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क्या हिंदू परंपरा में शव के साथ विवाह संभव है? नांदेड़ में युवती ने प्रेमी के शव से की थी शादी

महाराष्ट्र के नांदेड़ में आंचल नाम की लड़की ने अपने प्रेमी की हत्या के बाद उसके शव से शादी कर ली. क्या हिंदू धर्म में शव के साथ शादी की परंपरा है?

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नांदेड में आंचल ने प्रेमी सक्षम के शव से शादी की थी (india today)
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राघवेंद्र शुक्ला
5 दिसंबर 2025 (Published: 11:34 PM IST)
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महाभारत के आदि पर्व में पांडवों की माता कुंती अपने पति और हस्तिनापुर के राजा पांडु को एक कहानी सुनाती हैं. कहानी है कि किसी समय में व्युषिताश्व नाम के एक राजा थे. चारों दिशाओं के राजाओं को हराकर उन्होंने अपने वश में कर लिया था. सागर पर्यंत यानी समुद्र तक उनका राज्य था. बड़े-बड़े यज्ञ कराए, जिनमें इंद्र जैसे देवताओं को भी न्योता दिया. प्रजा के कल्याण के काम किए, जिससे जनता उनसे खुश रहती थी. कक्षीवान नाम के राजा की बेटी भद्रा से उनकी शादी हुई थी. अपनी पत्नी से राजा बहुत प्रेम करते थे. पत्नी के प्रति बहुत ज्यादा कामासक्त होने के कारण वह ‘राजयक्ष्मा’ यानी क्षयरोग (टीबी) के मरीज हो गए. बाद में इसी से उनकी मृत्यु हो गई.

व्युषिताश्व की कोई संतान नहीं थी. कहते हैं कि राजा के चले जाने के बाद रानी दुखी होकर प्रार्थना करने लगीं कि उनकी भी मृत्यु हो जाए और वह भी अपने पति के साथ परलोक चली जाएं. तभी एक आकाशवाणी होती है. उनके पति यानी राजा व्युषिताश्व की आवाज आती है कि मासिक धर्म ( ऋतुस्नात) के समय वह उनके शव को अपनी शय्या पर साथ लेकर सोएं. इससे उन्हें संतान प्राप्त होगी. उन्होंने ऐसा ही किया. इस तरह से राजा के शव से रानी ने 6 पुत्रों को जन्म दिया. बाद में सभी राजा बने. 

नांदेड में लड़की ने की शव से शादी

संभवतः हिंदू धर्मग्रंथ में यह अकेली कहानी है, जहां पार्थिव शरीर से दांपत्य का कोई काम सिद्ध किया गया. राजा के मृत शरीर से रानी के संबंध बनाने की यह कहानी महाभारत के आदि पर्व के ‘संभवपर्व’ में है. इस कहानी से थोड़ा मिलता-जुलता (एकदम एक जैसा नहीं) घटनाक्रम हाल में महाराष्ट्र के नांदेड़ में देखने को मिला. आंचल नाम की एक लड़की सक्षम नाम के लड़के से प्यार करती थी. परिवार खिलाफ था. इतना खिलाफ था कि कथित तौर पर आंचल के भाई और पिता ने सक्षम की हत्या कर दी. 

प्रेमी की हत्या के बाद आंचल ने अपने परिवार को इसका दोषी ठहराया और कहा कि सक्षम को मारने वाले को फांसी की सजा मिले. इतना ही नहीं, वह सक्षम के घर पहुंच गई और उसके पार्थिव शरीर के साथ विवाह किया. हल्दी लगाई. सिंदूर लगाया और घोषित कर दिया कि वह अब सक्षम के घर पर ही रहेगी. 

आंचल ने जो भी किया वह वेदना के अतिरेक की प्रतिक्रिया थी. लेकिन इससे एक सवाल खड़ा हुआ कि हिंदू धर्म में क्या पार्थिव शरीर या शव के साथ शादी करने की कोई परंपरा है? ज्योतिष के जानकार और पुरोहित घनश्याम कृष्णन कहते हैं कि निष्प्राण शव तो केवल मिट्टी है. उसके साथ किसी तरह के मांगलिक कार्य नहीं किए जा सकते. वो कहते हैं, “शव से विवाह का कोई जिक्र धर्मशास्त्रों में नहीं है. सत्यवान और सावित्री की कथा तो है, लेकिन इसमें विवाह के बाद ही सत्यवान की मृत्यु होती है. जिसके बाद उसके प्राण उनकी पत्नी सावित्री यमराज के यहां से वापस लाती हैं.”

मृत्यु के विषय पर ‘द फाइनल फेयरवेल’ किताब लिखने वाली मीनाक्षी देवन कहती हैं कि नांदेड जैसी घटना आमतौर पर देखी तो नहीं गई है. लेकिन यह ‘गहरे दुख पर एक्स्ट्रीम इमोशनल रिएक्शन’ है. यानी दुख ऐसा गहरा है कि उसका विरोध ऐसी भावनात्मक प्रतिक्रिया के रूप में बाहर आया है. लड़का और लड़की प्रेम में थे और एक दूसरे से भावनात्मक रूप से गहरे जुड़े थे. मीनाक्षी ने कहा, “यह प्रेम उनमें से एक की हत्या की वजह बन गया, इसलिए हो सकता है कि लड़की ने अपने पिता और भाई की धारणा को चुनौती देते हुए यह कदम उठाया हो. सामान्य विवाह का उसका इरादा न हो.”

संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के धर्मागम विभाग में प्रोफेसर आचार्य भक्तिपुत्र रोहतम कहते हैं कि शव के साथ विवाह करने की हिंदू धर्मशास्त्रों में कोई व्यवस्था नहीं है, लेकिन यहां मामला अलग है. उन्होंने कहा, 

समाचार पढ़ने से मालूम हुआ कि इस लड़की का उस लड़के के साथ 3 सालों से प्रेम संबंध था. जब कोई स्त्री और पुरुष परस्पर आकर्षित होकर जीवन भर पति-पत्नी के रूप में रहने का संकल्प लेते हैं तो उसी दिन उसी क्षण से उस संबंध के साथ ही उनका विवाह हो जाता है. इसे हिंदू धर्मशास्त्रों में गंधर्व विवाह कहते हैं. इसके लिए किसी वैवाहिक अनुष्ठान की जरूरत नहीं होती. 

आचार्य ने आगे कहा, 

भले ही लड़की ने औपचारिक रूप से हल्दी और सिंदूर नहीं लगाया था, लेकिन वह उसी दिन से उसकी पत्नी हो गई थी, जब दोनों ने जीवन भर साथ रहने का संकल्प लिया था.

मृतकों के विवाह की परंपरा

हिंदू धर्म में शवों के साथ विवाह की कोई परंपरा तो नहीं मिलती. लेकिन दक्षिणी कर्नाटक और केरल के कुछ इलाकों में सालों पहले मर चुके बच्चों की प्रतीकात्मक शादी कराने की प्रथा है. इसे ‘प्रेत कल्याणम्’ कहा जाता है. 3 अगस्त 2022 को टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में शोभा और चंदप्पा की शादी का जिक्र है. दोनों की मौत 30 साल पहले हो गई थी. बताया गया कि मौत के इतने सालों बाद उनकी मुक्ति के लिए यह ‘प्रेत विवाह’ किया गया.    

इस विवाह का सीधा मतलब है- ‘मृतकों की शादी’. यह रस्म तभी की जाती है जब किसी की मौत को 30 साल हो चुके हों. इस शादी में लगभग वह सभी रीति-रिवाज किए जाते हैं जो एक सामान्य शादी में होते हैं. फर्क ये होता है कि दूल्हा और दुल्हन वहां शारीरिक रूप से मौजूद नहीं होते. दोनों परिवार इस रस्म को इसलिए करते हैं ताकि उस लड़के और लड़की की आत्मा का सम्मान किया जा सके. इसके लिए उनके पुतले या प्रतिमाएं रखी जाती हैं और फिर सामान्य शादी की तरह भोज भी कराया जाता है. 

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