दुनिया के सबसे टॉप सीक्रेट मिलिट्री ठिकाने 'एरिया 51' के अंदर क्या होता है?
कोई कहता है पकड़े हुए एलियन रखे हैं तो कोई कहता है यहां अमेरिका टाइम मशीन बना रहा है.

Storm Area 51सोशल मीडिया हमेशा सुपर बिज़ी रहता है. इसी व्यस्तता में पिछले दिनों चला- एरिया 51 चलो. इसकी टैगलाइन है- Storm Area 51, They Can’t Stop All of Us. ये 'एरिया 51' एक जगह है अमेरिका में. बहुत मिस्ट्री है इस जगह को लेकर. कुछ कहते हैं, यहां एलियन्स रहते हैं. कुछ कहते हैं, अमेरिका कोई बड़ा सीक्रेट रिसर्च करता है यहां. ये बेहद टॉप सीक्रेट एरिया है. अमेरिका किसी को यहां पांव तक नहीं रखने देता.
क्या है ये कैंपेन?
इसमें है कि खूब सारे लोग मिलकर 20 जुलाई को तड़के सुबह 3 बजे एरिया 51 के अंदर घुस जाएंगे. मीम की तरह शुरू हुए इस कैंपेन को 15 लाख से ऊपर लोगों ने जॉइन कर लिया. सब हो गए इच्छुक. इतना माहौल बना इसका कि अमेरिकी एयर फोर्स को चेतावनी जारी करनी पड़ी. US Air Force ने कहा कि यहां घुसने की कोशिश करना खतरनाक साबित होगा.
When the government hears over 1 million people are planning to storm Area 51 pic.twitter.com/gWZ4kqNi2v
— Sonic the Hedgehog (@sonic_hedgehog) July 16, 2019
Storm Area 51 Official Attack Plan: pic.twitter.com/RXB7qQFc2F
— NFL Memes (@NFL_Memes) July 16, 2019
कैसे शुरू हुआ ये फेसबुक कैंपेन?can pop punk twitter storm into area 51 and steal the time machine so we can go back to all the tours that we missed
— meg (@meggamcgg) July 17, 2019
कैलिफोर्निया में एक आदमी है- मैटी रॉबर्ट्स. मैटी का कहना है, 'Storm Area 51' उनका शुरू किया हुआ है. मैटी ने कुछ इंटरव्यू दिए हैं. उनका कहना है कि ये कैंपेन शुरू करने की वजह से उन्हें अब FBI का डर लग रहा है. मैटी का कहना है कि उन्हें नहीं पता था कि उनका मीम इतना फैल जाएगा.
Area 51 one is on a an Air Force base. Air Force bases are protected by Security Forces.Some of you might know that I was once a Security Forces soldier. That being said it is a very bad idea to try to storm a gate. You will be shot. pic.twitter.com/VnEqVsArLc
— Jesse (@Jessewelle) July 18, 2019
Area 51- क्या है ये बला?Chuck ready to storm Area 51 like... pic.twitter.com/8J1o7ADhHX
— NBA on TNT (@NBAonTNT) July 18, 2019
अमेरिका का एक स्टेट है- नेवाडा. उसके दक्षिणी हिस्से में है- नेवाडा टेस्ट ऐंड ट्रेनिंग रेंज. ये अमेरिकी एयरफोर्स का ओपन ट्रेनिंग रेंज है. इसी जगह को कहते हैं एरिया 51. इसका ये नाम कैसे पड़ा, ये नहीं पता. इस जगह से कुछ दूर रेचल नाम का एक छोटा सा शहर है- बमुश्किल 100 की आबादी है वहां.
रहस्य कैसे बनना शुरू हुआ?
1947 वाले साल कुछ ख़बरें चली. कि न्यू मैक्सिको के रॉसवेल में UFO क्रैश हुआ है. UFO का फुल फॉर्म होता है अनआइडेंटिफाइड फ्लाइंग ऑबजेक्ट. UFO को लोग अक्सर एलियन्स के साथ जोड़ते हैं. लेकिन कोई भी ऐसी उड़ने वाली चीज, जिसकी ठीक-ठीक पहचान न हो सके, उसके लिए ये टर्म इस्तेमाल होता है. जब और भी UFO देखे जाने के दावे आए, तो एयर फोर्स ने इन दावों की जांच शुरू की. इसे नाम दिया- प्रॉजेक्ट ब्लू बुक. बाद के सालों में भी UFO देखे जाने की बातें आती रहीं. 1969 में अमेरिकी एयर फोर्स ने 'प्रॉजेक्ट ब्लू बुक' खत्म कर दिया. इस समय तक वो UFO देखे जाने के 12 हज़ार से ज्यादा दावों की जांच कर चुका था. 'प्रॉजेक्ट ब्लू बुक' तो खत्म हुआ, मगर दक्षिणी नेवाडा में एरिया-51 के आस-पास UFO देखे जाने के दावे आते रहे. चूंकि इस प्रतिबंधित इलाके में आम लोग नहीं जा सकते. और ये 24 घंटे, 365 दिन भारी सुरक्षा में रहती थी. सो इस जगह के बारे में कहानियां चल पड़ीं.
कैसी कहानियां चलती हैं?
- सबसे मज़बूत दावा तो है एलियन्स का. अफ़वाहें कहती हैं कि एक बार दूसरे ग्रह से आए लोगों का एक स्पेसक्राफ्ट क्रैश हो गया. उसके टुकड़े यहीं एरिया-51 में रखे हुए हैं. वैज्ञानिक यहां उस स्पेसक्राफ्ट पर रिसर्च करते हैं. रिवर्स-इंजिनियरिंग करके एलियन्स की टेक्नॉलजी समझने की कोशिश करते हैं.पहली बार इसका आधिकारिक ज़िक्र कब हुआ?
- कुछ कहते हैं कि एलियन्स का जो स्पेसक्राफ्ट क्रैश हुआ, उसके साथ एक एलियन भी मिला. वो भी यहीं पर रखा गया है.
- 80 के दशक में रॉबर्ट बॉब लाज़र नाम का एक आदमी सामने आया. उसने कहा, वो 'एरिया 51' में काम करता था. रॉबर्ट का दावा था कि उसका काम परग्रहियों से जुड़ी तकनीक से जुड़ा था. उसने मीडिया को कुछ तस्वीरें भी दिखाईं. उसके मुताबिक, ये एरिया-51 में रखे गए एलियन की ऑटोप्सी की फोटो हैं. बाद में 'एरिया 51' में काम करने का उसका दावा झूठा निकला.
- दूसरी बड़ी अफवाह है टाइम ट्रैवल. इसको मानने वाले कहते हैं कि अमेरिका यहां समय में आगे और पीछे जाने की रिसर्च कर रहा है.
- कुछ कहते हैं कि नील आर्मस्ट्रॉन्ग कभी चांद पर उतरे ही नहीं. कि यहीं एरिया-51 में फोटो खींचकर अमेरिका ने कहा कि उसका अपोलो 11 मिशन चांद पर उतर गया.
अगस्त 2013 में 'सूचना के अधिकार' के तहत एक जानकारी की रिक्वेस्ट मांगी गई.
इसमें CIA के लॉकहीड यू-2 प्रोग्राम के बारे में पूछा गया था. इसके जवाब में CIA को कुछ डॉक्यूमेंट्स डिक्लासीफाई करने पड़े. इसी क्रम में फिर उस जगह के बारे में भी बताया गया, जो इस लॉकहीड यू-2 एयरक्राफ्ट्स के निर्माण और टेस्टिंग से जुड़ी थी. ये जगह थी- एरिया 51. ये 'एरिया 51' का पहला सार्वजनिक आधिकारिक ज़िक्र था.
CIA ने क्या बताया था?
अमेरिकी खुफिया एजेंसी के मुताबिक, एरिया-51 में 1955 से सीक्रेट फ्लाइट्स की टेस्टिंग होती है. जब से अमेरिकी सेना ने CIA के U-2 जासूसी प्लेन्स की टेस्टिंग शुरू की थी.
क्या था ये U-2?#1 most read on our #Bestof2014
— CIA (@CIA) December 29, 2014
list: Reports of unusual activity in the skies in the '50s? It was us.http://t.co/BKr81M5OUN
(PDF 9.26MB)
कोल्ड वॉर के समय सोवियत और अमेरिका, दोनों एक-दूसरे की खूब जासूसी करते थे. ताकि दूसरा क्या कर रहा है, क्या करने की तैयारी कर रहा है, ये पहले पता लग जाए. अमेरिकी एयरफोर्स और नेवी, दोनों के भेजे टोही विमानों में बड़ा नुकसान हो रहा था. बहुत जानें जा रही थीं. ये पकड़े जाते, तो सोवियत के साथ तनाव भी बढ़ता था. फिर ये भी दिक्कत थी कि सोवियत बहुत बड़ा था. उसके कई अहम इलाकों में पहुंचना बहुत मुश्किल हो जाता. ऐसे में US वायुसेना ने काफी ऊंचाई पर उड़ने वाले टोही विमान बनाना शुरू किया. जो कि बिना दिखे, बिना पकड़ाए, दुश्मन देश में खूब अंदर जाकर टोह लेकर आ सके. इसी का नतीजा था U-2.
CIA को क्यों मिला U-2?
U-2 किसके पास हो, इसे लेकर अमेरिकी एयर फोर्स और CIA के बीच भी संघर्ष था. दोनों इसे चाहते थे. मगर फिर ये मिला CIA को. दुश्मन देश में इस तरह टोही विमान भेजना पारंपरिक तौर पर वायु सेना का काम होता है. वो भी जंग के समय. मगर यहां ये काम CIA कर रही थी. प्राइमरी जिम्मेदारी थी CIA की. वायु सेना उसे मदद देती थी. इसे सेना के लोग नहीं, अंडरकवर एजेंट चलाते. ये होते थे सिविलियन. इनके पकड़े जाने पर सीधे बात अमेरिका पर नहीं आती.

2013 में आकर CIA ने माना कि लोग बहुत ऊंचाई पर उड़ते U-2 विमान को देखते थे. वो ठीक-ठीक पहचान नहीं पाते थे कि ये क्या है. तो उन्हें लगता था कि वो UFO देख रहे हैं (फोटो: रॉयटर्स)
क्या खासियत थी U-2 की?
ये जासूसी विमान था अमेरिका का. बहुत शानदार, बहुत कामयाब. इसका मकसद ही था ओवरहेड रिकॉनसेंस. मतलब हवाई रास्ते से जासूसी. इसने पहली उड़ान भरी जुलाई 1956 में, सोवियत संघ के ऊपर. कोल्ड वॉर में सोवियत के खिलाफ खुफिया जानकारियां बटोरने में सबसे अहम सोर्स बन गया ये. 1950 के दशक में ज्यादातर कर्मशल एयरक्राफ्ट 10 से 20 हज़ार फुट की ऊंचाई पर उड़ते थे. मिलिटरी एयरक्राफ्ट इनसे ऊपर तक जाते थे. मगर ये U-2 60 हज़ार फुट के ऊपर चला जाता था.
U-2 के पकड़े गए पायलट पर फिल्म की बनी
हवाई रास्ते जासूसी का अमेरिका का ये प्रोग्राम 20 साल चला. 1954 से 1974 तक. लंबे समय तक U-2 बिल्कुल टॉप सीक्रेट रहा. मगर फिर मई 1960 में सोवियत ने एक U-2 को निशाना बनाकर गिरा दिया. उसके पायलट फ्रांसिस गेरी पावर्स को भी पकड़ लिया. उसके ऊपर सार्वजनिक तौर पर मुकदमा चला सोवियत में. 1962 में अमेरिका और सोवियत ने एक-दूसरे के जासूस छोड़े. इसी में फिर फ्रांसिस को भी सोवियत से रिहाई मिली. 2015 में एक फिल्म आई थी- ब्रिज ऑफ स्पाईज़. ये फ्रांसिस की कहानी पर बनी फिल्म थी.

'ब्रिज ऑफ स्पाइज़' सोवियत द्वारा गिराए गए U-2 जासूसी विमान के पकड़े गए पायलट की कहानी से जुड़ी है. कि कैसे जेम्स ही डोनेवैन नाम के एक वकील ने पायलट फ्रांसिस की रिहाई का रास्ता बनाया. फ्रांसिस के बदले अमेरिका ने सोवियत के जासूस रुडोल्ड अबेल को रिहा किया था.
U-2 बहुत बड़ा सीक्रेट था अमेरिका का. उसकी जानकारी लीक होना अफॉर्ड नहीं कर सकता था वो. शायद इसीलिए एरिया 51 इतनी टॉप सीक्रेट जगह रखी गई. इसीलिए उसे लोगों की पहुंच से बिल्कुल दूर रखा गया. इसी वजह से एरिया-51 को लेकर इतना रहस्य बना. फिर 'इंडिपेंडेंस डे' जैसी फिल्मों में रेफरेंस की वजह से अफ़वाहें और फैलीं. इस फिल्म में एरिया-51 को ऐसी जगह के तौर पर दिखाया गया था, जहां ऐलियन्स पर टेस्ट की प्रयोगशाला है. UFO देखे जाने की अफ़वाहें. जो कि शायद असल में U-2 हुआ करते थे. अब भी अमेरिका इस जगह पर सेना और सुरक्षा से जुड़े प्रयोग करता है. कैसे प्रयोग, वो भला वो क्यों बताएगा. और इसी वजह से ये जगह आज भी इतनी हाई-सिक्यॉरिटी में रहती है.
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