पति पत्नी और वो कैमरा - कहानी बनारस की ज़रीना भाभी की
आराधना और आशीष पहुंचे बनारस के गंगा घाट पर. कर रहे हैं बयान कि बनारस के मुसलमान आखिर वहां पहुंच कर करते क्या हैं
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फोटो - thelallantop
पति पत्नी और वो कैमरा की चौथी किस्त आ गयी है. ये कहानी है स्टीरियोटाइप कर दी गयी 'पावन' गंगा के बारे में. एक नदी जो किसी ज़मीन के टुकड़े के लिए लाइफलाइन कही जाती है, किसी एक ग्रुप के लोगों के लिए रिज़र्व मान ली जाती है. और लोग इस भ्रान्ति के साथ ही जी रहे हैं कि यही सच है.

एक शाम ज़रीन भाभी ने बनारस, गंगा और घाटों से जुड़ा अनुभव साझा किया. उन्होंने बताया कि निक़ाह के बाद सैय्यद भाई सबसे पहले गंगा आरती दिखाने लाए थे. और उसके बाद ज़रीन भाभी अपने मायके की लखनऊ की शाम-ए-अवध भूल सुबह-ए-बनारस के प्यार में पड़ गईं. उन्होंने किस्सा सुनाया, तो हमने ये शेर पढ़ा. जिसे सुन वह भावुक हो गईं.
जाने कितने ही हाथों ने तेरे पानी से वज़ू कर के अपनीइबादत पूरी की है और लोग कहते हैं कि तू हमारी नहीं है

"उफ्फ! ज़िन्दगी को हमने इतना आभासी क्यूं बना रखा है कि उसका वास्तविक रूप देखने से पहले ख़ुद को इतने सारे कूड़े-करकट से आज़ाद करने की ज़रूरत आ पड़ी."


ऐसा करने का इस्लाम में कोई नियम नहीं है. पर लोग कहते हैं कि बलाएं (नज़रें) उतर जाती हैं. लेकिन मुझे इसकी क्या ज़रूरत? मुझे ऐसा करना सुकून देता है. उतना ही सुकून जितना इबादत करने में मिलता है.मैंने उनसे आटे की थोड़ी सी लोई मांग ली. अब मैं भी गोलियां बनाकर उनके साथ मछलियों को खिलाने लगती हूं. ये शायद जादू ही है कि 'फ़िश फ़ूड' 'सोल फ़ूड' में तब्दील होता हुआ महसूस होने लगता है. मछलियों की भूख का तो पता नहीं पर मैं ज़रूर तृप्त हो रही हूं. तभी आशीष अपनी ताजा क्लिक्स दिखाने लगते हैं. मैं उनसे पूछती हूं
"किसी पंडित जी और मौलाना साहब की सीढ़ियों पर गप्पें मारते हुई तस्वीर नहीं मिली?"आशीष अफ़सोस करते हुए बोलते हैं "अगली बार ज़रूर."

गंगाजल से लेकर, वोडका तक,यह सफरनामा है मेरी प्यास कासादा पवित्र जन्म केसादा अपवित्र कर्म का, सादा इलाजऔर किसी महबूब के चेहरे कोएक छलकते हुए गिलास में देखने का यत्नऔर अपने बदन सेएक बिल्कुल बेगाना ज़ख्म को भूलने की ज़रूरतयह कितने तिकोन पत्थर हैंजो किसी पानी की घूंट-से मैंने गले से उतारे हैंकितने भविष्य हैं जो वर्तमान से बचाए हैंऔर शायद वर्तमान भीमैंने वर्तमान से बचाया है

इलहाम के धुएं से लेकर,सिगरेट की राख तकहर मज़हब बौराएहर फलसफा लंगड़ाएहर नज़्म तुतलाएऔर कहना-सा चाहेकि हर सल्तनत के सिक्के की होती है,बारूदी की होती हैऔर हर जन्मपत्रआदम के जन्म कीएक झूठी गवाही देती है