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एक राष्ट्रपति को देश के फ़ायरिंग दस्ते ने सरेआम गोलियों से क्यों भून दिया?

रोमेनिया के इतिहास का एक हिंसक अध्याय ऐसे ही खत्म हुआ.

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24 साल का शासन. 70 हज़ार जानें. बेशुमार कर्ज़. निकोलाई सासेस्की ने रोमेनिया का बंटाधार कर दिया था.
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अभिषेक
22 दिसंबर 2020 (Updated: 22 दिसंबर 2020, 09:40 AM IST)
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तारीख़- 22 दिसंबर.

ये तारीख़ जुड़ी है एक क्रांति से. जिसके जरिए एक तानाशाह सरकार को उखाड़ कर फेंक दिया गया. 24 सालों से शासन चला रहा नेता, जिसने अपने ही लोगों को एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा कर दिया था. जब लोगों की आंखों से भक्ति का चश्मा हटा, उन्होंने विद्रोह कर दिया. उसे गद्दी से उतारकर किनारे खड़ा कर दिया गया. और, फिर एक दिन उसे सरेआम गोली मार दी गई. क्या है पूरी कहानी? जानते हैं विस्तार से.

तारीख़ 21 दिसंबर. साल 1989. रोमेनिया का सबसे ताक़तवर शख़्स थर-थर कांप रहा था. अपनी ही रैली में. अपने ही लोगों के सामने. उसे 24 सालों के एकछत्र राज का अंत नजदीक दिखाई पड़ रहा था. अपने महल के प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े होकर लोगों से शांत रहने की अपील की. लेकिन लोग नहीं माने. वो जबरदस्ती राष्ट्रपति के महल के भीतर घुसने लगे. ये सब कुछ लाइव टीवी पर चल रहा था. कुछ दिनों के बाद एक और चीज़ टीवी पर चलाई गई. जिसने रोमेनिया के अंधकार-युग पर फ़ुल-स्टॉप लगा दिया. वो चीज़ क्या थी? इसके बारे में आगे जानेंगे.
अपने अंतिम भाषण के दौरान निकालोाई सासेस्की.
अपने अंतिम भाषण के दौरान निकालोाई सासेस्की.

पहले ये जान लेते हैं कि वो शख़्स कौन था? और, उसके अपने ही लोग ख़िलाफ़ में क्यों थे?

उस शख़्स का नाम था, निकोलाई सासेस्की. सासेस्की का जन्म 1918 में हुआ था. जवानी के दिनों में उसने कम्युनिस्ट पार्टी के लिए भी काम किया. तब रोमेनिया में कम्युनिस्ट पार्टी प्रतिबंधित थी. इसलिए सासेस्की को कई बार जेल जाना पड़ा. 1944 में जब सोवियत संघ ने रोमेनिया पर कब्ज़ा किया, सासेस्की का कद अचानक से बढ़ गया. रोमेनिया में सोवियत जैसी शासन व्यवस्था शुरू हुई. तब सासेस्की को मंत्री पद  मिला.

1965 में सासेस्की को कम्युनिस्ट पार्टी का जनरल-सेक्रटरी बनाया गया. जब 1974 में रोमेनिया में राष्ट्रपति के पद की स्थापना हुई, तब पहला राष्ट्रपति. समझ लीजिए कि वो व्यक्ति रोमेनिया का सर्वेसर्वा था. लोकचाल की भाषा में कहें, तो सब काम उसी की कृपा से हो रहे थे. ऐसा माहौल बनाया गया था.

ऐसा होना ही था. क्योंकि उस दौर में, उस देश में सासेस्की की जय-जय करने के अलावा कोई दूसरा चारा था ही नहीं. मीडिया पर सेंशरशिप थी. विरोध करनेवालों को उदाहरण बना दिया जाता था. ताकि नई गुंज़ाइशें दबी रहें. सासेस्की की सीक्रेट पुलिस ‘सिक्योरितेत’ का खौफ़ इतना ज़्यादा था कि लोग अपने घर में भी कुछ कहने से डरते थे. उन्हें डर होता कि उनकी बात पुलिस तक न पहुंच जाए. लोग अपने घरवालों, अपने दोस्तों तक पर भरोसा नहीं करते थे.


सासेस्की को सोवियत काल के सबसे ख़ूंख़ार तानाशाहों में गिना जाता है.
सासेस्की को सोवियत काल के सबसे ख़ूंख़ार तानाशाहों में गिना जाता है.

इस नाकेबंदी के बीच जनता घुट रही थी. रोमेनिया यूरोप के सबसे गरीब देशों में गिना जाने लगा था. एक तरफ़ लोगों के पास दवा और खाने जैसी बुनियादी चीज़ें उपलब्ध नहीं थीं, वहीं दूसरी तरफ़ सासेस्की के शौक ही पूरे नहीं हो पा रहे थे. अपने प्रचार और ऐशो-आराम के लिए सासेस्की ने विदेशों से कर्ज़ लिया.

1980 के दशक में सासेस्की ने संसद की नई इमारत बनाने का आदेश दिया. ये एक महल था. आलीशान. हर तरह की सुख-सुविधाओं से लैस. इसे बनाने के लिए एक बार फिर बेशुमार कर्ज़ लिया गया. दो जून की रोटी के लिए तरसती जनता के लिए आघात से कम नहीं था. इस चोट का ज़ख्म तब और बढ़ गया. जब नए कर्ज़ का भार लोगों के सिर पर लाद दिया गया.

कर्ज़ चुकाने के लिए पैसों की दरकार थी. खेती और उद्योग के उत्पादों को एक्सपोर्ट करने के लिए कहा गया. इससे कर्ज़ तो कम होने लगा, लेकिन लोगों का गुस्सा बढ़ गया. एक बड़ा वर्ग अभी तक सासेस्की के किए-धरे को देशहित में उठाया कदम मानकर चुप बैठा था. पर जब उनके हिस्से से भोजन, दवा, ईंधन और दूसरी बुनियादी चीजें दूर हुईं, उन्हें सब समझ में आया.

फिर आया साल 1989 का. कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक हुई. इसमें नया राष्ट्रपति चुना जाना था. चुना भी गया, या यूं कहें कि कॉन्ट्रैक्ट रीन्यू कर दिया गया. निकोलाई सासेस्की एक बार फिर से रोमेनिया के राष्ट्रपति बनाए गए. वो साल और महीना था, जब दुनिया भर की कम्युनिस्ट सरकारें एक-एक कर धड़ाम हो रहीं थी. सासेस्की ने पार्टी की बैठक में इसका मज़ाक उड़ाते हुए कहा था, रोमेनिया में ऐसा कुछ नहीं होने वाला.


जब स्टूडेन्ट्स प्रोटेस्ट में आए, उन्होंने क्रांति का रुख मोड़ दिया.
जब स्टूडेन्ट्स प्रोटेस्ट में आए, उन्होंने क्रांति का रुख मोड़ दिया.

लेकिन ऐसा होने वाला था. बिल्कुल होने वाला था. क्योंकि लोग अपनी घुटन से उब चुके थे.

ये मौका आया और एकदम अचानक से आया. सासेस्की की सरकार ने हंगरी मूल के एक पादरी को देशनिकाला दे दिया. तिमिसोरा शहर में इसके ख़िलाफ़ विरोध शुरू हुआ. फिर इस प्रोटेस्ट में स्टूडेंट्स शामिल हो गए. उन्होंने इसका मज़मून बदलकर रख दिया. वे रोमेनिया में लोकतंत्र की मांग करने लगे. धीरे-धीरे प्रोटेस्ट देशभर में फैल गया. सासेस्की ने संभालने की जगह गोलियां चलवाईं. रोमेनिया की सड़कों पर ख़ून बहने लगा. हिंसा में एक हज़ार से अधिक लोग मारे गए. लेकिन बाकियों ने आगे बढ़ना नहीं छोड़ा.

21 दिसंबर तक आग राजधानी बुखारेस्ट तक पहुंच चुकी थी. तब धूर्त तानाशाह ने अपना जाल फेंका. उसने बुलाई एक सभा. सेंट्रल कमिटी की इमारत के सामने भारी भीड़ इकट्ठी हुई. भोंपू मीडिया ने इन लोगों को सासेस्की का समर्थक बता दिया. इसका प्रसारण लाइव टीवी पर चलाया गया. दरअसल, ये बताने की कोशिश की जा रही थी कि रोमेनिया में अभी भी सासेस्की के चाहनेवालों की कमी नहीं है.

लेकिन ये ड्रामा सासेस्की पर ही भारी पड़ गया. जैसे ही भाषण शुरू हुआ, लोगों ने मंच पर पत्थर फ़ेंकना शुरू कर दिया. गुस्साए लोग सरकारी इमारत के भीतर दाखिल होने लगे. लाइव टीवी का प्रसारण कुछ देर के लिए रोक दिया गया. जब दोबारा प्रसारण शुरू हुआ, तब तक भीड़ बेकाबू हो चुकी थी. सैनिकों ने लोगों पर हथियार चलाने से मना कर दिया. वे प्रदर्शनकारियों की भीड़ में शामिल हो गए.


निकोलाई सासेस्की ने अपनी पत्नी एलेना के साथ मिलकर रोमेनिया के लोगों का जीना दूभर कर दिया था.
निकोलाई सासेस्की ने अपनी पत्नी एलेना के साथ मिलकर रोमेनिया के लोगों का जीना दूभर कर दिया था.


सासेस्की ने लालच देने की कोशिश की. पर सब बेकार गया. अब बारी भागने की थी. नीचे उसका हेलिकॉप्टर तैयार खड़ा था. सासेस्की अपनी पत्नी के साथ इमारत से भाग गया. पर कितनी दूर! आखिरकार, सेना ने राष्ट्रपति निकोलाई सासेस्की और उनकी पत्नी एलेना को गिरफ़्तार कर लिया. 22 दिसंबर, 1989 को निकोलाई सासेस्की की सत्ता का दी एंड हो गया. अब बारी थी अंतिम निर्णय की.

वो आया तीन दिन बाद. 25 दिसंबर, 1989. दोनों को एक छोटे से ट्रायल रूम में ले जाया गया. पूछताछ चली. पूरा केस एक घंटे से भी कम समय में खत्म हो गया. निकोलाई और एलेना सासेस्की को भ्रष्टाचार और मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों का दोषी पाया गया. सज़ा पहले से तय थी. कहा जाता है कि जिस हेलिकॉप्टर में जज आए थे, उसी में फ़ायरिंग स्क्वॉड का एक दस्ता भी बैठा था.


सासेस्की के पर्सनल ऐशो-आराम का भार आम जनता के सिर पर लादा जा रहा था.
सासेस्की के पर्सनल ऐशो-आराम का भार आम जनता के सिर पर लादा जा रहा था.


ट्रायल के कुछ समय बाद दोनों को सड़क पर ले जाया गया. उन्हें एक दीवार के सहारे खड़ा कर गोलियों से भून दिया गया. दोनों की मौके पर ही मौत हो गई. इस तरह निकोलाई सासेस्की की 24 साल की तानाशाही का अंत हुआ. कुछ दिनों के बाद इस घटना का वीडियो टीवी पर चलाया गया. रोमेनिया के लोगों को ये यकीन दिलाने के लिए कि उनके जीवन का एक काला अध्याय बीत चुका है.

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