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भारत के चक्कर में आज ही के दिन खोजी गई थी नई दुनिया, जिससे इतिहास बदल गया

12 अक्टूबर, 1492. नई दुनिया की खोज का पहला सफर इसी दिन पूरा हुआ था.

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उस दौर में भारत के लिए जितना क्रेज था, उतना बहुत कम देशों के लिए था. भारत के मसाले विश्व प्रसिद्ध थे (फोटो: द ज्यूइश लर्निंग)
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स्वाति
12 अक्तूबर 2020 (Updated: 11 अक्तूबर 2020, 04:08 AM IST)
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सोचो. अभी-अभी टीवी चैनल्स पर एक ब्रेकिंग दिखे. इस दुनिया के भीतर एक नई दुनिया मिली है. एकदम नई-नवेली. ऐसी दुनिया, जिसके बारे में आज तक किसी को कुछ नहीं मालूम था. आप कैसा महसूस करेंगे? जैसा आप महसूस करेंगे, वैसा पहले लोग कर चुके हैं. तब, जब एक नई दुनिया खोजी गई थी. 12 अक्टूबर, 1492. ये तारीख उस खोज की पहली सीढ़ी थी. समझें, तो नई दुनिया की पहली खोज. इस खोज का श्रेय जिस शख्स को जाता है, वो खुद लंबे समय तक गलतफहमी में रहा. उसे लगा कुछ, जबकि हुआ कुछ और ही था. क्रिस्टोफर कोलंबस. भारत खोजने निकला था. नई दुनिया हाथ आ गई.
क्रिस्टोफर कोलंबस दुनिया के सबसे बड़े समुद्री यात्रियों में से एक माने जाते हैं. वन ऑफ द बेस्ट.
क्रिस्टोफर कोलंबस दुनिया के सबसे बड़े समुद्री यात्रियों में से एक माने जाते हैं. वन ऑफ द बेस्ट.

तब लोगों को लगता था, दुनिया में बस तीन ही महादेश हैं उस समय तक यूरोप के लोगों को लगता था, दुनिया में केवल तीन ही महादेश हैं. इसके अलावा भी दुनिया हो सकती है, किसी ने नहीं सोचा था. ये समुद्री यात्राओं का दौर था. समुद्री मार्ग से व्यापार के नए-नए रास्ते तलाश करने का दौर. कोलंबस इटली में पैदा हुए. उन्हें बचपन से ही समंदर बड़ा भाता था. उन्हें एशिया पहुंचने का एक छोटा रास्ता तलाश करने की धुन चढ़ी थी. स्पेन के पूर्वी हिस्से से होते हुए. कोलंबस को असल में भारत और चीन पहुंचना था. भारत की समृद्धि के किस्से तब दूर-दूर तक पसरे हुए थे. यहां के मसालों का यश दुनियाभर में फैला था. भारत में मौजूद सोने की भी बड़ी चर्चा थी. कोलंबस को भारत पहुंचने का समुद्री मार्ग खोजना था.

सैंटा मारिया में बैठे क्रिस्टोफर कोलंबस की ये तस्वीर इमैन्युअल ल्यूट्ज ने 1855 में बनाई थी. कुछ समय पहले विशेषज्ञों ने कहा कि इस जहाज के अवशेष हैती के समुद्रतट के पास से खोज लिए गए हैं (फोटो: विकीपीडिया)

यूरोपियन देश ज्यादा से ज्यादा उपनिवेश बनाना चाहते थे कोलंबस ने पुर्तगाल, फ्रांस और ब्रिटेन को मनाने की कोशिश की. ताकि कोई उनकी समुद्री यात्राओं का खर्च उठाने को तैयार हो जाए. निराशा हाथ लगी. आखिरकार कोलंबस स्पेन पहुंचे. यहां के राजा फर्डिनेंड और रानी इसाबेला कोलंबस की यात्रा को स्पॉन्सर करने के लिए राजी हो गए. उन्हें लगा कि अगर कोलंबस ने ऐसा कर दिखाया, तो एशिया के साथ मसालों के कारोबार का नया मार्ग शुरू हो जाएगा. ये उपनिवेशवाद का दौर था. दुनिया के ये चंद यूरोपियन देश अपने पांव पसारना चाहते थे. नए बाजारों के लिए. कच्चे माल के लिए. अपने फायदे के लिए. हर देश अपने लिए कारोबार के नए मार्ग खोलना चाहता था. किंग और क्वीन ने कोलंबस से वादा किया. अगर कोई नई जगह मिलती है, तो उन्हें वहां का गर्वनर बना देंगे. जो भी दौलत वो स्पेन लाएंगे, उसका 10 फीसद हिस्सा भी उन्हें दे दिया जाएगा.
भारत तक पहुंचने के समुद्री मार्ग को खोजने का श्रेय वास्को डि गामा को जाता है. 20 मई, 1498 को वो मालाबार तट पर पहुंचे थे (फोटो: द रॉयल म्यूजियम ग्रीनविच)
भारत तक पहुंचने के समुद्री मार्ग को खोजने का श्रेय वास्को डि गामा को जाता है. 20 मई, 1498 को वो मालाबार तट पर पहुंचे थे (फोटो: द रॉयल म्यूजियम ग्रीनविच)

भारत के चक्कर में खोज डाली नई दुनिया फिर आई 3 अगस्त, 1492 की तारीख. कोलंबस अपने तीन जहाजों के साथ रवाना हुए. एशिया की तलाश में. उनके जहाजों के नाम थे- सैंटा मारिया, पिंटा और नीना. (इसी सैंटा मारिया जहाज पर सवार कोलंबस ने 1492 में अमेरिका की खोज की थी) तीनों जहाज अटलांटिक में आगे बढ़ चले. कोलंबस के आस-पास पसरा था समंदर का नीला पानी. अथाह. दस हफ्ते यूं ही गुजर गए. फिर जमीन नजर आई. वो तारीख यही थी. 12 अक्टूबर. कोलंबस और उनके साथियों ने सोचा, जापान आ गया. एशिया यानी इंडीज. वहां रहने वाले लोगों को इंडियन्स कहकर पुकारने लगे. सोचा, अब भारत और चीन भी मिल जाएंगे. सब नीचे द्वीप पर उतरे. ये जगह आज बाहमास के नाम से जानी जाती है. कोलंबस कैरेबियन आइलैंड्स के कई और द्वीपों पर भी पहुंचे. फिर गर्व से सीना चौड़ा करके स्पेन लौटे. उनका खूब स्वागत हुआ. खूब पदवियां मिलीं.
ये उस 'सैंटा मारिया' नाम के जहाज का मॉडल है, जिसपर बैठकर कोलंबस अमेरिका पहुंचे थे. प्यूरटो रिको के फोर्ट सैन क्रिस्टोबल में इसका एक मॉडल रखा हुआ है (फोटो: विकीपीडिया)
ये उस 'सैंटा मारिया' नाम के जहाज का मॉडल है, जिसपर बैठकर कोलंबस अमेरिका पहुंचे थे. प्यूरटो रिको के फोर्ट सैन क्रिस्टोबल में इसका एक मॉडल रखा हुआ है (फोटो: विकीपीडिया)

भारत को खोजने का अरमान कभी पूरा नहीं कर सके कोलंबस कुछ ही महीने बाद कोलंबस दूसरी समुद्री यात्रा पर रवाना हुए. कई और नए हिस्से तलाश किए उन्होंने. एशिया दूर ही रहा मगर. लोगों को शुबहा हो रहा था. कई लोग कहने लगे थे, कहीं ये नई दुनिया तो नहीं खोज ली इसने. कोलंबस दो और यात्राओं पर गए. अपनी तीसरी यात्रा के दौरान कोलंबस दक्षिणी अमेरिका के तट पर पहुंचे. ये जगह मौजूदा वेनेजुएला था. कोलंबस ने अपनी चौथी यात्रा का ज्यादातर हिस्सा इस नई दुनिया के रास्ते एशिया का मार्ग तलाशने में बिताया. भारत उनके हाथ नहीं लगा मगर.
अपनी खोज के 200-300 सालों के अंदर ही अमेरिका ने बहुत तेजी से तरक्की की. वो बहुत तेजी से ऊपर चढ़ा. विश्व युद्ध के बाद अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश बन गया.
अपनी खोज के 200-300 सालों के अंदर ही अमेरिका ने बहुत तेजी से तरक्की की. वो बहुत तेजी से ऊपर चढ़ा. विश्व युद्ध के बाद अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश बन गया.

गलती से खोजा गया बन गया दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क नई दुनिया, खासकर अमेरिका की तलाश ने न केवल भूगोल को बदला, बल्कि इतिहास को भी बदला. अमेरिका गलती से खोजा गया था. भारत आज की तारीख में अमेरिका का करीबी दोस्त बनना चाहता है. जब अमेरिका खोजा गया था, तब भारत को 'सोने की चिड़िया' कहते थे. अब देखिए. दोनों की स्थिति में कितना अंतर आ गया है. आज अमेरिका दुनिया पर दादागिरी करता है. भारत विकासशील जरूर है, पर है 'तीसरी दुनिया' का देश. अतीत और वर्तमान, दोनों बातें इतिहास ही हैं. एक-दूसरे से कितनी अलग हैं मगर.


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