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इरफ़ान का वो ताकतवर ख़त जो उन्होंने लंदन के अस्पताल से लिखा था

इरफान खान को गए आज पूरे एक साल हो गए.

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इरफ़ान. एक जीवन. जीवन, जिसे हमने सलाम बॉम्बे और हासिल जैसी फिल्मों में देखा. एक जीवन वो भी रहा जिसे ख़ुद इरफान ने जिया. उसका एक आखिरी हिस्सा कितनी पीड़ाओं और निराशाओं से भरा था वो उन्होंने इस लेटर में उघाड़कर दिखाया. इसी जीवन में उन्होंने बहुत सारी उम्मीदें भी छुपा रखी थीं. हमें भी पढ़कर सीखना चाहिए. (फोटोः इरफान fb/सोनी तारापोरवाला)
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29 अप्रैल 2021 (Updated: 29 अप्रैल 2021, 07:11 IST)
Updated: 29 अप्रैल 2021 07:11 IST
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29 अप्रैल 2020. वो दिन जब बॉलीवुड का एक महान कलाकार दुनिया को अलविदा कह गया. पीछे छोड़ गया बस यादें. अनगिनत किस्से और बेहतरीन फिल्में . जो आज भी हमारे बीच हैं. इरफान खान को गए आज पूरे एक साल हो गए. सोशल मीडिया पर उनके फैंस उन्हें याद कर रहे हैं. ट्विटर, इरफान की तस्वीरों से पटा पड़ा है. लोग उनके पुराने किस्से और जानी-अनजानी बातें शेयर कर रहे हैं. हम भी आपको एक ऐसा किस्सा बताने जा रहे हैं.
जब इरफान को अपने कैंसर के बारे में पता चला था, तब उन्होंने इसकी सूचना सोशल मीडिया पर दी थी. कई लोगों को संदेश भेजे, पत्र लिखे. जब लंदन के अस्पताल में इरफान का इलाज चल रहा था तब उन्होंने एक और पत्र लिखा. वरिष्ठ फिल्म पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज को. इस चिट्ठी में उन्होंने अपना दिल खोल दिया. 
उस चिट्ठी को आप यहां पढ़ सकते हैं:  
कुछ महीने पहले अचानक मुझे पता चला था कि मैं न्यूरोएंडोक्रिन कैंसर से ग्रस्त हूं. मैंने पहली बार यह शब्द सुना था. खोजने पर मैंने पाया कि इस शब्द पर बहुत ज्यादा शोध नहीं हुए हैं क्योंकि यह एक दुर्लभ शारीरिक अवस्था का नाम है और इस वजह से इसके उपचार की अनिश्चितता ज्यादा है. अभी तक अपने सफ़र में मैं तेज़-मंद गति से चलता चला जा रहा था, मेरे साथ मेरी योजनाएं, आकांक्षाएं, सपने और मंज़िलें थीं.
मैं इनमें लीन बढ़ा जा रहा था कि अचानक टीसी ने पीठ पर टैप किया, ''आप का स्टेशन आ रहा है, प्लीज उतर जाएं.'' मेरी समझ में नहीं आया, ''न न, मेरा स्टेशन अभी नहीं आया है.'' जवाब मिला, ''अगले किसी भी स्टॉप पर उतरना होगा, आपका गंतव्य आ गया.'' अचानक एहसास हुआ कि आप किसी ढक्कन (कॉर्क) की तरह अनजान सागर में अप्रत्याशित लहरों पर बह रहे हैं... लहरों को क़ाबू करने की ग़लतफ़हमी लिए.
इस हड़बोंग, सहम और डर में घबरा कर मैं अपने बेटे से कहता हूं,
''आज की इस हालत में मैं केवल इतना ही चाहता हूं... मैं इस मानसिक स्थिति को हड़बड़ाहट, डर, बदहवासी की हालत में नहीं जीना चाहता. मुझे किसी भी सूरत में मेरे पैर चाहिए, जिन पर खड़ा होकर अपनी हालत को तटस्थ हो कर जी पाऊं. मैं खड़ा होना चाहता हूं.''
ऐसी मेरी मंशा थी, मेरा इरादा था...
कुछ हफ़्तों के बाद मैं एक अस्पताल में भर्ती हो गया. बेइंतहा दर्द हो रहा है. यह तो मालूम था कि दर्द होगा, लेकिन ऐसा दर्द... अब दर्द की तीव्रता समझ में आ रही है. कुछ भी काम नहीं कर रहा है. न कोई सांत्वना और न कोई दिलासा. पूरी कायनात उस दर्द के पल में सिमट आयी थी. दर्द खुदा से भी बड़ा और विशाल महसूस हुआ.
डायरेक्टर इम्तियाज़ अली ने इंस्टाग्राम स्टोरी में इरफ़ान के इन शब्दों के साथ उन्हें याद किया. फोटो: Instagram
डायरेक्टर इम्तियाज़ अली ने इंस्टाग्राम स्टोरी में इरफ़ान के इन शब्दों के साथ उन्हें याद किया. फोटो: Instagram

मैं जिस अस्पताल में भर्ती हूं, उसमें बालकनी भी है. बाहर का नज़ारा दिखता है. कोमा वार्ड ठीक मेरे ऊपर है. सड़क की एक तरफ मेरा अस्पताल है और दूसरी तरफ लॉर्ड्स स्टेडियम है... वहां विवियन रिचर्ड्स का मुस्कुराता पोस्टर है, मेरे बचपन के ख़्वाबों का मक्का. उसे देखने पर पहली नज़र में मुझे कोई एहसास ही नहीं हुआ. मानो वह दुनिया कभी मेरी थी ही नहीं.

मैं दर्द की गिरफ्त में हूं.
और फिर एक दिन यह एहसास हुआ...जैसे मैं किसी ऐसी चीज का हिस्सा नहीं हूं, जो निश्चित होने का दावा करे. न अस्पताल और न स्टेडियम. मेरे अंदर जो शेष था, वह वास्तव में कायनात की असीम शक्ति और बुद्धि का प्रभाव था. मेरे अस्पताल का वहां होना था. मन ने कहा, केवल अनिश्चितता ही निश्चित है.
ऑस्कर अवॉर्ड्स देने वाली द अकैडमी की तरफ़ से भी इरफ़ान को याद किया गया. फोटो: ट्विटर
ऑस्कर अवॉर्ड्स देने वाली द अकैडमी की तरफ़ से भी इरफ़ान को याद किया गया. फोटो: ट्विटर

इस एहसास ने मुझे समर्पण और भरोसे के लिए तैयार किया. अब चाहे जो भी नतीजा हो, यह चाहे जहां ले जाए, आज से आठ महीनों के बाद, या आज से चार महीनों के बाद, या फिर दो साल...चिंता दरकिनार हुई और फिर विलीन होने लगी और फिर मेरे दिमाग से जीने-मरने का हिसाब निकल गया!
पहली बार मुझे 'आज़ादी' शब्द का एहसास हुआ, सही अर्थ में! एक उपलब्धि का एहसास.
इस कायनात की करनी में मेरा विश्वास ही पूर्ण सत्य बन गया. उसके बाद लगा कि वह विश्वास मेरे हर सेल में पैठ गया। वक़्त ही बताएगा कि वह ठहरता है कि नहीं! फ़िलहाल मैं यही महसूस कर रहा हूं.
इस सफ़र में सारी दुनिया के लोग... सभी, मेरे सेहतमंद होने की दुआ कर रहे हैं, प्रार्थना कर रहे हैं. मैं जिन्हें जानता हूं और जिन्हें नहीं जानता, वे सभी अलग-अलग जगहों और टाइम ज़ोन से मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं. मुझे लगता है कि उनकी प्रार्थनाएं मिल कर एक हो गयी हैं. एक बड़ी शक्ति. तीव्र जीवन धारा बन कर मेरे स्पाइन से मुझमें प्रवेश कर सिर के ऊपर कपाल से अंकुरित हो रही है.
अंकुरित होकर यह कभी कली, कभी पत्ती, कभी टहनी और कभी शाखा बन जाती है. मैं खुश होकर इन्हें देखता हूं. लोगों की सामूहिक प्रार्थना से उपजी हर टहनी, हर पत्ती, हर फूल मुझे एक नयी दुनिया दिखाती है.
एहसास होता है कि ज़रूरी नहीं कि लहरों पर ढक्कन (कॉर्क) का नियंत्रण हो,जैसे आप क़ुदरत के पालने में झूल रहे हों!


Video: इरफ़ान का वो इंटरव्यू जिसमें पत्नी, बच्चे और उनके बचपन का प्यारा किस्सा मौजूद है

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