Cloud Seeding से दिल्ली में पक्का बारिश होगी? अगर हुई तो सिर्फ फायदे होंगे?
दिल्ली की बीजेपी सरकार ने प्रदूषण से निजात पाने के लिए क्लाउड सीडिंग के जरिए राजधानी में बारिश कराने की तैयारी कर ली है. ये क्या होता है और इससे नकली बारिश कैसे कराई जाती है, आज इसके बारे में विस्तार से बताएंगे.

बिहार के पटना के रहने वाले आनंद इस बार छठ में घर नहीं जा पाए तो दिल्ली के प्रदूषण में ‘फंस’ गए. रात-दिन उनके दिमाग में एक ही गाना बजता है- ‘ये क्या जगह है दोस्तो. ये कौन सी दयार है. हदे-निगाह तक यहां. गुबार ही गुबार है.’ यही हाल शाहजहांपुर के रहने वाले अभय शर्मा का है जो रोजी-रोटी के लिए दिल्ली में रहने को मजबूर हैं. वह भी गुनगुनाते हैं- 'आंखों में जलन सीने में तूफ़ान सा क्यों है. इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यों है.'
1978 में प्रसिद्ध शायर शहरयार जब ये लाइनें लिख रहे होंगे तब दिल्ली का प्रदूषण तो उनके दिमाग में नहीं रहा होगा, लेकिन कहते हैं न, 'जहां न पहुंचे रवि. वहां पहुंचे कवि.' तो कवि जाने-अनजाने भविष्य में पहुंच गया और देख लिया कि आने वाले दिनों में कार्तिक का पवित्र महीना दिल्ली वालों के लिए सिर्फ त्योहार का नहीं बल्कि प्रदूषण से परेशान करने वाला भी होगा.
'चेहरे पर सारे शहर का गर्द-ए-मलाल है. जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है.' प्रदूषण से दिल्ली का आकाश आंखें नहीं खोल पा रहा है. सूरज ऐसा कमजोर पड़ा है कि छोटे-मोटे पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे प्रदूषक तत्वों ने उसकी आभा हर ली है. कोई करे तो क्या करे? इसी बीच सरकार को एक उपाय सूझा है. क्लाउड सीडिंग का. माने कृत्रिम बारिश कराने का.
पुराणों की कहानी में सुने होंगे. देवताओं के राजा इंद्र महर्षि दधीचि की हड्डियों से बना अपना हथियार वज्र हवा में लहराते थे और धरती पर मेघमाला उमड़ पड़ती थी. धारासार बारिश होती थी. पूरा मौसम नहाया-धोया हो जाता था. पेड़-पौधे, नदी-नाले सब धुले-पुछे और ज्यादा सुंदर लगने लगते थे. तब हमने नहीं सोचा था कि इंसान कभी तरक्की के ऐसे मुकाम पर भी पहुंच जाएगा, जहां उसकी राजसत्ता चाहेगी तो इंद्र के वज्र के जैसा एक जहाज आसमान में भेजेगी और धरती पर झर-झर पानी बरस पड़ेगा.
क्लाउड सीडिंग यही तो होती है. जैसे धरती पर धान बोया जाता है. वैसे ही हवाई जहाज की मदद से आसमान में बरसात भी बो दी जाती है. अगले कुछ दिन दिल्ली सरकार ऐसे ही क्लाउड सीडिंग से कृत्रिम बारिश कराने जा रही है. ताकि, प्रदूषण से परेशान लोगों को थोड़ी राहत मिले.
ये बारिश हो, इससे पहले हम और आप इस वर्षा-पद्धति की पूरी कुंडली जान लें तो अच्छा रहे.
अब तक बारिश का तरीका आपने किताबों में पढ़ा होगा कि समुद्र का पानी वाप्षित होकर आसमान में जाता है. यहां तक कि पौधों में मौजूद पानी भी सूरज की गर्मी से वाष्पित होकर हवा में उड़ता रहता है. पानी की यह भाप ऊपर जाकर ठंडी हो जाती है और छोटे-छोटे पानी के कणों में बदल जाती है. यही कण बादल बनाते हैं. बादल में धूल के कण यानी न्यूक्लियस होते हैं, जो इन पानी के कणों को चिपकने में मदद करते हैं. बहुत सारे पानी के कण इकट्ठे होकर बादल बनते हैं और हवा के साथ इधर-उधर घूमते हैं. जब पानी के ये कण बहुत भारी हो जाते हैं, तो वे गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे गिरने लगते हैं. इसे ही बारिश कहते हैं.
यही पढ़ा है न. क्लाउड सीडिंग या आर्टिफिशयल रेनिंग या कृत्रिम बारिश में भी ऐसी ही परिस्थिति पैदा करने की कोशिश की जाती है.
क्या होती है क्लाउड सीडिंग?क्लाउड सीडिंग में आसमान में बारिश की संभावना के बीज रोपे जाते हैं. आसान भाषा में कहें तो ऐसी परिस्थितियां क्रिएट की जाती हैं जिनसे बादल बनें और बारिश हो. लेकिन यह कभी भी, कहीं भी हो जाए यह भी संभव नहीं है. इसे तभी किया जा सकता है जब आसमान में पहले से ऐसे बादल हों जिनमें नमी यानी पानी की भाप मौजूद हों.
इसके लिए…
– सबसे पहले ऐसे बादल चुने जाते हैं, जिनमें पहले से पर्याप्त नमी हो.
– फिर सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide) या ड्राई आइस (Dry Ice) जैसे रासायनिक पदार्थ हवाई जहाज, रॉकेट या जमीन से छोड़े जाने वाले उपकरणों के जरिए उन बादलों में डाले जाते हैं.
– ये कण बादलों में मौजूद पानी की भाप को अपने चारों ओर जमा करते हैं.
– जब ये बूंदें या बर्फ के टुकड़े भारी हो जाते हैं तो वे नीचे गिरते हैं. नतीजा. बारिश या बर्फबारी होती है.

एक होती है स्टैटिक क्लाउड सीडिंग. यानी ठंडे बादलों में बीज डालकर बारिश या बर्फबारी बढ़ाना.
फिर डायनैमिक क्लाउड सीडिंग भी होती है. इसमें बादलों के भीतर वर्टिकल एयर मूवमेंट बढ़ाकर ज्यादा बारिश (precipitation) करवाने की कोशिश की जाती है.
हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग भी कृत्रिम बारिश का एक अनोखा तरीका है, जो ज्यादातर समुद्री किनारे वाले इलाकों में प्रयोग में लाया जाता है. इसमें नर्म बादलों में नमक जैसे- सोडियम क्लोराइड या पोटैशियम क्लोराइड सीड किया जाता है. ये छोटी-हल्की पानी की बूंदों को जुटाकर उन्हें वजनी बनाते हैं. फिर ये बूंदें भारी होकर जमीन पर गिरती हैं और बारिश होती है.
तकनीक चाहे कोई भी हो, कृत्रिम बारिश के लिए भी मौसम, इलाका और बादलों का नेचर अनुकूल होना चाहिए. तभी प्लान सफल होगा. मतलब ये कि क्लाउड सीडिंग बादल बनाती नहीं है. बल्कि पहले से मौजूद बादलों में बारिश करवाती है. यानी अगर आसमान बिल्कुल सूखा है, तो इससे कुछ नहीं होगा.
दिल्ली सरकार की यही चुनौतीइंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में भारतीय मौसम विभाग (IMD) के हवाले से बताया गया है कि अक्टूबर से दिसंबर तक का समय पोस्ट-मानसून सीजन माना जाता है. मतलब ये कि इस समय तक मानसून के बादल, जो नमी से भरे होते हैं और बारिश लाते हैं, लगभग चले गए होते हैं. हवाएं शांत रहती हैं और मौसम सूखा होता है. जब तक कि कोई पश्चिमी विक्षोभ यानी Western Disturbance न गुजर जाए.
वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की वजह से ही इस समय उत्तर भारत में बारिश या बर्फबारी होती है. यानी इस मौसम में बारिश कराने वाले बादल नहीं होते. ऐसे में क्लाउड सीडिंग करना मुश्किल होता है. अगर दिखने वाले बादलों पर भी सीडिंग की जाए तो जरूरी नहीं कि उससे बारिश हो ही जाए.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) से जुड़े कई अधिकारी मानते हैं कि दिल्ली सरकार ने क्लाउड सीडिंग का समय गलत चुन लिया है. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा,
भारत में पहले हुई है कृत्रिम बारिश?दिल्ली सरकार को गलत सलाह दी गई है. पोस्ट-मानसून या सर्दियों के मौसम में क्लाउड सीडिंग का कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि इस समय बादल पूरी तरह विकसित नहीं होते. इसके अलावा, मंत्रालय के पास ऐसा कोई वैज्ञानिक डेटा नहीं है जिससे यह साबित हो कि क्लाउड सीडिंग से दिल्ली में बारिश हो सकती है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) ने पहले Cloud Aerosol Interaction and Precipitation Enhancement Experiment (CAIPEEX) नाम का एक प्रोजेक्ट किया था. यह प्रयोग दक्षिण भारत के क्षेत्रों में 4 चरणों में किया गया था- 2009, 2010–2011, 2014–2015 और 2017–2019 में. इसका आखिरी चरण महाराष्ट्र के सोलापुर में हुआ था. इस प्रयोग के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि कुछ जगहों पर बारिश की मात्रा लगभग 46 फीसदी तक बढ़ी, जिसमें 13% तक का अंतर देखा गया. सीडिंग की जगह से नीचे की ओर लगभग 100 वर्ग किलोमीटर के इलाके में औसतन 18 फीसदी तक बारिश में बढ़ोतरी देखी गई.
कृत्रिम बारिश के नुकसान भीआमतौर पर क्लाउड सीडिंग को सेफ माना जाता है. इसमें जो सिल्वर आयोडाइड इस्तेमाल होता है, उसकी मात्रा बहुत कम होती है. यानी जितना नेचर में ये नॉर्मली पाई जाती है, उतना ही यूज किया जाता है. फिर भी, कुछ पर्यावरण प्रेमी इसके प्रभाव को लेकर सवाल उठाते हैं. उनकी चिंता खासतौर पर पानी के चक्र यानी वाटर साइकिल को लेकर होती है. इस प्रक्रिया में भले ही मानव की आधुनिकता दिखती हो, लेकिन हम प्रकृति के चक्र के साथ तो छेड़छाड़ कर ही रहे हैं. वैज्ञानिक बताते हैं कि इस प्रक्रिया से मौसम का पैटर्न भी बिगड़ सकता है.
ये भी कहा जाता है कि कृत्रिम बारिश होगी तो सिल्वर आयोडाइड, ड्राई-आइस गिरेंगे, जो पौधों, जानवरों और जलाशयों के लिए ख़तरनाक़ हो सकते हैं.
कृत्रिम बारिश में प्रयोग किया जाने वाला सिल्वर आयोडाइड कम मात्रा में तो नुकसान नहीं करता, लेकिन लंबे समय तक इसका संपर्क हानिकारक हो सकता है. H2O ग्लोबल न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि सिल्वर आयोडाइड के लंबे समय तक संपर्क में रहने से त्वचा को नुकसान हो सकता है. अगर सिल्वर आयोडाइड या नमक का स्तर बहुत ज्यादा हो जाए तो ये पीने के पानी को प्रदूषित कर सकते हैं और फसलों को प्रभावित कर सकते हैं.
इससे वाटर साइकिल भी प्रभावित हो सकती है. जब एक क्षेत्र में कृत्रिम वर्षा की जाती है तो यह दूसरे क्षेत्र में वर्षा को कम कर सकती है. इससे सूखा पड़ सकता है और फसलों के उत्पादन पर भी बुरा असर हो सकता है.
कृत्रिम बरसात के साथ गिरने वाले केमिकल्स समय के साथ मिट्टी में मिल जाते हैं. सिल्वर आयोडाइड की ज्यादा मात्रा मिट्टी की संरचना बदलती है, जिससे पेड़-पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है. फूड चेन पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है.
यानी सवाल बनता है कि क्या हर साल इस सीजन यानी दिवाली के आसपास कृत्रिम बारिश कराना सही है?
दिल्ली में प्रदूषण की लिमिट पारदरअसल, दिवाली और इसके आसपास के सीजन में दिल्ली का प्रदूषण बर्दाश्त के बाहर हो जाता है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, मंगलवार, 28 अक्टूबर को सुबह 8 बजे तक दिल्ली में AQI 306 रहा, जिसे 'बहुत खराब' कहा जाता है. इसी समय तक यानी सुबह 8 बजे तक ही आनंद विहार में एक्यूआई 321, आरके पुरम में 320, सिरी फोर्ट में 350, बवाना में 336, बुराड़ी क्रॉसिंग में 326, द्वारका सेक्टर 8 में 316, मुंडका में 324, नरेला में 303 और पंजाबी बाग में 323 रहा.
कब होगी क्लाउड सीडिंग?प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने 25 सितंबर 2025 को आईआईटी कानपुर के साथ 5 क्लाउड सीडिंग ट्रायल के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) साइन किया था. ये सभी ट्रायल उत्तर-पश्चिम दिल्ली में किए जाने की योजना है. नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने IIT कानपुर को 1 अक्टूबर से 30 नवंबर 2025 के बीच किसी भी समय परीक्षण करने की अनुमति दी है. दिल्ली सरकार ने भी इसके लिए 7 मई को 3.21 करोड़ रुपये के बजट प्रस्ताव को मंजूरी दी है.
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने मंगलवार को NDTV से कहा कि अगर मौसम ठीक रहा तो दिल्ली सरकार 28 अक्टूबर को अपना पहला क्लाउड सीडिंग कार्यक्रम कर सकती है. सिरसा ने कहा कि यह अभियान कानपुर में मौसम के हालात पर निर्भर करता है, क्योंकि इसके लिए जिस विमान का प्रयोग किया जाना है, वो वहीं तैनात है.
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