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जगह-जगह मंदिर, हिंदुओं का राज... फिर कैसे इंडोनेशिया बन गया दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश?

Indonesia, 17 हजार द्वीपों का देश होने के साथ हिंद और प्रशांत महासागर के बीच फैला है. भारतीय व्यापारियों के आगमन से यहां हिंदू-बौद्ध संस्कृति का विकास हुआ. बाद में अरब व्यापारियों के माध्यम से इस्लाम ने यहां जड़ें जमाईं.

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Indonesia Journey From Hindu-Buddhist Empires to a Muslim-Majority Nation
कैसे बना इंडोनेशिया, दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम-बहुल देश? (तस्वीर : Pexels)
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प्रगति चौरसिया
26 जनवरी 2025 (Published: 09:47 AM IST) कॉमेंट्स
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दक्षिण-पूर्व एशिया के 17 हज़ार द्वीप, जो प्रशांत और हिंद महासागर को काटते हुए करीब 3 हज़ार मील तक फैले हैं. दूरी इतनी कि लंदन से तेहरान तक का फासला इसके आगे फीका पड़ जाए. लाखों साल पहले फूटे ज्वालामुखी की राख ने यहां की मिट्टी को उपजाऊ बनाया. फिर जंगल पनपे और इन द्वीपों को आकार मिला. समय के साथ इंसानी बस्तियां बसने लगीं.

यहां शुरुआती बाशिंदे शिकारी थे, जिन्होंने ऑस्ट्रोनीशियाई यायावरों को इन द्वीपों का रास्ता दिखाया. ऑस्ट्रोनीशियाई, यानी दक्षिण-पूर्व एशिया के रहने वाले , जिन्हें तारों को देखकर दिशा तय करने में महारत हासिल थी. वे अपने साथ खेती, औजार और संस्कृति लेकर पहुंचे. ये जगह समुद्री सिल्क रोड का अहम हिस्सा तब से थी जब इसे कोई नाम भी नहीं मिला था. 

सबसे पहले यहां अपना डेरा जमाने वाले भारतीयों ने साम्राज्य बसाया. अलग- अलग द्वीपों पर राजाओं का शासन जमा. हिंदू और बौद्ध मंदिरों के निर्माण किए जाने गए. सदियां बीतती हैं और फिर एक दिन अरब व्यापारियों की आमद हुई. दिलचस्प बात ये है कि तलवारें म्यान में ही रहीं, न ही कोई खून-खराबा हुआ. इस्लाम ने धीरे-धीरे यहां कुछ ऐसी पैठ बनाई कि ये द्वीप आज दुनिया के सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश के तौर पर जाना जाता  है. आज बात होगी दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया की.

भारतीय व्यापारियों का आगमन

बादलों के बीच ज्वालामुखी से घिरा पठार, ये इंडोनेशिया के जावा द्वीप का डिएंग है. जो अपनी ऊंची चोटियों वाले प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है. हालांकि, ये मंदिर हमेशा से यहां नहीं थे. डिएंग का ये इलाका कभी पवित्र आत्माओं का निवास स्थान था. स्थानीय लोग ‘Sang Hyang Kersa’ को अपना रक्षक मानकर पूजते थे. लेकिन समय के साथ कहानी बदल गई. भारतीय व्यापारी जब यहां पहुंचे, तो केवल सामान ही नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति, परंपराएं, और विचारधारा भी साथ लेकर आए. उन्होंने यहां देवताओं और राजाओं का कॉन्सेप्ट रखा. स्थानीय परंपराओं से बिल्कुल अलग. क्योंकि पहले इन द्वीपों पर कबीलों का राज होता था. हिन्दू व्यापारियों ने जावा की उपजाऊ जमीन पर साम्राज्य बसाने का सपना देखा.

स्थानीय लोग भी इनके रंग में रम गए. धीरे-धीरे, जो इलाका कभी पवित्र आत्माओं का घर था, वो भगवान शिव, विष्णु, और बुद्ध के मंदिरों से भर गया. इसी कड़ी में बोरोबुदुर, दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर, और प्रम्बानन जैसे हिंदू मंदिर बनाए गए. उस दौर में हिंदू राजाओं के दरबार कवियों, पुजारियों, और विद्वानों से भरे रहते थे, वो देवताओं और राक्षसों की लड़ाई की कथाएं सुनाते थे. इसी दौरान जावा के साथ-साथ इंडोनेशिया के सबसे बड़े द्वीप सुमात्रा पर भी भारतीय संस्कृति फलफूल रही थी. यहां श्रीविजय साम्राज्य का उदय हुआ, जो बौद्ध धर्म का सेंटर था. कुल मिलाकर इंडोनेशिया के तट जावा और सुमात्रा पर हिंदू और बौद्ध साम्राज्य का शासन 1500 सालों तक चलता रहा. लेकिन इस बीच पश्चिमी एशिया में एक और धर्म का उदय हो रहा था.

इंडोनेशिया में इस्लाम की एंट्री कैसे हुई?

अरब में 7वीं शताब्दी के दौरान पैगंबर मोहम्मद की मौत के बाद इस्लाम को दुनियाभर में फैलाने की कवायद शुरू हुई. खलीफाओं ने इसका जिम्मा संभाला और माध्यम बना व्यापार.  8वीं शताब्दी आते आते उत्तरी अफ्रीकी, मध्य एशिया, दक्षिणी यूरोप और मिडिल ईस्ट में इस्लाम की पहुंच हो चुकी थी. इसे गोल्डन एज ऑफ इस्लाम भी कहा जाता है. मसालों की खुशबू ने अरब व्यापारियों को इंडोनेशिया के तट पर खींचा. तब यहां फारस और भारत के व्यापारियों का हुजूम और व्यापार परवान पर था. इन मुस्लिम व्यापारियों ने तट की अहमियत बखूबी समझी. बाशिंदों  के साथ कामकाज की बात करते- करते शाम का मजमा सजने लगा. 

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इंडोनेशिया में इस्लाम धर्म को विस्तार की कहानी (सोर्स : AI जेनेरेटेड )

जिस दौरान अरबी व्यापारी इन तटों पर आराम करते उस वक्त आसपास के लोग इन विदेशियों से बातें करने लग जाते. बदले में वें उन्हें पैगंबर मुहम्मद और उनकी शिक्षाओं की कहानियां सुनाते थे. ये कहानियां तटीय समुदायों में गहराई से गूंजने लगीं. इस्लाम की बातों का जोर ऐसा था कि स्थानीय लोग धर्म बदलने  को तैयार हो जाते थे. वजह दो थीं. आस्था और दूसरी शक्तिशाली मुस्लिम व्यापार नेटवर्क के साथ बेहतर संबंध. एक-एक करके, छोटे तटीय साम्राज्यों में हिंदू-बौद्ध मंदिरों की जगह मस्जिदों ने लेना शुरू कर दिया.

इंडोनेशिया में मुस्लिम धर्म का संस्थापक कौन था?

ऐसे ही उत्तरी सुमात्रा में समुद्र-पासाई नाम का राज्य था. ये तट हिंद महासागर को पूर्वी एशिया से जोड़ने वाला बंदरगाह था. जहां 13वीं शताब्दी के दौरान अक्सर अरब व्यापारी आते थे. मसालों और कपड़ों के लेनदेन के साथ वे यहां पर इस्लाम की खूबियों के बारे में लोगों को जानकारी देने लगे. एकेश्वरवाद यानी की एक ईश्वर पर विश्वास रखने की बात, न्याय और समुदाय पर जोर देने की सीख लोगों के दिलों में घर किए जा रही थी. ये सब हिंदू-बौद्ध मान्यताओं से बिल्कुल अलग थी. फिर भी राजाओं ने इसमें शासन, व्यापार और कूटनीति का रास्ता खोज लिया. 

इन बातों से प्रभावित होकर तट के राजा मारा सिलु ने इस्लाम अपनाने का फैसला किया. धर्म परिवर्तन कर के उन्होंने एक मुस्लिम शासक के रूप में नई पहचान बनाई. और नाम रखा सुल्तान मलिक अल-सलीह. इसके बाद उनके राजसी कामकाजों में इस्लामी सिद्धांतों की झलक देखने को मिली. और नए धर्म का विस्तार हुआ. सुल्तान मलिक अल-सलीह की मौत के बाद उन्हें जिस जगह पर दफनाया गया वहां कब्र के पत्थर पर 1297 ई की तारीख  है. जो तट पर मौजूद सबसे पुराने शिल्पलेखों में से एक है. इतिहासकार उन्हें इंडोनेशिया में मुस्लिम धर्म के संस्थापक मानते हैं.

वली सोंगो की कहानी

एक- एक कर के इस्लाम इंडोनेशिया के दूसरे तटों पर भी पैर पसारने लगा. जो सदियों पुराने साम्राज्यों के पतन की वजह बना. जावा में लंबे समय तक मजापहित साम्राज्य का शासन था. लेकिन 15वीं और 16वीं शताब्दी में इस्लामीकरण का ठोस दौर देखा गया. जब वली सोंगो इस्लाम का प्रचार प्रसार करने के लिए सामने आए. वली अरबी शब्द है जिसका मतलब है 'ईश्वर का दोस्त', जबकि सोंगो  जैवनीस शब्द है यानी '9'. इन 9 मौलवियों को जावा में इस्लाम की शिक्षा देने और प्रचार प्रसार करने का श्रेय दिया जाता है.

जावा में इस्लाम को बढ़ावा देने वाले 9 मौलवी- उलमा एम्पेल, उलमा मलिक इब्राहिम, उलमा गिरी, उलमा बोनांग, उलमा द्राजत, उलमा मुरिया, उलमा कुदुस, उलमा कलिजगा, उलमा गुनुंग थे.

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कठपुतली से बदलाव की कहानी

वली सोंगो में एक थे सुनन कलिजगा. उन्हें काफी समझदार माना जाता था. क्यों? वो आगे की कहानी से समझेंगे. उस दौर में जावा में छाया कठपुतली का खेल बड़ा मशहूर था. जिसे हम ‘shadow puppetry’ नाम से भी जानते है. अंधेरे में दीये जलाकर शरीर या कठपुतली की परछाई से कहानी बयां करने की लोककला. ये तट पर काफी मशहूर थी. ज्यादातर इस कला से महाभारत और रामायण की कहानियां बताई जाती थीं. ये सब देखकर कलिजगा को एहसास हुआ कि लोगों के दिलों तक पहुंचने के लिए उनकी संस्कृति में संवाद होना जरूरी है. तो क्यों न इस कला को ही जरिया बनाया जाए? 

कलिजगा ने तरकीब अपनाई. तमाम हिंदू महाकाव्यों की कहानियों को गलत ठहराने के बजाय, उन्होंने अपनी सीख लोगों तक पहुंचाने का काम किया. धीरे-धीरे  कठपुतलियों के जरिए इस्लामिक कहानियां सुनाई जाने लगीं. रात को खुले आसमान के नीचे तट पर इकठ्ठा यहां के लोग कब मनोरंजन के जरिए धर्म परिवर्तन के करीब पहुंच गए उन्हें खुद भी नहीं पता चला. इंडोनेशिया में आज तक, सुनन कलिजगा सहित बाकी वली सोंगो को याद किया जाता है. उनकी कब्रों पर स्थानीय लोग जियारा (प्रार्थना)करने जाते हैं.

उन दिनों इंडोनेशिया के तट पर इस्लाम के प्रसार का जिक्र किताबों में भी मिलता है. इब्न बतूता नाम तो सुना ही होगा. मोरक्को के ट्रैवलर, जो 14वीं सेंचुरी में घूमने निकले थे. करीब तीस सालों में अफ्रीका के अधिकतर हिस्से और लगभग पूरा एशिया घूम चुके थे. इस दौरान घूमते घूमते समुद्र-पासाई सल्तनत तक पहुंचे, जो सुमात्रा के उत्तर पूर्वी सिरे पर है. अपनी किताब Rihla (The Journey) में उन्होंने बताया है,

‘जैसे ही मेरा जहाज समुद्र-पासाई के तट के पास पहुंचा. तो मैंने देखा कि बंदरगाह पर बड़ी हलचल थी. दूर-दराज के देश जैसे अरब, भारत, फारस  से पहुंचे व्यापारियों की भीड़ लगी थी. उनके जहाज मसालों, कपड़ों और कीमती सामानों से लदे थे. वहां के सुल्तान थे ’अल-मलिक अल-ज़हीर'. उनका व्यवहार निष्पक्ष था. सुल्तान के दरबार में यात्रियों और विद्वानों का स्वागत हो रहा था. जहां सभी लोग अपने विचार रखने के लिए आजाद थे.'

इब्न बतूता आगे बताते हैं कि सुल्तान इस्लाम के कट्टर समर्थक थे. उनके दरबार में धार्मिक  गुरू धर्मशास्त्र और कानून पर बहस करते थे. और इनसे सीखने के लिए कई युवा इकट्ठा होते थे. बतूता ने यहां के धार्मिक आयोजनों में भी भाग लिया. उन्होंने देखा कि इस्लाम यहां काफी गहराई तक जड़ें जमा चुका था. राजा से लेकर आम लोगों में कुरान के प्रति आदर साफ झलक रहा था.

जब तट पर डच ने कब्जा जमा लिया

इंडोनेशिया के तट व्यापारिक तौर पर इतने खास थे कि दूर दराज देशों के सेलर्स की इन पर पैनी नजर थी. पुर्तगालियों ने यहां के मसालों के व्यापार पर कब्जा जमाने की कोशिश की लेकिन ज्यादा समय तक ठैर नहीं पाए. नीदरलैंड्स ने इन्हें रिप्लेस कर दिया. 16वीं शताब्दी तक यहां के मालुकु तट पर नीदरलैंड्स ने पैठ बना ली थी. तरीका वही था पहले व्यापार  के जरिए एंट्री. और फिर राजाओं को अधीन कर खुद राजा बन गए. लेकिन उनके शासन का तरीका कठोर था. किसानों पर जुल्म  किए जाने लगे. मसालों की कीमतें आसमान छूने लगीं. इसी के साथ 19वीं सदी में डच (नीदरलैंड्स में रहने वाले) की पहुंच सुमात्रा, जावा सहित कई तटों तक फैल  चुकी थी

घने जंगलों से उठी आजादी की चिंगारी

वहीं दूसरी तरफ सुमात्रा के उत्तरी इलाके ‘Aceh’ में बगावत के सुर उठ रहे थे. घने जंगलों में सेना तैयार  की जा रही थी. इसके पीछे इस्लाम का समर्थन करने वाली एक महिला का हाथ था. नाम ‘Cut Nyak Dhien’. जिन्होंने  लोगों के बीच जिहाद (यानी की सामूहिक संघर्ष) को बढ़ावा  दिया. अपनी जमीन के लिए लड़ते लड़ते उनकी मौत  हो गई. जानते हैं कभी इन तटों पर ब्रिटिशों ने भी डेरा जमाने  की कोशिश की लेकिन डच ने उन्हें भी पछाड़ दिया.

इस दौर में, इंडोनेशिया के कई हिस्सों में डच के खिलाफ विद्रोह चल रहा था. इसके एवज में फूट डालो, राज करो का तरीका अपनाया जा रहा था. लेकिन तबतक यूरोप से पहुंची शिक्षा और नए विचार इंडोनेशिया में दस्तक दे चुके थे. यहीं से स्वतंत्रता आंदोलन की नींव पड़ी. यानी इंडोनेशिया के आजादी की जंग.

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शरिया कानून या धर्मनिरपेक्ष गणराज्य?

शहर अभी बसा भी नहीं था कि लूटने वाले तैयार बैठे थे. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इंडोनेशिया पर जापान ने जीत हासिल  कर ली. स्थानीय लोगों इतने प्रताड़ित थे कि उन्हें जापानियों में उम्मीद दिखने लगी थी. लेकिन जल्द ही इस पर पानी फिर गया  क्योंकि जापानी कब्जा और भी कठोर साबित हुआ. 1945 में दूसरे विश्व युद्ध में हार के बाद तट पर जापान का शासन भी खत्म हुआ. इसके बा इंडोनेशियाई नेताओं के अंदर आजादी की लौ जल जलने लगी. सुकर्णो और मोहम्मद हत्ता जैसे नेताओं ने 17 अगस्त 1945 को स्वतंत्र इंडोनेशिया की घोषणा की.

हालांकि इसका बीच 1940 के दशक के अंत में ही बोया जा चुका था. नए राष्ट्र का फैसला करने के लिए कई नेता इकठ्ठा हुए. द्वीप पर कई धर्म फलफूल रहे थे. जिसमें इस्लाम बहुसंख्यक धर्म था. सवाल था कि क्या नया राष्ट्र एक इस्लामी राज्य हो या एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य? कुछ नेताओं ने शरिया कानून के तहत एक राष्ट्र की कल्पना की थी, उनका तर्क था कि इस्लाम ने ही औपनिवेशिक ताकतों के खिलाफ संघर्ष की नींव रखी थी. दूसरे गुट में धर्मनिरपेक्ष राज्य के समर्थक थे, जो इस बात पर जोर दे रहे थे कि इंडोनेशिया की विविधता - इसके हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई , और एनिमिस्ट (प्रकृति को पूजने वाले) लोगों में है.

1945 में जब इंडोनेशिया ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की, तो ये एक ऐसे राष्ट्र के रूप में सामने आया जो अनेकता में एकता को दर्शा रहा था. देश का आधिकारिक आदर्श वाक्य बना, भिन्नेका तुंगगल इका. यानी की विविधता में एकता. आज इंडोनेशिया में अमेरिका के तरह राष्ट्रपति प्रणाली है, जिसमें राष्ट्रपति प्रमुख होता है. और इसी तरह दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश विविधता का पर्याय बन गया.

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