अटल बिहारी वाजपेयी की कविता: भारत ज़मीन का टुकड़ा नहीं
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है. हम जिएंगे तो इसके लिए मरेंगे तो इसके लिए.
Advertisement

अटल चाहते तो इस एक्सिडेंड की घटना को छिपा सकते थे मगर नहीं. शायद इसीलिए अटल होना आसान नहीं.
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है. हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं. पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं. कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है. यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है, यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है. इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है. हम जिएंगे तो इसके लिए मरेंगे तो इसके लिए.
ये भी पढ़ें:अटल बिहारी वाजपेयी की कविता: क्षमा याचना अटल बिहारी वाजपेयी की कविता: कौरव कौन कौन पांडव अटल बिहारी वाजपेयी की कविता: जीवन की सांझ ढलने लगी अटल बिहारी वाजपेयी की कविता: मौत से ठन गई
कविता वीडियो: भाषाओं के अपने-अपने अहंकार थे