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बाइडन के बयान से यूरोप में खलबली!

Ukraine को Korea बना देना चाहते हैं Putin?

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यूरोप दौरे पर पुतिन पर जमकर बरसे थे जो बाइडेन (फोटो: AFP)
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कमल
28 मार्च 2022 (Updated: 28 मार्च 2022, 05:19 PM IST)
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21 जनवरी 2007 की एक दोपहर. बुचारोव रोची में एक ख़ास मीटिंग चल रही है. बुचारोव रोची यानी रूस के राष्ट्रपति का गर्मियों का आवास. आमने-सामने हैं यूरोप के दो दिग्गज. जर्मनी की चांसलर अंगेला मर्कल और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन. यूरोप और रूस के बीस मामला हमेशा की तरह कभी नीम-नीम, कभी शहद-शहद है. और सिर्फ दो साल पहले चांसलर बनी मर्कल पूरी तैयारी से आई हैं. लेकिन पुतिन फिर पुतिन हैं. मीटिंग की तैयारी पूरी हो चुकी है. सामने कुर्सियों पर दोनों राष्ट्राध्यक्ष बैठे हुए हैं. और सामने हैं पत्रकार दीर्घा. बातचीत शुरू होने से ठीक पहले पुतिन एक इशारा करते हैं. और मीटिंग में एंटर होता है ख़ास मेहमान. इस ख़ास मेहमान का नाम है कोनी. इधर-उधर एक निगाह डालने के बाद कोनी सीधे बढ़ता है मर्कल की तरफ. मर्कल के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती हैं. मीटिंग की सारी बातचीत एक तरफ और मर्कल का चेहरा एक तरफ. अगले दिन अखबारों में मर्कल के डरे चेहरे वाली तस्वीर छपती है. और इस एक तस्वीर से पुतिन यूरोप तक अपना सन्देश पहुंचाने में कामयाब हो जाते हैं. उत्तर प्रदेश का ज़िला आजमगढ़. यहां एक गांव है खानपुर बोहना. 18वीं सदी में इस गांव में एक संत हुए. भीखा साहिब. उनका एक दोहा बड़ा परसिद्ध है भीखा बात अगम की कहन सुनन की नाही जो जाने सो कहे नहीं जो कहे सो जाने नाही कबीर से लेकर जितने सूफी संत हुए. एक, एक, सिर्फ एक कहते रहे. एक ही है, दूसरा नहीं है. और जो है उसके बारे में कहा नहीं जा सकता. वेदों ने भी कहा, एकम सत. यानी सत्य एक है. लेकिन साथ में एक बात और जोड़ी. विप्रा बहुधा वदन्ति. यानी सत्य चाहे एक ही हो. लेकिन ज्ञानी जन उसे अलग-अलग प्रकार से कहते हैं. अलग-अलग प्रकार से कहने की विधा के लिए ही भाषा में मुहावरे गढ़े गए. और आज दुनियादारी में हम अंतर्राष्ट्रीय जगत की खबरों को जानने के लिए ऐसे ही दो मुहावरों का सहारा लेंगे. साथ ही बताएंगे दो भाषणों के बारे में. जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय जगत में सुर्खियां बनाई. पहला मुहावरा - ‘डॉग इन द फाइट’. अंग्रेज़ी के इस मुहावरे का आशय है, किसी लड़ाई में आपका स्टेक क्या है. हिंदी में कहें तो, तेरा इस लड़ाई में क्या लेना देना है. काहे फटे में टांग अड़ा रहा है. इसी मुहावरे से जुड़ी पहली कहानी थी कोनी की. जो हमने आपको शुरुआत में सुनाई. कोनी, दरअसल नाम था पुतिन के लेब्राडोर कुत्ते का. साल 2007 में मीटिंग के दौरान जब पुतिन ने मर्कल के सामने कोनी को बुलाया, तो इस बात के खास मायने थे. बचपन में एक बार किसी कुत्ते ने मर्कल को काट लिया था. इसलिए मर्कल कुत्तों से बहुत डरती थीं. पुतिन को इस बात का अच्छे से पता था. लेकिन उन्होंने जानबूझकर कोनी को मर्कल के सामने पेश किया और उसके बाद तंज भरे लहजे में कहा,
“वो तुम्हें परेशान तो नहीं कर रही है न!”
पुतिन के इस व्यवहार पर बाद में मर्कल ने कहा था, “मुझे पता है पुतिन ने ऐसा क्यों किया. ये जतलाने के लिए कि वो मर्द हैं. वो अपनी कमजोरी से डरते हैं. रूस के पास कुछ नहीं है, न पॉलिटिक्स न इकॉनमी. उसके पास दिखाने के सिर्फ यही है.” रूस यूक्रेन युद्ध की ख़बरों के बीच एक सवाल से आप कई दफा रूबरू हुए होंगे. पुतिन अगला कदम क्या उठाने वाले हैं. उनके दिमाग में चल क्या रहा है? इस मामले में पुतिन की मानसिकता की जितनी विवेचनाएं पढ़ेंगे या सुनेंगे. इस घटना का जिक्र जरूर सुनेंगे. साल 2014 में न्यू यॉर्क टाइम्स में पुतिन की साइकोलॉजिकल प्रोफ़ाइल छपी थी. तब भी इस घटना का ख़ास जिक्र किया गया था. ताकि समझा जा सके के पुतिन किस प्रकार से सोचते हैं. उनके लिए जरूरी है शक्ति का प्रदर्शन. यूं तो रूस नाटो से शक्ति में एक दहाई से भी कम है. लेकिन जिस प्रकार लड़ाई में सबसे छोटा कुत्ता, सबसे तेज़ भौकता है. उसी प्रकार पुतिन का मानना है क शक्ति का प्रदर्शन होते रहना चाहिए. आग के लिए पानी का डर बना रहना चाहिए. यहां पर एंट्री होती है पहले भाषण की. शनिवार 26 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन पोलेंड पहुंचे थे. अपने तीन दिवसीय दौरे के दौरान बाइडन शरणार्थियों से मिले. और इस दौरान उन्होंने पुतिन को ‘कसाई’ कहा. बात बड़ी थी. लेकिन फिर भी उतनी बड़ी खबर नहीं बनी. ये सब सुनने के पुतिन आदि हैं. लेकिन उसी रोज़ बाइडन ने पुतिन को लेकर कुछ ऐसा कह दिया कि EU से लेकर अमेरिका तक हंगामा मच गया. अमेरिका, यूरोप, यूक्रेन या नाटो की बात हो तो जिक्र होता है. उनकी ताकत का. अलग-अलग हिस्सों का. उनके बीच समन्वय का. व इन देशों की ताकत का. लेकिन रूस की बात होते ही सारा मामला ठहर जाता है पुतिन पर. जेलेंस्की के बयानों पर गौर करें तो वो बार-बार रूस पर शब्द बाण चलाते रहे हैं. लेकिन पुतिन के बारे में कमोबेश सीधे कुछ नहीं कहते. पॉलिटिक्स में इसे वोल्डेमॉर्ट एफेक्ट का नाम दिया जाता है. यानी ऐसा नेता या ऐसी चीज जिसका नाम लेने से सभी बचते हैं. एक अनजाने डर से. पोलेंड में अपने भाषण में इस डर से पार पाने के चक्कर में बाइडन कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गए. ऐसे मौकों पर अक्सर पहले से नियत भाषण दिया जाता है. ताकि कोई गलत बात न निकल जाए. ऐसा ही भाषण पोलेंड में देने के लिए भी तैयार किया गया था. और इसमें शामिल थीं, वो सब बातें जो कमोबेश एक्स्पेक्टेड थीं. रूस की कड़ी निंदा, आजादी vs ऑटोक्रेसी की लड़ाई, नाटो का एक होना, आदि बातें. लेकिन भाषण में जिस लाइन पर सबसे खबर बनी, वो आधिकारिक भाषण का हिस्सा ही नहीं थी. वो लाइन थी,
For God’s sake, this man cannot remain in power यानी ईश्वर के लिए, ये आदमी सत्ता में नहीं रह सकता.
बाइडन के भाषण के इन 9 एक्स्ट्रा शब्दों ने पूरे यूरोप में हंगामा खड़ा कर दिया. कोल्ड वॉर के दिनों में जब सोवियत संघ और अमेरिका के बीच टेंसन सबसे हाई था. तब भी किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने कभी ये नहीं कहा कि वो सोवियत राष्ट्राध्यक्ष को सत्ता से हटाना चाहते हैं. सोवियत संघ या रूस ने भी कभी ऐसा कुछ नहीं कहा. कॉमन सेन्स से समझा जा सकता है कि भावावेश में बहकर बाइडन ये कह गए थे. लेकिन यूरोपियन यूनियन के देश पुतिन की मानसिकता समझते हैं. पुतिन की सत्ता पर हमला लाइन क्रॉस करने सरीखी बात थी. इसलिए बाइडन के बयान के तुरंत बाद नाटो सदस्य देशों का स्पष्टीकरण आया. जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने कहा,
“रूस में सत्ता परिवर्तन न ही नाटो का लक्ष्य है और न ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का”
शॉल्त्स ने आगे कहा, ‘‘हम दोनों पूरी तरह से सहमत हैं कि जिस नीति का पालन हम कर रहे हैं, उसका उदेश्य रूस में सत्ता परिवर्तन कतई नहीं है” यह पूछे जाने पर कि क्या बाइडन ने यह टिप्पणी कर कोई भारी भूल की है, इस पर शॉल्त्स ने जवाब दिया, ‘‘नहीं.’’ शॉल्त्स ने आगे कहा, ‘‘उन्हें (बाइडन) जो कहना था उन्होंने कह दिया.’’ बाइडन के बयान की गंभीरता आप इस बात से समझ सकते हैं. जो जर्मनी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार रक्षा खर्च में बढ़ोतरी कर रहा है. और जर्मन सरकार ‘आयरन डोम’’ की तर्ज पर एक मिसाइल रक्षा कवच प्राप्त करने पर भी विचार कर रही है. वो किसी भी हाल में पुतिन के खिलाफ सीधे तौर पर कुछ भी कहने से बचना चाहती है. अमेरिका ने भी तुरंत इस बयान पर सफ़ाई दी. व्हाइट हाउस ने स्पष्टिकरण देते हुए कहा, बाइडन रूस में सत्ता परिवर्तन पर चर्चा नहीं कर रहे थे. बल्कि यह कहना चाह रहे थे कि पुतिन अपने पड़ोसी देशों में सत्ता पर काबिज़ नहीं हो सकते. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के इस बयान के बाद रूस की भी प्रतिक्रिया आई. क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने इस बयान पर कहा, 'पुतिन राष्ट्रपति रहने लायक हैं या नहीं, यह तय करने का अधिकार बाइडन को नहीं है. रूस का राष्ट्रपति रूसियों द्वारा चुना जाता है और पुतिन को जनता ने ही चुना है.' यूरोपियन यूनियन के एक दूसरे बड़े मेंबर फ़्रांस ने सीधे तौर पर बाइडन के बयान की आलोचना की. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा,
“हम क्यीव और मॉस्को के बीच डिप्लोमेटिक रास्तों से शान्ति की कोशिश कर रहे हैं. और अगर हम ऐसा चाहते हैं तो हम अपने एक्शन या शब्दों से स्थिति को और ख़राब नहीं कर सकते.”
पोलेंड में बाइडन के भाषण के लिए अलावा एक इंटरव्यू ने भी खबर बनाई. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने एक इंटरव्यू दिया. जेलेंस्की लगातार बयान देते रहे हैं. लेकिन इस इंटरव्यू की ख़ास बात ये थी कि ये रूस के पत्रकारों को दिया गया था. युद्ध शुरू होने के बाद से जेलेंस्की का रूसी पत्रकारों के साथ ये पहला इंटरव्यू था. ज़ूम पर चले इस 90 मिनट के इंटरव्यू में जेलेंस्की ने रूस की सैन्य रणनीति पर बात की. साथ ही यूक्रेनी नागरिकों की दयनीय स्थिति के बारे में बताया. लेकिन पहली बार जेलेंस्की ने एक ऐसे शब्द का उपयोग किया जो जंग के बीच शांति की कुंजी साबित हो सकता है. ये शब्द था, न्यूट्रल. पत्रकारों से बातचीत में जेलेंस्की ने कहा कि यूक्रेन न्यूट्रल स्थिति की डिमांड पर विचार कर रहा है. जेलेंस्की के इस बयान का ख़ास महत्व है. क्योंकि पहली बार यूक्रेन रूस की किसी मांग पर सहमति जताता दिख रहा है. युद्ध से शुरुआत से ही पुतिन की ये मांग थी कि यूक्रेन एक न्यूट्रल स्थिति अपनाए. कुछ-कुछ फ़िनलैंड और स्वीडन की तर्ज़ पर. ज़ेलेन्स्की ने ये तक कहा कि वो डॉनबास पर भी समझौता करने को तैयार है. डॉनबास पूर्वी यूक्रेन का वो इलाका है, जहां साल 2014 से रूस समर्थक अलगाववादियों और यूक्रेन सैनिकों के बीच झड़प जारी है. न्यूट्रल स्टेटस अपनाने के लिए जेलेंस्की ने कुछ शर्ते भी रखी हैं. पहली शर्त ये कि यूक्रेन को सिक्योरिटी गॉरन्टी मिले. साथ ही जेलेंस्की ने ये मांग रखी है कि समझौता तीसरी पार्टी की देख रेख में हो. न्यूट्रल स्थिति अपनाने पर यूक्रेन के लिए नाटो के रास्ते बंद हो जाएंगे. जेलेंस्की का ये बयान वर्तमान वस्तुस्थिति को देखते हुए दिया गया है. उनके लिए चुनाव करना कठिन होता जा रहा है. नाटो से कितनी मदद मिल पाएगी, इसमें संदेह है. और रूस जल्द ही यूक्रेन के एक बढ़े शहर मारियुपोल पर कब्ज़ा कर सकता है. ऐसा होते ही रूस ‘ब्लैक सी’ से सटे यूक्रेन के 80 फ़ीसदी तटीय क्षेत्रपर कब्जा कर लेगा. इस क्षेत्र से ही यूक्रेन बाकी दुनिया से व्यापार कर पाता है. इसलिए मारियुपोल पर कब्ज़ा होते ही यूक्रेन दुनिया से कट जाएगा. साथ ही मारियुपोल पर कब्ज़ा होते ही रूस जमीनी रास्ते से क्रीमिया तक एक पुल बना लेगा. और क्रीमिया पर उसकी पकड़ और मजबूत हो जाएगी. रूस के करीब 6 हजार सैनिक इस इलाके में फंसे हैं. जो मारियुपोल पर कब्जे के साथ ही डॉनबास तक पहुंच सकेंगे. जैसा कि पहले बताया था, डॉनबॉस में रूस समर्थक अलगाववादी यूक्रेनी सैनिकों से लड़ रहे हैं. और रूस चाहता है कि मारियुपोल जीतकर वो अपने सैनिकों को डॉनबास पहुंचाए. ताकि जल्द से जल्द डॉनबास भी कब्ज़े में आ जाए. अब वक्त है दूसरी कहावत का. जो पूर्वी यूरोप में दूसरे विश्व युद्ध के बाद खासी प्रसिद्ध हुई थी. अमेरिका को बुलाओगे, अमेरिका आएगा रूस को बुलाओगे, रूस आएगा. और किसी को नहीं बुलाओगे, तो भी रूस ही आएगा यूक्रेन और रूस के बीच दो बार समझौता हो चुका है. पहली बार तब जब सोवियत संघ का विघटन हुआ था. तब यूक्रेन ने सारे न्यूक्लियर हथियार रूस को सौंप दिए थे. और बदले में रूस ने वादा किया था कि वो यूक्रेन की स्वायत्ता बरक़रार रखेगा. ऐसा ही एक समझौता 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्ज़े के बाद हुआ था. दोनों ही समझौते धरे के धरे पड़े रहे और रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया. ऐतिहासिक पैटर्न को भविष्य के ग्राफ पर प्लाट करें तो यूक्रेन के लिए रूस पर भरोसा करना मुश्किल है. लेकिन उनके पास कोई चारा नहीं है क्योंकि भविष्य में क्या होगा, ये चिंता करने के लिए भी यूक्रेन को पहले वर्तमान में सर्वाइव करना होगा. सोवियत संघ के विघटन को पिछली सदी की सबसे बड़ी त्रासदी बताने वाले पुतिन आगे किस राह चलते हैं. ये भी देखने लायक होगा. यूक्रेन आर्मी के सैन्य प्रमुखों की माने तो रूस का इरादा यूक्रेन को कोरिया बना देने का है. आज का कोरिया नहीं. बल्कि 1945 का. जब कोरियन पेनिनसुला को दक्षिण और उत्तर कोरिया में बांट दिया गया था. यूक्रेन के सैन्य खुफिया प्रमुख किरिलो बुडानोव ने ऐसा दावा किया है. बुडानोव के अनुसार पुतिन पूरे यूक्रेन पर कब्ज़ा बनाए रखने की स्थिति में नहीं हैं. ऐसे में उनके लिए कोरिया जैसी स्थिति आदर्श रहेगी. जहां वो यूक्रेन को पूर्वी हिस्से को एक अलग राज्य की तरह खड़ा करेंगे. और ये राज्य नाटो और रूस के बीच बफर ज़ोन की तरह काम करेगा. जंग की खबरों के बीच शांति के प्रयास भी जारी हैं. यूक्रेन और रूस के बीच पहले दौर की चर्चा में कुछ ठोस हासिल नहीं हो पाया था. इसलिए दोनों देश अब दूसरे दौर के बातचीत की तैयारी कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि दूसरे दौर की बातचीत तुर्की में होगी. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के एक बयान के अनुसार दोनों देशों के बीच 4 बिंदुओं पर सहमति बन चुकी है. ये चार बिंदु हैं, यूक्रेन का नाटो से बाहर रहना, यूक्रेन में रूसी भाषा बोलने की आजादी, सुरक्षा की गॉरन्टी और निरस्त्रीकरण, यानी यूक्रेन अपने यहां कोई भी हथियार तैनात नहीं करेगा. अब चलते हैं दुनियादारी में आज की दूसरी बड़ी खबर पर. जो बेस्ड है एक दूसरे भाषण पर. जो हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में दिया गया. दिया, पाकिस्तान ने ‘वर्तमान’ प्रधानमंत्री इमरान खान ने. अब आप कहेंगे वर्तमान पर इतना जोर क्यों दे रहे हैं. तो पहले तो, वर्तमान पर जोर दिया ही जाना चाहिए. दूसरा, आसार ऐसे बन रहे हैं कि प्रधानमंत्री इमरान के नाम के आगे कभी भी पूर्व लग सकता है. दुनियादारी के पिछले कुछ एपिसोड से हम आपको लगातार पाकिस्तान में चल रह राजनैतिक घटनाक्रम से अवगत करा रहे हैं. पाकिस्तान की संसद में विपक्षियों ने 08 मार्च को प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव की चिट्ठी पहुंचाई गई थी. शुरुआत में लग रहा था आर्मी के वरद हस्त तले इमरान की सत्ता को कोई खतरा नहीं होगा. लेकिन घटना क्रम में आ रहे नित नए बदलावों से ऐसे हालत दिखने लगे हैं कि कप्तान की कुर्सी इस बार सचमुच खतरे में है. पहले तय हुआ था कि 25 मार्च को अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होगी. फिर इसे दो दिन आगे के लिए टाल दिया गया. यानी संभावना थी कि आज ही अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होती. ऐसा हुआ तो नहीं, लेकिन इसकी आशंका में इमरान ने रविवार 27 मार्च की शाम इस्लामाबाद में एक रैली की. इस रैली को अविश्वास प्रस्ताव से पहले शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा था. साथ ही आशंका जताई जा रही थी कि इमरान इस रैली में इस्तीफ़े की घोषणा भी कर सकते हैं. इस बात के संकेत भी मिले, जब रैली से पहले इमरान खान के आधिकारिक यूट्यूब चैनल का नाम, प्राइम मिनिस्टर ऑफिस से बदलकर इमरान खान कर दिया गया. 95 मिनट की इस मैराथन स्पीच में इमरान ने क्या कहा, ये जानने से पहले पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार नजम सेठी का ये ट्वीट देखिए. हिंदी में तर्जुमा करें तो नजम ने कहा,
“इमरान खान ने आज 95 मिनट तक पूरे पाकिस्तान पर जो जुल्म किया है. सिर्फ उसी के लिए उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए.”
इसके पिछले ट्वीट में नजम ने लिखा,
“लोग मुझसे वो सीक्रेट लेकर साझा करने को कह रहे हैं. उसके लिए उन्हें गूगल कर लेना चाहिए"
जिस सीक्रेट लेटर की बात नजम कर रहे थे. दरअसल इमरान की स्पीच में उसका जिक्र किया गया था. इस्लामाबाद में इकट्ठा हुई बेहिसाब भीड़ के आगे इमरान ने विपक्षियों पर निशाना साधने का एक मौक़ा नहीं छोड़ा. सबसे पहले विदेशी ताकतों पर निशाना साधा. और कहा,
“मेरे ख़िलाफ़ साज़िश बाहर से हो रही है, मुझे हटाने के लिए बाहर का पैसा इस्तेमाल किया जा रहा है.”
इसके बाद इमरान ने विपक्षियों पर निशाना साधा. बोले ,
“ये जो तीन चूहे इकठ्ठा हुए हैं. ये तीस साल से मुल्क को लूट रहे हैं. ये तीन चूहे, इनके विदेशी बैंकों में खाते हैं, इनका पैसा डॉलर में हैं."
तीन चूहों से इमरान का आशय, विपक्ष के तीन नेता,पीडीपी (पाकिस्तान डेमोक्रेटिक पार्टी) के फज़ल उर रहमान, PML-N (पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़) के शाहबाज़ शरीफ़ और PPP पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के आसिफ अली ज़रदारी से था. साथ ही इमरान ने कहा,
“ये चूहे सारा ड्रामा इसलिए कर रहे हैं. ताकि परवेज़ मुशर्रफ़ की तरह इमरान ख़ान भी डर जाए और इन्हें एनआरओ दे दे.नवाज़ में अपनी सरकार बचाने के लिए चोरों को NRO दे दिया. जिसका बोझ हम आज तक उठा रहे हैं. हम इनके लिए हुए क़र्ज़ों की किश्ते अदा कर रहे हैं."
जिस NRO की बार इमरान कर रहे हैं, उसका फुल फॉर्म है, नेशनल रिकंसीलिएशन आर्डिनेंस. साल 2007 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ ने ये आर्डिनेंस जारी किया था. और इसके तहत पाकिस्तान में जिन लोगों को भ्रष्टाचार और विदेशों में पैसे जमा करने का आरोप था, उन्हें एमनेस्टी दे दी गयी थी. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैर कानूनी करार दिया था. लेकिन पाकिस्तान के लगभग 8000 लोगों को इस आर्डिनेंस का फायदा मिला था. पूर्व प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी और पूर्व प्रधानमंत्री आसिफ अली जरदारी का नाम भी इन लोगों में शामिल था. ध्यान देने लायक बात ये है कि NRO केस में सेना के कई उच्च अधिकारियों का नाम ही आया था. इसलिए माना रहा है कि इमरान ने इनडायरेक्टली सेना पर निशाना साधा है. साथ ही इमरान में भाषण के दौरान एक ख़ास सीक्रेट लेटर का भी जिक्र दिया. इमरान का कहना है कि इस लेटर के सामने आते ही कई लोगों के पोल खुलेगी. हालांकि नजम सेठी के अनुसार इमरान जिस लेटर की बात कर रहे हैं, वो पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है. और उसमें ऐसी कोई भी बात नहीं है. आज शाम 4 बजे से पाकिस्तान नेशनल असेम्ब्ली में अविश्वास प्रस्ताव पर विचार विमर्श शुरू हुआ. और गृह मंत्री शेख़ रशीद की मानें तो पूरा मामला निपटने में 4 अप्रैल तक का वक्त लगेगा. इस मामले में जो भी अपडेट होंगे, हम आप तक पहुंचाते रहेंगे.

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