'हाईटेक सिटी' गुरुग्राम हर साल 'वेनिस' बन क्यों डूब जाता है?
गुरुग्राम बारिश के लिए पहले से एकदम तैयार नहीं हो पाया था. एक्सपर्ट मानते हैं कि गुरुग्राम में बाढ़ के लिए खराब जल निकासी व्यवस्था भी जिम्मेदार है.
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मिलेनियम सिटी के नाम से मशहूर गुरुग्राम को ‘जलगांव’ बनते पूरे देश ने देखा. दो दिन की बारिश ने इंटरनेशनल दफ्तरों और गगनचुंबी इमारतों वाले ‘हाईटेक सिटी’ की पोल खोलकर रख दी. ‘करोड़ों रुपये के फ्लैट खरीदो और जब बारिश हो तो घर के बाहर ‘वेनिस’ बन जाता है.’ ये बात एक निजी कंपनी के CEO ने कही है. ये जबर्दस्त 'ऑफर' आपको सिर्फ गुरुग्राम में ही मिल सकता है. और ऐसा नहीं है कि ये पहली बार है. हर बरसात की यही कहानी है. ठीक से बादल बरस जाते हैं तो सड़कों पर बाढ़ आ जाती है. कारें डूब जाती हैं. ऑटो वाले, बाइक वाले पानी के अंबार में फंस जाते हैं.
किसी को दफ्तर जाना है, किसी को घर. किसी को अस्पताल जाना है या कहीं और. लेकिन इस भव्य शहर की बड़ी-बड़ी सड़कों से आप कहीं नहीं जा सकते. क्योंकि उन पर नाव चलाने की नौबत आ गई है. सोशल मीडिया पर ऐसे कितने वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें बारिश के प्रकोप से लाचार ‘शहर की अमीरी’ पर तंज कसा जा रहा है. एक वीडियो में ऊंची बिल्डिंग दिखती है और ऑटो में बैठा व्यक्ति कहता है, ‘100 करोड़ की बिल्डिंग है और पानी देख लो आप.’
ये भारत की 'विकासगाथा' का प्रतीक बन चुके गुरुग्राम शहर का सच है. कुछ घंटों की बारिश में वह अपनी ‘भव्यता में धराशायी’ हो जाता है.
इन सबके लिए सारा दोष हम प्रकृति को नहीं दे सकते. क्योंकि उसका ज्यादा हाथ भी नहीं है. गुरुग्राम के सड़कों पर आई बाढ़ पूरी तरह से ‘मानुषिक कारस्तानी’ (Man Made) है. गलत योजना से शहरी विकास का अंजाम है. ड्रेनेज सिस्टम की विफलता का स्मारक है.

आर्किटेक्ट कृष्ण सिंह नग्गल इंडिया टुडे को बताते हैं कि इस समस्या की जड़ में शहर की गलत डिजाइनिंग है. एक पूरा सेक्टर यहां ठीक से डिवेलप नहीं किया गया. गुरुग्राम के विकास को बिल्डरों पर छोड़ दिया गया. उनमें से किसी ने 5 एकड़ तो किसी ने 10 एकड़ प्लॉट लेकर उसे डिवेलप कर दिया गया लेकिन चाहिए ये था कि सेक्टरवाइज ठीक तरीके से शहर का डेवलपमेंट किया जाता. ड्रेनेज सिस्टम की व्यवस्था की जाती. सड़कों में ग्रेडियेंट होता है. उसका स्लोप मेंटेन किया जाता है. ताकि सारा का सारा पानी कलेक्ट किया जाए और फिर उसको डिस्पोज किया जाए. फिलहाल डिस्पोडल की व्यवस्था नहीं है. नग्गल के मुताबिक, गुरुग्राम में अभी जो व्यवस्था है, उसमें ड्रेनेज सिस्टम दुरुस्त नहीं है. पानी को निकलने की जगह नहीं मिलेगी तो ये समस्या बनी रहेगी.
गुरुग्राम का मौजूदा हाल क्या ‘अंधाधुंध शहरी विकास’ का नतीजा है?
इंडिया टुडे से जुड़े अमित भारद्वाज की रिपोर्ट में कई एक्सपर्ट इसका जवाब ‘हां’ में देते हैं. उनका कहना है कि जहां पहले खेती होती थी और जहां पर नेचुरल जलाशय होते थे, वहां बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें खड़ी हो गई हैं. दफ्तर बन गए हैं. प्राकृतिक रूप से बाढ़ के पानी को कन्ज्यूम करने की क्षमता रखने वाली झीलें या तो अतिक्रमण का शिकार हो गई हैं या फिर खत्म ही कर दी गई हैं. ऐसे में पानी जाए तो जाए कहां?
गुरुग्राम के जलजले के जो मुख्य कारण हैं, वो ये हैं– खराब ड्रेनेज व्यवस्था जो बारिश के पानी को हैंडल नहीं कर पाती
– प्राकृतिक वाटर बॉडीज और वेटलैंड्स पर अतिक्रमण
– अनियोजित शहरीकरण, जहां पर पानी के अवशोषण की कोई व्यवस्था नहीं है
– सीवेज और नालों की ओवरलैपिंग, जिससे न सिर्फ पानी का ओवरफ्लो होता है बल्कि बीमारियां भी फैलती हैं
– नालियों की अनियमित साफ-सफाई जो जलजमाव को ज्यादा गंभीर बना देता है
– और सिविल अथॉरिटीज का आपस में समन्वय भी नहीं है कि साथ मिलकर किसी समस्या का समाधान कर सकें.

जिम्मेदारों से बात करिए तो वो सारा दोष बारिश पर मढ़ देते हैं. गुरुग्राम नगर निगम के कमिश्नर प्रदीप दहिया कहते हैं कि वह अभी नए-नए हैं लेकिन समस्या का समाधान निकाल रहे हैं. उन्होंने कहा कि बाढ़ और जलभराव में अंतर होता है. पानी को बाहर निकालने का काम तेजी से किया जा रहा है. विधायक मुकेश शर्मा तो लोगों को ‘बारिश में थोड़ा शांत’ रहने के लिए कह देते हैं लेकिन खराब व्यवस्था ने जिनके घरों के सामने बाढ़ की 'होम डिलिवरी' कर दी है और जो 20 किमी लंबे जाम में फंसे हैं, वो शांत कैसे रह पाएंगे? शर्मा का कहना है कि बारिश ज्यादा हो गई और गुरुग्राम में तो फिर भी बारिश के दो-चार घंटों में पानी बाहर निकल जाता है.
औसतन 600 MM बारिश वाले गुरुग्राम के मुकाबले अन्य बड़े शहरों की क्या हालत है? खासतौर पर कोच्चि जैसे शहर, जहां पर 3000 MM से ज्यादा बारिश होती है? द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कोच्चि में भी कुछ घंटों की बारिश में सड़कों पर बाढ़ जैसे हालात हो जाते थे लेकिन प्रशासन ने इस बार पहले ही तैयारी कर ली थी. शहर की नालियां साफ कर दी गई थीं. ड्रेनेज सिस्टम पर मॉनसून आने से पहले ठीक-ठाक काम कर लिया गया था. इस वजह से पहले के मुकाबले शहर में कम समय तक जलभराव की स्थिति रही.
पहले से नहीं थी तैयारीऐसा लगता है, गुरुग्राम बारिश के लिए पहले से एकदम तैयार नहीं हो पाया था. एक्सपर्ट मानते हैं कि गुरुग्राम में बाढ़ के लिए खराब जल निकासी व्यवस्था भी जिम्मेदार है. इसका ढंग का कोई सिस्टम ही नहीं है. शहर ज्यादातर सतही नालों पर निर्भर है, जो प्लास्टिक, गाद और मलबे से भरे होते हैं. कई नाले सीवेज लाइनों से जुड़े हुए हैं, जो भारी बारिश में ओवरफ्लो हो जाते हैं.
इसलिए ही एक्सपर्ट मानते हैं कि ये सिर्फ प्रकृति का प्रकोप नहीं है. गुरुग्राम के बनने में जल निकासी पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया. 20 साल पहले तक गुरुग्राम में प्राकृतिक झीलें, तालाब और अरावली रनऑफ चैनल थे. इनमें से अब ज्यादातर गायब हैं. आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक, गुरुग्राम में पहले 60 प्राकृतिक नहरें थीं, जिनमें से अब सिर्फ 4 बची हैं. उनकी जगह कांच के टावर और गेट वाली सोसाइटियों ने ले ली है. नजफगढ़ नाला, बादशाहपुर झील और घाटा झील जैसे प्राकृतिक नालों पर भी अतिक्रमण हो गया है. एक जमाने में ये भारी बारिश के समय अतिरिक्त पानी को बहा ले जाते थे.

नेचुरल वाटर बॉडीज जैसे- पारंपरिक तालाब, झीलें, बावड़ियां या वेटलैंड्स ऐसी बाढ़ के दौरान बहुत जरूरी भूमिका निभाते थे. वे बाढ़ के पानी का एक बड़ा हिस्सा सोख लेते थे लेकिन रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स के लिए उन्हें या तो पूरी तरह मिट्टी से भर दिया गया या फिर उन पर आंशिक अतिक्रमण कर लिया गया, जिससे वे संकरी और यूजलेस हो गईं. जैसे बादशाहपुर झील को ही लें. एक जमाने में वह प्राकृतिक बाढ़रोधी झील थी लेकिन अब इसका बड़ा हिस्सा गायब हो गया है.
गुरुग्राम में सैलाब का एक बड़ा कारण इसका भूगोल भी है. यह अरावली पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसा है. यह स्थिति शहर में बाढ़ के संकट को और बढ़ा देती है. अरावली से बारिश का पानी बहकर सोहना रोड और हीरो होंडा चौक जैसे निचले इलाकों में जमा हो जाता है. बाकी का काम कर देती हैं खराब डिजाइन वाली सड़कें. ऐसे इलाकों में सड़कों का एक खास ग्रेडिएंट (ढलान) और स्लोप होता है लेकिन गुरुग्राम की सड़कें एक कटोरे की तरह काम करती हैं. इससे पानी बाहर निकलने की बजाय सड़कों में फंसा रह जाता है.
शहरों के कंक्रीट का जंगल हो जाने ने भी शहरी बाढ़ को न्योता दिया है. कंक्रीट की वजह से जमीन बारिश के पानी को सोख नहीं पाती और वह जमा होकर जलभराव के रूप में सबकुछ अस्त-व्यस्त कर देता है.
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