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अवध ओझा बोले- "नरेंद्र मोदी को महान प्रधानमंत्री बनना है तो बस ये काम कर दें"

नेहरू पर क्या बोले अवध ओझा?

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नरेंद्र मोदी और अवध ओझा
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लल्लनटॉप
13 नवंबर 2022 (Updated: 13 नवंबर 2022, 03:30 PM IST) कॉमेंट्स
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गेस्ट इन द न्यूज़रूम में हम आपको लल्लनटॉप मेहमानों से मिलवाते हैं. लंबी चर्चा होती है. पूरा न्यूज़ रूम शिरकत करता है. इस बार के मेहमान बने अवध ओझा. यूट्यूब के कीवर्ड्स की तई कहें, तो ओझा सर (Ojha Sir). उनकी पर्सनल लाइफ़ पर, रंगबाजी से लेकर जीवन के टर्निंग पॉइंट तक, सब चर्चा हुई. चर्चा हुई, तो उनकी वायरल वीडियोज़ का भी ज़िक्र आया. उनका एक वायरल वीडियो है नेहरू पर. जवाहरलाल नेहरू और आज़ाद भारत के संघर्षों पर. वीडियो में वो 1947 की स्थिति बताते हैं और देश के प्रधानमंत्री के तौर पर नेहरू की चुनौतियां. अवध ओझा की समीक्षा में नेहरू इन चुनौतियों को बख़ूबी पार करते हैं. इसी सिलसिले में वो नरेंद्र मोदी की चुनौतियों का उल्लेख करते हैं. वो कहते हैं,

"आज की सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था है. पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो रही है. देश में ख़ासतौर पर रूरल सेक्टर. ग्रामीण क्षेत्रों में नौकरी ही नहीं है.

असल में जो लिबरलाइज़ेशन था हमारा 1991 का, वो एक थोपा हुआ लिबरलाइज़ेशन था. उस समय दो बड़ी घटना हुई थीं - एक तो हमारा सबसे अच्छा दोस्त USSR, उसका विघटन हो गया. और हमारे पास फॉरेन-रिज़र्व ख़त्म हो गया. हमारे प्रधानमंत्री को सोना देना पड़ा था कि हमें तेल मिले और हमारी फैक्ट्रियां चल सकें. उस परिस्थिति में दुनिया के जो पूंजीवादी मुल्क थे, उन्होंने कहा कि हम तुम्हारी मदद करेंगे, बस तुम अपना बाज़ार खोलो. पूंजीवादी देशों ने कहा कि तुमने जो इतने सारे लोग पैदा कर लिए हैं, इनको हम पेप्सी पिलाएंगे. हम इनको बताएंगे, ठंडा मतलब कोका कोला. तो देश को बाज़ार खोलना पड़ा, लेकिन हम अर्थव्यवस्था के बुनियादी रिफॉर्म की तरफ़ नहीं बढ़े. 

हमारे देश में कहां इंडस्ट्रीयलाइज़ेशन है? नाम मात्र का है. तो बाज़ार खुला और वो एक थोपा हुआ लिबरलाइज़ेशन था. मामला वहीं से ख़राब हुआ. और ठीक है, फ़ोर्स्ड हो भी गया. किसी तरह से हमने अपने आप को बचाया, लेकिन फिर जो भी प्रधानमंत्री बने, उन्हें अर्थव्यवस्था की इस स्थिति को समझना चाहिए था, कि हमें अपनी अर्थव्यवस्था के बेसिक स्ट्रक्चर को मज़बूत करना है. उन्हें खेती को बढ़ावा देना चाहिए था. इंडस्ट्रियलाईज़ेशन को बढ़ावा देना चाहिए था.

जैसे हम 1947 में पैदा हुए, वैसे ही 1787 में अमेरिका भी पैदा हुआ. बिल्कुल स्लम एरिया था. कुल 13 कॉलोनी थीं. हमसे दो कम. 18वीं शताब्दी में अमेरिका 13 कॉलोनियों का एक स्लम एरिया था. 19वीं सदी में इकोनॉमिक पावर, 20वीं सदी में वर्ल्ड पावर, 21वीं सदी में सुपर पावर. तो हम क्यों नहीं हो सकते? क्योंकि हमने सबसे ज़्यादा ध्यान दिया कि किसी तरह हम सत्ता में रहें. सबने. किसी एक की बात नहीं हो रही. और, अब चलते-चलते एक ऐसी स्थिति आ गई है कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्था भसक रही है. सारी कंपनियां बाहर जाएंगी. अब अगर कल को US कोलैप्स कर जाए, तो Adidas तो चली जाएगी. ऐपल चला जाएगा. तो जो बच्चे इनके स्टोर्स में काम कर रहे हैं, वो तो बेरोज़गार हो जाएंगे. क्योंकि आपकी अपनी कोई इंडस्ट्री तो है ही नहीं और सब को आप कृषि में डाल नहीं सकते. तो आज प्रधानमंत्री जी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि अपने बेसिक स्ट्रक्चर को मज़बूत करें."

जिस चीज़ के बारे में अवध ओझा बात कर रहे हैं, उसे अर्थव्यवस्था की परिभाषा में कहते हैं 'लीप-फ़्रॉग जम्प'. कई बड़े अर्थशास्त्रियों का मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था ने एक अनापेक्षित जम्प लिया. जिस अर्थव्यवस्था को प्राइमरी सेक्टर से सेकंड्री फिर टर्शियरी जाना था, यानी कृषि से फ़ैक्ट्री और फ़ैक्ट्री से सर्विस. लेकिन हम सीधा कृषि से सर्विस पर कूद गए. और, इसी वजह से एक बड़ा गड्ढा छूट गया, जिसपर किसी का ध्यान नहीं गया और आज की हमारी 'दुर्गति' का सबसे बड़ा कारण यही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में पूछे जाने पर अवध ओझा ने कहा कि प्रधानमंत्री के तौर पर इतिहास उनकी समीक्षा कल करेगा, लेकिन व्यक्ति के तौर पर उनकी गिनती बड़ी है. कहा कि जिस देश में राजनिति में भयंकर वंशवाद है और था, ज़िलों के स्तर पर भी, वहां नरेंद्र मोदी एक सामान्य घर से आते हैं और व्यव्यथा के उच्चतम पद तक पहुंचते हैं. ये बड़ी बात है.

और भी बहुत सारी मानीख़ेज़ बातें हुई हैं. पूरी बातचीत सुनिए -

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