अमृतपाल सिंह को सोशल मीडिया स्टार किसने बनाया, कौन लोग थे उसके मददगार?
खालिस्तानी अमृतपाल का सीक्रेट प्लान सामने आया...

अगस्त 2022. अमृतपाल सिंह दुबई से भारत आता है. उसकी अगवानी करने वालों में संगरूर के सांसद और शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान भी शामिल थे. यहां आने के बाद उसने तमाम मीडिया चैनलों को इंटरव्यू दिए. इन इंटरव्यू में उसने सिख भावना से जुड़े तमाम मुद्दों को उठाना शुरू किया. इसमें जेल में बंद पूर्व खालिस्तानी अतिवादियों की रिहाई, यमुना-सतलज लिंक नहर और चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाए जाने जैसे सालों से लंबित मुद्दे शामिल थे. अमृतपाल सिंह सिखों से गुलामी की जंजीर तोड़ने का आह्वान कर रहा था. 'अकाल चैनल' नाम के यू-ट्यूब चैनल को दिए इंटरव्यू में जब अमृतपाल से पूछा गया कि जिस सिख आजादी की बात कर रहे हैं उसका रास्ता किधर जाता है. अमृतपाल का जवाब था, "सिखों की आजादी के सारे रास्ते खालिस्तान की तरफ जाते हैं."
इसी इंटरव्यू में पंजाब में नशे की समस्या के सवाल पर अमृतपाल इसे सरकार की सोची-समझी रणनीति करार देता है.
वो कहता है,
"ये नशे की समस्या सिर्फ पंजाब में ही क्यों हैं. क्या प्रशासन चाहे तो नशे को रोक नहीं सकता. दुनिया भर में ये तजुर्बा किया जा चुका है कि जो संघर्ष करने वाली कौमें हैं, उन्हें गुलाम बनाने के लिए नशे में डाला जाता है. ये सरकार की पंजाब का सांस्कृतिक कत्लेआम करने की नीति का हिस्सा है."
इसी तरह पंजाब तक को दिए इंटरव्यू में पंजाब का माहौल बिगाड़ने के आरोप का जवाब देते हुए अमृतपाल कहता है,
"पंजाब का माहौल पहले से खराब था. मैंने तो बस उसके ऊपर पड़ा पर्दा खींच दिया है. ये तो आपके देखने का नजरिया है. कोई नौजवान अगर नशे की राह छोड़कर शहीदी का रास्ता चुनता है तो आप उसे कैसे देखते हो? आप उसे 'चढ़ादी कला' के तौर पर लेते हो या फिर किसी नुकसान के तौर पर. मेरा मानना है कि बिना शहीदी दिए धारा को मोड़ा नहीं जा सकता."
मोहाली में सिख राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए हो रहे प्रदर्शन में बोलते हुए अमृतपाल सिंह वहां मौजूद सिखों को पंजाब की आजादी के लिए संघर्ष करने का आह्वान करता है. बेहद उग्र अंदाज में दिए अपने भाषण में वो कहता है,
अमृतपाल सोशल मीडिया का स्टार बन गया"आज वो समय आ गया है कि अगर हम बंदी सिंहो को छुड़ाने की बात करते रहे और मसले की जड़ तक नहीं पहुंचे तो हम लोग इसी चक्रव्यूह में फंसे रहेंगे. अगर बात करनी है तो सिखों की गुलामी की बात करनी है. अपनी आजादी की बात करनी है. अपना राज लेने की बात करनी है. हो सकता है इसके लिए हमें अपना संघर्ष थोडा और लम्बा करना पड़े. अपने सिर देने पड़ें. लेकिन मैं गोल-मोल बात नहीं करता. मैंने पहले भी कहा और अब भी कह रहा हूं. 'राज बिना ना धरम चले है, धरम बिना सब दले-मले है'. कोई आपको आपका राज थाली में सजाकर नहीं देगा. राज लेने के लिए लड़ना पड़ेगा. जब तक हम अपना राज नहीं ले लेते तब तक सिखों के बच्चे, हिंदुस्तान ने ये जो पिंजरा बनाया है सिखों के लिए, उसमें तड़प-तड़पकर मरते रहेंगे."
एक लम्बे अंतराल के बाद कोई शख्स पंजाब में अतिवादी मुहावरों में बात कर रहा था. अमृतपाल को स्थानीय पंजाबी मीडिया और प्रवासी सिखों के बीच चल रहे यू-ट्यूब चैनल्स और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफर्म्स ने हाथों-हाथ लिया. यू-ट्यूब पर उनके इंटरव्यू लाखों की तादाद में देखे जा रहे हैं. प्रो-पंजाब यू-ट्यूब चैनल पर अमृतपाल सिंह के इंटरव्यू को लाखों बार देखा जा चुका है. शिवसेना पर दिए प्रेस बयान के वीडियो को डेली पोस्ट पंजाबी नाम के यू-ट्यूब चैनल पर भी कई लाख बार देखा गया है.
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अमृतपाल सिंह ने सोशल मीडिया से लोगों के बीच पहचान हासिल की. वो पूरी तरह से सोशल मीडिया की उपज है. भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की शिकायत के बाद सितम्बर 2022 से ट्विटर ने अमृतपाल का अकाउंट भारत में प्रतिबंधित कर रखा है. दिसंबर 2022 में इंस्टाग्राम ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की शिकायत के बाद उसका अकाउंट पूरी तरह से ब्लॉक कर दिया. लेकिन यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर कई अकाउंट हैं जो अमृतपाल से जुड़ा कंटेंट डालते हैं और इन्हें लाखों की तादाद में देखा जा रहा है. 28 दिसंबर, 2022 को अमृतपाल सिंह का इंस्टाग्राम अकाउंट हटा दिया गया था. लेकिन उसके नाम से चलने वाले एकाउंट्स की इंस्टाग्राम पर बाढ़ आई हुई है.

ये सच है कि अमृतपाल ने अपनी शुरूआती पहचान सोशल मीडिया से हासिल की. लेकिन अगस्त 2021 में दुबई से भारत लौटने के बाद अमृतपाल की सक्रियता जमीनी स्तर दिखना शुरू हो गई. अमृतपाल सिंह का पहला सार्वजानिक पदार्पण 25 सितम्बर 2022 को हुआ. उसने सिखों की धार्मिक और राजनीतिक आस्था का पर्याय रहे आनंदपुर साहिब में 'अमृत छकने' की रस्म अदा की. यही वो जगह थीं जहां गुरु गोविन्द सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. यही वो जगह थी जहां 1973 में अकाली दल ने सिखों की धार्मिक और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को एक प्रस्ताव की शक्ल दी और जिसे बाद के दौर में 'आनंदपुर साहेब दा मता' कह कर पुकारा जाना था. इसके चार दिन बाद 29 सितम्बर 2022 को अमृतपाल सिंह की रोडे गांव में दस्तारबंदी की गई. दोनों ही घटनाओं के सांकेतिक महत्त्व थे.
दस्तारबंदी के बाद अमृतपाल सिंह की वेशभूषा, उसके बात करने का तरीका और उसके कार्यक्रमों से लोगों के बीच जरनैल सिंह भिंडरावाले की याद ताजा हो गई. 25 अगस्त 1977 को जरनैल सिंह रोडा को सिखों के धार्मिक संस्थान दमदमी टकसाल का 14वां जत्थेदार नियुक्त किया गया था. टकसाल का मुख्यालय भिंडरा कला में होने के चलते उन्हें भिंडरावाले के नाम से बुलाया जाने लगा. महज 32 साल की उम्र में सिखों के इज्जतदार धार्मिक संस्थान की कमान थामने के बाद भिंडरावाले ने शुरूआती दौर में अमृत संचार और नशा मुक्ति के लिए अभियान चलाया. उनका नारा था, 'अमृत छको, सिख साजो, नाम जपो ते नशा छड्डो.'
भिंडरावाले की तरह ही 'वारिस पंजाब दे' के जत्थेदार बनने के बाद अमृतपाल ने अमृत संचार पर जोर देना शुरू किया. 22 नवम्बर, 2022 को उसने अमृतसर के हरमंदर साहिब गुरूद्वारे से 'खालसा वहीर' शुरू की. वहीर एक किस्म का धार्मिक मार्च है. इस मार्च में गुरु ग्रन्थ साहिब की अगुवाई में यात्रा निकाली जाती है. एक महीने लम्बी चली इस वहीर का पहला चरण 21 दिसम्बर 2022 के रोज आनंदपुर साहिब में खत्म हुआ.
इस वहीर को कवर कर रहे डोक्युमेंट्री मेकर गुरकिरत सिंह कहते हैं,
"वहीर एक गांव से दूसरे गांव में घूमती थी. हम अपने रूटमैप के हिसाब से रात का पड़ाव तय करते. इसमें ज्यादातर वो जगहें होती जो धार्मिक और ऐतिहासिक तौर पर महत्वपूर्ण रही हों. जिन गांवों में हम घूमते वहां लोगों को अमृत छकने के लिए प्ररित करते. इस वहीर में अमृतपाल को अच्छा रिस्पोंस मिला. मेरे अंदाजे से कम से कम चार हजार लोगों ने इस वहीर के दौरान अमृत छका."
सिख युवाओं को अमृत छकने के लिए प्रेरित करने के अलावा अमृतपाल सिंह का दूसरा बड़ा जोर नशा मुक्ति पर है. उसने अपने गांव जल्लुपुर खेड़ा के गुरूद्वारे को अपना बेस बनाया. यहां दूर-दूर से नौजवान नशा मुक्ति के लिए आते हैं. इस नशा मुक्ति केंद्र की कमान फिलहाल अमृतपाल के सहयोगी बसंत चला रहे हैं. बसंत सिंह बड़े उत्साह से बताते हैं,
सिमरनजीत सिंह मान भी एक अहम कड़ी"हमारे पास कई नौजवान नशा छोड़ने के लिए आते हैं. ज्यादातर नौजवान चिट्टे (हेरोइन) की लत का शिकार हैं. हम नशा मुक्ति केंद्र से उलट उन्हें एक खुले माहौल में रखते हैं. कहीं कोई पहरा नहीं है. उन्हें सेवा में लगाते हैं. सुबह से शाम तक बीजी रखते हैं और पंथ के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं. अगर किसी को ज्यादा दिक्कत होती है तो हम उसे आयुर्वेदिक दवा देते हैं. थोडा समय लगता है, लेकिन लड़के अपनी प्रेरणा से नशा छोड़ देते हैं."
अमृत संचार, नशामुक्ति और सिख पहचान पर जोर देने के अलावा एक और चीज अमृतपाल और भिंडरावाले के बीच की कड़ी को जोड़ती है. वो कड़ी है संगरूर के सांसद सिमरनजीत सिंह मान. सिमरनजीत सिंह मान पंजाब की राजनीति में दिलचस्प किरदार रहे हैं. मान एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनके पिता जोगिंदर सिंह मान पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं. 1966 में उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा ज्वाइन की थी. वो पंजाब कैडर के आईपीएस अफसर थे. 1979 में फरीदकोट के एसएसपी रहने के दौरान उन पर आरोप लगा कि उन्होंने जरनैल सिंह भिंडरावाले के समर्थकों को हथियार के लाइसेंस देने के मामले में जरुरत से ज्यादा नरमी बरती. उनके खिलाफ विभागीय जांच भी चली लेकिन वो साफ़ बच गए.
1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को लिखे खत में उन्होंने पूरी अभद्रता से सीधा नाम लेकर संबोधित किया. अपने इस्तीफे के अंत में उन्होंने लिखा, "सिखों को हर दिन हजारों की तादाद में प्रधानमंत्री के आवास पर जाकर अपना सिर कुर्बान कर देना चाहिए ताकि उस महिला की खूनी प्यास बुझ सके."
वो इस दौरान मुंबई में सीआईएसएफ के डीआईजी के तौर पर तैनात थे. मान ने इस दौरान मुंबई के सिख आबादी वाले साइन-कोलीवाडा इलाके के गुरूद्वारे में उकसाऊ भाषण दिए. जिसका मराठी मीडिया में मुखर होकर विरोध किया और वहां दंगों जैसे हालात बन गए. उन्हें बिना किसी इन्क्वायरी के भारतीय पुलिस सेवा से बर्खास्त कर दिया गया.
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उनका नाम इंदिरा गांधी की हत्या के साजिशकर्ता के तौर पर भी सामने आया. इसके बाद वो नेपाल भागने की कोशिश के दौरान पकडे गए और करीब पांच साल जेल में रहे. सिमरनजीत सिंह मान को 1989 में यूनाइटेड शिरोमणि अकाली दल का अध्यक्ष बनाया गया. इसी साल को तरणतारण से पहली बार सांसद बने. केंद्र में सत्ता में आई जनता दल सरकार ने राज्य के हित में उनके खिलाफ लगे सभी मुकदमे वापिस ले लिए. लेकिन सिमरनजीत सिंह मान एक बार फिर से विवादों में आ गए. वो संसद में कृपाण लेकर जाने की मांग को लेकर अड़ गए. सुरक्षा कारणों से उनकी मांग नहीं मानी गई. उन्होंने इसके विरोध में इस्तीफ़ा दे दिया.
1989 से 2022 के बीच उन्होंने पंजाब में होने वाले हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़े. कुल 13 बार की उम्मीदवारी में उन्हें महज 3 बार सफलता हाथ लगी. 1999 में उन्होंने संगरूर लोकसभा सीट पर सुरजीत सिंह बरनाला को पटखनी दी. 2022 जून में भगवंत मान के सीट खाली करने बाद हुए उपचुनाव में 6,245 वोट के अंतर से जीतने में कामयाब रहे हैं.

सिमरनजीत सिंह मान ने अपनी इस जीत को जरनैल सिंह भिंडरावाले को समर्पित किया. पंजाब की सियासत में दशकों हाशिए पर रहे मान जून 2022 के बाद एक बार फिर से मौजू हो चुके हैं. उनकी जीत को पंजाब में अलगाववादी ताकतों की मजबूती से जोड़कर देखा जा रहा है. मान ने अपने चुनाव प्रचार में 'बंदी सिंहो की रिहाई' मुद्दा बड़ी जोर-शोर से उठाया था. फिलहाल यह मुद्दा पंजाब की सिख राजनीति के केंद्र में है.
बंदी सिंहो कौन हैं जिन्हें छोड़ने की मांग हो रही है?बंदी सिंहो यानी वो सिख जिन्हें पिछली खाड़कू लहर के दौरान गिरफ्तार किया गया था. इनमें से ज्यादातर ऐसे लोगों की रिहाई की मांग की जा रही है जिन्हें आतंकवादी गतिविधियों में दोषी पाया गया और वो फिलहाल भारत की विभिन्न जेलों के बीच उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. 69 साल के पाल सिंह ने भी अपने जीवन के सात साल बतौर राजनीतिक बंदी जेल में काटे हैं. 22 जुलाई 2010 को पाल सिंह को अकाल फेडरेशन नाम के संगठन का सदस्य बताकर अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट के तहत हिरासत में ले लिया गया था. वो सात साल जेल में रहने के बाद इस केस में बरी होकर आए.
पाल सिंह याद करते हैं.
"मुझे शुरुआत में साढ़े तीन साल मैक्सिमम सिक्यूरिटी जेल अमृतसर में रखा गया. वहां से मुझे नाभा जेल ट्रांसफर कर दिया गया. आखिर का एक महीना मैंने संगरूर जेल में बिताया. मेरा अकाल फेडरेशन जैसे किसी संगठन से कोई वास्ता नहीं था. मेरी गलती यह थी कि मैं पंजाब हो रहे मानवाधिकार हनन के मामलों में मुखर था. ट्रायल के दौरान पता लगा कि अकाल फेडरेशन जैसा कोई संगठन प्रतिबंधित संगठन की लिस्ट में है ही नहीं. आखिरकार उन्हें मुझे रिहा करना पड़ा."
पाल सिंह आगे कहते हैं,
"हम एक लोकतंत्र में रहते हैं, लेकिन यहां सबके लिए कानून एक जैसा नहीं है. आप बताइए अगर राजीव गांधी के हत्यारे छूट सकते हैं. अगर बिलकिस बानो के साथ बलात्कार करने के दोषी छूट सकते हैं तो सिख राजनीतिक बंदी क्यों नहीं छूट सकते. ये लोग पेशेवर अपराधी नहीं है. वो दौर अलग था जब इन लोगों ने हथियार उठाए. अब इनकी पूरी जवानी जेल में बीत गई. दिल्ली की सरकार को इतना तो सोचना चाहिए. कई लोग 30-30 साल से जेल में हैं. अब तो उन्हें रिहा कर देना चाहिए."
पाल सिंह सिख राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए देश के लोकतंत्र का हवाला दे रहे हैं. 1997 का विधानसभा चुनाव पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद के अंत के तौर पर देखा जाता है. लेकिन खालिस्तान की मांग कभी की पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुई. दल खालसा और शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) जैसे सिख रैडिकल संगठन पंजाब में सक्रिय रहे. इन संगठनों ने खालिस्तान की मांग का समर्थन तो किया लेकिन हिंसा और आतंकवाद के रास्ते का कभी खुला समर्थन नहीं किया.
खालिस्तानी आन्दोलन का एक और हिस्सा है जोकि आंतकवाद के रास्ते पर चला. 1980 से 1995 के दौर में हथियार उठाने वाले खालिस्तानियों को 'खाड़कू' के नाम से जाना जाता है जिसका हिंदी तर्जमा 'लड़ाका' है. लगभग 15 साल की मशक्कत के बाद पंजाब पुलिस ने पिछली खाड़कू लहर पर काबू पा लिया था. पंजाब पुलिस की सख्ती के चलते काई खालिस्तानी आतंकवादियों ने पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई की शह पर अपना बेस पाकिस्तान में शिफ्ट कर लिया था. हाल के दौर में इन संगठनों की सक्रियता पंजाब में नार्को-टेरेरिज्म के तौर पर बढ़ी है.
(ये स्टोरी इंडिया टुडे मैगजीन के रिपोर्टर विनय सुल्तान ने की है.)
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