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जीरो कैलोरी सॉफ्ट-ड्रिंक में डलने वाले एस्पार्टेम से होगा कैंसर? WHO उठाने वाला है बड़ा कदम

WHO एस्पार्टेम को खतरनाक संभावित कैंसरकारक की लिस्ट में डालने जा रहा है.

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Aspartem cancer non sugar sweetener cold drink
जीरो-कैलोरी वाली सॉफ्ट-ड्रिंक में 'संभावित कैंसर कारक' डाला जा रहा है. (फोटो सोर्स- आजतक)
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शिवेंद्र गौरव
30 जून 2023 (Updated: 30 जून 2023, 04:25 PM IST) कॉमेंट्स
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एस्पार्टेम. ज्यादातर लोगों ने इसका नाम भले न सुना हो, लेकिन दुनिया भर में इसका सेवन खूब होता है. इन दिनों इसे लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं. खबर है कि सॉफ्ट ड्रिंक्स वगैरह में आर्टिफीशियल स्वीटनर (बिना शक्कर वाला मीठा पदार्थ) की तरह इस्तेमाल किया जाने वाला ये पदार्थ ‘संभावित कैंसरकारक’ (Possibly Carcinogenic) घोषित किया जा सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की कैंसर रिसर्च यूनिट इसे अगले महीने यानी जुलाई 2023 तक कार्सिनोजेन की कैटेगरी में डाल सकती है. इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से ये जानकारी दी है.

क्या है एस्पार्टेम?

पहले तो कार्सिनोजेंस समझिए. माने ऐसे पदार्थ जो इंसानों में किसी न किसी तरीके के कैंसर की वजह बन सकते हैं. कोई पदार्थ कितना ज्यादा कैंसरकारक हो सकता है, उस हिसाब से कार्सिनोजेंस को चार कैटेगरी में बांटा गया है. कार्सिनोजेनिक, प्रोबैबली कार्सिनोजेनिक, पॉसिबली कार्सिनोजेनिक और नॉट क्लासिफाइएबल. इंडिया टुडे के मुताबिक एस्पार्टेम को अगले महीने तीसरी कैटेगरी में लिस्ट किया जा सकता है. माने पॉसिबली कार्सिनोजेनिक माना जा सकता है.

शक्कर को वैज्ञानिक भाषा में सुक्रोज कहते हैं. इसके सेवन से शरीर को कैलोरी (ऊर्जा) मिलती है. शरीर का शुगर लेवल बढ़ता है. हालांकि शक्कर से मिलने वाली कैलोरी, ज्यादा उम्र या डायबिटीज के चलते पूरी तरह पच नहीं पाती. इसलिए मिठास के लिए शक्कर के विकल्प के तौर पर एस्पार्टेम का इस्तेमाल होता है. एस्पार्टेम, कॉमन शुगर (शक्कर) से लगभग 200 गुना ज्यादा मीठा होता है. इसलिए इसकी कम मात्रा भी खाने-पीने वाली चीजों में भरपूर मिठास ला देती है. 

शक्कर की जगह इसके इस्तेमाल की खास तौर पर दो वजहें हैं. एक तो इसमें कैलोरी नहीं होती है. और दूसरी ये कि मीठे की जगह नॉन शुगर स्वीटनर का इस्तेमाल करने के बाद स्वाद में थोड़ा कड़वापन आता है. लेकिन एस्पार्टेम से जबान का स्वाद ख़राब नहीं होता. इसलिए ये नॉन जीरो कैलोरी वाली डाइट सॉफ्ट-ड्रिंक्स, चबाने वाली गम जैसे उत्पादों में दशकों से इसका इस्तेमाल होता आया है.

एस्पार्टेम बनता कैसे है?

ये स्वीटनर दो अमीनो एसिड से बना होता है. एस्पार्टिक एसिड और फेनिलएलनीन. ये दोनों ज्यादा प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं. एस्पार्टेम जब शरीर में जाता है तो ये तीन हिस्सों में टूटता है-  एस्पार्टिक एसिड, फेनिलएलनीन और मेथनॉल.

साल 1965 में जेम्स एम. श्लैटर (James M. Schlatter) नाम के एक केमिस्ट ने एस्पार्टेम को खोजा था. वो जीडी सर्ल एंड कंपनी के लिए काम कर रहे थे. बाद में ये कंपनी अमेरिका की बड़ी फार्मास्यूटिकल कंपनी फाइज़र (Pfizer) का हिस्सा बन गई. जेम्स एक एंटी-अल्सर ड्रग यानी घाव की दवाई बना रहे थे. अचानक उन्हें एस्पार्टेम का मीठा स्वाद मिला. जेम्स को जब इसके तेज मीठे की क्षमता पता चली तो उनकी कंपनी ने बतौर खाद्य पदार्थ इसका अप्रूवल लिया और बड़े पैमाने पर इसका प्रोडक्शन शुरू कर दिया. इसके बाद इसका इस्तेमाल शक्कर की जगह किया जाने लगा. 

साल 1981 में अमेरिका के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट ने (FDA) ने कुछ ड्राई फ्रूट्स में इसके इस्तेमाल को मंजूरी दी और फिर साल 1983 से पेय पदार्थों में भी इसका इस्तेमाल शुरू हो गया. हालांकि नॉन-सुगर स्वीटनर एस्पार्टेम का इस्तेमाल कितना सुरक्षित है, ये हमेशा विवाद का विषय रहा है. बीते मई महीने में WHO ने नॉन शुगर स्वीटनर्स (NSS) के इस्तेमाल के खिलाफ गाइडलाइन जारी की थी. WHO की सिफारिश थी कि इससे बीमारियां और वजन बढ़ने का ख़तरा कम होगा.

एस्पार्टेम किन प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल होता है?

हिंदुस्तान टाइम्स में पौलमी शाह की रिपोर्ट के मुताबिक, Diet Coke कोका-कोला, Mars ब्रैंड की एक्स्ट्रा शुगर-फ्री च्युइंग-गम, Jell-O का शुगरफ्री जिलेटिन डिजर्ट मिक्स, Snapple का जीरो शुगर टी और जूस ड्रिंक्स, Equal जीरो-कैलोरी स्वीटनर और Trident की पेपरमिंट गम्स में एस्पार्टेम का इस्तेमाल होता है.

एस्पार्टेम के अलावा भी आर्टिफीशियल स्वीटनर हैं?

ऐसी चीजों की एक लंबी लिस्ट है जो मिठास के लिए इस्तेमाल की जाती हैं, लेकिन इनमें शक्कर वाला सुक्रोज़ नहीं होता. जैसे- एडवांटेम, साइक्लेमेट्स, नियोटेम, सैकेरीन, सुक्रलोज़ वगैरह.

चिंता कैंसर से जुड़े खतरे की है. और किन स्थितियों को पॉसिबली कार्सिनोजेंस की श्रेणी में रखा गया है, ये भी जान लेते हैं- बढ़ई का काम, प्रिंटिंग का काम, ड्राई क्लीनिंग, रेडियोफ्रीक्वेंसी वाली इलेक्ट्रिकमैग्नेटिक फील्ड को 'पॉसिबली कार्सिनोजेंस' माना गया है. वहीं शराब, प्रदूषण, अल्ट्रावायलेट रेडिएशन, X-Ray वगैरह को कार्सिनोजेनिक माना गया है. 

वीडियो: सेहत: मुंह का कैंसर सिर्फ़ तंबाकू खाने वालों को होता है?

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