The Lallantop
Advertisement

'Gen Z', 'मिलेनियल्स' और 'अल्फा' जैसे नाम किस मीटिंग में तय किए जाते हैं?

हम सब ने Millennial, Gen Z और Generation Alpha के बारे में सोशल मीडिया पर खूब सुना और पढ़ा होगा. लेकिन इसके अलावा भी कई और जनरेशन हैं. ये सब आपको कौन बताएगा? दी लल्लनटॉप.

Advertisement
millennial,Gen Z,Generation Alpha
अलग-अलग जनरेशन की सांकेतिक तस्वीर. (क्रेडिट-AI)
pic
शिवांगी प्रियदर्शी
1 अगस्त 2024 (Updated: 31 दिसंबर 2024, 10:37 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

अमेरिका के जर्नलिस्ट टॉम ब्रोकॉ ने 1998 में एक किताब लिखी, ‘ग्रेटेस्ट जनरेशन’. टॉम ने 1901 से 1927 के बीच पैदा हुए लोगों के बारे में लिखा. उन्होंने इस पीढ़ी को महानतम पीढ़ी या ‘ग्रेटेस्ट जनरेशन’ कहा था. क्यों? क्योंकि यही वो लोग हैं, जो पहले विश्व युद्ध के बैकड्रॉप में पैदा हुए, दूसरे विश्व युद्ध में शामिल हुए, गरीबी देखी और कई बीमारियों से भी गुजरे. इसलिए ‘ग्रेटेस्ट जनरेशन’.

मगर ये आखिरी जनरेशन तो है नहीं. इसके बाद से छह जनरेशन और आ गई हैं. इनमें से दो की चर्चा तो समय-समय पर सोशल मीडिया पर तेजी पकड़ती रहती है. मिलेनियल्स और जेन ज़ी (Generation Z). ‘सेकेंड ग्रेटेस्ट’ के दावे में इन दो पीढ़ियों के अलावा बेबी बूमर, साइलेंट जनरेशन, जनरेशन एक्स और जनरेशन अल्फा भी कतार में है.

जनरेशन का नाम कौन तय करता है?

मिलेनियल्स और जनरेशन Z केवल नाम नहीं हैं, जो रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन गए हैं. ये एक संदर्भ बिंदु देते हैं. अलग-अलग उम्र के लोगों और समाज में हो रहे बदलावों को समझने का सूत्र बनते हैं. पर ये नाम रखे कैसे जाते हैं? कौन तय करता है? सब बताते हैं.

ये भी पढ़ें - सॉरी बॉस, आप नौकरी करते मेरे जैसे Gen-Z को बिल्कुल नहीं समझते!

द हिन्दू में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, जनरेशन के नाम रखने की शुरुआत 20वीं सदी में ही कर दी गई थी. मगर पहले यही जान लीजिए कि यह काम इंटरनेट पर बैठे कर्मवीर नहीं करते. बल्कि इसे तय करने में सोशियोलॉजिस्ट (समाजशास्त्री) और डेमोग्राफर्स (जनगणना विशेषज्ञ) लगते हैं.

ये लोग जनगणना के आंकड़े और बर्थ रेट को देखते हैं. इसके अलावा समाज में हो रहे बदलावों को समझने की कोशिश करते हैं. उस समय हो रही घटनाओं पर खास ध्यान दिया जाता है, कि इनका जनता पर क्या असर पड़ा? इतने भर से भी नहीं होता. कई और बातों का ध्यान रखा जाता है. जैसे आर्थिक हालात, तकनीकी विकास और राजनीति. तब जाकर सोच-विचार ये नाम तय किए जाते हैं.

सातों जनरेशन के नाम क्या सोचकर रखे गए?

- ग्रेटेस्ट जनरेशन (1901-1927)

वो जनरेशन, जिसने सबसे कठिन समय का सामना किया.पहले वर्ल्ड वॉर के दौरान पैदा हुए या बचपन बीता. सेकंड वर्ल्ड वॉर का हिस्सा रहे. मंदी और आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा. उस दौरान बेरोजगारी इतनी चरम पर थी कि लोगों को खाने के लाले थे. साथ ही खतरनाक-लाइलाज बीमारियों से गुजरे. इस पीढ़ी के संघर्ष के कारण ही इन्हें 'ग्रेटेस्ट जनरेशन' का नाम दिया गया.

- साइलेंट जनरेशन (1928 -1945)

नवंबर, 1951 में ‘द यंगर जनरेशन’ नाम से एक आर्टिकल छपा था. इसी में पहली बार 'साइलेंट जनरेशन' का जिक्र किया गया था. उन लोगों की पीढ़ी, जिसका जन्म 1928 से 1945 के बीच हुआ. और, 'साइलेंट जनरेशन' क्यों? इसलिए कि इस पीढ़ी में जन्मे लोगों ने विश्व युद्ध का बहुत बुरा दौर देखा. गुलामी, बेरोजगारी और डिप्रेशन के शिकार हुए. और, ये सब कुछ चुप रह कर बर्दाश्त किया.

ये भी पढ़ें - वो विचारक जो कहता था, 'ईश्वर मर चुका है!'

इसी वक्त यूरोप के आर्ट, लिट्रेचर और फिलॉस्फी में शून्यवाद (nihilism) का ट्रेट दिखा. शून्यवाद या नाइलिज़्म, 19वीं सदी के अंत का एक विचार है. हर चीज़ से विरक्ती, कोई वफ़ादारी नहीं और न ही कोई उद्देश्य — इस विचार को अक्सर निराशावाद और संदेह की भावना से जोड़ा जाता है, जो अस्तित्व के लिए ही बहुत उत्सुक न हो.

- बेबी बूमर (1946-1964)

साल 1963 में लेखक लेस्ली जे नैसन ने ‘डेली प्रेस’ अखबार में एक आर्टिकल लिखा गया. यहीं से ‘बेबी बूमर’ जनरेशन का नाम आया. ये जनरेशन दूसरे वर्ल्ड वॉर के खत्म होते ही शुरू हुआ था. नाम ‘बेबी बूमर’ इसलिए कि इस पीढ़ी में जनसंख्या में बृद्धि हुई थी. सिर्फ 19 सालों में - 1946 से 1964 तक - करीब 7.6 करोड़ बच्चे पैदा हुए. इस जनरेशन ने कई तकनीकी विकास भी किए.

- जनरेशन X (1965-1980)

डगलस कूपलैंड नाम के जर्नलिस्ट और नॉवलिस्ट ने 1987 में 'वैंकूवर मैगज़ीन' में एक आर्टिकल लिखा था. उन्होंने नहीं, उनके बकौल ये शब्द ‘क्लास: अ गाइड थ्रू द अमेरिकन स्टेटस सिस्टम’ नाम की किताब से लिया था.

इस जनरेशन को ‘मॉडर्न’ जमाने की शुरुआत माना जाता है. इन्हीं लोगों के पास सबसे पहले कंप्यूटर और टीवी आए. लोगों का झुकाव सिनेमा, आर्ट और म्यूजिक की तरफ था. 'जनरेशन एक्स' वो पहली पीढ़ी थी जिसनें तकनीकी और आधुनिक विकास का लुत्फ उठाया. 

मिलेनियल्स (1981-1996)

मिलेनियल्स को जनरेशन 'Y' के नाम से भी जाना गया, मगर शायद उन्हें जमा नहीं. इसीलिए ये बहुत प्रचलित नहीं हुआ. (Y में ‘Why?’ का भाव आता है. मुमकिन है, इस वजह से.) 

1991 में विलियम स्ट्रॉस और नील होवे ने ‘जनरेशन’ नाम की किताब लिखी थी. वहां सबसे पहले मिलेनियल्स का ज़िक्र किया गया था. ये वही जनरेशन है, जिसने ब्लैक ऐंड वाइट टीवी से लेकर कलर टीवी तक का सफर तय किया. लैंडलाइन फोन से स्मार्ट फोन तक.

ये भी पढ़ें - घर जाने के बाद भी बॉस का फ़ोन आता है? यहां चले जाइए, बॉस के इंतज़ाम के लिए क़ानून आ रहा है!

माने खूब तकनीकी बदलाव देखे. नए-नए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया. इस जनरेशन के लोगों का संगीत, खेल, फिल्मों और टेलीविजन जैसी चीजों में खूब रुझान रहा.

जनरेशन Z (1997-2012)

रैपर एमसी लार्स ने 2005 में एक गाने में ‘आई जनरेशन’ शब्द का इस्तेमाल किया था. इसके बाद जीन ट्वेंग नाम की एक राइटर ने अपनी किताब में iGen का जिक्र किया था. वहीं से ‘जनरेशन Z’ का नाम लिया गया, जिसे शॉर्ट में Gen Z और 'ज़ूमर' नाम से भी बुलाया है.

स्मार्टफोन और इंटरनेट के साथ बड़े होने वाली जनरेशन है. कहने के कहें, डिजिटल युग के बच्चे. मगर इस युग में विमर्श के स्तर पर बहुत विकास हुआ. जेंडर सेंस्टिविटी, मेंटल हेल्थ, वोकिज़्म पर चर्चा हरी हुई. हालांकि, मिलेनियल्स इस पीढ़ी को ‘प्रिवेलज से ग्रस्त’ कहते हैं.

जनरेशन अल्फा (2013-2024)

ऑस्ट्रेलिया के मार्क मैक्रिंडल नाम के सोशल रिसर्चर हैं. इन्होंने 2008 में एक रिसर्च की. उसी के बाद 2013 से 2024 के बीच पैदा होने वाले बच्चों को 'जनरेशन अल्फा' का नाम दिया गया. इस जनरेशन को मिलेनियल्स के साथ भी जोड़ा जाता है, क्योंकि ज्यादातर अल्फा जनरेशन के माता-पिता मिलेनियल्स ही है. इसीलिए अल्फा को 'मिनी-मिलेनियल्स' भी कहा जाता है.

ये जनरेशन फ़ोन समेत अन्य गैजेट्स के ‘अडिक्शन’ स्तर के इस्तेमाल के इर्द-गिर्द पली-बढ़ी. इसीलिए इंटरनेट, सेल फोन, टैबलेट और सोशल मीडिया का अच्छा-ख़ासा असर है. बाकी जनरेशन अल्फा के बारे में आगे कुछ भी बताना जल्दबाजी होगी, क्योंकि अभी तो ये फूटे ही हैं. 

ये भी पढ़ें - इंसानों में क्या रखा है, बंदर भी लिख देंगे शेक्सपियर का नाटक! ना यकीन हो तो खुद पढ़ लें

अलग-अलग नाम केवल नाम नहीं हैं, लोगों को बाटने के लिए नहीं है. ये हमें बताते हैं कि लोग कैसे बड़े हुए, कैसे सोचते थे, उनका रहन-सहन कैसा था. इन नामों के पीछे उन लोगों की कहानी है, जिन्होंने बदलते वक्त के साथ बदलते हालात देखे, नए हालात के साथ रिश्ता बनाया और अपनी एक पहचान बनाने की कोशिश की. जैसा हम-आप कर रहे हैं. लगे रहिए!

वीडियो: आसान भाषा में: सिंगर अलका याग्निक क्यों नहीं सुन पा रहीं? हेडफोन से कानों को कितना खतरा?

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement