'एक कविता रोज़' में पढ़िए सत्यार्थ के कविता संग्रह 'सिगरेट के छल्ले' की ये कविताएं
प्रेम को यह नहीं पता था हम उसे खोज रहे थे/हमें नहीं मालूम था प्रेम हमें पा चुका है
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सत्यार्थ के कविता संग्रह "सिगरेट के छल्ले" से ये कुछ छोटी कविताएं पढ़िए.
एक कविता रोज़ में आज हम आपके लिए लेकर आए हैं छोटी कविताओं का एक गुच्छा जिसे लिखा है सत्यार्थ ने. सत्यार्थ की कविताएं पहले भी आप 'एक कविता रोज़' में पढ़ चुके होंगे. पेशे से भारतीय पुलिस सेवा में हैं और लिखने-पढ़ने से इनका बहुत याराना लगता है. आज जो कविताएं आप पढ़ेंगे वो आपके सामने कोई बड़ी तस्वीर नहीं पेश करेंगी बल्कि छोटे-छोटे लम्हों की तरह आपके दिल और दिमाग में घर कर जाएंगी. जैसे विनोद कुमार शुक्ल की कविता का आदमी गरम कोट पहनकर विचार की तरह चला जाता है, ठीक उसी तरह ये कविताएं आपको महसूस होकर आपके सामने से ओझल हो जाएंगी. मानो अब कभी मिलना न हो सकेगा इनसे. मगर ये लौटेंगी ज़रूर, उसी विचार की तरह, आपके अंधेरे क्षणों में और आपके भीतर काव्य का प्रकाश भर देंगी.
'एक कविता रोज़' में पढ़िए सत्यार्थ के कविता संग्रह 'सिगरेट के छल्ले' से ये कुछ छोटी कविताएं
सिगरेट के छल्लेसत्यार्थ
तुम मेरी उम्मीद हो सुरमई शाम के आकाश के कोने से तकता हुआ चाँद जैसे जैसे अंधेरों का आंचल थामे तारों को रास्ता दिखाती मेरा आसमान सजाती xxx एक सिगरेट जलाई तुमने मैंने भी होंठ लगाया था उसे एक हल्की सी परत फैल गई थी लिप्स्टिक छल्ले छल्ले ख्याल के निकले धुएँ के पार थे तुम उंगलियां बढाए हुए एक कश खींचकर ख्याल थमा दी हमने xxx फरवरी की इन अकेली शामों का पता तुमने दिया था तुमने कहा था कि गर्मियों की सूनी दोपहर के घर की खिड़की पर हो एक अधूरे सावन की याद क्या करे बसंत की शाम में या जेठ के धूप में अपने अधूरे बादल कहाँ बरसाए ? xxx प्रेम को यह नहीं पता था हम उसे खोज रहे थे हमें नहीं मालूम था प्रेम हमें पा चुका है हम कुछ भी नहीं पाना चाहते थे नहीं चाहते थे कोई हमें खोज सके . xxx मैं तुम्हारी याद हूं फकत पानियों में रात उतर आए चाँद की बिखरी हुई परछाई xxx आंसू क्या थे और नसों में जज़्ब न हो पाया तुम्हारा नाम ही तो अब एक-एक अक्षर एक-एक बूंद xxx अगर मेरे सपने तुम्हारी आंखों में उग आएं तो पानी डालते रहना एक न एक दिन वे खिलेंगे जिन्हें हमने साथ बोया था xxx थोड़ी और बात करता अगर थोड़ा और वक़्त मिलता जो कहा नहीं,जो सुना नहीं उन बातों का ख्याल अब सारा समय पी जाता है xxx जोड़े रखती है मेरी टूटे बटन वाली बुशर्ट को सेफ़्टी पिन जो तुमने मुझे दिया था जुड़ नहीं पाया लेकिन तुम्हारी अनुपस्थिति में तरकीब लगाता हूँ फिर भी हाथ में लेकर वही सेफ़्टी पिन xxx देखता हूँ सेफ़्टी पिन यह मुलायम इस्पात कितना अलग है लोहे का इस तरह होना युद्ध में तलवारों ने कुछ नहीं सीखा पिन से न खुलना न बन्द होना न सिल देना और जोड़ देना हर एक हिस्सा धरती का xxx मोहब्बत की आखिरी उम्मीद है पिन जैसे तुमने कहा था लौट आना वह शब्दों का एक पिन था जो नींद के थिगलियों को तुम्हारे सपनों से जोड़ देता था xxxएक कविता रोज़: नदी का जन्म किसी दुख से नहीं हुआ

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