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‘मैं जहां रहूं’… वही गाना- वही गिल्ट, एक कॉल सेंटर कर्मचारी की यादों से

मुझे आराम से बोलना चाहिए था. एक-एक लीड की मेहनत जानता हूं. दो दिन से वही गाना सुन रहा हूं, मैं जहां रहूं, मैं कहीं भी हूं, तेरी याद साथ है.

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एक साधारण दिन
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लल्लनटॉप
13 अक्तूबर 2025 (Published: 02:49 PM IST)
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कभी-कभार हम काम के दबाव और डेडलाइन्स मीट करने में ऐसा कुछ कर जाते हैं, जो नहीं करना चाहिए. मेरी एक हेल्थ पॉलिसी रीन्यू होनी है. लगातार कॉल आ रहे थे. कुछ ज़्यादा ही. मैंने झुंझलाहट में तेज़ आवाज़ में उन्हें डांट दिया. बात को 48 घंटे हो चुके हैं पर अभी भी लग रहा है कि आराम से बात की जा सकती थी. जैसे भीतर गिल्ट हो. इसके पीछे कारण है.

मैं बारहवीं की परीक्षाओं के बाद वन टच सॉल्यूशन्स नाम के एक बीपीओ (कॉल सेंटर) में नौकरी करता था. शिफ़्ट सुबह छह बजे की थी तो चार बजे कैब दरवाज़े पर खड़ी हो जाती. उन्हीं दिनों 'नमस्ते लंदन' का गाना 'मैं जहां रहूं, मैं कहीं भी हूं, तेरी याद साथ है' रिलीज़ हुआ था. अक्सर एफ़एम पर सुबह वही बजता. मेरे लिए इस गाने की यही और बहुत गहरी याद है.  
मैं सुबह निकलता और शाम को लौटते हुए पांच बज जाते. तब भी यह गाना किसी न किसी चैनल पर आ ही जाता. न्यूज़ीलैंड के क्लाइंट्स से मॉर्गेज की बात करना टास्क था. मेरा एक छद्म नाम होता था, एस्टर. एस्टर कैंपबेल.

अठारह का नहीं हुआ था तो कोने की सीट पर मुझे बिठाया जाता. बारहवीं के रिजल्ट के समय शिफ़्ट पर था. रिज़ल्ट वहीं देखा. टीम में मिठाई बांटी गई थी. एक बार की बात है. फ़ायरिंग (नौकरी से हटाने की प्रक्रिया) शुरू हुई. टास्क पूरा नहीं कर पाया तो मुझे भी निकाल दिया गया. मैं रिसेप्शन पर बैठा लेटर मिलने का इंतज़ार कर रहा था तभी हितेश और जैक सर आए और कहा, कहीं नहीं जा रहे तुम. ऑस्ट्रेलियन प्रोजेक्ट में काम करोगे. मैं सोच ही नहीं पाया कि पांच मिनट में मेरे साथ क्या-क्या हो गया.

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ख़ैर! बारहवीं के रिज़ल्ट के बाद मुझे हंसराज कॉलेज में दाख़िला मिल गया। फीस के पैसे सैलरी से जोड़ लिए थे. उस समय न कॉलेज फ़ीस इतनी थी, न सैलरी. कॉल सेंटर में मेरा अंतिम दिन आया. कैब से घर लौट रहा था. साथ बैठी टीम लीड ने हाथ मिलाते हुए कहा, ऑल द बेस्ट एस्टर. अब कभी मत आना यहां. ख़त्म हो जाओगे. बहुत आगे जाना है. मैं उनका चेहरा और शब्द नहीं भूल पाता, न कॉल सेंटर के वे दिन.

बीते 48 घंटे से लग रहा है जैसे किसी एस्टर को मैंने डांट दिया है. क्या पता वह भी रिसेप्शन पर बैठा हो. मुझे आराम से बोलना चाहिए था. एक-एक लीड की मेहनत जानता हूं. दो दिन से वही गाना सुन रहा हूं, मैं जहां रहूं, मैं कहीं भी हूं, तेरी याद साथ है.

(ये लेख इंडिया टुडे मैगजीन में कार्यरत हमारे साथी अंजुम शर्मा ने लिखा है.)

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