बड़ी खबर : इस दवा ने 6 महीने में कैंसर को एकदम खत्म कर दिया!
ट्रायल कम मरीजों पर हुए, लेकिन बस 6 महीनों में कैंसर को मिटाया और कैंसर लौटा भी नहीं.

मुमकिन है दुनिया को अब कैंसर जैसी डरावनी और दर्दनाक बीमारी से छुटकारा मिल जाए. अमेरिका में कैंसर के 18 मरीजों पर एक नई दवा का ट्रायल हुआ है. जिसके नतीजे चौंकाने वाले हैं. दवाई के इस्तेमाल से ट्रायल में शामिल सभी 18 मरीज पूरी तरह ठीक हो गए. आम तौर पर कैंसर के गंभीर मरीजों में इलाज के कुछ वक़्त बाद दोबारा कैंसर सेल्स पनपने की संभावना बनी रहती है. लेकिन इन मरीजों में न सिर्फ कैंसर का ट्यूमर 100 फ़ीसद रिमूव हो गया, बल्कि कैंसर भी फिर से नहीं हुआ. हालांकि इस ट्रायल में शामिल मरीजों की संख्या बेहद कम है, लेकिन एक्सपर्ट्स इसे मेडिकल साइंस के इतिहास और कैंसर के इलाज में मील का पत्थर बता रहे हैं.
ट्रायल कहां हुआ?साल 1884 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में न्यूयॉर्क कैंसर हॉस्पिटल खुला था. अब इसका नाम है मेमोरियल स्लोन केटेरिंग कैंसर सेंटर. यहां हुआ ट्रायल. दवाई के ट्रायल में कैंसर के मरीज पूरी तरह ठीक हो गए हैं. उन्हें न ही दर्दनाक कीमोथेरेपी से गुजरना पड़ा और न ही किसी तरह की सर्जरी करवानी पड़ी. इस ट्रायल को दवा कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GlaxoSmithKline)ने स्पॉन्सर किया था.
कौन-सी दवाई दी गई?न्यूयॉर्क टाइम्स की एक खबर के मुताबिक़, मरीजों को डॉस्टरलिमेब (Dostarlimab) नाम की दवाई दी गई. ये सभी मरीज रेक्टल कैंसर यानी मलाशय के कैंसर से जूझ रहे थे. डॉस्टरलिमेब का ट्रीटमेंट दिए जाने के बाद, मरीजों का फिजिकल एग्जामिनेशन, एंडोस्कोपी, पॉज़िट्रान एमिशन टोमोग्राफी (जिसे PET भी कहते हैं) और MRI स्कैन भी हुआ. लेकिन इनमें से किसी भी टेस्ट में कैंसर डिटेक्ट नहीं हुआ. सभी मरीज कैंसर से पूरी तरह ठीक हो चुके थे.
दुनिया भर में कैंसर के कितने केस?आपको बता दें कि वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन (WHO) के मुताबिक़ साल 2020 में दुनिया भर में हुईं करीब 1 करोड़ मौतों में से करीब हर छठी मौत के पीछे की वजह कैंसर थी. कैंसर के नए मामलों की बात करें तो सिर्फ साल 2020 में ब्रेस्ट कैंसर के करीब 22 लाख 50,000 से ज्यादा केस, लंग कैंसर के लगभग 22 लाख केस और रेक्टल कैंसर के करीब 19 लाख से ज्यादा केस दुनिया भर में दर्ज हुए थे. ऐसे में अगर डॉस्टरलिमेब दवाई का ट्रायल बड़े पैमाने पर किया जाए और ये सफल रही तो ये 'कैंसर फ़्री वर्ल्ड' सिर्फ एक सुखद कल्पना नहीं रहेगी.
हाल ही में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन में एक डॉक्यूमेंट छपा था. इसके मुताबिक़, मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर (MSKCC)के डॉ. लुईस ए डिएज़ जूनियर कहते हैं कि वो ऐसी किसी दूसरी स्टडी के बारे में नहीं जानते जिसमें इलाज के बाद हर मरीज में कैंसर पूरी तरह ठीक हो गया हो. डॉ. लुईस आगे बोले,
‘मुझे लगता है कि कैंसर के इतिहास में ये पहली बार हुआ है.’
सैन फ्रांसिस्को स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के कोलोरेक्टल कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ. एलन पी. वेनूक (Dr. Alan P Venook)MSKCC की उस टीम का हिस्सा नहीं थे जिसने ये स्टडी और ट्रायल किया है. लेकिन डॉ. एलन कहते हैं,
डॉस्टरलिमेब स्टडी‘हर एक मरीज में पूरी तरह कैंसर ख़त्म हो जाए ऐसा कभी नहीं सुना है.’
MSKCC में जिन मरीजों पर ट्रायल हुआ उन्हें कीमोथेरेपी और रेडिएशन सेशंस देन के बावजूद भी कोई फायदा नहीं था. इनमें से कुछ मरीजों की सर्जरी भी हो चुकी थी. जिसके बाद उन्हें सेक्शुअल डिस्फंक्शन, यूरीनरी ट्रैक्ट की दिक्कतें हो गई थीं, यहां तक कि कुछ मरीजों को मलत्याग के लिए कोलोस्टोमी बैग का इस्तेमाल करना पड़ रहा था. ये सभी मरीज कैंसर के ठीक होने की उम्मीद छोड़ चुके थे इसलिए डॉस्टरलिमेब के ट्रायल का हिस्सा बनने के लिए राजी हो गए. उन्हें उम्मीद थी कि इस ट्रायल के बावजूद भी उनका पुराना इलाज जारी रहेगा.
लेकिन उनके लिए सरप्राइज़ वाली बात तब हो गई जब उन्हें कीमोथेरेपी और रेडिएशन सेशंस से हटा दिया गया. ये भी कह दिया गया कि अब उन्हें सर्जरी की जरूरत नहीं होगी. कैंसर के मरीजों में इलाज के जो तरीके अभी तक चल रहे हैं. उनके बाद शरीर के बाल झड़ने जैसी तमाम बड़ी-छोटी दिक्कतें होती हैं. लेकिन इन मरीजों को डॉस्टरलिमेब दवाई के प्रभाव से कोई पोस्ट-ट्रीटमेंट कॉम्प्लीकेशंस नहीं हुए. इतना ही नहीं, ट्रायल खत्म होने के 25 महीने बाद भी मरीजों में कैंसर के दोबारा पनपने के कोई संकेत नहीं मिले. ऑन्कोलॉजिस्ट और MSKCC में हुई इस स्टडी के को-ऑथर डॉ. एंड्रिया सर्सेक (Dr Andrea Cercek)बोले कि लोगों की आंखों में खुशी के आंसू थे.
डॉस्टरलिमेब ने कैसे काम किया?मरीजों को 6 महीने तक हर तीन हफ़्ते डॉस्टरलिमेब दी गई. मेडिकेशन इसलिए दी गई ताकि कैंसर सेल्स की पहचान हो सके और रोगी के शरीर का प्रतिरोधी तंत्र उन कोशिकाओं को पहचान कर नैचुरली उन्हें खत्म कर सके. सामान्य तौर पर इन दवाइयों के इस्तेमाल से रोगियों पर विपरीत प्रभाव भी पड़ते हैं. लेकिन डॉस्टरलिमेब की स्टडी में शामिल रोगियों को इससे कोई दिक्कत नहीं हुई. सभी 18 मरीज जिन पर इस दवा का ट्रायल किया गया उनमें रेक्टल कैंसर बढ़ चुका था. ट्यूमर मलाशय के अंदर फ़ैल चुका था. कुछ केस ऐसे भी थे जिनमें कैंसर लिम्फ नोड्स तक फ़ैल गया था.
आगे क्या संभावना है?नॉर्थ कैरोलिना के लाइनबर्गर कॉम्प्रीहेन्सिव कैंसर सेंटर में काम कर रहे डॉ. हाना के. सैनॉफ़ (Dr Hanna K Sanoff)ने कहा कि बेशक परिणाम उत्साहित करने वाले हैं लेकिन अभी ये साफ़ नहीं है कि रोगी पूरी तरह से ठीक हो गए हैं या नहीं. डॉ. हाना ने एक अखबार की संपादकीय में लिखा,
"अभी उस टाइम ड्यूरेशन के बारे में बहुत कम पता है, जिसके बाद ये तय हो सके कि डॉस्टरलिमेब रोग के पूर्ण निदान के बराबर है."
अगर भविष्य में डॉस्टरलिमेब बड़े पैमाने पर इस्तेमाल में लाए जाने के लिए अप्रूव होती भी है तो ये सस्ती नहीं होगी. ट्रायल के दौरान ही एक मरीज पर इसके इस्तेमाल में करीब 8 लाख, 50,000 रूपए से ज्यादा का खर्च आया है.
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