साध्वी प्राची ने क्या 'कमाल' की बात कही है!
'हमने कांग्रेस मुक्त भारत कर दिया है. अब 'मुस्लिम मुक्त भारत' के लिए हमें काम करने की जरूरत है और हम काम कर भी रहे हैं.' हम उनकी इस बात पर खबर नहीं देंगे. बस ख़बर लेंगे.
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फोटो - thelallantop
तो मैडम. मसला ये है कि गरीबी गरीबी है. वो मजहब के हिसाब से फर्क नहीं करती. गेंहू दोनों ही कौमों के पेटों में बराबर गर्माहट लाता है. पर इन लोगों की गर्मी गेंहू से आगे की सोच नहीं पाती. जरूरत तो ये है कि स्वास्थ सुविधाओं में जबरदस्त इजाफा हो. सबकी डिलीवरी फ्री. हर तरह की दवा फ्री. सर्जरी फ्री. छह महीने तक जांच पड़ताल फ्री. और दो बच्चों के बाद ऑपरेशन करवाने वालों को बीमा, पेंशन, आजीवन मेडिकल सुविधा, मुफ्त शिक्षा वगैरह की व्यवस्था हो. तब ज्यादा ये ज्यादा लोग इस तरफ आएंगे.
- जो अमीर हैं. या वेल टु डू हैं. और समझदार हैं. वे एक या दो बच्चे करते हैं. उन्हें पता है. महंगाई का जमाना है. दो का ही भविष्य बना लें तो बहुत.
- जो पइसे वाले हैं, मगर दिमाग में अब भी गोबर भरा है. वो दो तीन चार करते जाते हैं, जब तक बेटा न हो. तो क्या हुआ, जो बाद में वही बेटा उन्हें तरेरे दरेरे.
- जो कम गरीब हैं, मगर समझदार हैं. वे दो बच्चों के बाद खुद ही पहल कर ऑपरेशन करवा लेते हैं. अकसर अपना नहीं करवाते. पत्नी का करवाते हैं. उन्हें लगता है कि अपना करवाने से इंद्री कमजोर हो जाएगी. और पत्नी. पति का नाम तक तो ले नहीं सकती. पर अच्छा ही है. बार बार बच्चा जनने से कमजोरी होती है. समेटना सब उसे ही पड़ता है.
- चौथे हैं बहुत गरीब. ज्यादातर हिंदू-मुसलमान. सरकारी अस्पतालों में उनकी सुनवाई नहीं. कोई ये समझाने वाला नहीं कि ज्यादा बच्चे करने से सिर्फ हाथ नहीं मुंह भी बढ़ते हैं. अभी दसवीं में भूगोल के लिए रटा निबंध याद आ रहा है. तब हम पढ़ते थे कि जनसंख्या वृद्धि के लिए मनोरंजन के साधनों में कमी भी जिम्मेदार है. बड़ा हुआ और कई ऐसे साथियों से बात की, जो गरीब तबके से आते हैं, तो ये समझ आया. दफ्तर के सामने एक रिक्शे वाला है. साल में दो महीने के लिए घर जाता है. और फिर जाने के एक महीने पहले चार साल से मुस्कुराकर बता रहा है. एक और की बढ़ती हो गई हमारे घर में.
यूं तकरीरें देने से खाक कुछ नहीं होगा. कुछ मुसलमान सोचेंगे हम इस मुल्क में खतरे में हैं. खतरे में हैं क्योंकि संख्या में कम हैं. तो क्या करें. ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करें. आपकी तरह उनकी कौम में भी कुछ चमन हैं. जो इसी सोच को भड़काएंगे. और आग को आग से बुझते मैंने कभी नहीं देखा.क्या कमाल हो कि आपके जैसे हजारों हिंदू नेता अनशन करें. भाषण करें. कि हमारे मुसलमान भाई जिन इलाकों और गांवों में रहते हैं, वहां स्कूल क्यों नहीं हैं. अस्पताल क्यों नहीं हैं. उनको वजीफे क्यों नहीं मिल रहे. उनके बच्चों को आईटीआई, पॉलीटेक्निक में एडमिशन क्यों नहीं मिल रहे. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक उनकी हालत में सुधार के लिए सरकार कुछ करती क्यों नहीं. भला एक टांग के कमजोर रहते कोई रेस जीत पाया है. पर वो काम हम करेंगे. क्योंकि आपकी सोच, समझ, संगत और सियासत इसकी इजाजत नहीं देती. 3. अब आखिरी बात. देश का संविधान, जिसे एक ऐसी सभा ने स्वीकृति किया, जिसमें बहुसंख्यक हिंदू थे, यह नहीं कहता कि सभी भारत माता की जय कहें. देश मां हैं, ये किसने तय किया. मैं कहूं कि भारत पापा की जय, तो क्या होगा. पॉलिटिक्स है बॉस. आपने तय कर लिया. मैंने नहीं माना. तो क्या मैं देशद्रोही हो गया. ये मुल्क साध्वी प्राची का है, तो सौरभ का भी तो है. आपको ये परिभाषाओं तय करने का हक किसने दिया. मैं भारत माता की जय बोलूंगा. मगर किसी ऐसे के कहने पर नहीं, जिसका इरादा दहशत फैलाने का हो. मैं भारत माता की जय बोलूंगा, जिस दिन 10 लड़कियों की पढ़ाई का खर्च उठाऊंगा. फिर वो चाहे गरीब सवर्ण हों, दलित, आदिवासी या फिर मुसलमान. मैं भारत माता की जय बोलूंगा, जिस दिन अपने बेटे को ये सिखाऊंगा कि किसी को छेड़ने से पहले अपनी मां, बहन, बेटी की शकल याद कर लेना. मैं भारत माता की जय बोलूंगा जब किसी लड़की को जिंदगी में जूझना, औरों के लिए मिसाल बनना सिखा दूं बतौर टीचर. मैं किसी कौम को डराने के लिए, किसी नस्ल में झूठी हिम्मत भरने के लिए, और किसी कायर के इरादों को मजबूती देने के लिए भारत माता की जय नहीं बोलूंगा. मैं आज भी अपनी मां के आंचल में घुस जाता हूं. उनके साथ सोता हूं. वो खिलाती है तो ठुनकठुनक खाता हूं. मगर चौराहे पर इसका विज्ञापन नहीं करता. जरूरत नहीं है. राष्ट्रीय झंडे की इज्जत सबको करनी चाहिए. जो नहीं करता, उनके लिए कानून बना है. कोर्ट खड़ा है. मगर उससे पहले आप डंडा लेकर न खड़े हों कृपया.
और रही गौ वध की बात. तो ये आपने खूब कही. गरीब मुसलमान के घर में वो गंडासा नहीं होता, जिससे गाय, भैंस काटे जाते हैं. ये काम बड़े बड़े कसाईघरों में होता है. संगठित रूप से होता है. अगर आपको लगता है कि आपकी सरकार है, तो कानून बनवाइए. छापा डलवाइए. मगर किसी अखलाक को न मारिए. उस दिन आपकी भारत माता भी कुछ मर जाती है. अपने एक बेटे को यूं मांस का मरा टुकड़ा बनता देख.कभी सोचिएगा. बेटी की फीस, पत्नी की दवा, मकान का किराया, इन सबसे दो चार होता कोई रहीम क्या रात में ये सोच छुरा छिपा निकलता होगा. चल आज बेहतर मुसलमान बनता हूं. चल आज गाय काटता हूं. और वैसे भी दुधारू गाय कोई नहीं काटता. चाहे राम हो या रहीम. सबको दूध अच्छा लगता है. अपने लिए. अपने परिवार के लिए. और बिना दूध की गाय को शायद ही कोई राम भी रखना चाहे. आप एक काम करो आंटी जी. हर गांव-शहर में गौशाला खुलवा दो. जहां गाय की सेवा हो. उन्हें सड़कों पर पॉलीथीन खाने के लिए न भटकना पड़े. राजमार्गों पर ट्रकों का शिकार न होना पड़े. पर नहीं, ये आप नहीं करेंगी. क्योंकि इसमें मुंह नहीं हाथ चलाने पड़ेंगे. सबको मेहनत करनी पड़ेगी. और वो हम हिंदुस्तानियों से कम ही होती है. अब जब तक आप कोई बहुत ही घिनौना कांड नहीं कर देतीं. दी लल्लनटॉप पर आपका जिक्र नहीं आएगा. मगर ये बात बार-बार होगी. कि हिंदू हों या मुसलमान. मालदा हो या दादरी. क्यों किसी के उकसावे पर ऊट पटांग हरकतें करने लगते हैं. हम हम सबको बार बार बताएंगे. कि कोई तुम्हारी लड़ाई नहीं लड़ेगा. लड़ाई जो भूख, अशिक्षा, भेदभाव के खिलाफ है. लड़ाई जो जाति, धर्म के हिसाब से किए जाने वाले भेदभाव के खिलाफ है. हम बताएंगे कि कोई मौलवी, कोई पंडित तुम्हारे हिस्से के पुण्य नहीं बढ़ा पाएगा. जिस मां को मैं वंदे बोलता हूं. वह अकसर कहती है. बेटा, अपने मरे ही स्वर्ग मिलता है. हम जिएंगे और मरेंगे. अपने लिए. अपने परिवार के लिए, समाज के लिए. देश के लिए. और उस जीने के लिए आप जैसों का जितना विरोध करना पड़ेगा, वो भी करेंगे. हिंदू, मुसलमानों, सिख, इसाईयों...अपने हर बच्चे को बराबर प्यार करने वाली भारत माता की जय.