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वो कहानी, जिसने प्रधानमंत्री मोदी को देश की एक बड़ी योजना का आइडिया दिया

कहानी लगभग 85 साल पुरानी है. आज प्रेमचंद की बरसी है.

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8 अक्तूबर 2018 (Updated: 8 अक्तूबर 2018, 11:13 IST)
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उज्ज्वला योजना (जिसके तहत खाना पकाने वाले गैस का मुफ़्त वितरण किया गया) के फायदों के बारे में महिलाओं से बात कर रहे थे. ये बातचीत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हो रही थी. इसी बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने प्रेमचंद की कहानी ईदगाह को याद किया. उन्होंने कहा कि इस योजना को शुरू करने की प्रेरणा उन्हें ईदगाह के हामिद से मिली. खाना पकाते वक़्त, चूल्हे से रोटियां उतारते वक़्त उसकी दादी के हाथ जल जाते थे. इसलिए मेले से खिलौने न लेकर उन पैसों से हामिद अपनी दादी के लिए चिमटा खरीद लाता है. उन्होंने ये भी कहा कि अगर एक छोटा बच्चा हामिद अपने दादी की इतनी चिंता कर सकता है तो देश का प्रधानमंत्री क्यों नहीं. आज हामिद के उसी चिमटे की कहानी पढ़िए जिसे प्रेमचंद ने लिखा है -


 ईदगाह 


रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आई है. कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है. वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है. आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है. गांव में कितनी हलचल है. ईदगाह जाने की तैयारियां हो रही हैं. किसी के कुर्ते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर में सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है. किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर पर भागा जाता है. जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें. ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जायगी. तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना-भेंटना, दोपहर के पहले लौटना असम्भव है.

लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं. किसी ने एक रोजा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज है. रोजे बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे. इनके लिए तो ईद है. रोज ईद का नाम रटते थे, आज वह आ गयी. अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते. इन्हें गृहस्थी की चिंताओं से क्या प्रयोजन! सेवैयों के लिए दूध और शक्कर घर में है या नहीं, इनकी बला से, ये तो सेवेयां खायेंगे. वह क्या जानें कि अब्बाजान क्यों बदहवास चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं. उन्हें क्या खबर कि चौधरी आंखें बदल लें, तो यह सारी ईद मुहर्रम हो जाय.

उनकी अपनी जेबों में तो कुबेर का धन भरा हुआ है. बार-बार जेब से अपना खजाना निकालकर गिनते हैं और खुश होकर फिर रख लेते हैं. महमूद गिनता है, एक-दो, दस,-बारह, उसके पास बारह पैसे हैं. मोहसिन के पास एक, दो, तीन, आठ, नौ, पंद्रह पैसे हैं. इन्हीं अनगिनती पैसों में अनगिनती चीजें लायेंगें- खिलौने, मिठाइयां, बिगुल, गेंद और जाने क्या-क्या.

और सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद. वह चार-पांच साल का गरीब सूरत, दुबला-पतला लड़का, जिसका बाप गत वर्ष हैजे की भेंट हो गया और मां न जाने क्यों पीली होती-होती एक दिन मर गयी. किसी को पता क्या बीमारी है. कहती तो कौन सुनने वाला था? दिल पर जो कुछ बीतती थी, वह दिल में ही सहती थी और जब न सहा गया तो संसार से विदा हो गयी. अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है और उतना ही प्रसन्न है. उसके अब्बाजान रूपये कमाने गए हैं. बहुत-सी थैलियां लेकर आयेंगे. अम्मीजान अल्लाह मियां के घर से उसके लिए बड़ी अच्छी-अच्छी चीजें लाने गयी हैं, इसलिए हामिद प्रसन्न है. आशा तो बड़ी चीज है, और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती है.

हामिद के पांव में जूते नहीं हैं, सिर पर एक पुरानी-धुरानी टोपी है, जिसका गोटा काला पड़ गया है, फिर भी वह प्रसन्न है. जब उसके अब्बाजान थैलियां और अम्मीजान नियामतें लेकर आयेंगी, तो वह दिल से अरमान निकाल लेगा. तब देखेगा, मोहसिन, नूरे और सम्मी कहां से उतने पैसे निकालेंगे. अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है. आज ईद का दिन, उसके घर में दाना नहीं! आज आबिद होता, तो क्या इसी तरह ईद आती और चली जाती! इस अंधकार और निराशा में वह डूबी जा रही है. किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को? इस घर में उसका काम नहीं, लेकिन हामिद! उसे किसी के मरने-जीने से क्या मतलब? उसके अन्दर प्रकाश है, बाहर आशा. विपत्ति अपना सारा दल-बल लेकर आये, हामिद की आनंद-भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी.

हामिद भीतर जाकर दादी से कहता है- तुम डरना नहीं अम्मां, मैं सबसे पहले आऊंगा. बिल्कुल न डरना. अमीना का दिल कचोट रहा है. गांव के बच्चे अपने-अपने बाप के साथ जा रहे हैं. हामिद का बाप अमीना के सिवा और कौन है! उसे कैसे अकेले मेले जाने दे? उस भीड़-भाड़ से बच्चा कहीं खो जाय तो क्या हो? नहीं, अमीना उसे यों न जाने देगी. नन्ही-सी जान! तीन कोस चलेगा कैसे? पैर में छाले पड़ जायेंगे. जूते भी तो नहीं हैं. वह थोड़ी-थोड़ी दूर पर उसे गोद में ले लेती, लेकिन यहां सेवैयां कौन पकायेगा? पैसे होते तो लौटते-लौटते सब सामग्री जमा करके चटपट बना लेती. यहां तो घंटों चीजें जमा करते लगेंगे. मांगे का ही तो भरोसा ठहरा. उस दिन फहीमन के कपड़े सिले थे. आठ आने पैसे मिले थे. उस अठन्नी को ईमान की तरह बचाती चली आती थी इसी ईद के लिए लेकिन कल ग्वालन सिर पर सवार हो गयी तो क्या करती? हामिद के लिए कुछ नहीं है, तो दो पैसे का दूध तो चाहिए ही. अब तो कुल दो आने पैसे बच रहे हैं. तीन पैसे हामिद की जेब में, पांच अमीना के बटवे में. यही तो बिसात है और ईद का त्यौहार, अल्लाह ही बेड़ा पार लगावे. धोबन और नाइन और मेहतरानी और चुड़िहारिन सभी तो आयेंगी. सभी को सेवैयां चाहिए और थोड़ा किसी को आंखों नहीं लगता. किस-किस सें मुंह चुरायेगी? और मुंह क्यों चुराये? साल भर का त्यौहार है. ज़िंदगी ख़ैरियत से रहे, उनकी तकदीर भी तो उसी के साथ है. बच्चे को खुदा सलामत रखे, यें दिन भी कट जायंगे.

गांव से मेला चला. और बच्चों के साथ हामिद भी जा रहा था. कभी सबके सब दौड़कर आगे निकल जाते. फिर किसी पेड़ के नीचे खड़े होकर साथ वालों का इंतज़ार करते. यह लोग क्यों इतना धीरे-धीरे चल रहे हैं? हामिद के पैरों में तो जैसे पर लग गए हैं. वह कभी थक सकता है? शहर का दामन आ गया. सड़क के दोनों ओर अमीरों के बगीचे हैं. पक्की चारदीवारी बनी हुई है. पेड़ो में आम और लीचियां लगी हुई हैं. कभी-कभी कोई लड़का कंकड़ी उठाकर आम पर निशान लगाता है. माली अंदर से गाली देता हुआ निकलता है. लड़के वहां से एक फर्लांग पर हैं. खूब हंस रहे हैं. माली को कैसा उल्लू बनाया है.

बड़ी-बड़ी इमारतें आने लगीं. यह अदालत है, यह कॉलेज है, यह क्लब- घर है. इतने बड़े कॉलेज में कितने लड़के पढ़ते होंगे? सब लड़के नहीं हैं जी! बड़े-बड़े आदमी हैं, सच! उनकी बड़ी-बड़ी मूंछे हैं. इतने बड़े हो गए, अभी तक पढ़ने जाते हैं. न जाने कब तक पढ़ेंगे और क्या करेंगे इतना पढ़कर! हामिद के मदरसे में दो-तीन बड़े-बड़े लड़के हैं, बिल्कुल तीन कौड़ी के. रोज मार खाते हैं, काम से जी चुराने वाले. इस जगह भी उसी तरह के लोग होंगे ओर क्या. क्लब-घर में जादू होता है. सुना है, यहां मुर्दो की खोपड़ियां दौड़ती हैं. और बड़े-बड़े तमाशे होते हैं, पर किसी को अंदर नहीं जाने देते. और वहां शाम को साहब लोग खेलते हैं. बड़े-बड़े आदमी खेलते हैं, मूंछो दाढ़ी वाले. और मेमें भी खेलती हैं, सच! हमारी अम्मां को यह दे दो, क्या नाम है, बैट, तो उसे पकड़ ही न सकें. घुमाते ही लुढ़क जायं.

महमूद ने कहा- हमारी अम्मीजान का तो हाथ कांपने लगे, अल्ला कसम. मोहसिन बोला- चलो, मनों आटा पीस डालती हैं. ज़रा-सा बैट पकड़ लेंगी, तो हाथ कांपने लगेंगे! सैकड़ों घड़े पानी रोज निकालती हैं. पांच घड़े तो तेरी भैंस पी जाती है. किसी मेम को एक घड़ा पानी भरना पड़े, तो आंखों तले अंधेरा आ जाय. महमूद- लेकिन दौड़ती तो नहीं, उछल-कूद तो नहीं सकतीं. मोहसिन- हां, उछल-कूद तो नहीं सकतीं. लेकिन उस दिन मेरी गाय खुल गयी थी और चौधरी के खेत में जा पड़ी थी, अम्मां इतना तेज दौड़ीं कि मैं उन्हें न पा सका, सच.

आगे चले. हलवाइयों की दुकानें शुरू हुईं. आज खूब सजी हुई थीं. इतनी मिठाइयां कौन खाता है? देखो न, एक-एक दूकान पर मनों होंगी. सुना है, रात को जिन्नात आकर खरीद ले जाते हैं. अब्बा कहते थे कि आधी रात को एक आदमी हर दुकान पर जाता है और जितना माल बचा होता है, वह तुलवा लेता है और सचमुच के रुपये देता है, बिल्कुल ऐसे ही रुपये.

हामिद को यकीन न आया- ऐसे रुपये जिन्नात को कहां से मिल जायेंगे?

मोहसिन ने कहा- जिन्नात को रुपये की क्या कमी? जिस खजाने में चाहैं चले जायं. लोहे के दरवाजे तक उन्हें नहीं रोक सकते जनाब, आप हैं किस फेर में! हीरे-जवाहरात तक उनके पास रहते हैं. जिससे खुश हो गये, उसे टोकरों जवाहरात दे दिये. अभी यहीं बैठे हैं, पांच मिनट में कलकत्ता पहुंच जायं.

हामिद ने फिर पूछा- जिन्नात बहुत बड़े-बड़े होते हैं?

मोहसिन- एक-एक सिर आसमान के बराबर होता है जी! जमीन पर खड़ा हो जाय तो उसका सिर आसमान से जा लगे, मगर चाहे तो एक लोटे में घुस जाय.

हामिद- लोग उन्हें कैसे खुश करते होंगे? कोई मुझे यह मंतर बता दे तो एक जिन्न को खुश कर लूं.

मोहसिन- अब यह तो मैं नहीं जानता, लेकिन चौधरी साहब के काबू में बहुत-से जिन्नात हैं. कोई चीज चोरी जाय चौधरी साहब उसका पता लगा देंगे और चोर का नाम बता देंगे. जुमराती का बछवा उस दिन खो गया था. तीन दिन हैरान हुए, कहीं न मिला तब झख मारकर चौधरी के पास गये. चौधरी ने तुरन्त बता दिया, मवेशीखाने में है और वहीं मिला. जिन्नात आकर उन्हें सारे जहान की खबर दे जाते हैं. अब उसकी समझ में आ गया कि चौधरी के पास क्यों इतना धन है और क्यों उनका इतना सम्मान है.

आगे चले. यह पुलिस लाइन है. यहीं सब कॉन्सटेबल कवायद करते हैं. रैटन! फाय फो! रात को बेचारे घूम-घूमकर पहरा देते हैं, नहीं चोरियां हो जायं. मोहसिन ने प्रतिवाद किया-यह कॉन्सटेबल पहरा देते हैं? तभी तुम बहुत जानते हो अजी हजरत, यह चोरी करते हैं. शहर के जितने चोर-डाकू हैं, सब इनसे मिले रहते हैं.रात को ये लोग चोरों से तो कहते हैं, चोरी करो और आप दूसरे मुहल्ले में जाकर 'जागते रहो! जागते रहो!' पुकारते हैं. तभी इन लोगों के पास इतने रुपये आते हैं. मेरे मामू एक थाने में कॉन्सटेबल हैं. बीस रूपया महीना पाते हैं, लेकिन पचास रुपये घर भेजते हैं. अल्ला कसम! मैंने एक बार पूछा था कि मामू, आप इतने रुपये कहां से पाते हैं? हंसकर कहने लगे- बेटा, अल्लाह देता है. फिर आप ही बोले-हम लोग चाहें तो एक दिन में लाखों मार लायें. हम तो इतना ही लेते हैं, जिसमें अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाय.

हामिद ने पूछा- यह लोग चोरी करवाते हैं, तो कोई इन्हें पकड़ता नहीं?

मोहसिन उसकी नादानी पर दया दिखाकर बोला- अरे, पागल! इन्हें कौन पकड़ेगा! पकड़ने वाले तो यह लोग खुद हैं, लेकिन अल्लाह, इन्हें सजा भी खूब देता है. हराम का माल हराम में जाता है. थोड़े ही दिन हुए, मामू के घर में आग लग गयी. सारी लेई-पूंजी जल गयी. एक बरतन तक न बचा. कई दिन पेड़ के नीचे सोये, अल्ला कसम, पेड़ के नीचे! फिर न जाने कहां से एक सौ कर्ज लाये तो बरतन-भांडे आये.

हामिद- एक सौ तो पचास से ज्यादा होते हैं?

'कहां पचास, कहां एक सौ. पचास एक थैली-भर होता है. सौ तो दो थैलियों में भी न आऍं?

अब बस्ती घनी होने लगी. ईदगाह जानेवालों की टोलियां नजर आने लगी. एक से एक भड़कीले वस्त्र पहने हुए. कोई इक्के-तांगे पर सवार, कोई मोटर पर, सभी इत्र में बसे, सभी के दिलों में उमंग. ग्रामीणों का यह छोटा-सा दल अपनी विपन्नता से बेखबर, सन्तोष ओर धैर्य में मगन चला जा रहा था. बच्चों के लिए नगर की सभी चीजें अनोखी थीं. जिस चीज की ओर ताकते, ताकते ही रह जाते और पीछे से बार-बार हार्न की आवाज होने पर भी न चेतते. हामिद तो मोटर के नीचे जाते-जाते बचा.

सहसा ईदगाह नजर आई. ऊपर इमली के घने वृक्षों की छाया है. नीचे पक्का फर्श है, जिस पर जाजम बिछा हुआ है. और रोजेदारों की पंक्तियां एक के पीछे एक न जाने कहां तक चली गयी हैं, पक्की जगत के नीचे तक, जहां जाजम भी नहीं है. नये आने वाले आकर पीछे की कतार में खड़े हो जाते हैं. आगे जगह नहीं है. यहां कोई धन और पद नहीं देखता. इस्लाम की निगाह में सब बराबर हैं. इन ग्रामीणों ने भी वजू किया ओर पिछली पंक्ति में खड़े हो गये. कितना सुन्दर संचालन है, कितनी सुन्दर व्यवस्था! लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सबके सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हैं, और एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते हैं. कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाखों बत्तियां एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जायं, और यही क्रम चलता रहा. कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएं, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानों भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोये हुए है.


नमाज खत्म हो गयी है. लोग आपस में गले मिल रहे हैं. तब मिठाई और खिलौने की दूकान पर धावा होता है. ग्रामीणों का यह दल इस विषय में बालकों से कम उत्साही नहीं है. यह देखो, हिंडोला है एक पैसा देकर चढ़ जाओ. कभी आसमान पर जाते हुए मालूम होगें, कभी जमीन पर गिरते हुए. यह चर्खी है, लकड़ी के हाथी, घोड़े, ऊंट, छड़ों में लटके हुए हैं. एक पैसा देकर बैठ जाओ और पच्चीस चक्करों का मजा लो. महमूद और मोहसिन ओर नूरे ओर सम्मी इन घोड़ों ओर ऊंटों पर बैठते हैं. हामिद दूर खड़ा है. तीन ही पैसे तो उसके पास हैं. अपने कोष का एक तिहाई जरा-सा चक्कर खाने के लिए नहीं दे सकता.

सब चर्खियों से उतरते हैं. अब खिलौने लेंगे. इधर दूकानों की कतार लगी हुई है. तरह-तरह के खिलौने हैं-सिपाही और गुजरिया, राजा और वकील, भिश्ती और धोबिन और साधु. वाह! कितने सुन्दर खिलौने हैं. अब बोला ही चाहते हैं. महमूद सिपाही लेता है, खाकी वर्दी और लाल पगड़ीवाला, कंधे पर बंदूक रखे हुए, मालूम होता है, अभी कवायद किये चला आ रहा है. मोहसिन को भिश्ती पसंद आया. कमर झुकी हुई है, ऊपर मशक रखे हुए है. मशक का मुंह एक हाथ से पकड़े हुए है. कितना प्रसन्न है! शायद कोई गीत गा रहा है. बस, मशक से पानी उड़ेलना ही चाहता है. नूरे को वकील से प्रेम है. कैसी विद्वमता है उसके मुख पर! काला चोगा, नीचे सफेद अचकन, अचकन के सामने की जेब में घड़ी, सुनहरी जंजीर, एक हाथ में कानून का पोथा लिये हुए. मालूम होता है, अभी किसी अदालत से जिरह या बहस किये चले आ रहे हैं. यह सब दो-दो पैसे के खिलौने हैं. हामिद के पास कुल तीन पैसे हैं, इतने महंगे खिलौने वह कैसे ले? खिलौना कहीं हाथ से छूट पड़े तो चूर-चूर हो जाय. जरा पानी पड़े तो सारा रंग घुल जाय. ऐसे खिलौने लेकर वह क्या करेगा; किस काम के!

मोहसिन कहता है- मेरा भिश्ती रोज पानी दे जायगा सांझ-सबेरे.

महमूद- और मेरा सिपाही घर का पहरा देगा कोई चोर आयेगा, तो फौरन बंदूक से फैर कर देगा.

नूरे- और मेरा वकील खूब मुकदमा लड़ेगा.

सम्मी- और मेरी धोबिन रोज कपड़े धोयेगी.

हामिद खिलौनों की निंदा करता है- मिट्टी ही के तो हैं, गिरें तो चकनाचूर हो जायं, लेकिन ललचाई हुई आंखों से खिलौनों को देख रहा है और चाहता है कि जरा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता. उसके हाथ अनायास ही लपकते हैं, लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते हैं, विशेषकर जब अभी नया शौक है. हामिद ललचाता रह जाता है.

खिलौने के बाद मिठाइयां आती हैं. किसी ने रेवड़ियां ली हैं, किसी ने गुलाबजामुन किसी ने सोहन हलवा. मजे से खा रहे हैं. हामिद बिरादरी से पृथक है. अभागे के पास तीन पैसे हैं. क्यों नहीं कुछ लेकर खाता? ललचायी आंखों से सबकी ओर देखता है.

मोहसिन कहता है- हामिद रेवड़ी ले जा, कितनी खुशबूदार है!

हामिद को संदेह हुआ, ये केवल क्रूर विनोद है, मोहसिन इतना उदार नहीं है, लेकिन यह जानकर भी वह उसके पास जाता है. मोहसिन दोने से एक रेवड़ी निकालकर हामिद की ओर बढ़ाता है. हामिद हाथ फैलाता है. मोहसिन रेवड़ी अपने मुंह में रख लेता है. महमूद, नूरे और सम्मी खूब तालियां बजा-बजाकर हंसते हैं. हामिद खिसिया जाता है.

मोहसिन- अच्छा, अबकी जरूर देंगे हामिद, अल्लाह कसम, ले जाव.

हामिद- रखे रहो. क्या मेरे पास पैसे नहीं हैं?

सम्मी- तीन ही पैसे तो हैं. तीन पैसे में क्या-क्या लोगे?

महमूद- हमसे गुलाबजामुन ले जाव हामिद. मोहमिन बदमाश है.

हामिद- मिठाई कौन बड़ी नेमत है. किताब में इसकी कितनी बुराइयां लिखी हैं.

मोहसिन- लेकिन दिल में कह रहे होंगे कि मिले तो खा लें. अपने पैसे क्यों नहीं निकालते?

महमूद- हम समझते हैं, इसकी चालाकी. जब हमारे सारे पैसे खर्च हो जायेंगे, तो हमें ललचा-ललचाकर खायगा.

मिठाइयों के बाद कुछ दुकानें लोहे की चीजों की, कुछ गिलट और कुछ नकली गहनों की. लड़कों के लिए यहां कोई आकर्षण न था. वे सब आगे बढ़ जाते हैं, हामिद लोहे की दुकान पर रूक जाता है. कई चिमटे रखे हुए थे. उसे खयाल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है. तवे से रोटियां उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है. अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे तो वह कितना प्रसन्न होंगी! फिर उनकी उंगलियां कभी न जलेंगी. घर में एक काम की चीज हो जायगी. खिलौने से क्या फायदा? व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं. जरा देर ही तो खुशी होती है. फिर तो खिलौने को कोई आंख उठाकर नहीं देखता. यह तो घर पहुंचते-पहुंचते टूट-फूट बराबर हो जायेंगे या छोटे बच्चे जो मेले में नहीं आये हैं जिद कर के ले लेंगे और तोड़ डालेंगे. चिमटा कितने काम की चीज है. रोटियां तवे से उतार लो, चूल्हें में सेंक लो. कोई आग मांगने आये तो चटपट चूल्हे से आग निकालकर उसे दे दो. अम्मां बेचारी को कहां फुरसत है कि बाजार आयें और इतने पैसे ही कहां मिलते हैं? रोज हाथ जला लेती हैं.

हामिद के साथी आगे बढ़ गये हैं. सबील पर सब-के-सब शर्बत पी रहे हैं. देखो, सब कितने लालची हैं. इतनी मिठाइयां लीं, मुझे किसी ने एक भी न दी. उस पर कहते है, मेरे साथ खेलो. मेरा यह काम करो. अब अगर किसी ने कोई काम करने को कहा, तो पूछूंगा. खायें मिठाइयां, आप मुंह सड़ेगा, फोड़े-फुन्सियां निकलेंगी, आप ही जबान चटोरी हो जायगी. तब घर से पैसे चुरायेंगे और मार खायेंगे. किताब में झूठी बातें थोड़े ही लिखी हैं. मेरी जबान क्यों खराब होगी? अम्मां चिमटा देखते ही दौड़कर मेरे हाथ से ले लेंगी और कहेंगी-मेरा बच्चा अम्मां के लिए चिमटा लाया है. कितना अच्छा लड़का है. इन लोगों के खिलौने पर कौन इन्हें दुआयें देगा? बड़ों की दुआयें सीधे अल्लाह के दरबार में पहुंचती हैं, और तुरंत सुनी जाती हैं. मेरे पास पैसे नहीं हैं.तभी तो मोहसिन और महमूद यों मिजाज दिखाते हैं. मैं भी इनसे मिजाज दिखाऊंगा. खेलें खिलौने और खायें मिठाइयां. मै नहीं खेलता खिलौने, किसी का मिजाज क्यों सहूं? मैं गरीब सही, किसी से कुछ मांगने तो नहीं जाता. आखिर अब्बाजान कभीं न कभी आयेंगे. अम्मा भी आयेंगी ही. फिर इन लोगों से पूछूंगा, कितने खिलौने लोगे? एक-एक को टोकरियों खिलौने दूं और दिखा दूं कि दोस्तों के साथ इस तरह का सलूक किया जाता है. यह नहीं कि एक पैसे की रेवड़ियां लीं, तो चिढ़ा-चिढ़ाकर खाने लगे. सबके सब खूब हंसेंगे कि हामिद ने चिमटा लिया है. हंसें! मेरी बला से. उसने दुकानदार से पूछा.

यह चिमटा कितने का है?

दुकानदार ने उसकी ओर देखा और कोई आदमी साथ न देखकर कहा- तुम्हारे काम का नहीं है जी!

'बिकाऊ है कि नहीं?'

'बिकाऊ क्यों नहीं है? और यहां क्यों लाद लाये हैं?'

तो बताते क्यों नहीं, कै पैसे का है?'

'छ: पैसे लगेंगे.'

हामिद का दिल बैठ गया.

'ठीक-ठीक पांच पैसे लगेंगे, लेना हो लो, नहीं चलते बनो.'

हामिद ने कलेजा मजबूत करके कहा- तीन पैसे लोगे?

यह कहता हुआ वह आगे बढ़ गया कि दुकानदार की घुड़कियां न सुने. लेकिन दुकानदार ने घुड़कियां नहीं दी. बुलाकर चिमटा दे दिया. हामिद ने उसे इस तरह कंधे पर रखा, मानो बंदूक है और शान से अकड़ता हुआ संगियों के पास आया. जरा सुनें, सबके सब क्या-क्या आलोचनाएं करते हैं!

मोहसिन ने हंसकर कहा- यह चिमटा क्यों लाया पगले, इसे क्या करेगा?

हामिद ने चिमटे को जमीन पर पटककर कहा- जरा अपना भिश्ती जमीन पर गिरा दो. सारी पसलियां चूर-चूर हो जायं बच्चू की.

महमूद बोला-तो यह चिमटा कोई खिलौना है?

हामिद- खिलौना क्यों नही है! अभी कंधे पर रखा, बंदूक हो गयी. हाथ में ले लिया, फकीरों का चिमटा हो गया. चाहूं तो इससे मजीरे का काम ले सकता हूं. एक चिमटा जमा दूं, तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान निकल जाय. तुम्हारे खिलौने कितना ही जोर लगायें, मेरे चिमटे का बाल भी बांका नही कर सकते. मेरा बहादुर शेर है चिमटा.

सम्मी ने खंजरी ली थी. प्रभावित होकर बोला- मेरी खंजरी से बदलोगे? दो आने की है.

हामिद ने खंजरी की ओर उपेक्षा से देखा- मेरा चिमटा चाहे तो तुम्हारी खंजरी का पेट फाड़ डाले. बस, एक चमड़े की झिल्ली लगा दी, ढब-ढब बोलने लगी. जरा-सा पानी लग जाय तो खत्म हो जाय. मेरा बहादुर चिमटा आग में, पानी में, आंधी में, तूफान में बराबर डटा खड़ा रहेगा.

चिमटे ने सभी को मोहित कर लिया, अब पैसे किसके पास धरे हैं? फिर मेले से दूर निकल आये हैं, नौ कब के बज ग्ये, धूप तेज हो रही है. घर पहुंचने की जल्दी हो रही है. बाप से जिद भी करें, तो चिमटा नहीं मिल सकता. हामिद है बड़ा चालाक. इसीलिए बदमाश ने अपने पैसे बचा रखे थे.

अब बालकों के दो दल हो गये हैं. मोहसिन, मह्मूद, सम्मी और नूरे एक तरफ हैं, हामिद अकेला दूसरी तरफ. शास्त्रार्थ हो रहा है. सम्मी तो विधर्मी हो गया! दूसरे पक्ष से जा मिला, लेकिन मोहसिन, महमूद और नूरे भी हामिद से एक-एक, दो-दो साल बड़े होने पर भी हामिद के आघातों से आतंकित हो उठे हैं. उसके पास न्याय का बल है और नीति की शक्ति. एक ओर मिट्टी है, दूसरी ओर लोहा, जो इस वक्त अपने को फौलाद कह रहा है. वह अजेय है, घातक है. अगर कोई शेर आ जाय तो मियां भिश्ती के छक्के छूट जायं, मियां सिपाही मिट्टी की बंदूक छोड़कर भागें, वकील साहब की नानी मर जाय, चोगे में मुंह छिपाकर जमीन पर लेट जायं. मगर यह चिमटा, यह बहादुर, यह रूस्तमे-हिंद लपककर शेर की गरदन पर सवार हो जायगा और उसकी आंखें निकाल लेगा.

मोहसिन ने एड़ी-चोटी का जोर लगाकर कहा- अच्छा, पानी तो नहीं भर सकता?

हामिद ने चिमटे को सीधा खड़ा करके कहा- भिश्ती को एक डांट बतायेगा, तो दौड़ा हुआ पानी लाकर उसके द्वार पर छिड़कने लगेगा.

मोहसिन परास्त हो गया, पर महमूद ने कुमुक पहुंचाई- अगर बच्चा पकड़ जायं तो अदालत में बंधे-बंधे फिरेंगे. तब तो वकील साहब के पैरों पड़ेंगे.

हामिद इस प्रबल तर्क का जवाब न दे सका. उसने पूछा- हमें पकड़ने कौन आयेगा?

नूरे ने अकड़कर कहा- यह सिपाही बंदूकवाला.

हामिद ने मुंह चिढ़ाकर कहा- यह बेचारे हम बहादुर रूस्तमे-हिंद को पकड़ेंगे! अच्छा लाओ, अभी जरा कुश्ती हो जाय. इसकी सूरत देखकर दूर से भागेंगे. पकड़ेंगे क्या बेचारे!

मोहसिन को एक नयी चोट सूझ गयी- तुम्हारे चिमटे का मुंह रोज आग में जलेगा.

उसने समझा था कि हामिद लाजवाब हो जायगा, लेकिन यह बात न हुई. हामिद ने तुरंत जवाब दिया- आग में बहादुर ही कूदते हैं जनाब, तुम्हारे यह वकील, सिपाही और भिश्ती लौंडियों की तरह घर में घुस जायेंगे. आग में कूदना वह काम है, जो यह रूस्तमे-हिन्द ही कर सकता है.

महमूद ने एक जोर लगाया- वकील साहब कुरसी-मेज पर बैठेंगे, तुम्हारा चिमटा तो बावरचीखाने में जमीन पर पड़ा रहेगा.

इस तर्क ने सम्मी और नूरे को भी सजीव कर दिया! कितने ठिकाने की बात कही है पट्ठे ने! चिमटा बावरचीखाने में पड़ा रहने के सिवा और क्या कर सकता है?

हामिद को कोई फड़कता हुआ जवाब न सूझा, तो उसने धांधली शुरू की- मेरा चिमटा बावरचीखाने में नही रहेगा. वकील साहब कुर्सी पर बैठेंगे, तो जाकर उन्हें जमीन पर पटक देगा और उनका कानून उनके पेट में डाल देगा.

बात कुछ बनी नहीं. खासी गाली-गलौज थी; लेकिन कानून को पेट में डालने वाली बात छा गयी. ऐसी छा गयी कि तीनों सूरमा मुंह ताकते रह गये मानो कोई धेलचा कनकौआ किसी गंडेवाले कनकौए को काट गया हो. कानून मुंह से बाहर निकलने वाली चीज है. उसको पेट के अंदर डाल दिया जाना बेतुकी-सी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती है. हामिद ने मैदान मार लिया. उसका चिमटा रूस्तमे-हिन्द है. अब इसमें मोहसिन, महमूद नूरे, सम्मी किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती.

विजेता को हारनेवालों से जो सत्कार मिलना स्वाभविक है, वह हामिद को भी मिला. औरों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खर्च किए, पर कोई काम की चीज न ले सके. हामिद ने तीन पैसे में रंग जमा लिया. सच ही तो है, खिलौनों का क्या भरोसा? टूट-फूट जायंगे. हामिद का चिमटा तो बना रहेगा बरसों?

संधि की शर्तें तय होने लगीं. मोहसिन ने कहा- जरा अपना चिमटा दो, हम भी देखें. तुम हमारा भिश्ती लेकर देखो.

महमूद और नूरे ने भी अपने-अपने खिलौने पेश किये.

हामिद को इन शर्तों को मानने में कोई आपत्ति न थी. चिमटा बारी-बारी से सबके हाथ में गया, और उनके खिलौने बारी-बारी से हामिद के हाथ में आये. कितने खूबसूरत खिलौने हैं.

हामिद ने हारने वालों के आंसू पोंछे- मैं तुम्हे चिढ़ा रहा था, सच! यह चिमटा भला, इन खिलौनों की क्या बराबरी करेगा, मालूम होता है, अब बोले, अब बोले.

लेकिन मोहसिन की पार्टी को इस दिलासे से संतोष नहीं होता. चिमटे का सिक्का खूब बैठ गया है. चिपका हुआ टिकट अब पानी से नहीं छूट रहा है.

मोहसिन- लेकिन इन खिलौनों के लिए कोई हमें दुआ तो न देगा?

महमूद- दुआ को लिये फिरते हो. उल्टे मार न पड़े. अम्मां जरूर कहेंगी कि मेले में यही मिट्टी के खिलौने मिले?

हामिद को स्वीकार करना पड़ा कि खिलौनों को देखकर किसी की मां इतनी खुश न होंगी, जितनी दादी चिमटे को देखकर होंगी. तीन पैसों ही में तो उसे सब कुछ करना था ओर उन पैसों के इस उपयोग पर पछतावे की बिल्कुल जरूरत न थी. फिर अब तो चिमटा रूस्तमें-हिन्द है ओर सभी खिलौनों का बादशाह.

रास्ते में महमूद को भूख लगी. उसके बाप ने केले खाने को दिये. महमूद ने केवल हामिद को साझी बनाया. उसके अन्य मित्र मुंह ताकते रह गये. यह उस चिमटे का प्रसाद था.


ग्यारह बजे गांव में हलचल मच गयी. मेलेवाले आ गये. मोहसिन की छोटी बहन ने दौड़कर भिश्ती उसके हाथ से छीन लिया और मारे खुशी के जा उछली, तो मियां भिश्ती नीचे आ रहे और सुरलोक सिधारे. इस पर भाई-बहन में मार-पीट हुई. दानों खुब रोये. उनकी अम्मां यह शोर सुनकर बिगड़ीं और दोनों को ऊपर से दो-दो चांटे और लगाये.

मियां नूरे के वकील का अंत उनके प्रतिष्ठानुकूल इससे ज्यादा गौरवमय हुआ. वकील जमीन पर या ताक पर तो नहीं बैठ सकता. उसकी मर्यादा का विचार तो करना ही होगा. दीवार में खूंटियां गाड़ी गयी. उन पर लकड़ी का एक पटरा रखा गया. पटरे पर कागज का कालीन बिछाया गया. वकील साहब राजा भोज की भांति सिंहासन पर विराजे. नूरे ने उन्हें पंखा झलना शुरू किया. अदालतों में खस की टट्टियां और बिजली के पंखे रहते हैं. क्या यहां मामूली पंखा भी न हो! कानून की गर्मी दिमाग पर चढ़ जायगी कि नहीं? बांस का पंखा आया और नूरे हवा करने लगे. मालूम नहीं, पंखे की हवा से या पंखे की चोट से वकील साहब स्वर्गलोक से मृत्युलोक में आ रहे और उनका माटी का चोला माटी में मिल गया! फिर बड़े जोर-शोर से मातम हुआ और वकील साहब की अस्थि घूरे पर डाल दी गयी.

अब रहा महमूद का सिपाही. उसे चटपट गांव का पहरा देने का चार्ज मिल गया, लेकिन पुलिस का सिपाही कोई साधारण व्यक्ति तो नहीं, जो अपने पैरों चलें. वह पालकी पर चलेगा. एक टोकरी आई, उसमें कुछ लाल रंग के फटे-पुराने चिथड़े बिछाये गये, जिसमें सिपाही साहब आराम से लेटे. नूरे ने यह टोकरी उठायी और अपने द्वार का चक्कर लगाने लगे. उनके दोनों छोटे भाई सिपाही की तरह 'छोनेवाले, जागते लहो' पुकारते चलते हैं. मगर रात तो अंधेरी ही होनी चाहिये. महमूद को ठोकर लग जाती है. टोकरी उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ती है और मियां सिपाही अपनी बन्दूक लिये जमीन पर आ जाते हैं और उनकी एक टांग में विकार आ जाता है.

महमूद को आज ज्ञात हुआ कि वह अच्छा डाक्टर है. उसको ऐसा मरहम मिला गया है जिससे वह टूटी टांग को आनन-फानन जोड़ सकता है. केवल गूलर का दूध चाहिए. गूलर का दूध आता है. टांग जवाब दे देती है. शल्य-क्रिया असफल हुई, तब उसकी दूसरी टांग भी तोड़ दी जाती है. अब कम-से-कम एक जगह आराम से बैठ तो सकता है. एक टांग से तो न चल सकता था, न बैठ सकता था. अब वह सिपाही संन्यासी हो गया है. अपनी जगह पर बैठा-बैठा पहरा देता है. कभी-कभी देवता भी बन जाता है. उसके सिर का झालरदार साफा खुरच दिया गया है. अब उसका जितना रूपांतर चाहो, कर सकते हो. कभी-कभी तो उससे बाट का काम भी लिया जाता है.

अब मियां हामिद का हाल सुनिए. अमीना उसकी आवाज सुनते ही दौड़ी और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी. सहसा उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौंकी.

'यह चिमटा कहां था?'

'मैंने मोल लिया है.

'कै पैसे में?'

'तीन पैसे दिये.'

अमीना ने छाती पीट ली. यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुआ, कुछ खाया न पिया. लाया क्या, चिमटा! 'सारे मेले में तुझे और कोई चीज न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया.

हामिद ने अपराधी भाव से कहा-तुम्हारी उंगलियां तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैने इसे लिया.

बुढ़िया का क्रोध तुरन्त स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है. यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ. बच्चे में कितना त्याग, कितना ‍सद्‌भाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा? इतना जब्त इससे हुआ कैसे? वहां भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही. अमीना का मन गद्‌गद्‌ हो गया.

और अब एक बड़ी विचित्र बात हुई. हामिद के इस चिमटे से भी विचित्र. बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था. बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गयी. वह रोने लगी. दामन फैलाकर हामिद को दुआएं देती जाती थी और आंसू की बड़ी-बड़ी बूंदें गिराती जाती थी. हामिद इसका रहस्य क्या समझता!


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