भारत में अल्पसंख्यक का दर्जा किसे मिलेगा, ये कौन तय करता है और कैसे?
भारत में कई धर्मों और संस्कृतियों के लोग रहते हैं. यहां आपने भी अक्सर अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकार और अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने की बात सुनी होगी. लेकिन सवाल है कि अल्पसंख्यक हैं कौन? और इसकी परिभाषा तय कौन करता है?

भारत में अल्पसंख्यक कौन है? बहस का ये जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है. इस बार बिहार से भाजपा के राज्यसभा सांसद भीम सिंह ने ये मुद्दा उठाया है. उन्होंने संसद में मांग की है कि भारत में अल्पसंख्यकों की परिभाषा तय की जाए. उन्होंने सवाल उठाया कि जब देश में मुसलमान 14.2 फीसदी हैं तो वे अल्पसंख्यक कैसे हुए? उन्होंने राज्य और जिलावार आबादी के अनुपात के आधार पर अल्पसंख्यकों की पहचान तय करने की भी मांग की. इसके बाद से ये बहस फिर शुरू हो गई कि भारत में अल्पसंख्यक किसे कहा जाए? क्या अल्पसंख्यक दर्जे के लिए केवल धार्मिक आधार ही पर्याप्त होना चाहिए जबकि देश में भाषा के आधार पर राज्य बने हैं. इस बहस में पड़ने से पहले इस लेख में हम ये जान लें कि देश में अल्पसंख्यक दर्जा तय कौन करता है?
भारत में कौन अल्पसंख्यक?भारत में अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा किसे मिलेगा, यह केंद्र सरकार तय करती है. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत ये काम किया जाता है. इस कानून की धारा 2(c) कहती है कि जिस समुदाय को केंद्र सरकार ने अधिसूचित (notified) किया है, वही अल्पसंख्यक समुदाय माना जाएगा. हालांकि, इस तस्वीर के बदलने की भी संभावना है. मार्च 2022 में वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकारें भी अपने क्षेत्र के हिसाब से किसी समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकती हैं.
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा था कि राज्य सरकारें ऐसा धार्मिक या भाषाई आधार पर कर सकती हैं. यह विषय Concurrent List (समवर्ती सूची) में आता है. यानी केंद्र और राज्य दोनों इस पर कानून बना सकते हैं. इसका मतलब है कि भारत में दो तरह की सूची संभव हैं-
– एक तो राष्ट्रीय स्तर की अल्पसंख्यक सूची
– दूसरी राज्य स्तर की अल्पसंख्यक सूची
भारत में अल्पसंख्यक की परिभाषा?अब सवाल है कि राज्य या केंद्र अल्पसंख्यक किसे बताएंगे? इसे तय करने के क्या मानक होंगे? दरअसल, भारत के संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द की कोई औपचारिक परिभाषा नहीं दी गई है. लेकिन कुछ आर्टिकल ये बताते हैं कि अल्पसंख्यक वो समुदाय हैं जिनकी भाषा, लिपि या संस्कृति किसी क्षेत्र में कम संख्या में पाई जाती है. संविधान की दो महत्वपूर्ण धाराएं Article 29 और Article 30 अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा की बात करती हैं. इसके अनुसार, उन्हें अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उसे चलाने का अधिकार देती हैं. इसके अलावा Article 350(A) भाषाई अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त करने की बात कहता है.
साफ है कि भारत में अल्पसंख्यक केवल धार्मिक पहचान तक सीमित नहीं हैं. यह भाषा, संस्कृति और जनसंख्या के अनुपात पर भी निर्भर है. यही वजह है कि कर्नाटक जैसे राज्यों में उर्दू, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कोंकणी, मराठी, लमानी, तुलु और गुजराती भाषाओं को अल्पसंख्यक भाषाएं घोषित किया गया है.
भारत में अल्पसंख्यक समुदाय कौन-कौन से हैं?केंद्र सरकार ने अब तक केवल 6 समुदायों को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक घोषित किया है. इनमें मुस्लिम, ईसाई (Christian), सिख, बौद्ध, पारसी और जैन शामिल हैं. जैन समुदाय को 2014 में इस लिस्ट में जोड़ा गया है. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की कुल आबादी में हर 1 हजार में से 193 लोग किसी न किसी अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं. इनमें सबसे बड़ी संख्या मुसलमानों की है. हर 1 हजार में 142 लोग मुसलमान हैं. सबसे छोटी आबादी पारसियों की है. यानी हर एक हजार भारतीयों में सिर्फ 6 लोग पारसी हैं.
आंकड़े बताते हैं कि भारत में मुसलमानों की संख्या इतनी है कि संख्या के आधार पर वे नाइजीरिया जैसे देशों की आबादी के लगभग बराबर हैं. 2011 की जनगणना के आधार पर भारत में मुसलमानों की संख्या 18 करोड़ के आसपास है जबकि नाइजीरिया की आबादी तकरीबन 23 करोड़ है. इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद भारत में सबसे ज्यादा मुसलमान रहते हैं. यही वजह है कि मुसलमानों के अल्पसंख्यक स्टेटस पर जब-तब सवाल उठाए जाते हैं.
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में भीम सिंह ने भी कहा कि भारत में मुस्लिम आबादी 14.2% है. यह बड़ी संख्या है, फिर भी उन्हें अल्पसंख्यक माना जाता है. उन्होंने आगे कहा कि कई राज्यों में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, जहां उनकी आबादी 50% से भी ज्यादा है. लक्षद्वीप में 96% मुसलमान हैं. जम्मू-कश्मीर में 69% हैं. असम में यह आंकड़ा 34%, पश्चिम बंगाल में 27% और केरल में 26% है. यह राष्ट्रीय प्रतिशत 14.2% से कहीं ज्यादा है. यहां तक कि ईसाई भी कई राज्यों में अल्पसंख्यक नहीं हैं, जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर आबादी तकरीबन 2 फीसदी है. नागालैंड में ईसाई 88%, मिजोरम में 87%, मणिपुर में 42%, अरुणाचल प्रदेश में 30% और गोवा में 25% हैं.
भीम सिंह सवाल उठाते हैं कि क्या ऐसे में अल्पसंख्यक की राष्ट्रीय परिभाषा के अनुसार इन राज्यों में ऐसे लोगों को अल्पसंख्यकों के लिए बनी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलना सही है? जबकि, कश्मीर में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें ऐसी योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल रहा है.
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