The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • Citing the name of Haren Pandya, New Delhi CM Arvind Kejriwal attacks Narendra Modi and Amit Shah while exhorting his own legislators to be prepared for more attacks and arrests

हरेन पंड्या मर्डर की पूरी कहानी जिसका इल्ज़ाम अमित शाह, नरेंद्र मोदी पर आया

कई थ्योरीज प्रकट हुईं और आगे फर्जी एनकाउंटर की सीरीज को इससे जोड़ा गया, आज इस केस की सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई होनी है.

Advertisement
Img The Lallantop
फोटो - thelallantop
pic
कुलदीप
5 जुलाई 2019 (Updated: 5 जुलाई 2019, 06:14 AM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
जम्हूरियत वो तर्जे हुकूमत है, जहां मुर्दों को जलाया नहीं करते, गाड़ा करते हैं.
ताकि वक्त पड़ने पर उन्हें उखाड़ा जा सके. और कभी-कभी वे खुद कब्र खोदकर बाहर निकल आएं. 2016 के जून की बात है. तब गुजरात पर नजरें जमाए अरविंद केजरीवाल ने हरेन पंड्या का भूत आजाद कर दिया था. क्यों? क्योंकि ये नाम (हरेन पंड्या) आज भी मोदी और शाह की जोड़ी के लिए अप्रिय है.
उन्हीं गुजरात चुनाव के दिनों में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में बैठकर कही और निशाना गुजरात में लगा. बोले-
किसी ने मुझसे कहा, केजरीवाल जी आप बहुत लकी हो. मैंने पूछा क्यों. तो वो बोले, आपको तो जेल ही भेज रहे हैं. नहीं तो गुजरात में तो हरेन पंड्या की तरह आपका पत्ता ही साफ कर सकते थे.

# क्या कहना चाहते थे केजरीवाल? कौन थे हरेन पंड्या? क्या हुआ था उनके साथ?

2003 के गुजरात में लौटना होगा. 2002 दंगों के बाद बीजेपी को बड़ी जीत मिली थी और नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बने दो साल हो गए थे. केशुभाई पटेल से लेकर गुजरात बीजेपी के बाकी बुजुर्ग साइडलाइन थे. तय हो चुका था कि गुजरात में भाजपाई झंडा चलेगा तो उस पर नरेंद्रभाई का ही नाम होगा.
हरेन पंड्या.
हरेन पंड्या.

लेकिन केशुभाई का एक सिपहसालार और था. एंटी नरेंद्रभाई लॉबी का सबसे बड़ा चेहरा. लंबा-चिट्टा, ब्राह्मण परिवार का हरेन पंड्या, जिसकी ब्राह्मणों से भरी 'बीजेपी आलाकमान' तक पहुंच थी. सिर पर RSS का हाथ था.  प्रदेश का पूर्व गृहमंत्री. गुजरात में राजनीति का पुराना अनुभव. मीडिया में अच्छे कनेक्शन.
26 मार्च की तारीख थी. अहमदाबाद के लॉ गार्डन एरिया में मॉर्निंग वॉक के बाद हरेन पंड्या अपनी कार में बैठे थे. तभी दो लोग वहां आते हैं और उन्हें पांच गोलियां मारकर फरार हो जाते हैं. हत्या के वक्त हरेन कार में थे या हत्या कहीं और हुई, इस पर विवाद है.
इस वारदात के छींटे अमित शाह पर आए और इसलिए नरेंद्र मोदी तक भी गए. कागजों पर सीधे नहीं, जुबानी इलजाम के तौर पर ही. कई थ्योरीज प्रकट हुईं और आगे फर्जी एनकाउंटर की सीरीज को इससे जोड़ा गया.

# मोदी से पहली भिड़ंत, तेरी सीट और मेरी सीट

नरेंद्र मोदी से पहले गुजरात बीजेपी में केशुभाई पटेल की चलती थी. हरेन पांड्या उनके खास थे. 1998 की केशुभाई सरकार में वो गृह मंत्री भी थे. लेकिन 2001 में जब नरेंद्रभाई ने केशुभाई से CM की कुर्सी ली तो हरेन पंड्या का भौकाल खत्म होने लगा था. नई सरकार में उन्हें राजस्व मंत्री जरूर बनाया गया था, लेकिन 2003 में उन्होंने ये पद छोड़ दिया था. बाद में डैमेज कंट्रोल के लिए उन्हें बीजेपी की नेशनल एग्जीक्यूटिव में ले लिया गया.
वह केशुभाई पटेल खेमे के थे, इसलिए नरेंद्र मोदी के विरोधी माने जाते थे. केशुभाई तब तक बीमार रहने लगे थे और उनकी तरफ हरेन पंड्या ही बड़े नाम थे.
मोदी और पंड्या पहली बार पब्लिकली भिड़े 2001 में. बीजेपी आलाकमान ने केशुभाई की बीच कार्यकाल में कुर्सी ले ली और नरेंद्र मोदी को CM बना दिया. मोदी चुनाव लड़ने के लिए सेफ सीट की तलाश में थे. उन्होंने अहमदाबाद की एलिसब्रिज सीट पर हाथ रखा, जो हरेन पंड्या की सीट थी. पंड्या इसके लिए तैयार नहीं हुए. मैगजीन कैरेवन ने एक बीजेपी नेता के हवाले से छापा था, 'हरेन का कहना था कि किसी भी नौजवान के लिए ये सीट छोड़ दूंगा, पर उस आदमी के लिए नहीं.'
बताते हैं कि यहीं से दोनों की अदावत शुरू हुई, जिसे RSS और सीनियर बीजेपी नेताओं ने ठंडा करने की कोशिश भी की. 2002 दिसंबर में ही विधानसभा चुनाव थे. दोनों की लड़ाई से पार्टी को नुकसान हो सकता था.

# मिलाप की कोशिश

नवंबर के आखिर में RSS की ओर से मदनदास देवी मोदी से मिलने पहुंचे. वह सर संघचालक केसी सुदर्शन, उनके डिप्टी मोहन भागवत, आडवाणी और अटल का संदेसा लेकर गए थे. जो था, 'बवाल खत्म करो. चुनाव से पहले आपस में मत लड़ो और पंड्या को उनकी सीट दे दो.' लेकिन बताते हैं कि मोदी ने देवी से मुलाकात ही नहीं की. वह जानते थे कि कुछ ही देर में दिल्ली और नागपुर से फोन बजने लगेंगे. इसलिए तड़के 3 बजे वह गांधीनगर सिविल अस्पताल में 'थकान' की शिकायत के साथ एडमिट हो गए.
Photo: Reuters
Photo: Reuters

कैरेवन मैगजीन ने एक बीजेपी नेता के हवाले से छापा था कि हरेन पंड्या को जब ये पता चला तो वो मोदी से भिड़ने सीधे अस्पताल पहुंच गए और कहा, 'कायरों की तरह सोओ मत. हिम्मत है तो मुझसे ना कहो.' लेकिन मोदी हरेन पंड्या को सीट न देने पर अड़े रहे. RSS और बीजेपी नेताओं ने हार मान ली. दो दिन बाद मोदी अस्पताल से छुट्टी लेकर आए और पंड्या की सीट एक नए नेता को दे दी. दिसंबर में चुनाव हुए. 2002 दंगों के बाद भारी ध्रुवीकरण हुआ और नरेंद्र मोदी भारी बहुमत से चुनाव जीते.
अहमदाबाद के आसमान के पुराने पक्षी बताते हैं कि 2002 गोधरा कांड के बाद प्रदेश कैबिनेट की मीटिंग में हरेन पंड्या ही थे, जिन्होंने कारसेवकों की लाशें खुले ट्रक में अहमदाबाद में घुमाने का विरोध किया था. उससे हालात खराब हो सकते थे और बाद में वही हुआ भी. वह इकलौते शख्स थे जो पीड़ितों के परिवार और मुस्लिम नेताओं को बातचीत की टेबल पर ला सकते थे. सरकार उनका इस्तेमाल कर सकती थी, लेकिन उन्हें मीटिंग में चुप करा दिया गया.
खैर. हरेन पंड्या का केस सीबीआई को दिया गया. सालों तक उन्होंने छानबीन की और 12 लोगों को आरोपी बनाया. 2011 में हाईकोर्ट ने सीबीआई की जांच को 'गड़बड़ियों से भरा' बताकर खारिज कर दिया. सारे आरोपियों को मर्डर के आरोप से बरी कर दिया, हालांकि दूसरे छोटे आरोप (आपराधिक साजिश और हत्या की कोशिश) बने रहे.

# सोहराबुद्दीन और तुलसीराम से करवाई गई हत्या?

इसके बाद अखबार DNA ने गुजरात पुलिस सूत्रों के हवाले से एक खबर छापी. इसमें लिखा कि हो सकता है, पंड्या की हत्या में सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम का इस्तेमाल किया गया हो. दोनों बदमाशों को गुजरात पुलिस कथित 'फेक एनकाउंटर' में मार चुकी थी. पुलिस सूत्रों के हवाले से DNA ने लिखा कि पंड्या की हत्या का काम पहले सोहराबुद्दीन को दिया गया था, लेकिन उसके पीछे हट जाने पर तुलसीराम ने इसे अंजाम दिया.
इस सूत्र का कहना था कि बाद के दिनों में असल साजिशकर्ता का सोहराबुद्दीन और तुलसीराम से भरोसा उठने लगा था. 2004 लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में कांग्रेस आ गई थी. इसलिए दोनों राजदारों को जिंदा रखना खतरे से खाली नहीं था.
पूर्व आईपीएस अफसर संजीव भट्ट दावा भी ऐसा ही है. 2003 में वो साबरमती जेल के सुपरिटेंडेंट थे और वहां कैदियों के बीच काफी पॉपुलर हो गए थे. जेल मेन्यू में उन्होंने गाजर का हलवा जैसी चीजें शुरू करवाई थीं. यहां किसी कैदी ने उन्हें बताया कि पंड्या के मर्डर में सोहराबुद्दीन और तुलसीराम का हाथ था.
संजीव भट्ट
संजीव भट्ट

भट्ट ने जब अमित शाह को ये बताया तो संजीव भट्ट के मुताबिक, 'फोन पर उनकी आवाज बहुत डिस्टर्ब लग रही थी. उन्होंने मुझसे कहा कि इस बारे में किसी से न कहूं.' कुछ वक्त बाद भट्ट ने अमित शाह एक चिट्ठी लिखी, जिसमें इस मर्डर में सोहराबुद्दीन और कुछ पुलिसवालों की भूमिका का जिक्र था. भट्ट का तुरंत साबरमती जेल से ट्रांसफर कर दिया गया और बाद में सस्पेंड कर दिया गया. साबरमती जेल से संजीव भट्ट के ट्रांसफर से नाराज करीब 2 हजार कैदी भूख हड़ताल पर चले गए थे और 6 ने अपनी कलाई काट ली थी.

# हरेन पंड्या मर्डर की शुरुआती जांच किसने की थी?

डीजी वंजारा. वही वंजारा जिन पर खुद बाद में इशरत जहां, सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति समेत कई फर्जी एनकाउंटर के आरोप लगे. 2007 से वो जेल में थे और पिछले साल से जमानत पर बाहर हैं. ऐसे वंजारा ने हरेन पंड्या मर्डर की शुरुआती जांच की थी.
जेल से जमानत पर बाहर आने के बाद डीजी वंजारा.
जेल से जमानत पर बाहर आने के बाद डीजी वंजारा. फोटो: रॉयटर्स

डीजी वंजारा अपनी सर्विस के दौरान अमित शाह के करीबी थे. तुलसीराम प्रजापति केस में अमित शाह को 'किंगपिन' बताते हुए सीबीआई ने चार्जशीट बनाई. 2010 में अमित शाह गिरफ्तार कर लिए गए. जेल जाना पड़ा. खैर.

# अब हरेन पंड्या की पत्नी जागृति की बात

जागृति अपने पति की हत्या को राजनीतिक हत्या ही बताती रहीं. बीजेपी से अलग हुए केशुभाई पटेल ने जब गुजरात परिवर्तन पार्टी (GPP) बनाई तो जागृति 2012 का चुनाव अपने पति की सीट एलिसब्रिज से ही लड़ीं. रैलियों में उन्होंने कहा, 'मेरे पति की हत्या राजनीतिक थी. 10 साल से मैं कानूनी लड़ाई लड़ रही हूं, लड़ती रहूंगी.' चुनाव नतीजे आए तो बीजेपी कैंडिडेट ने उन्हें हरा दिया था.
जागृति पंड्या
जागृति पंड्या

2014 में GPP का बीजेपी में विलय हो गया, लेकिन जागृति बीजेपी में नहीं गईं. उन्होंने पॉलिटिक्स ही छोड़ दी. लेकिन जनवरी 2016 में आनंदीबेन सरकार ने उन्हें 'स्टेट कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स' (SCPCR) का चेयरपर्सन बना दिया. इसके बाद जागृति के तेवर मंद पड़ गए.
पद मिलने के बाद जागृति का बयान था, 'पिछले 13 साल में मैंने जो भी स्टैंड लिए, वो केस की जांच को देखते हुए उचित थे. मैं बीजेपी के सिद्धांतों के खिलाफ कभी नहीं थी.' क्या बीजेपी ने आपको पद देने में देर कर दी, पूछने पर उन्होंने कहा, 'मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि पार्टी कभी हरेन पंड्या को नहीं भूली थी.'
कोई भूलेगा भी कैसे? हरेन पंड्या को किसने मरवाया, अब तक नहीं पता चला है. केस इतना लुंज-पुंज हो चुका है कि बहुत उम्मीद भी नहीं है. हरेन पंड्या के नाम की उपयोगिता बस चुनाव भर की है. खैर, ताज़ा खबर ये है कि आज इस केस से संबंधित सीबीआई और गुजरात सरकार की अपीलों पर सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई होनी तय हुई है.


वीडियो देखें:

सुपरफैन अम्मा के लिए ये करेंगे आनंद महिंद्रा-

Advertisement

Advertisement

()