The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • MEOW: how holi remains a festival of licensed harassment and assertion of masculinity

ब्लॉग: कॉन्डम में रंग भरकर मारने का त्यौहार ख़त्म, अब भीगी हुई लड़कियों की तस्वीरें देखें

रंग बरसे, यौन शोषण होए चुनर वाली का.

Advertisement
Img The Lallantop
फोटो - thelallantop
pic
प्रतीक्षा पीपी
4 मार्च 2018 (Updated: 24 मार्च 2019, 07:34 AM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
(2018 की होली से कुछ पहले दिल्ली में लेडी श्रीराम कॉलेज की दो लड़कियों ने एक शिकायत की. उनका कहना था कि उन्हें गुब्बारे फेंककर मारे गए और उन्हें गुब्बारे में वीर्य होने का शक था. ये आर्टिकल तभी लिखा गया था. बाद में फॉरेंसिक साइंस लैब की रिपोर्ट आई. रिपोर्ट में वीर्य नहीं पाया गया था. इस आर्टिकल से वो हिस्सा हटा दिया गया है.)
स्त्रीत्व छिपा हुआ होता है--मानसिक, शारीरिक और सांस्कृतिक तौर पर. इसलिए हम औरतों को 'टेढ़ापन', 'छोटापन', 'शीघ्रपतन' या 'निल शुक्राणु' के हकीमों की जरूरत नहीं पड़ती. ज्यादा से ज्यादा कोई हकीम 'बांझपन' ठीक करने का दावा कर सकता है मगर वो औरत के सेक्स नहीं, मां बनने से जुड़ी समस्या होती है. शहर के 'आउटर' की दीवारें पौरुष के वादों से पुती होती हैं. क्योंकि पौरुष आ या जा सकता है. स्त्रीत्व रिसीविंग एंड पर होता है. वो बस होता है.

PP KA COLUMN


स्त्रियों के पास इस होली भी फेंकने के लिए कुछ नहीं था. वो कॉन्डम इस्तेमाल नहीं करतीं कि उनमें पानी भरकर मार दें. मगर वो जरूरी नहीं है. प्रैक्टिकल भी नहीं. जो डर जाता है वो बदला लेने के बारे में नहीं सोचता.
होली पर खाना बनाने वाली दीदी नहीं आईं. मैंने उनके आने की उम्मीद भी न की थी. त्यौहार का दिन जायज़ तौर पर छुट्टी का दिन होता है. होली के बाद उनसे पूछा कि त्यौहार कैसा रहा. उन्होंने कहा वो तो बंगाली हैं, होली का क्रेज नहीं है. छुट्टी तो बस इसलिए ली थी कि सड़क पर निकलना खतरनाक हो सकता था.
इस तरह स्त्रीत्व और स्त्री घर के अंदर दुबके रहे.
holi 4 मैंने अपने घर और पड़ोस की औरतों को इतने उन्मुक्त रूप से हंसते, ठिठोली करते, गरियाते और नाचते कभी नहीं देखा जितना होली पर देखा है.
यूं भी नहीं है कि लड़कियां होली नहीं खेलती. भाई साहब, महिलाओं को एक दूसरे के ब्लाउज में हाथ डालकर रंग पोतते देख लें तो आप शरमा जाएं. महिलाओं को होली खेलते देखना एक सुखद दृश्य होता है. मैंने अपने घर और पड़ोस की औरतों को इतने उन्मुक्त रूप से हंसते, ठिठोली करते, गरियाते और नाचते कभी नहीं देखा जितना होली पर देखा है. मगर हां, किसी को कॉन्डम में रंग भरकर मारते नहीं देखा.
लड़कियां जब होली के नाम पर होने वाले यौन शोषण का विरोध करती हैं, उनपर हिंदू त्यौहारों पर अटैक करने का आरोप लगा दिया जाता है. इन पढ़ी-लिखी, अंग्रेजी में किटपिटाने वाली लड़कियों का क्या है. ये हमारी सभ्यता नहीं समझतीं. 'वामियों' के झांसे में आकर हिंदू त्यौहारों को बुरा कहती हैं.
holi 5 होली में होने वाला यौन शोषण ज्यादा डरावना लगता है कि क्योंकि ये लाइसेंस्ड होता है.
कितनी कमाल की बात है. जो लड़की (या लड़का), जिसे आप जानते नहीं, जो आपके साथ होली नहीं खेल रही, उसे आप गुब्बारे मारेंगे ही क्यों?
मारेंगे क्योंकि होली है. होली में बुरा नहीं मानना चाहिए. और अगर आप बुरा मानें तो इसे आपकी ही कमी बताई जाएगी क्योंकि आप उनका मज़ा खराब कर रहे होंगे. जबरन किसी अनजान के हाथों गुब्बारा खाकर अगर आपका मज़ा खराब होता है तो उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
 
holi 6 होली का हर गीत प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चोली छूने या बाहें मरोड़ने का लाइसेंस देता आ रहा है.
होली में होने वाला यौन शोषण ज्यादा डरावना लगता है कि क्योंकि ये लाइसेंस्ड होता है. किसी पुरुष पर किसी दूसरे पुरुष या औरत का यौन शोषण न करने का मॉरल प्रेशर नहीं होता. इसलिए रोज सर झुकाकर गली से निकलने वाला लड़का भी उस दिन शेर की तरह शिकार पर निकल सकता है और कोई उसे जज नहीं करेगा.
12-13 साल के लड़के, जिनका कंठ भी शायाद न फूटा हो, खुद घरों की छतों के ऊपर से नीचे से चलकर जा रही लड़की के मुकाबले ताकतवर पाते हैं. बित्ते भर के ये लौंडे किसी लड़के पर रंग फेंकने की जुर्रत नहीं करते, मगर कॉलेज और स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों पर पिचकारी चलाने के पहले नहीं सोचते. उस दिन इनके मां और पापा इन्हें जी भर के मस्ती करने की छूट देते हैं. और यौन शोषण की शुरूआती ट्रेनिंग में उनका साथ देते हैं.

बैकग्राउंड में जो गीत बज रहे होते हैं वो भी कमाल के होते हैं. हम गीतों की चीरफाड़ किए बिना उन्हें हर होली पर बजाते हैं.
तेरी कलाई है, हाथों में आई है मैंने मरोड़ा तो, लगती मलाई है
या फिर
जा रे जा, डोंट टच माय चोली

ये उदाहरण हैं. होली का हर गीत प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चोली छूने या बाहें मरोड़ने का लाइसेंस देता आ रहा है. आप मुझपर बिना बात गीतों में यौन शोषण खोजने का आरोप लगा सकते हैं मगर ठहरकर ये भी सोचें कि मज़े के लिए मोड़ी जा रही कलाई हर बार लड़की की ही क्यों होती है.
मगर ये सब मैं आपसे होली के बाद कह रही हूं क्योंकि औरत के शरीर को त्यौहार के बहाने पब्लिक प्रॉपर्टी मानने का बजनेस यहां खत्म नहीं होता. अगले दिन अखबार में ख़बरें छपती हैं जो हमें बताती हैं कि होली देश के कई हिस्सों में किस तरह धूमधाम से मनाई गई. जैसे मॉनसून के आगमन पर छपती हैं. और लू के चलने पर छपती हैं. और हर बार मौसमों की मार जाने क्यों औरत का शरीर ही झेल रहा होता है.
Newspaper Screenshot एक हिंदी अखबार की कटिंग.
और यूं आईं होली की तस्वीरों की गैलरी.
News Website Screenshot हिंदी वेबसाइट का स्क्रीनशॉट.
जाते-जाते सड़क पर उन्मुक्त नाचती उर्मिला के साथ छोड़कर जा रही हूं. बात यहां भी रंग की ही है.

Advertisement

Advertisement

()