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ऑल इंडिया रेडियो पर वो संदेश प्रसारित न होता तो आज भारत का हिस्सा होता बलूचिस्तान!

ऑल इंडिया रेडियो की खबर गलत थी, लेकिन जिन्ना ने पाकिस्तानी सेना को कलात पर चढ़ाई का आदेश दे दिया. बलूच रेजिमेंट ने अगले ही दिन कलात पर धावा बोल दिया. कलात के खान को अगवा कर कराची ले जाया गया. कराची में उनसे जबरदस्ती विलय पत्र पर दस्तखत करवा लिए गए. इस तरह, बलूचिस्तान भारत के हाथ से निकल गया.

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balochistan train hijack jaffar express the history of accession of balochistan in pakistan by army nehru vp menon Muhammad Ali Jinnah
बलूचिस्तान में जब-तब पाकिस्तान से आजाद होने की माग उठती रहती है (PHOTO- AFP PHOTO/Banaras KHAN/Getty Images)
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13 मार्च 2025 (Updated: 13 मार्च 2025, 08:35 PM IST) कॉमेंट्स
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पाकिस्तान के ऐन बीचों-बीच एक ऐसा हिस्सा भी है, जिसे आज़ाद रखने की वकालत कभी ख़ुद मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी. यह इलाक़ा है कलात. समझने के लिए आइए, एक नज़र डालते हैं कुछ पुरानी तारीख़ों पर. 27 मार्च 1948, कलात के एक महल में खान मीर अहमद खान आराम फरमा रहे थे. सुबह का वक्त था. ठीक 9 बजे ऑल इंडिया रेडियो पर न्यूज़ का प्रसारण हुआ. अनमने ढंग से लेटे हुए खान एक कान रेडियो पर लगाए हुए थे कि तभी उनके पैरों तले ज़मीन खिसकने लगी.

रेडियो पर न्यूज़ प्रसारित हो रही थी कि भारत ने उनकी रियासत के विलय का प्रस्ताव ठुकरा दिया है. खान चौंक गए. मुद्दा यह नहीं था कि भारत ने प्रस्ताव ठुकरा दिया, बल्कि बड़ी दिक्कत यह थी कि अब पाकिस्तान को रेडियो के ज़रिए इसकी खबर लग चुकी थी. अगले ही दिन पाकिस्तानी फौज ने खान की रियासत पर धावा बोल दिया. कलात को आज़ाद रखने का सपना धूल में मिल गया.

बलूचिस्तान की कहानी

कलात, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत की एक रियासत थी. बंटवारे के वक्त यहां की खान सल्तनत ने खुद को आज़ाद घोषित कर दिया था. बाद में पाकिस्तान ने उसे अपने में शामिल कर लिया. बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा कैसे बना? उस रेडियो प्रसारण की कहानी क्या है, जिसे लेकर कहा जाता है कि अगर वह न हुआ होता, तो संभवतः भारत बलूचिस्तान में खेल कर सकता था? हर साल 2 मार्च को पाकिस्तान में बलूच संस्कृति दिवस के रूप में मनाया जाता है. बलूच संस्कृति बचाने की मुहिम चलती है. लेकिन सवाल यह है कि बलूच संस्कृति क्या है? क्या यह पाकिस्तान की संस्कृति से अलग है?
 

Baluchistan Agency map
बलूचिस्तान एजेंसी का नक्शा (तस्वीर-Wikimedia commons)
बलूचिस्तान आजाद होना चाहता था

जिसे हम बलूचिस्तान के नाम से जानते हैं, एक वक्त पर वह चार रियासतें हुआ करती थीं—कलात, खारान, लॉस बुला और मकरान.

1870 में अंग्रेज़ों ने कलात की ख़ान सल्तनत से एक संधि की, जिससे ये रियासतें अंग्रेज़ों के अधीन आ गईं. इसके बावजूद ब्रिटिश सरकार का इन पर सीधा नियंत्रण नहीं था. इन रियासतों की हालत कुछ-कुछ भूटान जैसी थी. रूस के आक्रमण से निपटने के लिए ब्रिटिश सेना की एक टुकड़ी यहां तैनात रहती थी, लेकिन अंग्रेज़ यहां के प्रशासन में सीधा दखल नहीं देते थे.

जब बंटवारे का वक्त आया, अंग्रेज़ों ने कलात को सिक्किम और भूटान जैसी कैटेगरी में रखा. बलूचिस्तान की बाकी तीन रियासतों ने बंटवारे के वक्त पाकिस्तान को चुना, लेकिन कलात पाकिस्तान के साथ जाने को तैयार नहीं था.

कलात के खान, मीर अहमद ख़ान, आज़ादी की मंशा रखते थे. उन्होंने इसकी कोशिश 1946 से ही शुरू कर दी.

कलात और जिन्ना का संबंध

1946 में जब कैबिनेट मिशन भारत आया, मीर अहमद ने अपना एक वकील पैरवी के लिए कैबिनेट मिशन के पास भेजा. यह वकील थे मुहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah). जिन्ना और मीर अहमद की काफ़ी गहरी दोस्ती थी. मीर अहमद ने मुस्लिम लीग को ढेर सारा पैसा दिया था और वह जिन्ना की हरसंभव मदद को तैयार रहते थे.

जिन्ना ने भी दोस्ती का फ़र्ज़ निभाया और 1946 में कलात की पैरवी के लिए कैबिनेट मिशन से मिले. उन्होंने मीर अहमद का पक्ष रखते हुए कहा—

बंटवारे की शर्तों में कलात को आज़ाद घोषित किया जाना चाहिए, क्योंकि कलात की संधि ब्रिटिश इंडिया सरकार से नहीं, बल्कि सीधे ब्रिटिश क्राउन से हुई थी.

इसके अलावा, मीर अहमद ने समद खान नाम के एक बलोच नेता को भी दिल्ली भेजा. समद खान ने जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) से मुलाक़ात की, लेकिन नेहरू ने कलात को आज़ाद मानने से इनकार कर दिया. कुछ महीने बाद कलात का एक और डेलिगेशन दिल्ली पहुंचा. इस बार कलात स्टेट नेशनल पार्टी के अध्यक्ष ग़ौस बख्श ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद से मुलाकात की.

मौलाना आज़ाद ने यह तो माना कि कलात भारत का हिस्सा नहीं रहा, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच कलात आज़ाद नहीं रह पाएगा. उसे अपनी सुरक्षा की ज़रूरत पड़ेगी, जो सिर्फ़ ब्रिटिश फौज ही दे सकती थी. लेकिन अगर ब्रिटिश फौज कलात में रहती, तो उसकी आज़ादी का मतलब ही क्या रह जाता?

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मोहम्मद अली जिन्ना के साथ कलात के शासक मीर अहमद खान (PHOTO-Wikimedia Commons)
जिन्ना और बलूचिस्तान

इन सभी कोशिशों का जब कोई नतीजा नहीं निकला, तो कलात के खान खुद दिल्ली आए. 4 अगस्त 1947 को दिल्ली में राउंड टेबल मीटिंग थी. इस मीटिंग में लॉर्ड माउंटबेटन और जिन्ना भी मौजूद थे. जिन्ना अब भी कलात की आज़ादी की पैरवी कर रहे थे. इस मीटिंग में तय हुआ कि कलात एक स्वतंत्र देश होगा और खारान व लॉस बुला का उसमें विलय कराया जाएगा.

इसके एक हफ्ते बाद, 11 अगस्त 1947 को, मुस्लिम लीग और कलात के बीच एक साझा घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर हुए. इसमें स्वीकार किया गया कि कलात की अपनी अलग पहचान है और मुस्लिम लीग कलात की स्वतंत्रता का सम्मान करती है.

कलात की आज़ादी और संसद का गठन

15 अगस्त को भारत स्वतंत्र हुआ. इसके अगले ही दिन कलात ने खुद को आज़ाद घोषित कर दिया. मीर अहमद ने तुरंत कलात में संसद का गठन किया. इस संसद में दो सदन थे—उच्च सदन का नाम था ‘दारुल उमराह’ और निचले सदन का नाम ‘दारुल आवाम’. दोनों सदनों में कलात की आज़ादी का प्रस्ताव पास किया गया. कलात ने घोषणा की कि पाकिस्तान के साथ उसके दोस्ताना संबंध होंगे.

पाकिस्तान भी नया-नया बना था, जिन्ना वहां व्यस्त हो गए थे. यहां तक सब ठीक था, लेकिन फिर 21 अगस्त 1947 को हुई एक घटना ने स्थितियों को और जटिल बना दिया.

खारान का पाकिस्तान में विलय और बढ़ता दबाव

बलूचिस्तान में चार रियासतें थीं. इनमें से एक खारान के शासक, मीर मुहम्मद हबीबुल्ला, ने जिन्ना के नाम एक ख़त लिखा. उसमें लिखा था—

मेरी सल्तनत कभी कलात के काबू में नहीं आएगी, और हम उनका भरपूर विरोध करेंगे.

जाहिर तौर पर यह खारान की ओर से पाकिस्तान में विलय का संकेत था. हालांकि, जिन्ना ने पुरानी दोस्ती को देखते हुए, उस वक्त इस मुद्दे को यूं ही छोड़ दिया.

धीरे-धीरे लॉस बुला और मकरान ने भी पाकिस्तान में विलय की इच्छा जतानी शुरू कर दी. कलात पर दबाव बढ़ता जा रहा था.

जिन्ना की मांग और कलात की प्रतिक्रिया

अक्टूबर 1947 में, जिन्ना ने खुलकर कलात से पाकिस्तान में विलय की मांग रख दी. तब दारुल आवाम ने सदन में जिन्ना को जवाब देते हुए कहा—

अफ़ग़ानिस्तान और ईरान की तरह हमारी संस्कृति भी पाकिस्तान से अलग है. महज़ मुसलमान होने से हम पाकिस्तानी नहीं हो जाते. अगर ऐसा है, तो फिर ईरान और अफ़ग़ानिस्तान को भी पाकिस्तान में विलय कर लेना चाहिए.

 

ऑल इंडिया रेडियो की खबर, खेल पलट गया

कुछ समय तक वाद-विवाद का यह दौर चलता रहा. जिन्ना की एक नज़र कश्मीर, जूनागढ़ और दक्कन के हैदराबाद पर लगी थी. मार्च 1948 तक उन्होंने इस मुद्दे को यूँ ही टलने दिया. लेकिन फिर दबाव इतना बढ़ा कि उन्होंने 17 मार्च 1948 को खारान, लॉस बुला और मकरान का पाकिस्तान में विलय करवा लिया. यानी, बलूचिस्तान का एक-तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के कब्ज़े में जा चुका था. इसके बाद भी जिन्ना ने कलात पर हाथ डालने में जल्दबाज़ी नहीं की.

भारत की भूमिका और ऐतिहासिक विश्लेषण

अब यहाँ पर एक सवाल उठता है—इस सबके बीच भारत कहाँ था? इतिहास की प्रोफेसर, डॉक्टर दुश्का सय्यद ने 2006 में छपे एक शोध पत्र The Accession of Kalat: Myth and Reality में लिखा—

कलात भारत और पाकिस्तान के बीच कोई बड़ा मुद्दा नहीं था, क्योंकि कलात की सीमाएँ भारत से नहीं मिलती थीं. इसके अलावा, कलात के साथ कश्मीर या हैदराबाद जैसी समस्या भी नहीं थी, जहाँ के राजा बहुसंख्यक जनता से अलग धर्म के हों.

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कलात के अंतिम शासक मीर अहमद खान के साथ जिन्ना (PHOTO- IANS)

इसके बावजूद भारत इस कहानी का हिस्सा बना. वो कैसे? भारत की इस कहानी में एंट्री होती है उसी रेडियो प्रसारण से जिसका ज़िक्र हम शुरू में कर चुके हैं. 27 मार्च 1928 को ऑल इंडिया रेडियो के प्रसारण में एक प्रेस कांफ्रेंस का जिक्र हुआ. इसके अनुसार केंद्रीय सचिव वीपी मेनन ने कहा था कि कलात के खान पाकिस्तान की बजाय भारत में विलय की मांग कर रहे हैं. मेनन के हवाले से कहा गया कि भारत का इस मुद्दे से कुछ लेना-देना नहीं है. चूंकि मेनन अब सरदार पटेल के साथ रियासतों के विलय की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. इसलिए उनके इस कथित बयान के गहरे मायने थे. इसलिए हंगामा होना तय था, जो हुआ भी.

कलात के खान ने जब ये भाषण सुना तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई. इन्हें समझ आ गया था कि पाकिस्तान इस खबर पर चुप नहीं बैठेगा. उधर भारत में भी इस खबर के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे थे. अगले रोज़ संविधान सभा में नेहरू ने आग को ठंडा करने की कोशिश की. कहा कि ऐसा कोई बयान नहीं दिया गया. 

ऑल इंडिया रेडियो की खबर गलत थी. लेकिन अब तक जो नुकसान होना था, हो चुका था. 28 मार्च के रोज़ जिन्ना ने पाकिस्तानी सेना को कलात पर चढ़ाई का आदेश दे दिया. कमांडिंग अफसर,मेजर जनरल अकबर खान की अगुवाई में 7 बलोच रेजिमेंट ने अगले ही रोज़ कलात पर धावा बोल दिया. कलात के खान को अगवा कर कराची ले जाया गया. कराची में उनसे जबरदस्ती विलय पत्र पर दस्तखत करवा लिए गए.

अगला बांग्लादेश 

225 दिन की आजादी के बाद कलात का पाकिस्तान में विलय हो गया. चूंकि ये विलय फ़ौज के बल पर करवाया गया इसलिए बलूचिस्तान के कुछ संगठन लगातार आजादी की मांग करते रहे हैं. गाहे-बगाहे ये चिंगारियां सुलगती रहती हैं. पाकिस्तान इसका दोष भारत पर मढ़ देता है. क्षेत्रफल के हिसाब से बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रान्त है. यूं समझिए कि पाकिस्तान का 44% एरिया बलूचिस्तान ही है. हालांकि आबादी के नाम पर यहां पाक आबादी का महज 5% हिस्सा ही रहता है. बलूचिस्तान में तांबा, सोना और यूरेनियम का भंडार है. 

पाकिस्तान के तीन नौसैनिक अड्डे बलूचिस्तान में है. यहीं स्थित चगाई से परमाणु परिक्षण कर पाकिस्तान परमाणु ताकत बना था. इस कदर महत्व होने के बावजूद ये इलाका गर्दिश की गिरफ्त में रहता है. आम लोगों का जीना हमेशा से दूभर रहा. हद दर्ज़े की गरीबी. उस पर तुर्रा ये कि हुकूमत ने बलूचिस्तान का ग्वादर बंदरगाह चीन को सौंप दिया.

अब यहां से कमाई जाने वाली 91% रकम चीन ले जाता है. और बलूच बंदों के हाथ में महज कुछ टुकड़े आते हैं. पाकिस्तानी सेना इस इलाके को डंडे से कंट्रोल करती है. जिससे लोहा लेते हैं, बलोच राष्ट्रवादी. आए दिन हिंसक झड़पें होती हैं. कभी जिन्ना की मूर्ति उड़ा दी जाती है. तो कभी सेना के हेलीकॉटर पर हमला होता है. हालात यहाँ तक बिगड़ चुके हैं कि आम लोग बलूचिस्तान को अगला बांग्लादेश कहने लगे हैं.

(ये स्टोरी हमारे पूर्व साथी कमल ने लिखी है.)

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