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क्या सुन्नी के मरने पर किशोरी के आंसू सच्चे थे?

एक कहानी रोज़ में आज पढ़िए अंकिता जैन की कहानी 'प्रायश्चित'

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28 जून 2016 (Updated: 28 जून 2016, 11:37 AM IST) कॉमेंट्स
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प्रायश्चित


भाग -1

दो घंटे हो गए थे और ऊपर वाले कमरे से लड़ाई की आवाज़ आनी बंद नहीं हुई थी. कोई भी ऊपर जाकर बीच में कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. सभी जानते थे कि किशोरी को उसके मामलों में पड़ने वाले लोग बिलकुल पसंद नहीं. फिर अनायास ही आवाजें आनी बंद हो गयी. अगले पांच मिनट तक जब कोई आवाज़ नहीं आई तो सबको लगने लगा कि मामला ठंडा पड़ने लगा है. लेकिन पांच मिनट बाद जब सबने बच्ची की चीख सुनी तो सब छत की ओर दौड़ पड़े. छत पर आकर जो नज़ारा देखने मिला उससे काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गयी थी सबकी. सुबह ख़त्म हो रही थी. सूरज अपनी तपिश बढ़ाकर दोपहर की ओर बढ़ चला था. उधर छत पर किशोरी को देख लग रहा था मानो आज वही है सूरज के रौद्र रूप में. उसने अपनी 3 साल की बच्ची को छत के छोर से उल्टा लटका रखा था. उसकी पत्नी सुन्नी उसके हाथ-पैर जोड़ रही थी कि बच्ची को वहां से उतार दे. जब सबने यह नज़ारा देखा तो सबके होश उड़ गए. कोई समझ ही नहीं पा रहा था कि किशोरी करना क्या चाहता है. क्या उसका गुस्सा इतना बढ़ गया कि आज वह अपनी बच्ची की जान लेने पर उतारू है. किशोरी ये तू क्या कर रहा है, बच्ची को इधर ला, हाथ से छूट गयी तो क़यामत आ जाएगी मेरे भाई. बच्ची मुझे दे दे. किशोरीलाल की बड़ी बहिन ने उससे विनती भरे स्वर में कहा. किशोरीलाल अपनी बड़ी बहिन विमला के घर राखी के त्यौहार के लिए आया था. विमला ने जब किशोरी को बच्ची के साथ ऐसा जुलम करते देखा तो वह बहुत घबरा गई . नहीं जीजी आज तो मैं ये रोज़-रोज़ का तमाशा ख़त्म करके ही रहूंगा. - किशोरीलाल ने चिल्लाते हुए कहा. नहीं किशोरी, इसमें बच्ची की क्या गलती है, तू इसे क्यों मारने पर तुला हुआ है ? अपना गुस्सा ठंडा कर मेरे भाई और बच्ची मुझे दे दे. नहीं जीजी सारे फसाद की जड़ यही है . इसकी मां को मैं इसलिए ब्याह कर नहीं लाया था कि मैं उसकी और उसकी औलाद की चाकरी करूं. अपने मां-बाऊजी की सेवा कराने के लिए लाया था. अब इसकी मां इसे उस गांव में रखना नहीं चाहती, कहती है बच्ची वहां रहेगी तो उसकी ज़िन्दगी बर्बाद हो जाएगी. मेरे मां-बाऊजी के पास रहेगी तो बच्ची बिगड़ जाएगी ना, तो अब ना बच्ची रहेगी ना कोई रायता फैलेगा. और अब मुझे आगे कोई औलाद भी नहीं चाहिए. पूरा घर छत पर खड़े होकर बच्ची को वहां से हटाने की गुहार लगा रहा था. बच्ची की मां सुनीता का रो-रोकर बुरा हाल था . बच्ची भी रोए जा रही थी, उसकी सांस रुकी हुई थी, अब तो गले से रोने की आवाज़ भी आनी बंद हो गयी थी बस झर-झर आंसू बहते दिखाई दे रहे थे. विमला फिर चिल्लाई - किशोरी तू बच्ची को इधर ले आ मैं सुनीता से बात करुंगी, तू जैसा कहेगा वैसा ही होगा लेकिन बच्ची को इधर ले आ. किशोरीलाल का गुस्सा शायद थोडा कम हुआ या उसे अपनी बहिन की बात पर भरोसा हुआ, उसने बच्ची को वहां से हटाकर जोर से उसकी मां की गोद में फेंक दिया और अपनी साइकल उठाकर घर से निकल गया. सबकी सांस में सांस आई. बच्ची की रो-रोकर सांस अटक गयी थी इसलिए उसे तुरंत पानी पिलाकर चुप कराया और कुछ खिला-पिलाकर सुला दिया. सुनीता एक मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी थी जो पांच भाइयों की इकलौती बहिन थी. नाजों से पली थी, जिसकी हर इच्छा बिना कहे ही पूरी हो जाती थी. सुन्नी पढ़ी लिखी थी. बेटे-बेटी में फर्क ना रखने वाली थी इसलिए वह चाहती थी कि उसकी बेटी भी पढ़े लिखे. अपने पैरों पर खड़ी होकर अपनी ज़िन्दगी बनाए. और ससुराल में माहौल एकदम उल्टा था, यहां उसकी दोनों ननदों को पढ़ाया-लिखाया नहीं गया था. कम उम्र में ही शादी कर दी थी. देवर जेठों की बेटियों में से भी किसी को ज्यादा नहीं पढ़ाया गया था. इसलिए किशोरी की सोच भी बिलकुल वैसी ही थी. उसने शादी की पहली रात को ही सुन्नी को बोल दिया था कि उसने शादी महज़ अपने माता-पिता की सेवा कराने के लिए की है इसलिए सुन्नी को यहीं उसके माता-पिता के साथ ही रहना पड़ेगा. शादी के लाल जोड़े में बिस्तर पर बैठी सुन्नी का मन उस वक़्त कितना आहत हुआ था उसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता लेकिन उस वक़्त सुन्नी कुछ कह ना पाई और सिर्फ रोकर रह गई थी.

भाग-2

जीजी आप ही बताओ मैंने कौन सी गलत बात कह दी. आप तो जानती हो ना उस गांव में लड़कियों का जीना मुश्किल है, ना घर से निकलने देते हैं ना पढ़ने भेजते हैं. ना ही लड़की जात को अच्छा मानते हैं. मैं नहीं चाहती की मेरी बच्ची को घर की और लड़कियों की तरह दुत्कार मिले. मैं इसे पढ़ा-लिखाकर आगे बढ़ाना चाहती हूं. सुनीता सुबकियां लेते हुए विमला से अपने दिल की बात बोल रही थी. तेरी बात सही है सुन्नी लेकिन किशोरी को आज तक कोई नहीं समझा पाया है, वो जो ठान लेता है वही करता है. जीजी आप बात करो ना, आपकी तो हर बात मानते हैं कुछ तो समझाओ. अच्छा तू अब रोना बंद कर और कुछ खाले, तूने भी सुबह से कुछ खाया नहीं है, वैसे भी 2 हाड़ का शरीर है. ऐसे बिना खाए पिए रहेगी तो बच्ची को कैसे पालेगी . सावित्री सुन्नी मामी के लिए खाना लगा दे . विमला ने उसकी बेटी को आवाज़ लगाकर सुनीता के लिए खाना लगाने को कहा. सुनीता खाना खा ही रही थी कि किशोरीलाल वापस आ गया , बोला - कपड़े बांध ले हम आज ही वापस जा रहे हैं मुझे कल ड्यूटी पर जाना है. तुझे और बच्ची को पहले गांव छोडूंगा फिर मैं वहीं से निकल जाऊंगा. किशोरी उसे खाना तो चैन से खा लेने दे, इत्ते तू इधर आ मुझे तुझसे कुछ बात करनी है. विमला किशोरीलाल का हाथ पकड़कर उसे दूसरे कमरे में ले गई. जीजी अब तू मुझे समझाने की कोशिश मत कर, मैंने जो सोच लिया है वही करूंगा. किशोरीलाल ने उसके साथ जाते हुए कहा. देख किशोरी मैं तुझे बस इतना कहना चाहती हूं कि तू वक़्त रहते समझ जाए तो अच्छा है, तू चार साल से सुन्नी को समझाने की कोशिश कर रहा है लेकिन जब उसने अब तक अपनी जिद ना छोड़ी तो वो आगे भी नहीं छोड़ेगी. कल को ऐसा ना हो कि वो बच्ची को लेकर घर छोड़कर चली जाए. फिर तू क्या करेगा, आजकल भली लड़कियां कुवारों को तो मिल नहीं रहीं तू तो. इतना कहकर विमला रुक गई फिर किशोरीलाल का हाथ पकड़कर बोली. देख किशोरी उससे आराम से बैठकर बात कर, वो भली औरत है, तू उसके साथ अच्छा रहेगा तो वो तेरे मां-बाप में पैर-धोकर भी पी लेगी. किशोरीलाल चुप रहा फिर कमरे से निकलकर सुनीता को जल्दी से तैयार होने के लिए कहा. घर से निकलने से पहले सुन्नी ने विमला के पैर छुए. आशीर्वाद देते हुए उसने धीरे से सुन्नी से कहा - मैंने अपनी तरफ से समझाने की कोशिश तो की है बाकि जो तेरे भाग्य का होगा वही तुझे मिलेगा. सुनीता ने सारा सामान बांधा और बच्ची को गोद में उठाए चल पड़ी किशोरीलाल के पीछे-पीछे. बस स्टैंड पर जाकर किशोरी ने सुन्नी को कहा देख सुन्नी मैं तुझे गांव में नहीं छूडूंगा लेकिन मेरी एक शर्त है. तुझे हर साल दीपावली के समय महीने भर को और गर्मियों में 2 महीने को गांव आकर रहना पड़ा करेगा और इसके अलावा जब भी बच्ची की स्कूल में छुट्टियां पड़ेंगी तुझे गांव ही आना होगा मायके जाने की ज़िद नहीं करेगी. शर्त की बात सुनकर सुन्नी को लगा जैसे जंगल में शेर उसका गला दबोचे बैठा हो और कह रहा हो कि मैं तुझे नहीं खाऊंगा लेकिन हर रोज़ तेरे शरीर का एक कटोरी खून मुझे चाहिए. सुन्नी समझ नहीं पा रही थी कि खुश हो या दुखी, किशोरी ने उसे मायके ना जाने के लिए जो शर्त रखी थी वो नाजायज़ थी लेकिन सुन्नी ने अपनी बेटी के भविष्य के लिए उसकी शर्त मानकर हां में अपना सर हिला दिया. किशोरी शायद अंदर ही अंदर अपने मर्द होने के अहं को लेकर खुश था. उसने मुस्कुराकर बच्ची को गोद में लिया फिर दोनों को लेकर अपने शहर चला गया जहां वह काम करता था.

भाग-3

एक भव्य शामियाना लगा हुआ था, जहां सभी के चेहरे ग़मज़दा थे . सबने स्वेत धवल वस्त्र पहने हुए थे. एक बड़ा सा मंच लगा हुआ था जिस पर सुन्नी की तस्वीर रखी थी, तस्वीर पर फूल चढ़े हुए थे और एक दीपक जल रहा था. आज सुन्नी की तेरहवीं थी. भीतर से औरतों के रोने की आवाजें आ रही थी. बाहर बारी-बारी से सारे मर्द आकर सुन्नी की तस्वीर पर फूल चढ़ा रहे थे और सांत्वना में दो शब्द कह कर जा रहे थे. सबके बाद किशोरीलाल की भी बारी आई, उसे खड़ा होता देख बच्ची गेट से झांककर देखने लगी कि उसका पिता उसकी मां के लिए क्या बोलेगा. किशोरीलाल ने पहले फूल चढ़ाए फिर कुछ देर मौन खड़ा रहा. बच्ची की नज़रें उसे एकटक देखे जा रही थी. उन्नीस सालों में मैं कभी ये महसूस ही नहीं कर पाया कि वो मेरी ज़िन्दगी का इतना बड़ा हिस्सा थी जिसके बिना अब कुछ भी हो पाना नामुमकिन सा लगता है. काफी देर बाद किशोरी हिम्मत करके बस इतना ही कह पाया और सर झुकाकर वापस अपनी जगह जाकर बैठ गया. लेकिन बच्ची ने उसकी आंख के कोने से गिरता एक आंसू देख लिया था. बच्ची के होठों पर एक हल्की सी मुस्कान क्षण भर को आई. लेकिन जब उसे होश आया कि ये शब्द जो अभी उसके कानों में पड़े वह उसके पिता ने उसकी मां के लिए कहे हैं वह बैचेन हो उठी. उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसके पिता उसकी मां कि अहमियत कभी समझ सकते हैं. उसे पूरा यकीन था कि यह महज़ एक दिखावा था लोगों को दिखने के लिए. क्योंकि बचपन से उसने अपनी मां को मार खाते ही देखा था, और उसे सबसे ज्यादा दुःख इस बात का था कि हर बार उसकी मां पर हुए अत्याचार की वजह वह खुद होती थी. उसे शायद ये तो याद नहीं कि जब वह 3 साल की थी तो उसके पिता ने उसे मारने की कोशिश की थी लेकिन उसे ये ज़रूर याद है कि उसके कभी अपना ननिहाल नहीं देखा. बच्ची थोड़ी बड़ी हुई तो उसने अपने पिता किशोरी को समझाने की कोशिश की कि मां को इस तरह अपमानित ना किया करे लेकिन किशोरी उल्टा बच्ची को लताड़ देता था कि तू भी अपनी मां की तरह जबान चलाना सीख रही है. फिर सुन्नी को मारता था कि यही सिखा रही है तू बच्ची को कि पिता से बहसबाजी करो और सही गलत सिखाओ. इसलिए बच्ची ने धीरे-धीरे किशोरी से बात करना भी बंद कर दिया था. औरों के पिता की तरह ना ही किशोरी कभी अपनी बेटी के स्कूल गया था ना ही उसे कभी पता होता था कि उसकी बेटी किस कक्षा में पढ़ती है. ना ही उसने कभी अपनी बच्ची से लाड जताया था ना साथ बैठकर खाना खिलाया था. दसवीं की परीक्षा में जब बच्ची पूरे प्रदेश में पहले स्थान पर आई थी तब उसके मन में एक उम्मीद जगी थी कि शायद अब उसके पिता उसे गले से लगाएंगे और आशीर्वाद भरा हाथ सर पर रखेंगे. लेकिन उसका यह सपना भी तब चूर हो गया था जब वह परीक्षा का परिणाम लेकर घर पहुंची थी और किशोरी को सुन्नी को मारते हुए देखा था. वजह जानने कि कोशिश कि तो मालूम हुआ था कि किशोरी दसवीं के बाद बच्ची कि शादी करना चाहता है लेकिन सुन्नी उसे आगे पढ़ना चाहती थी. बच्ची की वजह से ही सुन्नी ने कभी दूसरा बच्चा नहीं किया क्योंकि उसे डर था कि अगर दूसरा बच्चा बेटा हो गया तो उसकी बच्ची की ज़िन्दगी और नरक बन जाएगी. इसी डर की वजह से उसने अपने हाथो से दो बार अपनी कोख गिराने का पाप सर लिया था. और तीसरी बार में बच्चे के साथ साथ सुन्नी भी दुनिया से चली गयी, उसका शरीर उस वेदना को सहन नहीं कर पाया और उसका साथ नहीं दे पाया. यही वजह थी कि बच्ची अपने पिता से नफरत करती थी लेकिन डर से कभी अपना मुंह नहीं खोल पाई . आज जब उसके पिता ने पहली बार उसकी मां के लिए इज्ज़त भरे दो शब्द कहे थे तो उन्हें सहस्र स्वीकार कर पाना बच्ची के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था.

भाग - 4

शाम तक सब अपने-अपने घर चले गए. शामियाना हट रहा था और किशोरी उन्ही सब कामो में व्यस्त था और बच्ची उसे छुप-छुप कर देखे जा रही थी कि किसी तरह किशोरी के हाव-भाव से शायद वह पता लगा पाए कि आज उसने सुन्नी के लिए जो कहा वह सच था या दिखावा. थोड़ी देर बाद विमला की अंदर से आवाज़ आई - किशोरी बाऊजी तुझे बुला रहे हैं. आया जीजी, कहकर किशोरी ने हामी भरी. अंदर आंगन में एक खाट पर बाऊजी बैठे हुए थे और साथ वाली खाट पर किशोरी, आंगन के बीच लगे हेंडपंप के पास रखे स्टूल पर विमला बैठी हुई थी और बच्ची भी अंदर कमरे के दरवाज़े से सटके खड़ी हुई थी और सर बाहर निकालकर सुनने की कोशिश कर रही थी. देख किशोरी अब बहू तो रही नहीं, बच्ची भी 18 की हो गयी है और तू भी दिनभर दफ्तर में रहता है. बाऊजी ने अपनी बात कहानी शुरू की. बाऊजी अगर आप कहें और किशोरी हामी भरे तो बच्ची को मैं अपने साथ ले जा सकती हूं मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है. विमला ने बाऊजी की बात को काटते हुए कहा. बाऊजी ने हाथ हिलाकर ना का इशारा किया और अपनी बात आगे बढ़ाई. किशोरी मेरे हिसाब से तुझे अब बच्ची की शादी कर देनी चाहिए, तू अकेला उसे संभाल नहीं पाएगा और कल को कुछ ऊंच-नीच हो गई तो हम कहीं के ना रहेंगे. अब बच्ची छोटी तो रही नहीं बालिग हो गयी है और बारहवीं पास है कोई भी अच्छा लड़का मिल जाएगा तो जल्दी ही उसके हाथ पीले कर दे. अभी कुछ दिन मैं यहां हूं और विमला भी रुक जाएगी तू कल से ही लड़का देखना शुरू कर दे, मैंने भी कुछ रिश्तेदारों को कहा है तो ये साल का चौमासा लगने से पहले उसके हाथ पीले कर उसे विदा कर देंगे. बच्ची दरवाजे के पीछे से खड़ी होकर अपने भविष्य के लिए जारी हो रहा फरमान सुन रही थी और अपनी मौन सुबकियों के साथ अपने आंसुओं को भी छुपाने की कोशिश कर रही थी. तू चुप क्यों है किशोरी कुछ तो बोल - बाऊजी ने किशोरी से ऊंचे स्वर में पूछा. बच्ची की नज़रें भी किशोरी पर टिकी हुई थी क्योंकि आखिरी फैसला तो उसी का था और उसे यकीन था की किशोरी भी बाऊजी की बात में ही सहमति जताएगा. बाऊजी के दुबारा पूछने पर किशोरी वहां से उठकर चला गया और कमरे से अंदर जाते वक़्त उसकी नज़र बच्ची पर पड़ी. किशोरी ने बच्ची का हाथ पकड़ा और आंगन में ले आया. बच्ची भय से कांप गयी थी, उसे लग रहा था कि मां के बाद अब बाप के गुस्से का शिकार बनाने का नंबर उसका है. बाऊजी और विमला भी समझ नहीं पा रहे थे कि किशोरी क्या करने की कोशिश कर रहा है . किशोरी ने एक पल को बच्ची की और देख और फिर नज़रें झुकाकर हाथ जोड़कर बच्ची के सामने फूट-फूट कर रोने लगा, आज तक की अपनी हर गलती को पाप समझकर उससे माफ़ी मांगने लगा. बच्ची भी पहले तो सकपकाई और फिर उसके गले लग गयी और चीख कर रोने लगी जैसे सालों का छुपा दर्द आज बाहर निकाल देना चाहती हो, अब शायद उसे यकीन हो रहा था कि आज किशोरी ने सुन्नी के लिए जो भी कहा वो सच था दिखावा नहीं. थोड़ी देर तक दोनों एक-दूसरे के गले लगकर रोते रहे, बाप-बेटी को पहली बार इस तरह साथ देख विमला और बाऊजी की आंखों में भी आंसू थे. फिर किशोरी ने आंसू पोंछे और बाऊजी से कहा कि अभी बच्ची की शादी नहीं होगी वो आगे पढ़ेगी और पढ़ने बाहर जाएगी, और अपने पैरों पर खड़ी होगी, यही सुन्नी की भी इच्छा थी. शायद ऐसा करने से सुन्नी मुझे माफ़ कर सके और मेरे पापों का प्रायश्चित हो सके. बच्ची एक बार फिर अपने पिता के गले लग गई और रोने लगी लेकिन इस बार आंसू शायद ख़ुशी के थे, अपने पिता को पाने की ख़ुशी. आज अगर सुन्नी की रूह यह सब देख रही होगी तो उसे मुक्ति मिल गई होगी और उसकी आत्मा को शांति.

'मेरी पत्नी की शक्ल में एक पद्मिनी कोल्हापुुरी है'

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