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मनोज जरांगे: एक होटलकर्मी कैसे बना मराठा आंदोलन का चेहरा?

Story of Manoj Jarange: 12वीं की पढ़ाई भी बीच में छोड़ देने वाले 40 साल के मनोज जरांगे रोजी-रोटी के लिए एक होटल में काम करते थे.

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Manoj jarange patil
मनोज जरांगे पाटिल ने अपना आंदोलन वापस ले लिया है (India Today)
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राघवेंद्र शुक्ला
2 सितंबर 2025 (Updated: 2 सितंबर 2025, 08:33 PM IST)
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महाराष्ट्र के जालना के रहने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता की भूख हड़ताल ने प्रदेश की सियासत को हिलाकर रख दिया. मराठाओं के लिए OBC आरक्षण की मांग करने वाले मनोज जरांगे पाटिल पहली बार 2023 में भी इन्हीं कारणों से चर्चा में आए थे. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, साल 2014 से लेकर 2025 तक मराठों के आरक्षण के लिए वह कई नेताओं के दर पर पहुंचे. कई बार छोटे-बड़े प्रदर्शन भी किए. जब कहीं सुनवाई नहीं हुई तो 2023 में पहली बार भूख हड़ताल पर बैठे. उनके इस विरोध का ऐसा असर हुआ कि खुद तत्कालीन सीएम एकनाथ शिंदे को फोन करके मनोज जरांगे से अनशन खत्म करने की अपील करनी पड़ी थी.

मनोज जरांगे की कहानी

कथित तौर पर 12वीं की पढ़ाई भी बीच में छोड़ देने वाले 40 साल के मनोज जरांगे रोजी-रोटी के लिए एक होटल में काम करते थे. इसी के लिए वह बीड से जालना के अंबड़ चले गए थे. उनके घर में माता-पिता के अलावा तीन भाई, उनकी पत्नियां और चार बच्चे भी रहते हैं. मराठा समुदाय को सशक्त करने का मकसद लेकर उन्होंने 'शिवबा' नाम का एक संगठन भी बनाया था. इससे पहले वह कांग्रेस से भी जुड़े थे, लेकिन बाद में पार्टी छोड़ दी.

फाइनेंसियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 14-15 सालों से जरांगे मराठा समुदाय को आरक्षण दिलाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. उन्हें जानने वाले बताते हैं कि किशोरावस्था से ही उनकी रूचि समाजसेवा के कार्यों में रही है. आरक्षण के मुद्दे को लेकर वह मंत्रालय से लेकर सड़कों तक संघर्ष करते रहे. दो बार राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बनने से पहले वह तकरीबन 50 छोटे-मोटे प्रोटेस्ट में भी हिस्सा ले चुके हैं. इस दौरान, जरांगे ने कई बार मार्च निकाले. भूख हड़ताल की. सड़कें जाम कीं. युवाओं को संगठित कर मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन को लगातार धार देते रहे.

जी मराठी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2014 में जरांगे ने औरंगाबाद संभागीय कमिश्नरी तक एक मार्च निकाला था. उन्होंने शाहगढ़ से मंत्रालय तक 60 किलोमीटर लंबे एक बड़े मार्च का भी नेतृत्व किया था. इस मार्च ने उन्हें पूरे प्रदेश में चर्चित कर दिया. इसके बाद भी वह लोगों के बीच जाकर मराठा आरक्षण की जरूरत के बारे में लोगों को जागरूक करते रहे. मंत्रालयों तक पहुंचे और मुख्यमंत्री के आवासों के भी चक्कर काटे. उनके समर्थक कहते हैं कि 40 साल के जरांगे का आधा जीवन प्रोटेस्ट, जुलूस, आंदोलन और सरकारी दफ्तरों की सीढ़ियां लांघते बीत गया है. आंदोलन में इतना रम गए कि पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ी. 

FE की रिपोर्ट के मुताबिक, जरांगे ने रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए कथित तौर पर अपनी 4 एकड़ जमीन में से 2.5 एकड़ कृषि भूमि भी बेच दी. वह मराठा आरक्षण आंदोलनों में भी पैसा लगाते रहे. साल 2022 में एक सियासी कार्यक्रम में मराठा कार्यकर्ताओं की भीड़ को संबोधित करते हुए जरांगे ने जोरदार तरीके से मराठा आरक्षण की वकालत की थी. इस कार्यक्रम में तत्कालीन सीएम एकनाथ शिंदे भी मौजूद थे. इसका वीडियो भी बाद में सामने आया. हालांकि, तब शिंदे तक उनकी बात ठीक से नहीं पहुंच पाई, जिसके बाद जरांगे ने अगस्त 2023 में सरकारी नौकरियों और एजुकेशन में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर भूख हड़ताल शुरू कर दी. 

यही वो आंदोलन था जब वह पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर मराठा आरक्षण आंदोलन का चेहरा बन गए. 

दरअसल, 2017-18 में देवेंद्र फडणवीस की तत्कालीन सरकार ने मराठों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) कैटिगरी के तहत शिक्षा और नौकरियों में 12 और13 प्रतिशत कोटा दे दिया था. लेकिन मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा का हवाला देते हुए इस फैसले को खारिज कर दिया. 

कोर्ट के इस फैसले ने जरांगे को अपना संघर्ष और तेज करने के लिए प्रेरित किया, जिसका नतीजा 2023 में एक बड़े आंदोलन के रूप में सामने आया.

जरांगे पाटिल ने जालना जिले में आंदोलन का नेतृत्व संभाला. साष्ट पिंपलगांव में 3 महीने तक चले आंदोलन में वह शामिल हुए. उन्होंने अपनी मांगों को लेकर भूख हड़ताल की घोषणा कर दी. इस आंदोलन के दौरान लाठीचार्ज, आंसू गैस के गोले जैसी पुलिसिया कार्रवाई ने खूब सुर्खियां बटोरीं. 

सीएम की भी नहीं सुनी

आंदोलन इतना पुरजोर था कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को फोन करके जरांगे से भूख हड़ताल खत्म करने की अपील करनी पड़ी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जरांगे ने सीएम की अपील भी नहीं मानी और कहा कि जब तक मांगें नहीं मानी जातीं, तब तक वह हड़ताल पर कायम रहेंगे. इसी बीच, अंतरवाली सरती गांव में एक सभा पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया, जिससे राज्य के कई हिस्सों में आक्रोश फैल गया. पुलिस ने जरांगे की सेहत खराब होने का हवाला देते हुए जांच के नाम पर उन्हें हिरासत में ले लिया. बाद में जालना में कैबिनेट मंत्रियों के प्रस्तावित दौरे के कारण आंदोलन वापस ले लिया गया.

इस आंदोलन से मनोज जरांगे पाटिल को खूब प्रसिद्धि मिली. यहां से अब हर कोई मनोज जारंगे पाटिल को जानता था.

2 साल बाद फिर हड़ताल

इसके दो साल बाद वह एक बार फिर 29 अगस्त को भूख हड़ताल पर बैठे. इस बार भी उन्हें मराठों का जबर्दस्त समर्थन मिला. आजाद मैदान में उनके समर्थन में हजारों लोग जुटे, जिसके बाद पुलिस ने उनके प्रोटेस्ट की अवधि को बढ़ाने की परमिशन देने से इनकार कर दिया. इसे लेकर भी प्रदर्शनकारियों और पुलिस में काफी जद्दोजहद हुई.

पिछली बार के लाठीचार्ज की याद दिलाते हुए इस बार जरांगे ने सरकार को खुली चेतावनी भी दी कि सरकार अगर किसी लड़के पर लाठीचार्ज की सोची भी तो वह सीएम देवेंद्र फडणवीस को दिखा देंगे कि ‘मराठा क्या होते हैं’.

जरांगे मराठाओं को कुनबी जाति में शामिल करने की मांग कर रहे हैं ताकि उन्हें सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में OBC आरक्षण मिल सके. कुनबी जातियां OBC कैटिगरी में आती हैं और उन्हें 19 फीसदी आरक्षण मिलता है. 

सरकार के आश्वासन के बाद जरांगे ने 5 दिन के अनशन को मंगलवार 2 सितंबर को खत्म कर दिया. 

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