक्वाडोर ने असांज को दी गई सुरक्षा हटा ली. फिर लंदन पुलिस दूतावास में घुसी और वहां से असांज को उठाकर ले गई.
इसके बाद अमरीका ने आरोप-पत्र खोला. असांज के ख़िलाफ़ हैकिंग और अमरीका के जासूसी क़ानून का उल्लंघन करने के आरोप लगाए गए. इसके बाद असांज को अपने यहां लाने की कोशिश शुरू की.
- अगले पांच बरस तक ब्रिटेन की अलग-अलग अदालतों में असांज के प्रत्यर्पण का मामला चलता रहा. मगर कभी फ़ाइनली उनको अमरीका नहीं भेजा जा सका.
 

तीसरी और अंतिम सुर्खी पाकिस्तान से है. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने माना है कि उनके मुल्क में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं. बोले,

 "हर रोज़ अल्पसंख्यकों का क़त्ल हो रहा है. कोई भी धार्मिक अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं है. यहां तक कि मुस्लिमों के कई तबके भी सुरक्षित नहीं हैं."

आसिफ़ ने ये बयान पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में दिया. बाद में नेशनल असेंबली में एक प्रस्ताव भी पास हुआ. इसमें अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा की निंदा की गई थी. पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को अगवा करने, जबरन धर्म-परिवर्तन कराने, धार्मिक स्थलों पर हमले की घटनाएं आम हैं. कई बार ईशनिंदा का झूठा आरोप लगाकर भी हिंसा की जाती है. ऐसी ही एक घटना 20 जून को घटी. स्वात के मदयान में एक व्यक्ति को क़ुरान का अपमान करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया. भीड़ ने उसको पुलिस थाने से निकालकर मार दिया. फिर उसकी डेडबॉ़डी में आग लगा दी.

पाकिस्तान में ईशनिंदा के केस में मौत की सज़ा का प्रावधान है. आज तक किसी को भी अदालत के आदेश पर मौत की सज़ा नहीं दी गई है. मगर अदालत से बाहर 90 से ज़्यादा लोगों की हत्या हो चुकी है.

यूएस इलेक्शन स्पेशल

अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले माहौल बनने लगा है. अमरीका में दो पार्टियों का दबदबा है - रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक. सत्ता उन्हीं के बीच बदलती रहती है. 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए दोनों पार्टियों के कैंडिडेट्स लगभग तय हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी से जो बाइडन और रिपब्लिकन से डोनाल्ड ट्रंप. बस औपचारिक एलान बाकी है. मगर एलान से पहले प्रेसिडेंशियल डिबेट का चैप्टर खुलने वाला है.
27 जून को डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडन के बीच पहली टीवी डिबेट होगी. इसको केबल न्यूज़ नेटवर्क (CNN) आयोजित करा रहा है. पूरी दुनिया में इसका लाइव प्रसारण होगा. इस डिबेट को भारत में 27 जून की शाम 06 बजे से देखा जा सकता है.

क्या-क्या नियम हैं?
- CNN के दो एंकर्स जैक टैपर और डाना बैश डिबेट को मॉडरेट करेंगे.
- डिबेट 90 मिनट तक चलेगी. इस दौरान दो कॉमर्शियल ब्रेक्स होंगे.
- दोनों कैंडिडेट्स पूरे डिबेट के दौरान पोडियम पर खड़े रहेंगे.
- ट्रंप और बाइडन के सपोर्ट स्टाफ़ डिबेट के दौरान अपने कैंडिडेट्स से बात नहीं कर सकेंगे. ब्रेक में भी नहीं.
- दोनों लोगों को एक कलम, एक पेपर पैड और एक पानी का बोतल मिलेगा. इसके अलावा, पहले से लिखे किसी नोट या टीपी की इजाज़त नहीं है.
- जब एक व्यक्ति बोल रहा होगा, उस वक़्त दूसरे का माइक म्यूट रखा जाएगा.
- डिबेट के दौरान स्टूडियो में कोई दर्शक नहीं होगा.

डिबेट में कोई तीसरा कैंडिडेट क्यों नहीं है?
राष्ट्रपति चुनाव में कुछ छोटी-मोटी पार्टियां अपने उम्मीदवार उतारती हैं. कुछ लोग निर्दलीय भी चुनाव लड़ते हैं. अमूमन वे किसी तरह का निर्णायक प्रभाव नहीं डाल पाते.
CNN ने डिबेट के लिए चार अर्हताएं लगाईं थी.
- अमरीका का राष्ट्रपति बनने की योग्यता पूरा करता हो.
- चुनाव आयोग के पास औपचारिक तौर पर उम्मीदवारी दर्ज कराई हो.
- CNN के मानकों पर खरे उतरने वाले कम से कम चार पोल्स में 15 फीसदी से ज़्यादा वोट पाएं हो.
- और, इतने बैलेट्स पर नाम हो, जिससे कि वो चुनाव जीतने की रेस में हो. CNN के मुताबिक़, ट्रंप और बाइडन के अलावा किसी और उम्मीदवार ने चारों अर्हताएं पूरी नहीं की.

प्रेसिडेंशियल डिबेट्स का इतिहास 

अमरीका में प्रेसिडेंशियल डिबेट की शुरुआत 1960 में हुई थी. पहली डिबेट जॉन एफ. केनेडी और रिचर्ड निक्सन के बीच हुई. इसके 16 साल बाद तक कोई डिबेट नहीं हुई. 1976 में ये चलन फिर शुरू हुआ. 1976 में जेराल्ड फ़ोर्ड राष्ट्रपति थे. वो रिचर्ड निक्सन के इस्तीफ़े के बाद राष्ट्रपति बने थे. उन्होंने चुनाव के टाइम अपने प्रतिद्वंदी जिमी कार्टर को बहस के लिए चुनौती दी थी. उसके बाद से अमरीका के हर राष्ट्रपति चुनाव में ये परंपरा चली आ रही है. 1980 के दशक से कमिशन ऑन प्रेसिडेंशियल डिबेट्स (CPD) ही ये बहस कराता आ रहा है. मगर 2020 में हुई बहस से डेमोक्रेटिक पार्टी संतुष्ट नहीं थी. 2022 में रिपब्लिकन पार्टी ने भी CPD से नाता तोड़ लिया. इसलिए, इस बार की बहस CNN करवा रहा है. इस बरस कम से कम दो प्रेसिडेंशियल डिबेट्स हो सकती है. अगली डिबेट ABC पर 10 सितंबर को होगी.

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