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एल क्सासिको - दुनिया का सबसे बड़ा मैच, आज़ादी की जंग

एक टीम आज़ादी और दूसरी अखंडता के लिए खेलती है

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3 दिसंबर 2016 (Updated: 3 दिसंबर 2016, 13:11 IST)
Updated: 3 दिसंबर 2016 13:11 IST
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एल क्लासिको – स्पेनिश भाषा के ये दो शब्द जैसे ही साथ आते हैं, दुनिया भर के फुटबॉल प्रेमी बावरे हो जाते हैं. स्पेन के क्लब रिअल माद्रिद और फुटबॉल क्लब डी बार्सिलोना के बीच होने वाले मैच को एल क्लासिको कहा जाता है. अर्जेंटाइन फुटबॉल से निकले स्पेनिश शब्द क्लासिको का मतलब होता है चिरप्रतिष्ठित और एल स्पानी में अंग्रेज़ी के द की तरह है जैसे द लल्लनटॉप. स्पेन के 2 क्लबों का मैच कैसे दुनिया का सबसे बड़ा मैच बन गया इसकी कहानी में राजनीति, सज़ा-ए-मौत, देशभक्ति, पहचान की लड़ाई सब कुछ है. किसी भी खेल में कोई भी मैच ऐसा नहीं जो इसके आसपास आ सके. यहां तक की दूसरे क्लबों के प्रशंसक भी इनमें से किसी एक टीम के फैन ज़रूर होते हैं. पिछले 20 सालों में कोई भी ऐसा खिलाड़ी नहीं है जिसने फिफा प्लेयर ऑफ द इयर का खिताब जीता है और इन दोनों में से किसी एक क्लब के लिए न खेला हो. दोनों टीमें जब खेलती हैं तो जंग होती है. स्पेन की अखंड़ता दर्शाने वाले क्लब माद्रिद और आज़ादी चाहने वाले, अपने को स्पेन से अलग समझने वाले कातालुन्या के शहर बार्सिलोना के बीच. इस साख की लड़ाई में देखने को मिलती है सबसे बेहतरीन फुटबॉल.


जंग-ए-आज़ादी, सज़ा-ए-मौत और फुटबॉल

फुटबॉल क्लब डी बार्सिलोना या एफसीबी की स्थापना 1899 में योआन गैम्पर ने विदेशी खिलाड़ियों को जोड़-तोड़कर की थी. बार्सिलोना कातालुन्या राज्य की राजधानी है और ये राज्य स्पेन से आज़ाद होना चाहता है. वही रिअल माद्रिद की स्थापना 1902 में की गई थी. यह शहर स्पेन और स्पानी राष्ट्रवादियों के दिलों में बसता है. 1902 में स्पेन के राजा एलफोंज़ो त्रयोदश ने माद्रिद में एक टूर्नामेंट का आयोजन करवाया था. इस टूर्नामेंट में बार्सिलोना और बास्क क्षेत्र के क्लब विज़्काया दोनों को बुलाया गया. बास्क लोग भी अपना अलग देश बनाने के लिए स्पानी सरकारों से खूनी संघर्ष कर चुके हैं. इस आमंत्रण टूर्नामेंट में बार्सिलोना ने रिअल माद्रिद को हरा दिया लेकिन फाइनल में बास्क से हार गए. फाइनल में बास्क और कातालन टीम, दो स्पानी राष्ट्रवाद से लड़ रही टीमों के जाने से टूर्नामेंट आयोजित करवाने वालों ने तीसरे स्थान के लिए एक मैच और करवा दिया. और वो मैच बना पहला एल क्लासिको. इस मैच के कई सालों बाद तक ऐसे ही टूर्नामेंट होते रहे और 1929 में स्पेनिश प्रीमियरा ला लीगा की शुरूआत हुई इसमें बार्सिलोना समेत 10 टीमें थीं.

30 के दशक में स्पानी सरकार के लिए बार्सिलोना क्लब कातालन राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया. मिलिट्री जनरल फ्रांसिस्को फ्रांको ने स्पेन की राजशाही का तख्तापलट कर दिया और गृह युद्ध छिड़ गया. 1936 में फ्रांसिस्को फ्रांको ने आज़ादी चाहने वाले कातालुन्या के क्लब बार्सिलोना के अध्यक्ष जोसेप सुन्योल को बिना किसी मुकदमे के गिरफ्तार कर मरवा डाला. अब ये मैच और भी तनावपूर्ण होने लगा था.

दोनों टीमों के बीच शायद ही कोई एकतरफा मैच हुआ हो. 1943 में विश्व युद्ध -2 के दौरान दोनों टीमों में कोपा डेल रे का मैच अब तक का सबसे एकतरफा मैच रहा है. इस मैच में रिअल ने बार्सिलोना को 11-1 से हरा दिया. मैच से पहले फ्रांको सरकार के आंतरिक सुरक्षा के डायरेक्टर ने रिअल के खिलाड़ियों से मुलाकात कर के बताया कि आप लोग शासन के लिए खेल रहे हैं. इस मैच के परिणाम को फ्रांको की स्पेन के ऊपर पकड़ के तौर पर दिखाया गया. बार्सिलोना क्लब को अपना नाम बदलने और लोगो में से कातालन झंड़ा हटा देने के लिए मज़बूर किया गया. इस बुरे दौर में बार्सिलोना का नारा बना ‘मे क्यू इयून क्लब’ यानी हम सिर्फ एक क्लब नहीं हैं और बार्सिलोना ने 40 के दशक में कई बार खिताब जीते.


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अल्फ्रेदो दी स्तेफानो के साथ रोनाल्डो. रिअल माद्रिद के दो सुपर स्टार

 दोनों क्लबों में हर कीमत पर दुनिया के सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों को अपने साथ जोड़ने की रस्साकस्सी रहती है. 1953 में दोनों क्लबों में अर्जेंटीनी खिलाड़ी अल्फ्रेदो दी स्तेफानों को अपने साथ जोड़ने की होड़ मच गई. दी स्तेफानो को आज भी सबसे महान फुटबॉलर माना जाता है. दी स्तेफानो उन दिनों अर्जेंटाइन टीम रिवर प्लेट से कोलंबिया की टीम लॉस मिलिनारिओस चले गए थे. स्तीफानो के लिए इधर बार्सिलोना ने रिवर प्लेट के साथ डील कर ली उधर रिअल ने स्तीफानो को लॉस मिलिआनारिओस से खरीद लिया. दोनों में कानूनी लड़ाई चली और आखिरकार दी स्तेफानो मिले रिअल माद्रिद को. स्तीफानो के आने के बाद लंबे समय तक रिअल माद्रिद का राज चला. इस दौर में  1953-64 तक रिअल ने 8 ला लीगा, एक कोपा डेल रे और 5 यूरोपियन कप खिताब जीते.


बार्सिलोना और कातालुन्या की आज़ादी का एक रंग है
बार्सिलोना और कातालुन्या की आज़ादी का एक रंग है

वक्त गुज़रने के साथ, दोनों टीमों के खेल में अंतर आया. रिअल माद्रिद का झुकाव दुनिया भर से प्रतिभाओं को खरीदने पर रहा और बार्सिलोना ने अपने घर में प्रतिभाओं को तैयार किया. टोटल फुटबॉल के देश नीदरलैंड से योहान क्रायूफ को रिकॉर्ड 20 लाख डॉलर में साइन करके बार्सिलोना वालों ने 1960 के बाद पहली बार ला लीगा का खिताब जीता. टोटल फुटबॉल का मतलब होता है कोई भी खिलाड़ी किसी भी पोजीशन पर खेले और सारी पोजीशन भरी रहे. न किसी डिफेंडर को डिफेंडर होने की बंदिश और न मिडफील्डर आधे पाले में रहना ज़रूरी है. योहान क्रायूफ जब बार्सा के कोच बने तो इन्होंने फुटबॉल की एक नई शैली बना दी जिसे टीका-टाका कहा जाता है. छोटे-छोटे पासों के ज़रिए विरोधी टीम के खिलाड़ियों के बीच से गैप बना-बनाकर गेंद को गोल तक पहुंचना. इस टीकी-टाका के दम पर ही स्पेनिश टीम ने पिछले कुछ सालों में इतनी कामयाबी पाई है. हमारी हिन्दुस्तानी हॉकी की भी यही शैली थी लेकिन एस्ट्रोटर्फ आने के बाद 1976 से वो खेल धीरे-धीरे खत्म हो गया.

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करीब उसी समय 1975 में फ्रांको की मौत के बाद स्पेन की राजनीति में स्थिरता आई लेकिन दोनों टीमों की राइवलरी बढ़ती ही चली गई. धीरे-धीरे दोनों टीमों के मुकाबलों के आगे बाकी टीमों के मैच नीरस पड़ने लगे. रिअल माद्रिद और बार्सिलोना दोनों टीमें स्पेनिश फुटबॉल की पहचान बन गईं. आमतौर पर ये दो टीमें ही स्पेनिश लीग प्रीमियरा ला लीगा जीतने लगीं.  फिर आया वो दौर जब ये क्लब किसी भी फुटबॉल खिलाड़ी के लिए ड्रीम टीम बन गए. स्टीवन जेराड जैसे एकाध खिलाड़ी को छोड़कर फुटबॉल के सारे आधुनिक सितारे इन दोनों में से किसी एक टीम में ज़रूर खेले हैं. इन टीमों के कोचों को 5 साल के बच्चे में भी प्रतिभा दिखे तो साइन कर लेते हैं.

फुटबॉल और राजनीति की मिलावट नहीं होनी चाहिए लेकिन इस मैच में ये होकर ही रहता है. मैच चाहें रिअल माद्रिद के हॉम ग्राउंड एस्तादियो सांतियागो ब्रनबू में हो या अपने घर कैंप नू में, बार्सिलोना के सपोर्टर कातालन आज़ादी के झंड़े दिखाते हैं और फुटबॉल संघ वाले ज़ुर्माना लगाते रहते हैं. 9 नबंवर 2014 को स्पेन के कातालुन्या में आजादी के लिए सांकेतिक मतदान भी हुआ था. आज़ादी अभी नहीं मिली है लेकिन इस मैच को जीतकर बार्सिलोना और कातालुन्या के लोग आज़ादी महसूस करते हैं. रिअल की जीत स्पेनिश अखंडता की जीत होती है. और स्पेन में अभी भी फ्रांसिस्को फ्रांको के समर्थक हैं जो चाहें किसी भी शहर में  क्यों न हों रिअल के कट्टर समर्थक होते हैं.

मारकाट से बेहतर अगर फुटबॉल के मैदान पर ही फैसला होता रहे तो अच्छा है. वैसे अगर कातालुन्या अलग देश बनता है तो बार्सिलोना और रिअल माद्रिद अलग-2 देशों में खेलेंगे और फिर सिर्फ यूरोपियन मुकाबलों में ही आपस में भिड़ेंगे.


हमारी फुटबॉल भी ऐसी बन सकती थी

हमारे यहां मोहन बागान और ईस्ट बंगाल की आपसी प्रतिद्वंद्विता ऐसी ही रही है. मोहन बागान रिअल माद्रिद और बार्सिलोना से भी पहले बना था. बंगाल विभाजन के बाद दोनों क्लबों की होड़ शुरू हुई थी. मोहन बागान - ईस्ट बंगाल के मैच ने सबसे ज्यादा दर्शक जुटाने का रिकॉर्ड कई बार बनाया है. बंग-विभाजन के दौरान आज के बांग्लादेश से आए हिंदु ईस्ट बंगाल के सपोर्टर थे और पहले से रहने वाले बंगाली हिंदु मोहन बागान के सपोर्टर थे. मुस्लिम फैन बेस के साथ मोहम्मडन सपोर्टिंग अलग से क्लब था. मोहन बागान के जीतने पर कोलकाता में हिल्सा और ईस्ट बंगाल के जीतने पर प्रॉन मछली के दाम आसमान छूने लगते थे. मज़े की बात ये कि इंग्लिश टीमों के साथ मुकाबलों में ये क्लब एक हो जाते थे. लेकिन उस राइवलरी को ये क्लब भुना नहीं पाए, वक्त के साथ बदल नहीं पाए और टीवी आने के बाद पूरे भारत पर यूरोपियन फुटबॉल छा गई और ये क्लब ग्लोबल तो दूर राष्ट्रीय भी नहीं हो पाए. हालांकि अभी भी ईस्ट बंगाल और मोहन बागान के मैच देखने के लिए 80 हज़ार तक लोग आ जाते हैं और ये दोनों आपस में खेलती हैं तो ऐसा लगता है जैसे हम यूरोपियन टीमों को खेलते हुए देख रहे हैं.

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