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लड़की की कटी हुई कलाइयों पर किसी के अंगूठे के निशान थे

एक कहानी रोज़ में आज पढ़िए,पंखुरी सिन्हा की कहानी 'मर्डर मिस्ट्री और दस्तखत'

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6 जून 2016 (Updated: 6 जून 2016, 06:25 PM IST) कॉमेंट्स
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मर्डर मिस्ट्री और दस्तखत पंखुरी सिन्हा


 "यार, शहर भर के लोगों के फिंगर प्रिंट्स चेक कर लिए, कोई मैच नहीं मिला." इस छोटे शहर के मुख्य थाने में आई पुलिस टीम के कप्तान ने मेज़ पर फाइल पटकते हुए और खुद को सामने की पुरानी, धंसी कुर्सी पर फेंकते हुए कहा. "यार मैं कब से कह रहा हूं, ये आत्महत्या का मामला है. फाइल बंद कर दें". साथ आए असिस्टेंट ने ज़ोर देकर ऐसे कहा, मानो कब से कहना चाह रहा हो. "पागल की तरह बातें मत करो, उसकी कटी हुई कलाई पर किसी के अंगूठे के निशान हैं. बाकायदा लगाए हुए. दोनों कलाइयों पर एक एक. कलाइयां इस तरह काटी गईं हैं, जैसे आत्महत्या करने वाले काटते हैं. हमें इतनी बड़ी चुनौती देकर गया है वह, अगर उसे नहीं पकड़ा तो कहीं के नहीं रहेंगे." "ये आदमी बाहर से आया था, शायद भेजा गया था. सुपारी केस." साथ आए एक तीसरे व्यक्ति ने कहा.

"तो उसे किस शहर में ढूंढें?" "यानी यहां से वह कहां गया होगा?" "यानी यहां के किसी परिचित के मार्फत वह आया होगा? बुलाया गया होगा? कुछ तो उसके परिचितों के सूत्र होंगे, जो आने जाने की राह बताते हों!" "क्यों, वह एकदम बाहर से भी आ सकता है, अचानक. बिना किसी स्थानीय संपर्क के?" "यार, कौन हो सकता है? इस क़त्ल की गयी लड़की के कोई ख़ास दुश्मन?" "यार, उसके तो दुश्मन ही दुश्मन थे? हत्या से दस मिनट पहले, उसने दुनिया के सबसे बड़े एन जी ओ को लिखा था. फिर से वही बात, कि जिस आदमी की शिकायत पर उसे जेल हुई, वह दरअसल उसका पीछा कर रहा था. और हालाकि वह जर्मन मूल का आदमी था, वह एक भारतीय आदमी के साथ एक ख़ास दफ्तर में काम कर रहा था, जो अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा को समर्पित था." "तो तुम्हे क्या लगता है? किसी जर्मन ने उसे यहां आ कर मारा?" "अरे भैया, जर्मन की क्या ज़रूरत है? जब वहीं उस दफ्तर में उसके भारतीय बॉस थे?" "मुझे लगता है इस हत्या में इस शहर के किसी आदमी का हाथ नहीं है." "तुम्हे जो कुछ भी लगता हो, उन सारी बातों को भूल जाओ और तहक़ीक़ात करो." "सर, हमने घर का कोना कोना छान मारा, कहीं कोई फिंगरप्रिंट नहीं है." "ये तो मैं भी जानता हूं. खूनी ने खून दस्ताने पहन कर किया, यानि कलाई को काटते वक़्त उसने दस्ताने पहन रखे थे. केवल आखिर में, उसने अपने दोनों दस्ताने उतार कर दोनों अंगूठों का निशान दोनों कलाइयों पर लगाया. मुमकिन है, तब तक हमारी विक्टिम ज़िंदा रही हो." "मुमकिन है, उसने उसे देखा भी हो." "और उसकी मौत, कुछ घंटे बाद और बेहिसाब खून बहने से, बेतहाशा दर्द में हुई." "लेकिन अब वह गवाही तो दे नहीं सकती, इसलिए हमें कुछ करना होगा." "कत्ल रात के साढ़े दस से ग्यारह के बीच हुआ. कातिल ने बड़ी सफाई से लड़की का मुंह कसकर कपडे से बांधा, और मुझे लगता है तत्काल उसकी कलाइयां रेत दीं. उसने बहुत कम समय लगाया क़त्ल करने में. उसने लड़की की आंखें तक नहीं बांधी, खूब कसकर कलाइयां काटीं, और मुझे तो लगता है सर कि खून के बहते, वह खड़ा इंतज़ार करता रहा, उसकी आंखों के पत्थर हो जाने का." "मुझे लगता है वह घर में पीछे की राह दाखिल हुआ, छत से, रस्सी के सहारे. और क्योंकि लड़की का कमरा ऊपर था, पर वह होती ज़्यादा नीचे थी, खासकर रात से पहले, उसे ज़्यादा परेशानी नहीं हुई. झुटपुटे के बाद किसी समय वह फुर्ती से छत पर पहुंचा, फिर एक मंज़िल सीढ़ी उतर कर, लड़की के कमरे में, शायद पलंग के नीचे जाकर छिप गया और इंतज़ार करने लगा कि कब रात हो, बाकी लोग सोएं और लड़की आकर कंप्यूटर पर बैठे. बल्कि उसने लड़की के कंप्यूटर पर आकर बैठ जाने के बाद चिट्ठी भी पूरी होने का इंतज़ार किया. मुमकिन है, वह दूरबीन से देख रहा हो कि चिट्ठी में क्या कुछ लिखा जा रहा है." "सर, वह हमें और हमारे साथ तमाम सहायता संस्थानों को चुनौती दे रहा है. मुझे लगता है, हमें उस जर्मन आदमी के सो कॉल्ड भारतीय बॉस से पूछताछ करनी चाहिए." "परमिशन लेनी पड़ेगी. मिल जाएगी." "लो मिल गयी", चार महीने की लम्बी दौड़ धूप और घंटों की फोनबाज़ी को चीफ ने एक चुटकी में निपटा दिया. हवा में लहराता हुआ कागज़ असिस्टेंट ने थाम लिया. दो दिन बाद वह फिर उसी तरह हवा में डोलता हुआ पहुंचा. "सर, पच्चीस फोन कर चुका हूं, एक बार भी किसी ने फोन उठाया नहीं. हर बार नंबर के साथ सन्देश छोड़े, कोई जवाब नहीं. दस ईमेल कर चुका हूं, कोई जवाब नहीं. सर, न्यूयॉर्क चला जाऊं?" "शांत रहो. मुझे सोचने दो. एक आध मैसेज मैं भी छोड़ कर देखता हूं. वैसे दिल्ली से न्यूयॉर्क जाना इतना मुश्किल नहीं. लेकिन जो आदमी दूर से जवाब नहीं दे रहा, वह पास जाने पर भी हो सकता है, कन्नी काटे!" "सर, जब मैं उसके सामने खड़ा हो जाऊंगा तो वो क्या करेगा?" "सर", ये फिर से असिस्टेंट था, जो अब उस आदमी से एक हैरत अंगेज़ मुलाकात कर चुका था. "सर, वो तो कह रहा है कि उसे उस लड़की के बारे में कोई जानकारी नहीं. उसे वह केस तक याद नहीं, शायद वह जानता तक नहीं हो." "ये कैसे सम्भव है? वह उस समय उस यूनिवर्सिटी का प्रेसिडेंट था, जब वह लड़की गिरफ्तार हुई. अंतरर्राष्ट्रीय छात्रों से जुडी किसी कमेटी का हेड था." "सर, वो कह रहा है, उसे फाइल मंगवा कर देखनी पड़ेगी. दो दिन से यही कह रहा है, देखेगा." इसके बाद जब असिस्टेंट का फोन आया, उसकी आवाज़ कांप रही थी. "सर, तिवारी जी की यूनिवर्सिटी आते हुए रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी. स्पॉट डेथ." "सर. ये किसी राजनैतिक गिरोह का काम है. अंडरवर्ल्ड नहीं. लेकिन कुछ बहुत सधे हुए लोग हैं, जिन्हे कुछ लोगों से गहरी समस्या है. सब में राजनैतिक हाथ है." "देशी या विदेशी?" "दोनों सर." "आगे तहकीकात कैसे करें?" "नहीं कर सकते." "अगर उस जर्मन का फोन टेप भी कर लें, असल तहकीकात नहीं कर सकते. वो सारे इस किस्म के फोन एस टी डी बूथ से करेगा. जो भी बातें हुई होंगी, एस टी डी बूथ से. अव्वल तो बातें हुई ही नहीं होंगी. सब कुछ अपने आप हो गया होगा. कुछ इस किस्म का एकमत रहा होगा, उसकी गिरफ्तारी के लिए कि सब अपने आप हो गया होगा. देखना ये है, कि उस लड़की की गिरफ़्तारी से फायदा किसे होना था? ऐसी घटनाओं से कई बार छुट भैये नेता सबसे ज़्यादा फायदा उठाते हैं." "सर, उस लड़की की गिरफ्तारी के बाद से, उस शहर में एक भारतीय मूल के मेयर ने लगातार दो चुनाव जीते हैं." "बड़े नेता को भी फायदा पहुंच सकता है. ऐसी घटनाओं से लोगों के हक़ों की लड़ाई छिड़ती है, फिर नेता उनके लिए बोलते हैं. और इस तरह, उनके प्रतिनिधत्व के माने बढ़ते हैं." "लेकिन ये भी तो सम्भव है, किसी राजनेता का हाथ नहीं हो, शिक्षकों की, और शिक्षा जगत की आपसी लड़ाई हो." "बिल्कुल हो सकता है. असल राजनीति से ज़्यादा राजनैतिक, हिंसक और मारक है शिक्षा जगत की राजनीति. खून चूसने वाली." "ये आदमी तिवारी दरअसल, बिना रीढ़ की हड्डी का आदमी लगता है. क्या तुम वो फाइल खुलवा सकते हो, जिसमे लड़की की गिरफ्तारी के कागज़ पर दस्तख़त हैं. यानि गिरफ्तारी की पूरी तैयारी है?" "हां सर, सारे सुराग उसी फाइल में बंद लगते हैं." "एक काम और करो पांडू, उन सारे दफ्तरों की लिस्ट बनाओ जहां उस लड़की ने अर्ज़ियां भेजीं. फिर उनकी दो लिस्ट बनाओ. एक जिन जगहों से जवाब आया, और दूसरी लिस्ट उन दफ्तरों की जहां से जवाब नहीं आया." "केवल एक ही दफ्तर है सर, जहां से जवाब आया, वह भी नकारात्मक. जवाब में ये तो लिखा है, सर, कि हमारे पास अतिशय काम होने की वजह से, हम आपकी गुज़ारिश नहीं सुन सकते. कम से कम इतना तो कुबूला कि उनके पास काम ज़्यादा होने की वजह से, उसकी अर्ज़ी पर काम नहीं कर सके. काम ज़्यादा था, इसलिए कुछ भी नहीं कर सके. आपकी मदद की गुज़ारिश, गुज़ारिश क्यों मांग, बिल्कुल वाजिब हो सकती थी, सही, हक़ से मांगी जाने वाली, ये सम्भावना तक निहित है उस जवाब में." "ये दफ्तर कौन सा है?" "बड़ा दफ्तर है साहब, और ये आदमी बड़ा अफसर. और पता करूं इस दफ्तर और इस आदमी के बारे में?" "नहीं, उन दफ्तरों का पता करो, जहां से कोई जवाब नहीं आए." "अच्छा सुनो, इस दफ्तर और अफसर के बारे में भी पता करो, लेकिन पहले उन न जवाब देने वालों का पता करो." "साहब ये इतने बड़े दफ्तर हैं, कि कुछ छिपा ही नहीं है. ज़्यादा पता करने की ज़रुरत नहीं. ये दुनिया के सबसे बड़े दफ्तर हैं, साहब, सरकारी भी, और गैर सरकारी भी, वही जिन्हें एन जी ओ कहते हैं. उसने बहुत ढेर सारे एन जी ओ को भी लिखा था साहब, जो औरतों के मामलों की सुनवाई करते हैं, उन्हें भी. किसी का जवाब नहीं आया साहब." "कामचोर हैं सब साले, झूठे, मक्कार!" "औरतें भी ऐसी ही होतीं हैं साली! अपनी जात की मदद नहीं कर सकतीं!" "इन एन जी ओज़ में कितनी औरतें थीं, बड़े पदों पर. एक का जवाब नहीं आया!" "औरत होते इतना तो कह सकती थीं, हमारे बस में नहीं इस जर्मन को पकड़ना", "तुम्हें उससे इतनी हमदर्दी क्यों हो रही है?" "भेजा तो है जवाब, तुम्हे समझ नहीं आ रहा, कितना बड़ा घपला है?" "तो ये औरतें बोल नहीं सकती थीं उसकी ओर से? एक वकील ही तो मांग रही थी. चुप की चुप बैठी रहीं सब साली!" ""तो क्या तुम अब इनको लिखोगे? चूड़ियां पहन लो और तहक़ीक़ात करो!" "सर, ये जो जवाब देने वाला दफ्तर है, बहुत बड़ा सरकारी दफ्तर है सर! वहां भी हत्या का एक मामला मिला है. रोड एक्सीडेंट, सड़क दुर्घटना. ये वहां की केंद्र सरकार का दफ्तर है, और ये बहुत बड़ा अफसर अपने राज्य से बहुत कम उम्र में चुनाव जीत कर, बाकायदा केंद्र के एक बड़े दफ्तर में आया था." "और सर उसी साल, उसकी पत्नी का अचानक एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया. और ट्रक चालक पूर्णतः बरी हो गया. यानि हादसा पूरी तरह दुर्घटना के रूप में स्थापित हो गया." "सर, उस ट्रक चालक की जो टाइटिल थी, यानि उपनाम, वह वही थी जो इस लड़की के जर्मन बॉयफ्रेंड की थी, जब वह उस दूसरी विदेशी यूनिवर्सिटी में पढ़ रही थी." "पहली विदेशी यूनिवर्सिटी नहीं सर, दूसरी. पहली में, एक जर्मन ही उसका पीछा कर रहा था, उसने पूछा तो जर्मन ने इतना बड़ा हड़कम्प मचाया, कि उसे अपने घर, संपत्ति और देश तक से बेदखल करवा दिया." "वही तो सारा किस्सा है सर, जिसकी बात इन अर्ज़िओं में है." "लेकिन ये कैसे हुआ सर, कि इस लड़की के ये पूछने पर कि वह कैसे पीछा कर रहा था, उसने आसमान सर पर खड़ा कर लिया?" "ये तो कोई भी जानना चाहेगा कि कोई उसका पीछा क्यों कर रहा है? और कैसे?" "पांडू ये कैसे हुआ कि उसके अपने घर में उसकी हत्या हो गयी, हत्यारे के फिंगर प्रिंट्स हमारे पास हैं और हम उसे ढूंढ नहीं पा रहे ?" "तुम शहर और घर तक की पहुंच का अंदाजा लगाओ!" "यूनिवर्सिटी पुलिस वाली फाइल खुलवाओ पांडू,जो भी मिलेगा वहीं मिलेगा!" दोनों ने माना कि ढेर सारे जवाब उस फाइल में होंगे. जो बाहर होंगे, उनके सुराग वहां होंगे. लेकिन दोनों के अथक परिश्रम के बावजूद, अब तक फाइल नहीं खुल पाई है. खोलने को उस यूनिवर्सिटी की पुलिस तैयार नहीं हुई है.
मजा आया? इस मर्डर मिस्ट्री में डार्क ह्यूमर लपेट कर कहानी बनाई और हमें भेजा था पंखुरी सिन्हा ने. आपको भी कहानी भेजनी है? lallantopmail@gmail.com पर भेज डालिए. हमारी एडिटोरियल टीम को भाई तो इसी एक कहानी रोज़ में नजर आएगी. जैसे कल आपने पढ़ी थी.  सिगरेट फूंकने पर भी मन का धुआं बाहर न निकलता...

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