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मौत से बेखौफ इस बिल्डर ने जीते जी बनवाया खुद का मकबरा

नक्का रोजाना उस जगह जाते हैं, जहां उनकी पत्नी और उनका मकबरा बना हुआ है. उन्हें रोजाना मकबरे के आस-पास की सफाई करना, संगमरमर के पत्थरों को चमकाना और पास में लगे पेड़-पौधों को पानी देना अच्छा लगता है.

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Telangana
तेलंगाना में जिंदा होने के बावजूद बुजुर्ग ने बनवाया खुद का मकबरा. (फोटो- Unplash)
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प्रगति पांडे
24 दिसंबर 2025 (Updated: 24 दिसंबर 2025, 10:55 PM IST)
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‘मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यूं रातभर नहीं आती’. मिर्जा गालिब अगर तेलंगाना के नक्का इंद्रैया से मिल लेते तो शायद इस शेर का वजूद नहीं होता. क्योंकि नक्का को मौत का खौफ नहीं. उन्हें भी पता है कि मौत का एक दिन मुअय्यन (निश्चित) है. लेकिन वे इस सच को जानने से आगे बढ़ चुके हैं. उसे स्वीकार कर चुके हैं. इस हद तक कि वो दिन आने की तैयारी भी कर ली है. अपने नाम का एक मकबरा बनवा लिया है.

80 बरस के नक्का इंद्रैया तेलंगाना के जगतियाल क्षेत्र के लक्ष्मीपुरम गांव के रहने वाले हैं. पेशे से बिल्डर हैं. उनके दो बच्चे हैं. डेक्कन क्रॉनिकल की रिपोर्ट के मुताबिक, इंद्रैया ने दो साल पहले ही अपने लिए 12 लाख की लागत से एक मकबरा बनवाया था. मकबरा भी ऐसा-वैसा नहीं. बल्कि संगमरमर के पत्थरों वाला. यह मकबरा उन्होंने अपनी दिवंगत पत्नी के मकबरे की बगल में ही बनवाया है. जहां वो रोजाना कुछ वक्त सुकून और शांति से बिताते हैं.

आमतौर पर लोग कब्रिस्तान जैसी जगहों पर जाने से डरते हैं. लेकिन इंद्रैया के लिए यह स्थान रोजमर्रा के जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुका है. वो रोजाना उस जगह जाते हैं, जहां उनकी पत्नी दफ्न हैं और उनका मकबरा बना हुआ है. उन्हें रोजाना मकबरे के आस-पास की सफाई करना, संगमरमर के पत्थरों को चमकाना और पास में लगे पेड़-पौधों को पानी देना अच्छा लगता है. इसके इतर वो घर लौटने से पहले कुछ समय वहां शांति से बिताना बहुत पसंद करते हैं.

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डेक्कन क्रॉनिकल से बात करते हुए इंद्रैया ने बताया कि उन्हें इस फैसले से बिल्कुल भी डर नहीं लगता. बल्कि वो अपने इस कदम से बहुत आनंदित महसूस करते हैं. पेशे से बिल्डर इंद्रैया ने आगे बताया कि उन्होंने अपने जीवनकाल में कई प्रोजेक्ट्स पर काम किया. उन्होंने अपने गांव में 4 से 5 घर, एक स्कूल और एक चर्च भी बनाया. और इसी क्रम में अपना मकबरा बनवाना उनका आखिरी प्रोजेक्ट था.

जिंदा होने के बावजुद 'मृत्यु' को स्वीकारने वाले इंद्रैया यह मानते हैं कि उन्होंने खुद को 'मृत्यु' के भय से मुक्त कर लिया है. उनके जीवन के प्रति इस नजरिए से आस-पास के लोग उनसे काफी प्रभावित हैं. अक्सर गांव के लोगों की चर्चाओं में उनका जिक्र होता रहता है.

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