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किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं में से कितने लेफ्ट विचारधारा के समर्थक हैं?

हर बड़े किसान नेता के बारे में जान लीजिए

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किसानों की सरकार से 7 दौर की बातचीत बेनतीजा रही है, फिर भी किसानों को निराश होने के बजाय हल निकालने के अलावा जीवन बचाने का काम भी करना होगा (फाइल फोटो- PTI)
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अभिषेक त्रिपाठी
17 दिसंबर 2020 (Updated: 17 दिसंबर 2020, 01:04 PM IST) कॉमेंट्स
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ठंड का मौसम है, लेकिन देश में किसान आंदोलन की गर्मी बढ़ती जा रही है. 17 दिसंबर, गुरुवार को किसानों के धरने का 22वां दिन है. दिल्ली के इक्का-दुक्का छोड़ लगभग सभी बॉर्डर बंद पड़े हैं. कृषि कानूनों के विरोध में किसान डटे हुए हैं. इस बीच ये आरोप कहने-सुनने में आए कि आंदोलन कर रहे किसान नेता तो वामपंथी विचारधारा वाले हैं. क्या वाकई ऐसा है? इसके जवाब के लिए आइए एक-एक करके सभी बड़े किसान नेताओं के बारे में जानते हैं.
बलबीर सिंह राजेवाल- भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के अपने गुट के अध्यक्ष. प्रदर्शनों की रूपरेखा तय करने में इनकी अहम भूमिका मानी जा रही है. सरकार से बातचीत करके समाधान निकालने के पक्ष में रहते हैं, और वार्ता की अगुवाई भी करते हैं. राजेवाल पंजाब के लुधियाना जिले के खन्ना से हैं, जो एशिया की सबसे बड़ी अनाज मंडी में से मानी जाती है.
Rajewal 11 बलबीर सिंह राजेवाल. (फोटो- Social Media)

जगमोहन सिंह पटियाला- बीकेयू एकता (दकौंडा) के महासचिव हैं. कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए पंजाब के 31 किसान संगठनों का गठजोड़ तैयार किया गया था. इसमें जगमोहन सिंह की बड़ी भूमिका रही. संगरूर, बरनाला और पटियाला में इनका अच्छा प्रभाव माना जाता है. संगठन का वामपंथ की तरफ झुकाव रहा है.
जोगिंदर सिंह उग्राहन- संगरूर जिले से हैं. बीकेयू एकता उग्राहन के अध्यक्ष हैं. यह वामपंथ की तरफ झुकाव रखने वाला एक गैर-राजनीतिक संगठन है, जिसने दिल्ली को घेरने के लिए बसों और ट्रैक्टर-ट्रॉलियों का इंतजाम किया.
Ugrahan 11 जोगिंदर सिंह उग्राहन. इनके संगठन को भी राजनीतिक दलों के प्रभाव से दूर माना जाता है. (फोटो- Social Media)

सतनाम सिंह पन्नू- किसान मजदूर संघर्ष समिति के अध्यक्ष हैं. इनका संगठन पंजाब के अमृतसर, गुरदासपुर, तरनतारन में सक्रिय है. संगठन को गैर-राजनीतिक माना जाता है. इस समिति की स्थापना 2007 में हुई थी, जिसमें करीब 5000 सदस्य हैं.
भूपिंदर सिंह लोंगोवाल- कीर्ति किसान यूनियन की युवा शाखा के प्रदेश संयोजक. CPI(ML) से संबद्ध इस समूह का फरीदकोट, मोगा, संगरूर और बरनाला में अच्छा प्रभाव है. लोंगोवाल इससे पहले पंजाब छात्र संघ और नौजवान भारत सभा का हिस्सा रह चुके हैं. किसान आंदोलन के लिए उन्होंने बड़ी संख्या में युवाओं को साथ लिया है.
डॉ. दर्शन पाल- क्रांतिकारी किसान यूनियन, पंजाब के अध्यक्ष हैं. पंजाब से बाहर किसान आंदोलन के को-ऑर्डिनेशन का काम देख रहे हैं. उनका संगठन कृषि कानूनों का सबसे पहले विरोध करने वालों में शामिल रहा है. इनका संगठन CPI(ML) से संबद्ध है, और पटियाला, संगरूर, बरनाला में एक्टिव है.
Darshan 9 दिसंबर को सरकार के साथ हुई बातचीत के बाद दर्शन पाल (बीच में) (फाइल फोटो- PTI)

रुल्दु सिंह मनसा- पंजाब किसान यूनियन के अध्यक्ष. CPI(ML) और रिवॉल्यूशनरी मार्क्सिस्ट पार्टी से संबद्ध संगठन. रुल्दु सिंह मनसा पहले किसान नेता थे, जिन्होंने कृषि कानूनों को पूरी तरह वापस लेने की मांग की थी. इस किसान संगठन का प्रभाव मनसा, लुधियाना और मुख्तसर में है.
अजमेर सिंह लखोवाल- बीकेयू (लखोवाल) के अध्यक्ष. शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के करीबी. 1992 में तैयार हुआ संगठन है. इस साल अक्टूबर में इस संगठन को किसानों के गठबंधन से निकाल दिया गया था क्योंकि यह बाकी संगठनों से सहमति लिए बिना कृषि कानूनों के विरोध में सुप्रीम कोर्ट चला गया था. अजमेर सिंह के बेटे हरिंदर सिंह लखोवाल के नेतृत्व में संगठन फिर खड़ा हुआ है और आंदोलन में एक्टिव है.
Harinder 11 हरिंदर सिंह लखोवाल (बीच में). (फाइल फोटो- Social Media)

जगजीत सिंह दल्लेवाल- भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के अध्यक्ष हैं. इस किसान संगठन की स्थापना 2002 में हुई थी. फिलहाल 5000 के करीब सदस्य हैं. 2019 में जब पंजाब के ज़्यादातर किसान संगठन पराली जलाने का समर्थन कर रहे थे, तब दल्लेवाल के संगठन ने कहा था कि वे पराली नहीं जलाएंगे. संगठन का कोई राजनीतिक झुकाव नहीं माना जाता.
हरमीत सिंह कादियां- बीकेयू (कादियां) के अध्यक्ष. हरमीत के संगठन और बीकेयू (सिद्धूपुर) के सदस्यों ने मिलकर 26 नवंबर को दिल्ली की तरफ बढ़ते हुए हरियाणा पुलिस के बैरिकेड्स तोड़ दिए थे. इस संगठन का लुधियाना में अच्छा प्रभाव है. किसी पार्टी की तरफ झुकाव नहीं माना जाता है.
यानी ये बात तो है कि अधिकतर किसान संगठन वामपंथी विचारधारा के करीब हैं और इन संगठनों का पंजाब-हरियाणा के एक अच्छे क्षेत्र में प्रभाव भी है. लेकिन इस बात का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है कि विचारधारा कोई भी हो, इससे ये बात कमतर नहीं होती कि किसानों के मन में शंकाएं हैं, चिंताएं हैं. जिन्हें अड्रेस किया जाना ज़रूरी है.

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