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'घर गिराने की जल्दी क्यों थी...' सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद छलका पीड़ितों का दर्द, अतीक अहमद की जमीन बता चलाया था बुलडोजर

Prayagraj News: याचिकाकर्ता बेबी मैमुना के पति वक्फ अंसारी उनके कर्मचारी के रूप में काम करते हैं. अंसारी ने कहा कि घर का ध्वस्त होना सपनों का विनाश होना है. घर खरीदने के लिए सालों तक पैसे जमा किए थे और एक ही दिन में सरकार ने उसे गिरा दिया.

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2021 Prayagraj Demolition
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई है. (सांकेतिक तस्वीर: इंडिया टुडे)
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रवि सुमन
4 अप्रैल 2025 (Updated: 4 अप्रैल 2025, 08:52 AM IST)
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साल 2021 में, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (Prayagraj) में 5 लोगों को सरकारी नोटिस मिला. अगले ही दिन उनके घर गिरा दिए गए. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में इस मामले की सुनवाई चली. पिछले दिनों कोर्ट ने इस मामले को लेकर राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने इस तरह घर गिराए जाने को 'गैर-कानूनी और अमानवीय' कहा. उन्होंने ‘प्रयागराज डेवलमेंट ऑथोरिटी’ को आदेश दिया कि सभी पीड़ितों को छह सप्ताह के भीतर दस-दस लाख रुपये दिए जाएं. 

पीड़ितों की ओर से कोर्ट में दलील दी गई कि उनका घर गलत तरीके से गिराया गया. सरकार ने मान लिया कि उनकी जमीन गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद की है. 2023 में अतीक की हत्या कर दी गई थी. 

"घर गिराने की इतनी जल्दी क्यों थी?"

2021 में अपना घर खोने के बाद से लेकर अब तक याचिकाकर्ताओं ने अपना जीवन कैसे गुजारा? अब उनकी कहानी सामने आई है. 46 साल के विजय कुमार सिंह, बेनीगंज इलाके में एक मेडिकल स्टोर चलाते हैं. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि नया घर खरीदे नौ महीने ही हुए थे कि उसे गिरा दिया गया. इसके बाद से सिंह किराए के घर में रह रहे हैं. वहां वो अपनी पत्नी वंदना और अपने दो छोटे बच्चों के साथ रहते हैं. उनके किराए के घर से वो प्लॉट 800 मीटर दूर है, जहां कभी उनका घर होता था.

उन्होंने सवाल उठाया कि राज्य सरकार को घर गिराने की इतनी जल्दी क्यों थी. 6 मार्च, 2021 को इस मामले में नोटिस दिया गया था. नोटिस मिलने के बाद पीड़ित कोर्ट पहुंचे थे. सिंह बताते हैं कि कोर्ट का आदेश आने से पहले ही 7 मार्च, 2021 को घर ध्वस्त कर दिए गए. सामान हटाने के लिए बस दो घंटे का समय दिया गया.

ये भी पढ़ें: अतीक अहमद की जमीन बता वकील और प्रोफेसर के घर गिरा दिए, SC ने यूपी सरकार को तगड़ा सुनाया

"नोटिस का जवाब देने का भी समय नहीं दिया"

इस मामले के पीड़ित प्रोफेसर अली अहमद फातमी बताते हैं कि उन्हें नोटिस का जवाब देने का भी समय नहीं दिया गया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उन्हें राहत मिली है. उन्होंने कहा कि भले ही मुआवजा कम है लेकिन अदालत ने उनको दर्द को पहचाना है. प्रोफेसर अली को अपनी लाइब्रेरी खोने का ज्यादा दुख है. इसमें 1000 से ज्यादा किताबें थीं जिसमें से कई दुर्लभ थीं. उन्होंने कहा कि ये इतना पीड़ादायक है कि वो उस जगह पर कभी नहीं गए जहां उनका घर हुआ करता था.

एक अन्य याचिकाकर्ता जुल्फिकार हैदर एक गैर-प्रैक्टिसिंग वकील हैं जो प्रयागराज में पैथोलॉजी लैब चलाते हैं. याचिकाकर्ता बेबी मैमुना के पति वक्फ अंसारी उनके कर्मचारी के रूप में काम करते हैं. अंसारी ने कहा कि घर का ध्वस्त होना सपनों का विनाश होना है. घर खरीदने के लिए सालों तक पैसे जमा किए थे और एक ही दिन में सरकार ने उसे गिरा दिया. उन्होंने कहा कि उनके पास इस दर्द को सहने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. अंसारी ने कहा कि वो इतने अमीर नहीं हैं कि दूसरा घर खरीद सकें, इसलिए वो किराए पर रह रहे हैं.

7 मार्च, 2021 को पीड़ितों को घर गिराए गए थे. तब ये मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा था. कोर्ट ने तोड़फोड़ के खिलाफ दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया था. इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट दरवाजा खटखटाया.

वीडियो: सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति को लेकर क्या बड़ी फैसला हो गया?

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