The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • lallantop articles hindi literature place where your bicycle get inflated during childhood

बचपन में साइकिल में जहां हवा भरवाते थे, उसकी कोई ख़ैर-ख़बर है?

साइकिल ने क्या नहीं दिया! शामों को उनका मक़सद. सुबह-सवेरे क्रिकेट मैच के लिए समय पर मैदान पहुंचने का बल.

Advertisement
lallantop articles how to read
बचपन में जिसकी दुकान पर साइकिल में हवा भरवाते थे, वो बिना किसी को बताये मर गया. और दुनिया में कोई शोक नहीं है.
pic
लल्लनटॉप
27 अक्तूबर 2025 (Updated: 27 अक्तूबर 2025, 04:23 PM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

स्कूल घर से बहुत पास था. दूरी इतनी कि 10 मिनट पहले निकलें तो गली फांदते प्रार्थना के लिए घंटा बजने से पहले स्कूल में दाखिल हो जाएं. ये पांव को ज़मीन से थोड़ा ऊपर उठाने का वक़्त था. जब पांव के एक ज़ोर में ‘लोहे के अजीब ढांचे’ पर सशरीर सवार आप 2-3 फ़ीट आगे बढ़ जाएं. और ढलान मिल जाए तो क्या ही कहना. हवा चीरते सरपट भागती 18 इंच की एवन साइकिल.

‘कैरियल’ बड़ा होकर कैरियर बना. वह बस्ता ऐसा भींचे रहता था कि घर पहुंचकर परिश्रम से छुड़ाना पड़ता. ये ‘दैनंदिनी’ में चीज़ें दर्ज करने का दौर था.

'कैंची' से वाया ‘डंडा’, गद्दी तक की यात्रा ने ही जीवन का असली बैलेंस सिखाया है.

तमाम बेडौल सीखें ही तो थीं, जिन्होंने आपको सांचे में रखा. पहिए में लगी तीलियों ने ज़रूरत की धुरी तय की. यही कि ‘समुच्चय’ कितना बड़ा हौसला है. एक नहीं तो दूसरी का सहारा. लड़खड़ाने नहीं देना और भार को धता बताना है.

साइकिल ने क्या नहीं दिया! शामों को उनका मक़सद. सुबह-सवेरे क्रिकेट मैच के लिए समय पर मैदान पहुंचने का बल. दोस्त-यार की बर्थडे पार्टी से नियत समय से विदा न लेने की चिंता से मुक्ति का एहसास. किलोमीटर के पत्थरों को एक के बाद एक सिर्फ़ ‘शारीरिक ईंधन’ से पीछे छोड़ने का सुख. 'साइकिल है तो क्या नहीं है' का बोध भी.

अब देखो तो लगता है कि कितनी दूर निकल आई साइकिल. बचपन में जिसकी दुकान पर साइकिल में हवा भरवाते थे, वो बिना किसी को बताए मर गया. और दुनिया में कोई शोक नहीं है.

सर्दियों में कॉलेज पहुंचने का वक़्त बदल जाता था. फिर भी सूरज अपने समयानुसार चढ़ता.

lallantop literature writings
साइकल है तो क्या नहीं है का सुख (फोटो- गेटी)


यादों का एक ‘वेन डाइग्राम’ (Venn Diagrame) है. सबमें यही कॉमन है. सुबह है. सर्दी है. सूरज चढ़ गया है. 9 बजने को हैं. कैरियर ने बस्ता जकड़ रखा है. हवा चीरने के लिए पहिए में हवा नहीं है. आप रुके हैं. धड़कनें भी. देर हो रही है. वक्त घट रहा है. लेकिन अगला अगले का पंक्चर बना रहा है.

वह शख़्स जीवन की आधे से ज्यादा सर्दियां काट चुका है. अब एक और काट रहा है. अच्छी लंबी कदकाठी जो अब झुक गई है. पिछली ईद पर सिली पैंट पहने है. लंबी-लंबी फांके वाले थान के कपड़े से सिली बुशर्ट जो हमेशा बाहर निकली रहती. खोखा इतना छोटा कि बैठने के लिए खुद को सिकोड़ना पड़े. खाली यानी ज़्यादातर समय वही खोखे में बैठे देखा. पैर सिकोड़े. कैरियर जैसे खुद को जकड़े. यथास्थिति घंटों तक.

कोई आ जाए तो पहले रेट पर बात हो जाए. 2 का सिक्का आपके पास नहीं खनका तो अगला उठेगा ही नहीं. और आपका अपना व्यवहार नहीं हो तो मज़ाल है हवा भरने वाला पंप आपको दे दे! और अकेले भरिएगा भी कैसे? स्कूल पहुंचने की जल्दी है तो पस्त हालत में दम लगेगा?

पेशेवर चुनौतियां तो उन ज़िम्मेदारियों का ही हिस्सा हैं जो इस गोलाकार ग्रह पर रहने वाले अधिकतर जनमानस की हाथों की लकीरों से नत्थी हैं.

उन्हीं बाजुओं ने दमख़म से सिक्के बटोरे. इसकी बदौलत हाथों ने राशन के थैले उठाए. इसी के चलते तो स्कूल जाते अपने बच्चों के बैग पकड़ पाए. उन्हीं हाथों ने हरदम चारपाई पर लेटी रहने वाली बूढ़ी मां को आख़िरी समय में अस्पताल पहुंचाया. बाप ने इन्हीं हाथों से विदा पाई. पत्नी तो इन्हीं के सहारे जी रही है.

वो आदमी नहीं था, 13 खाने वाला रिंच था. जहां लगता था- काम आ जाता था.

वो मर गया लेकिन खाली जगहों का क्या?

बचपन में साइकल में जहां हवा भरवाते थे, उसकी कोई ख़ैर-ख़बर है?

ये भी पढ़ें- लता ने पल्लू खोंसा और बोलीं, 'दोबारा दिखा तो गटर में फेंक दूंगी, मराठा हूं'

(ये आर्टिकल लल्लनटॉप के दोस्त शशांक ने लिखा है.)

वीडियो: कंप्यूटर टेक्नोलॉजी को पलटने वाला सिस्टम, फिजिक्स की फिल्ड में नोबेल जीतने वालों ने क्या खोज निकाला?

Advertisement

Advertisement

()