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यहां पर अब तक रखी हुई है लेन‍िन की डेड बॉडी

महान रूसी नेता 'लेनिन' की ज़िंदगी के अनछुए पहलू

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फोटो - thelallantop
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प्रज्ञा
6 मार्च 2018 (Updated: 6 मार्च 2018, 06:49 AM IST)
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बोल्शेविक क्रांति के कर्ता-धर्ता लेनिन. दुनिया को पहली कम्यूनिस्ट सरकार देने वाला नेता. रूस को साम्यवाद का सर्वेसर्वा बना देने वाला कॉमरेड. 1870 में वोल्गा नदी के किनारे रूस के सिम्बिर्स्क शहर में 'उल्यानोव' परिवार में पैदा हुआ वो होनहार लड़का जिसमें दुनिया को उसकी मौत के 90 साल से ज्यादा वक़्त के बाद भी उतना ही इंट्रेस्ट है जितना बोल्शेविक क्रांति के दौरान समूची पृथ्वी को था. लेनिन को और क़रीब से जानना है तो एक सांस में पढ़ डालो ये पूरा ज्ञान- Lenin-circa-1887

1- 'लेनिन' का असली नाम तो कुछ और ही था

सारी दुनिया जिन्हें 'लेनिन' के नाम से जानती, पहचानती है, उसका असली नाम है- व्लादीमिर इलीच उल्यानोव'. लेनिन नाम तो रूस की ज़ार सरकार का माथा खपाने के लिए रखा गया था. ताकि लेनिन को क्रांति की प्लानिंग करते वक़्त छुपने में आसानी रहे. इतिहास को पढ़ने वाले मानते हैं कि 'लेनिन' नाम साइबेरिया में लेना नदी से होकर आया है. लेनिन ने कई सारे और नाम भी ट्राय किए थे, जैसे कि के टुलिन, पेत्रोव और भी बहुत कुछ. फिर 1902 में आके 'लेनिन' नाम पर सुई आकर अटकी.

 2- कॉलेज से निकाल फेंके गए थे लेनिन

लेनिन के घर में शुरू से ही पढ़ाई-लिखाई वाला माहौल था. लेनिन जब क़ानून की पढ़ाई करने कॉलेज पहुंचे तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. वजह थी उनकी क्रांतिकारी तासीर. एक तो लड़का गरम ख़ून वाला तिस पर उसका भाई जबर विद्रोही. लाल रंग को असर तो दिखाना ही था. इतिहास में दर्ज़ है कि लेनिन के भाई अलेग्जांदर को ज़ार की हत्या का षडयंत्र रचने में शरीक होने के लिए फांसी दे दी गई थी. कॉलेज से निकाले जाने के बावजूद लेनिन ने हार नहीं मानी. लड़के ने बाहर से दिया एक्ज़ाम और 1891 में लॉ की डिग्री हासिल करके ही माना.

3- जब लेनिन को मिला देश-निकाला

61 कॉन्फ़िडेंस का पहाड़ लिए फ़िर उसने ठौर लगाई सेंट पीटर्सबर्ग में.  उद्देश्य था- कर्रा वाला क्रांतिकारी बनना. लड़के की धमक बढ़ने लगी. आवाजें सरकार से टकराने लगीं. तंग आकर वहां की सरकार ने बाकियों की तरह लेनिन को भी खदेड़ दिया और भेज दिया साइबेरिया अज्ञातवास पर.
लेनिन ने वहां शादी की और 3 किताबें भी लिख डालीं . जिनमें से एक थी 'रूस में पूंजीवाद का विकास'

4. लेनिन चाहते थे, हार जाए रूस- 

1914 में जब पहले विश्व युद्ध का बम फटा, रूस में सबने चाहा कि उसका देश जीत जाए. बस ये लेनिन और बोल्शेविक फ़ौज ही थी जो रूस की हार चाहती थी. उन्हें मालूम था कि ज़ार की फ़ौज हारेगी ही हारेगी. यहां तक कि लेनिन ने रूस के दुश्मन जर्मनी से आर्थिक संधि भी कर ली थी. ज़ार के हारते ही मौके पे चौका मारते हुए लेनिन ने बोल्शेविक क्रांति की धार और तेज कर दी.  

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5. जब लेनिन ने पढ़े 'तिलक' की तारीफ़ में कसीदे

बात उस समय की है जब गांधी को राजनीति का कहकरा सिखाने वाले बाल गंगाधर तिलक से डरकर अंग्रेजों ने 6 साल के लिए उन्हें बर्मा की जेल में फेंकने का फ़ैसला सुनाया. तिलक पर मुकदमे के अगले ही दिन लेनिन ने एक लेख छापा और उसमें कहा कि तिलक समूची दुनिया की राजनीति में आग लगा देगा, तिलक को दबाया नहीं जा सकता.  

6- लेनिन की बॉडी अभी तक मौजूद है

1924 में लेनिन के बाद उनके शव को दफनाया नहीं गया था. लेनिन जैसे जिंदादिल नेता को हमेशा जिंदा रखने के लिए बॉडी को ममी में तब्दील कर दिया है. ये ममी  मॉस्को के रेड स्क्वॉयर में रखी है.   lenin
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