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कौन हैं राजा चारी, जिन्हें नासा ने चांद पर भेजने के लिए चुना?

अंतरिक्ष में ऐसा काम किसी भारतीय मूल के ऐस्ट्रोनॉट ने नहीं किया.

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नासा का चांद और मंगल पर बस्ती बसाने का प्लान है. (नासा)
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आयुष
16 दिसंबर 2020 (Updated: 15 दिसंबर 2020, 03:54 AM IST) कॉमेंट्स
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आखिरी बार 1972 में किसी आदमी ने चांद पर कदम रखा था. ये अमरीकी स्पेस एजेंसी नासा का मिशन था. मिशन का नाम था अपोलो 17. इसके बाद से नासा ने चांद पर मनुष्य भेजना बंद कर दिया. किसी और देश की स्पेस एजेंसी चांद पर कभी मनुष्य नहीं भेज पाई.
2024 में नासा दोबारा चांद पर मनुष्य भेजना चाहता है. इसमें चांद पर जाने वाली पहली महिला भी शामिल होगी. इस बार नासा चांद पर सिर्फ टहलने नहीं जा रहा है. इस बार वहां पर ठहरने का प्रबंध किया जाना है. इस दशक के अंत तक नासा चांद पर सस्टेनेबल ह्यूमन प्रेज़ेंस बनाने की तैयारी में है. यानी़ चांद पर लंबे वक्त तक इंसान की मौजूदगी बनाने का प्लान है. नासा के इस प्रोग्राम का नाम है आर्टेमिस.
आर्टेमिस प्रोग्राम के लिए नासा ने 18 ऐस्ट्रोनॉट्स को सिलेक्ट किया है. इनमें से आधी महिलाएं हैं और आधे पुरुष. इन्हीं में से एक नाम है राजा चारी. पूरा नाम राजा जॉन वुर्पुतूर चारी. राजा चारी इस लिस्ट में भारतीय मूल के इकलौते व्यक्ति हैं.
राजा चारी को नासा ने 2017 में ऐस्ट्रनॉट कैंडिडेट क्लास के लिए सिलेक्ट किया था. इससे पहले वो 461वें फ्लाइट टेस्ट स्क्वाड्रन के कमांडर थे. वो F-35 इंटीग्रेटेड टेस्ट फोर्स के डायरेक्टर भी थे.
राजा ने 1999 में यूएस एयरफोर्स अकेडमी से ग्रैजुएशन किया. ऐस्ट्रोनॉटिकल इंजिनियरिंग की डिग्री हासिल की. इसके बाद वो मास्टर्स डिग्री के लिए MIT गए. यहां से ऐयरोनॉटिक्स एंड ऐस्ट्रोनॉटिक्स की पढ़ाई.

राजा 43 साल के हैं. वो अमेरीका के आयोवा में बड़े हुए. राजा के पिता श्रीनिवास चारी इंडिया में पैदा हुए थे. श्रीनिवास ने हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया था. इसके बाद वो मास्टर्स की डिग्री हासिल करने अमेरिका चले गए. और वहीं सेटल हो गए. वहीं राजा की मां पैगी आयोवा की ही रहने वाली हैं. वो बताती हैं कि राजा बचपन से ही ऐस्ट्रोनॉट बनने के ख्वाव देखते थे.
राजा अपने पिता को प्रेरणास्त्रोत मानते हैं. राजा ने कहा -
मेरे पिता अच्छी शिक्षा हासिल करने के मकसद से इस देश (अमरीका) आए थे. उन्हें इसका महत्व समझ आया. इसी का असर मेरी देखरेख पर पड़ा. मेरे बचपन में पूरा फोकस शिक्षा पर रहा.
इससे पहले एक भारतीय और दो भारतीय मूल के ऐस्ट्रोनॉट्स अंतरिक्ष में गए हैं.
राकेश शर्मा
राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले और इकलौते भारतीय नागरिक हैं. भारत ने रूस की मदद से इन्हें अंतरिक्ष में भेजा था. तारीख थी 3 अप्रैल, 1984. रूस का सोयूज़ टी-11 स्पेसक्राफ्ट राकेश शर्मा को सैल्यूट-7 स्टेशन लेकर गया.
राकेश शर्मा. (विकिमीडिया)
राकेश शर्मा. (विकिमीडिया)


राकेश शर्मा ने इस ऑर्बिटल स्टेशन में लगभग आठ दिन बिताए. भारत की प्रधनमंत्री इंदिरा गांधी से बात भी की. जब इंदिरा ने पूछा ऊपर से भारत कैसे दिखता है, तो राकेश ने जवाब दिया - ‘सारे जहां से अच्छा’.
कल्पना चावला
कल्पना चावना का जन्म हरयाणा के कर्नाल ज़िले में हुआ था. इन्होंने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से ऐयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग से ग्रैजुएशन किया. इसके बाद ये आगे की पढ़ाई करने अमेरिका चली गईं. इन्हें 1994 में नासा ने सिलेक्ट कर लिया. कल्पना अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला थीं.
कल्पना चावला. (विकिमीडिया)
कल्पना चावला. (विकिमीडिया)


1 फरवरी, 2003 को कल्पना अंतरिक्ष से पृथ्वी के वायुमंडल में दाखिल हो रही थीं. उनकी स्पेसशिप स्पेस शटल कोलंबिया में छह और ऐस्ट्रोनॉट्स बैठे थे. जैसे ही कोलंबिया वायुमंडल में दाखिल हुई, उसके टुकड़े-टुकड़े हो गए. सातों ऐस्ट्रोनॉट्स की मौत हो गई.
सुनिता विलियम्स
सुनिता का जन्म अमेरिका के ओहायो में हुआ था. इनके पिता दीपक पंड्या का जन्म भारत में हुआ था. सुनिता को 1998 में नासा ने सिलेक्ट किया था. ऐस्ट्रोनॉट बनने से पहले सुनिता यूएस नेवी में टेस्ट पायलट थीं. स्पेस में इनके नाम कई रिकॉर्ड दर्ज हैं.
सुनिता विलियम्स. (विकिमीडिया)
सुनिता विलियम्स. (विकिमीडिया)


सुनिता दो बार इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जा चुकी हैं. इन्होंने 321 दिन का वक्त अंतरिक्ष में बिताया. ये अमेरिका की सबसे अनुभवी महिला ऐस्ट्रोनॉट हैं. सुनिता विलियम्स अंतरिक्ष में सबसे ज़्यादा और लंबे समय तक स्पेसवॉक करने वाली महिला भी हैं. इनका कुल स्पेसवॉक टाइम 50 घंटे 40 मिनट है.
भारत से रिश्ता रखने वाले ये तीन ऐस्ट्रोनॉट्स स्पेस में जा चुके हैं. लेकिन इनमें से कोई चांद पर नहीं गया है. अगर राजा चारी मून मिशन के लिए जाते हैं, तो वो चांद पर कदम रखने वाले पहले भारतीय मूल के ऐस्ट्रोनॉट होंगे.

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