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इंडियन साइंटिस्ट जिसकी वजह से हम सभी कैसेट और सीडी में गाने सुन पाए

प्रवीण चौधरी. आज बड्डे है.

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केतन बुकरैत
30 नवंबर 2016 (Updated: 30 नवंबर 2016, 11:55 AM IST) कॉमेंट्स
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प्रवीण चौधरी. 30 नवंबर 1937 को लुधियाना में जन्मे. 1961 में अमरीका चले गए. मटीरियल फ़िज़िक्स को अनुगृहीत करने. प्रवीण चौधरी IBM में रिसर्च डिवीज़न में काम करते थे. इसका हेडक्वार्टर न्यू यॉर्क में था. IBM में प्रवीण ने 36 साल काम किया. इसमें उन्हें फिज़िकल साइंस डिपार्टमेंट में 1970 में मैनेजर बनाया गया. इसके बाद IBM में उन्हें कई पोजीशंस मिलीं. इस दौरान उन्होंने फिज़िकल साइंस में मैग्नेटिक बबल, ऑप्टिकल रिकॉर्डिंग और जोसेफ़सन टेक्नोलोजी प्रोग्राम पर काम किया. प्रवीण चौधरी की सभी डिस्कवरी में अगर एक चीज जिसने आम जन मानस को सबसे ज़्यादा अफेक्ट किया है वो है मैग्नेटो-ऑप्टिक डेटा स्टोरेज सिस्टम में इस्तेमाल आने वाली मैग्नेटिक फ़िल्म्स. यानी ऐसी फ़िल्म्स जिसपर डेटा स्टोर किया जा सकता था. ऐसी फ़िल्म्स को ही सीडी और फ्लॉपी बनाने में काम में लिया जाता था. इस फ़िल्म से फ़िल्म और म्यूज़िक इंडस्ट्री में सबसे ज़्यादा बदलाव आया. आज भले ही हार्ड डिस्क और क्लाउड का ज़माना आ गया है लेकिन 5 साल पहले जब सीडी और डीवीडी का दौर था, हम सभी प्रवीण चौधरी के कर्ज में दबे हुए थे. हालांकि प्रवीण चौधरी न होते तो हार्ड डिस्क भी न आई होती. आई होती तो तनिक देर में आई होती. हम अभी भी कैसेट में पेन घोंस के रील रिवाइंड कर रहे होते. ऐसी फ़िल्म्स में दो लेयर होती हैं. एक रिकॉर्डिंग लेयर होती है. दूसरी फालतू होती है. फल्तून नहीं बस प्रोटेक्शन के लिए होती है. और कोई काम नहीं. ऐसी फ़िल्म्स पर रिकॉर्डिंग हेड से डेटा ठेला जाता है. रिकॉर्डिंग हेड रिकॉर्डिंग लेयर पर बने सेक्टर्स में डेटा भरता है. इससे फ़ायदा ये होता है कि आप डेटा ढूंढते टाइम कम टाइम खर्च करते हैं. CD-Sector2 पहले कैसेट होती थीं. उनमें कोई गाना बजाना होता था तो उसे आगे या पीछे बढ़ाना पड़ता था. ये भी एक मैग्नेटिक फिल्म ही होती थी लेकिन उसमें सेक्टर्स नहीं बंटे होते थे. मगर जब सीडी आई तो आप गानों को आगे पीछे कम देर में करने लगे. अगले गाने पर जाने के लिए चल रहे गाने को पूरा नहीं सुनना पड़ता था. बस नेक्स्ट का बटन दबाओ. खतम. ये सब कुछ मैग्नेटिक फिल्म पर बने सेक्टर्स की बदौलत. इन्हीं फ़िल्म्स का ईजाद किया था प्रवीण चौधरी ने.

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