मोबाइल के लिए मां-बाप ने डांटा तो 10 साल के बच्चे ने जान दे दी, मोबाइल सिंड्रोम से अपने बच्चे को ऐसे बचाएं
Andhra Pradesh के Kurnool का रहने वाले 10 साल के पवन की दशहरे की छुट्टियां चल रही थीं. फुर्सत के पल वो मोबाइल फोन के साथ बीता रहा था. ऐसे में मां-बाप ने उससे डांटते हुए मोबाइल से दूर रहने की सलाह दी थी. क्या आप जानते हैं मोबाइल फोन की लत दरअसल एक सिंड्रोम (Mobile Phone Syndrome) है. मनोवैज्ञानिकों ने इसके लक्षण और बचाव के उपाय भी बताए हैं.

"पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दे ले, ऐसे मोबाइल पर खेलने से ज़िंदगी नहीं चलेगी." अक्सर मां-बाप अपने बच्चों को इसी अंदाज में डांटते हैं. कर्नूल (आंध्र प्रदेश) के शेखर और शारदा ने भी मंगलवार, 30 सितंबर को यही किया. उनका 10 साल का बेटा पवन, दशहरे की छुट्टियों में मोबाइल पर ही चिपका रहता था. जब माता-पिता ने उसे समझाया और फोन छीन लिया, तो वह नाराज़ हो गया. गुस्से में बाथरूम में जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया.
कुछ देर बाद जब दरवाज़ा नहीं खुला, तो मां-बाप ने उसे तोड़ा. सामने का दृश्य किसी भी माता-पिता की रूह कंपा देने वाला था. छोटा-सा पवन, जिसने अभी ज़िंदगी देखनी भी शुरू नहीं की थी, हमेशा के लिए चला गया.
कर्नूल की दिल दहला देने वाली घटनापवन को तुरंत सरकारी अस्पताल ले जाया गया. लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. घर में अब सिर्फ मातम है. चीखें हैं. और सवाल हैं. क्या एक मोबाइल फोन इतनी बड़ी कीमत मांग सकता है?
ऐसे हादसे और भी हुए हैंकर्नूल की ये घटना पहली नहीं है. मोबाइल फोन की लत ने देश में कई बच्चों की ज़िंदगियां छिनी हैं.
- टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक केओंझर (ओडिशा) में एक 10 साल के बच्चे ने मोबाइल विवाद के बाद जान दी.
- द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक केरल में 2019-2022 के बीच कम से कम 25 बच्चों ने इंटरनेट/गेम की लत के कारण आत्महत्या की है.
- भारत में बच्चों और किशोरों की आत्महत्या की दर लगातार बढ़ रही है-2021 में लगभग 5075 पुरुष व 5655 महिला (बच्चे/किशोर) मौतें दर्ज की गईं.
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की रिसर्च इस मामले में एक खतरनाक संकेत देती है.
- भारत में स्कूली बच्चों और किशोरों में मध्यम स्तर की “Problematic Internet Use (PIU)” लगभग 21.5% पाई गई है.
- उसी अध्ययन में गंभीर PIU (उच्च स्तर) लगभग 2.6% पाई गई है.
- एक अन्य अध्ययन में मोबाइल फोन एडिक्शन की दर लगभग 33.0% पाई गई - यानी प्रत्येक तीसरे किशोर में कम-कम एक संकेत.
- “Internet Addiction Disorder (IAD)”-संबंधित अध्ययन बताते हैं कि भारत में लगभग 24.6% किशोर इस समस्या के दायरे में आ सकते हैं.
भारत की समग्र आत्महत्या दर लगभग 12 प्रति 1,00,000 (2021 के आंकड़ों में) पाई गई है. WHO की तुलना में यह दर दुनिया के औसत से अधिक मानी जाती है. भारत में बच्चों व किशोरों के बीच आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं.
मोबाइल एडिक्शन: एक सिंड्रोममनोविज्ञान में इसे “इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर” (IGD) या मोबाइल एडिक्शन सिंड्रोम कहा जाता है. ये केवल शौक नहीं, बल्कि एक मानसिक बीमारी मानी जा रही है. बच्चा धीरे-धीरे गेम्स और सोशल मीडिया की दुनिया में इतना खो जाता है कि असल जीवन से उसका जुड़ाव कमजोर हो जाता है.
लक्षण क्या हैं?ऐसा नहीं है कि आपका बच्चा रातों-रात मोबाइल सिंड्रोम का शिकार हो जाता है. ये लत आने के पहले कई संकेत देती है. जरूरत है तो उन्हें पहचाने की.
- बच्चा घंटों मोबाइल में डूबा रहता है.
- खाने-पीने और सोने का समय बिगड़ जाता है.
- पढ़ाई और खेलकूद में रुचि कम हो जाती है.
- माता-पिता की बात सुनना बंद कर देता है.
- मोबाइल छीनने पर चिड़चिड़ापन, गुस्सा या आक्रामकता दिखाता है.
तो अगर आपकी नजर में भी कोई बच्चा इन लक्षणों से जूझ रहा है तो उसकी मदद कीजिए. उसे इग्नोर मत कीजिए.
इलाज और समाधानमनोवैज्ञानिक बताते हैं कि इस समस्या का समाधान सिर्फ मोबाइल छीन लेना नहीं है.
- बच्चों के साथ समय बिताना ज़रूरी है.
- बाहर खेलने और पढ़ने की आदत डालनी चाहिए.
- स्क्रीन टाइम के नियम बनाए जाएं.
- ज़रूरत पड़ने पर काउंसलिंग और थेरेपी कराई जाए.
विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों में आत्महत्या जैसी घटनाएं तभी होती हैं जब वे खुद को असहाय और अकेला महसूस करते हैं. मनोवैज्ञानिक डॉ. वाणी रेड्डी कहती हैं-
दर्दनाक सबकमाता-पिता को चाहिए कि डांटने के बजाय बच्चों से बातचीत करें. उनकी भावनाओं को समझें. प्यार और संवाद ही उन्हें इस जाल से बाहर ला सकता है.
पवन की मौत ने हमें आइना दिखाया है. मोबाइल ज़रूरी है, लेकिन बच्चों की हंसी, उनका बचपन और उनकी ज़िंदगी कहीं ज्यादा कीमती है. अब सवाल हर परिवार से है-
क्या हम अपने बच्चों को मोबाइल देंगे, या उन्हें जीवन देंगे?
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