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गुरमीत कैसे बना अरबों के डेरे का मालिक और संत कैसे बना बलात्कारी?

खुद को अविवाहित बताने वाले राम रहीम के 3 बच्चे थे. उसके मां-बाप के बारे में भी जानिए.

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18 अक्तूबर 2021 (Updated: 18 अक्तूबर 2021, 03:31 PM IST) कॉमेंट्स
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रंजीत सिंह मर्डर केस में दोषी पाए गए गुरमीत राम रहीम को अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. उसके अलावा 4 अन्य दोषियों को भी यही सजा दी गई है. इनके नाम हैं जसबीर, सबदिल, इंदर सेन, अवतार और किशन लाल. इंदर सेन की 2020 में मौत हो गई थी. बाकी 4 दोषियों की बाकी जिंदगी अब जेल में ही कटेगी. सजा के ऐलान के बाद गुरमीत राम रहीम फिर चर्चा में है. लल्लनटॉप ने इस बलात्कारी और हत्यारे के बारे में कई स्टोरी की हैं. अदालत के फैसले के बाद हम कई स्टोरी एक बार फिर अपने पाठकों के सामने रख रहे हैं. इनमें से एक ये स्टोरी 26 अगस्त 2017 को प्रकाशित की गई थी.
एक शैतान की कहानी. वो, जिसे संत कहा गया, 'पापा जी' की उपमा मिली, जो खुद अपने पिता का लाड़ला था, जिसे 23 साल की उम्र में ही बरसों पुराने डेरा सच्चा सौदा की गद्दी मिल गई और उसका नाम हुजूर महाराज गुरमीत राम रहीम सिंह जी हो गया. लेकिन आज वो एक आम कैदी है. अपनी ही एक शिष्या के साथ बलात्कार का दोषी, जिसे रोहतक की सुनैरा जेल में बंद किया गया है.

संत बनने से पहले गुरमीत का भी एक सामान्य सा परिवार था, जिसे उसने त्याग दिया. लेकिन अपनी ज़िंदगी के तमाम दोगलेपन की परिपाटी को आगे बढ़ाते हुए वो अपने परिवार का मुखिया बना रहा. उसकी ज़िंदगी की कहानी उसकी फिल्मों की तरह ही रंगीन और आश्चर्यजनक है.

गुरमीत का परिवार हमेशा से संपन्न था. कोई किल्लत नहीं थी. उसके पिता मगहर सिंह राजस्थान के श्रीगंगानगर में जमींदार थे. मां नसीब कौर पूजा-पाठ करने वाली, भगवान से डरने वाली हाउसवाइफ थीं. मगहर सिंह अपने शुरुआती दिनों में ही डेरा सच्चा सौदा के संपर्क में आ गए थे.

इस डेरे की स्थापना बाबा बलूचिस्तानी बेपरवाह मस्ताना जी ने की थी, जो समाज के पिछड़े और दलित समाज के उन लोगों को आकर्षित करते थे, जिन्हें सिख धर्म अपने वादों के मुताबिक समानता नहीं दे पाया. जाट और खत्री सिखों ने कभी इन लोगों को अपने बराबर नहीं माना.

मगहर सिंह जाट सिख थे. डेरे में मस्ताना के उत्तराधिकारी बने शाह सतनाम खत्री सिख थे. मगहर सतनाम शाह के समर्थक थे और अपने गुरु के धार्मिक विचारों को फैलाने में वो हमेशा आगे रहे. मगहर का बेटा गुरमीत धार्मिक प्रवृत्ति का तो नहीं था, लेकिन अपने पिता के साथ रहते-रहते वो डेरे के संपर्क में ज़रूर आ गया था.

गुरमीत का एक दोस्त था गुरजंत सिंह. अपने चाचा की हत्या का बदला लेने के बाद उसे जेल हो गई थी. जेल में गुरजंत को खालिस्तानी उग्रवादी मिले, जिन्होंने उसे कट्टर अलगाववादी बना दिया. जेल से बाहर आने के बाद गुरजंत खालिस्तानी आतंकवादी बन गया और तेजी से अपने नंबर बढ़ाने लगा. इस दौरान गुरमीत पूरे दिन डेरे के काम करता. उसे जो भी बताया जाता, वो करता. ट्रैक्टर वगैरह चलाने में भी वो अपने पिता की मदद करता था.

उन्हीं दिनों डेरा प्रमुख शाह सतनाम ने सभी को चौंकाते हुए घोषणा कर दी कि डेरे का नेतृत्व अपने उत्तराधिकारी को सौंपकर वो संन्यास ले लेंगे. उस समय गद्दी के तीन उम्मीदवार थे और गुरमीत भी उनमें से एक था. सभी की उम्मीदों के उलट शाह सतनाम ने गुरमीत को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और उसे नाम दिया- 'हुजूर महाराज गुरमीत राम रहीम'.

ram rahim

हालांकि, इसमें किसी तरह की हिंसा और धमकी का कोई सबूत नहीं है, लेकिन लोग स्पष्ट तौर पर मानते हैं कि गुरमीत के उभरने के पीछे गुरजंत की बदनाम छवि थी. गुरजंत को बाद में सुरक्षा बलों ने मोहाली में मार गिराया था.

लेकिन डेरे का नया मुखिया पिछले संतों की तरह 'सादा जीवन, उच्च विचार' वाला नहीं था. चमचमाते कपड़ों के प्रति उसका प्रेम बाद में उसकी पहचान ही बन गया. खुद को अविवाहित घोषित करने से पहले ही उसके तीन बच्चे हो चुके थे. एक बेटा और दो बेटियां. अपने जिस परिवार को उसने सार्वजनिक तौर पर त्याग दिया था, वो डेरे में उसी के साथ रहता था. वो खुद साधिकाओं से घिरा रहता था. बाद में उसने एक और जवान लड़की हनीप्रीत को अपनी बेटी घोषित कर दिया. ये तीनों लड़कियां खुद को 'Papa’s Angels' बुलाती थीं. डेरे के बाकी श्रद्धालु भी गुरमीत को 'पिता जी' या 'पापा जी' बुलाने लगे.

गुरमीत की दोनों बेटियों अमरप्रीत और चरनप्रीत की शादी ऐसे लड़कों से हुई है, जिन्हें 'बाबा राम रहीम' ने फैन्सी नाम दे रखे हैं. चरनप्रीत के बेटों को स्वीटलक सिंह और सुबह-ए-दिल नाम दिए गए हैं. गुरमीत की दोनों बेटियों ने MSG सीरीज की उसकी फिल्मों में काम किया है. गुरमीत के दामाद डेरा के बिजनेस को संभालने में उसकी मदद करते थे. गुरमीत के बेटे जसमीत इन्सां की शादी पंजाब की कांग्रेसी विधायक हुस्नमीत कौर से हुई, जिसके नाम के आगे भी अब 'इन्सां' लग चुका है.

ध्यान लगाने और लड़कियों का यौन शोषण करने के लिए गुरमीत ने डेरे के अंदर एक गुफानुमा अंडरग्राउंड घर बनवाया था. राजाओं के महलों में होने वाले हरम की तर्ज पर वो अपनी शिष्याओं में से किसी लड़की को चुनता और फिर उसे अपनी देह उसे समर्पित करने के लिए कहता. इन लड़कियों को डेरे में ही रखा जाता था. उन्हें इंतज़ार करना पड़ता था कि कब उनकी शादी डेरे के अंदर रहने वाले पुरुष श्रद्धालुओं से करा दी जाएगी. वो पुरुष श्रद्धालु, जो गुलामों की तरह गुरमीत के आदेश मानते थे.

डेरे के गुंडे इन लड़कियों पर निगाह रखते थे. और ये कोई रहस्य की बात नहीं थी. गुरमीत के प्राइवेट क्वॉर्टर्स की सुरक्षा में उसके गैंग की वो लड़कियां हमेशा तैनात रहती थीं, जिन पर वो भरोसा करता था.

डेरे के अंदर बलात्कार किसी गलती की माफी के जैसा होता था. बाद में कुछ महिलाओं ने खुलासा किया कि उन्हें ऐसे महसूस कराया जाता था, जैसे उन्हें आशीर्वाद दिया जा रहा हो. लेकिन ऐसा सबके साथ नहीं था. जिन दो महिलाओं ने गुरमीत के खिलाफ गवाही दी, उनकी कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

साल 2002 में गुमनाम रहकर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को चिट्ठी भेजने वाली महिला ने CBI कोर्ट में बताया कि 28 और 29 अगस्त, 1999 की दरमियानी रात 'पिता जी' ने माफी देने के लिए उसे अपनी गुफा में बुलाया था. गुरमीत ने साथ न देने पर उसे हत्या की धमकी दी. इस रेप की वजह से उसे डेरे की हकीकत पता चली. जब महिला ने अपने भाई को इस बारे में बताया, तो वो अपनी बहन के साथ डेरा छोड़कर चला गया. बाद में उसकी हत्या हो गई.

शिकायत करने वाली दूसरी महिला डेरे के अंदर ही पली-बढ़ी, जहां उसके माता-पिता एक स्कूल में पढ़ाते थे. वो अपने गुरु की गुफा की सुरक्षा में खड़ी थी. गुरमीत ने उसे अंदर बुलाया और वो चली गई. वहां उन्होंने देखा कि उसके 'पिता जी' बिस्तर पर नंगे लेटे हैं. अंदर तक डर चुकी उस महिला ने भागने की कोशिश की, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. उसका बलात्कार किया गया और कोई भी उसकी मदद के लिए नहीं आया. बाद में वो किसी तरह भागने में कामयाब हो पाई. CBI कोर्ट में उसने अपनी पूरी कहानी सुनाई.

डेरे के अंदर और भी कई महिलाएं थीं, जो नाउम्मीदी और डर की वजह से चुप रहीं. उस राक्षस ने अपनी बेटियों की शादी करके उन्हें अय्याशी की ज़िंदगी दे दी, लेकिन जिन लड़कियों को अपनी बेटी कहता था, उन्हें शिकार बनाया. उनके साथ गुलामों की तरह सलूक किया. उनके पास इतनी भी हिम्मत नहीं छोड़ी कि वो नज़र उठाकर जी सकें.


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