मुंबई अंडरवर्ल्ड का वो नाम, जिससे दाऊद भी सीखता था खेल, कौन है सुभाष ठाकुर?
Subhash Thakur उर्फ बाबा, नब्बे के दशक में काम की तलाश में पहली बार मुंबई पहुंचा था. लेकिन अपराध के ग्लैमर ने उसे अपनी दुनिया में खींच लिया. वह पहले तो छोटे मोटे अपराधों में लिप्त हुआ. फिर उसका नाता अंडरवर्ल्ड से जुड़ा. और वह बिल्डरों से रंगदारी वसूलने, धमकाने और भाड़े पर हत्या का काम करने लगा.

साल 1990. अंडरवर्ल्ड माफियाओं के आतंक और आपसी अदावत ने मायानगरी मुंबई को हिला कर रख दिया था. सड़कों से लेकर अस्पताल के वार्डों से आए दिन हिंसा और गोलीबारी की खबरें आती थी. इस दौरान पूर्वांचल से आए एक नाम की धमक मुंबई अंडरवर्ल्ड में सुनाई देने लगी. मुंबई में हुए हर दूसरी आपराधिक घटना में एक नाम सामने आने लगा. सुभाष ठाकुर. जानते हैं कि ये सुभाष ठाकुर कौन है? और अभी चर्चा में क्यों है?
साल 1992 में मुंबई के सर जेजे अस्पताल में अरुण गवली के शूटर शैलेश की हत्या कर दी गई थी. साल 2000 में मुंबई की एक टाडा कोर्ट ने सुभाष ठाकुर को मौत की सजा सुनाई थी. जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारावास में बदल दिया. ठाकुर उत्तर प्रदेश के फतेहगढ़ जेल में अपनी सजा काट रहा था. 15 दिसंबर को मुंबई पुलिस ठाकुर को लेकर वापस मुंबई आई है. मामला साल 2022 में मुंबई के वसई में एक बिल्डर की हत्या से जुड़ा हुआ है. 16 दिसंबर को ठाणे की एक अदालत ने मामले में ठाकुर को 22 दिसंबर तक के लिए पुलिस रिमांड में भेज दिया है.
फतेहगढ़ से विरार तक सुरक्षा चाक चौबंदमुंबई पुलिस ने सुभाष ठाकुर को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के फतेहगढ़ सेंट्रल जेल से हिरासत में लिया. और 15 दिसंबर की रात उसे लेकर मुंबई के विरार आई. इस दौरान सुरक्षा एजेंसियां पूरी तरह से अलर्ट पर थीं और कड़ी सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे. पुलिस अधिकारियों ने बताया कि सुभाष ठाकुर से केस से जुड़े की अहम सवालों के जवाब जानने हैं. साथ ही पुलिस उसके पुराने नेटवर्क और संपर्कों की भी जांच कर रही है.
मुंबई से शुरू हुआ जरायम की दुनिया का सफरएक दौर में मुंबई अंडरवर्ल्ड से नाता रखने वाले सुभाष ठाकुर पर कई हमले भी हुए. लेकिन वो जिंदा बचा रहा. 60 की उम्र पार कर चुके ठाकुर अब लंबी दाढ़ी रखता है. और उसे बाबा के नाम से जाना जाता है. सुभाष ठाकुर उर्फ बाबा नब्बे के दशक में काम की तलाश में पहली बार मुंबई पहुंचा था. लेकिन अपराध के ग्लैमर ने उसे अपनी दुनिया में खींच लिया. वह पहले तो छोटे मोटे अपराधों में लिप्त हुआ. फिर उसका नाता अंडरवर्ल्ड से जुड़ा. और वह बिल्डरों से रंगदारी वसूलने, धमकाने और भाड़े पर हत्या का काम करने लगा.
दाऊद इब्राहिम को अंडरवर्ल्ड के गुर सिखाएसुभाष ठाकुर को किम बहादुर थापा का संरक्षण प्राप्त था. थापा गैंगस्टर से शिवसेना पार्षद बने थे. उनके संपर्क दाऊद इब्राहिम से भी थे. बताया जाता है कि दाऊद इब्राहिम को अंडरवर्ल्ड के गुर ठाकुर ने ही सिखाए थे. बाद में ठाकुर ने दाऊद की सरपरस्ती में काम भी किया. सुभाष ठाकुर का नाम मुंबई की अपराध जगत में साल 1989 में पहली बार सुर्खियों में आया. जब उस पर गैंगस्टर अरुण गवली के करीबी पॉल न्यूमैन की हत्या में अहम भूमिका निभाने का आरोप लगा.
दाऊद के बहनोई की हत्या का बदलाइंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 26 जुलाई 1992 को नागपाड़ा की अरब गली में दाऊद के बहनाई इस्माइल पारकर की हत्या कर दी गई. हत्याकांड में पहली बार AK-47 और 9 MM पिस्टल का इस्तेमाल हुआ. आरोप प्रतिद्वंद्वी अरुण गवली गैंग पर लगा. दाऊद ने इस हत्या का बदला लेने की ठानी. और इसकी जिम्मेदारी सुभाष ठाकुर को सौंपी गई.
गिरफ्तारी के बाद पुलिस को दिए गए बयान में सुभाष ठाकुर ने बताया कि गैंगस्टर सुनील सावंत ने उसे मुंबई बुलाया था. 11 सितंबर 1992 को उसे बताया गया कि दाऊद इब्राहिम के बहनोई की हत्या का एक आरोपी जेजे अस्पताल में भर्ती है और उसे खत्म करना है.
सुनील सावंत सीधे दाऊद इब्राहिम के संपर्क में था. ठाकुर ने योजना बनाया कि वह अपने साथियों के साथ अस्पताल पहुंचेगा. वहां बंदूक की नोक पर पुलिस गार्ड को बंधक बनाकर उनके हथियार छीन लेगा और फिर वार्ड के अंदर हत्या को अंजाम देकर निकल जाएगा. पुलिस की मौजूदगी का जायजा लेने के लिए देर रात रेकी की गई. रेकी में पता चला कि ड्यूटी पर केवल एक कॉन्स्टेबल मौजूद था.
12 सितंबर की सुबह लगभग 3.30 बजे ठाकुर और उसके साथी दो कार में सवार होकर जेजे अस्पताल पहुंचे. ठाकुर के पास 9 MM पिस्टल थी. जबकि दूसरे साथियों के पास पिस्टल, रिवॉल्वर और AK-47 जैसे हथियार थे. इनके पहुंचते ही पुलिस ने वार्ड का दरवाजा बंद कर दिया. ठाकुर को लगा कि उसकी योजना फेल हो गई. उसने अपने साथियों को पीछे हटने के लिए कहा.
लेकिन तब तक अस्पताल परिसर के अंदर गोलीबारी शुरू हो गई. ठाकुर का दावा था कि पुलिसवालों ने अलग-अलग जगहों से गोलियां चलाई जिसके बाद उसके साथियों ने जवाबी फायरिंग की. और वार्ड के अंदर पहुंच गए. वार्ड के अंदर हुई गोलीबारी में दाऊद के बहनोई की हत्या का आरोपी शैलेश हलदंकर मारा गया. इसके साथ ही उसकी सुरक्षा में तैनात दो पुलिसकर्मी (हेड कॉन्स्टेबल गजानन जावसेन और कवल सिंह भानावत) भी मारे गए. इस हत्याकांड के कुछ दिनों बाद सुभाष ठाकुर मुंबई से फरार होकर दिल्ली पहुंचा और फिर वहां से दूसरी जगह निकल गया.
छोटा राजन से भी हुई अदावतसाल 1992 में हुए मुंबई विस्फोट के बाद दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन गैंग में अलगाव हो गया. और दोनों गुटों ने एक दूसरे गुट से जुड़े लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. इसी अदावत में छोटा राजन गैंग ने किम बहादुर थापा की हत्या कर दी. पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, राजन के तीन साथी संजय रग्गड़, दिवाकर चूरी और अमर जुकर थापा की हत्या में शामिल थे.
किम बहादुर थापा दाऊद के करीबी थे. वहीं सुभाष ठाकुर थापा का शागिर्द था. हालांकि साल 1992 ब्लास्ट के बाद ठाकुर के रास्ते भी दाऊद से अलग हो गए थे. लेकिन उसने अपने गुरु की हत्या का बदला लेने की ठानी. कुछ दिन बाद थापा की हत्या में शामिल तीनों लोगों की नेपाल के एक घर में हत्या कर दी गई. जांच एजेंसियों के मुताबिक इनकी हत्या सुभाष ठाकुर ने ही करवाई थी.
साल 2000 में मिली सजासाल 2000 में मुंबई की एक टाडा कोर्ट ने जेजे अस्पताल गोलीबारी कांड में सुभाष ठाकुर को मौत की सजा सुनाई. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. मुंबई के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बावजूद ठाकुर ने एक स्थानीय केस में ट्रांजिट रिमांड के बहाने अपना ट्रांसफर उत्तर प्रदेश करा लिया. इसके बाद वो एक दशक से ज्यादा समय तक उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद रहा. कोर्ट में बार-बार वो महाराष्ट्र लौटने पर दाऊद इब्राहिम से अपनी जान को खतरा होने का तर्क देते रहा.
हालांकि महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारियों ने साल 2016 में एक बार फिर से ठाकुर को हिरासत में लिया. लेकिन एक और मामले में नाम आने के बाद उसे वापस उत्तर प्रदेश की जेल में भेज दिया गया. बाद में किडनी की बीमारी की शिकायत पर उसे बनारस के BHU अस्पताल में भर्ती कराया गया. लगभग पांच सालों तक ठाकुर अस्पताल के वार्ड में रहा. बाद में उसके स्वास्थ्य की जांच के लिए 12 सदस्यीय पैनल बनाया गया. पैनल ने निष्कर्ष निकाला कि ठाकुर को अब अस्पताल में रहने की आवश्यकता नहीं है. फिर उसे जनवरी 2025 में फतेहगढ़ जेल में भेज दिया गया.
सुभाष ठाकुर के केस की जांच करने वाले कुछ रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों की माने तो वह उत्तर प्रदेश में ही रहना चाहता था क्योंकि महाराष्ट्र की तुलना में यहां से ऑपरेट करना उसके लिए आसान था. पुलिस का आरोप है कि यहां से वह मुंबई के बिल्डरों और व्यापारियों को धमका कर जबरन वसूली करता था. उत्तर प्रदेश की जेल और अस्पताल के वार्ड से उसने ठाणे के कुछ जिलों में अपना दबदबा बना लिया था. साल 2022 में वसई में हुए एक बिल्डर की हत्या के सिलसिले में ही उसे वापस महाराष्ट्र लाया गया है.
बृजेश सिंह को दिया संरक्षणसुभाष ठाकुर को पूर्वांचल में कई बाहुबलियों का संरक्षक माना जाता है. इसमें माफिया से माननीय बने बृजेश सिंह का नाम भी शामिल है. 1990 के दशक में मुख्तार अंसारी और पुलिस की दबिश से बचने के लिए बृजेश सिंह मुंबई पहुंचे. यहां वो सुभाष ठाकुर के संपर्क में आए, जिसने उनको दाऊद इब्राहिम से मिलवाया. बृजेश के अलावा मुख्तार अंसारी का शागिर्द रहे मुन्ना बजरंगी से भी सुभाष ठाकुर की नजदीकियां रही हैं. वहीं मुख्तार और अतीक अहमद जैसे नाम भी उससे दुश्मनी मोल लेने से बचते थे.
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