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BLOs की मौत का मजाक उड़ाने वाले उनकी दिक्कतें जानकर शर्मिंदा हो जाएंगे

SIR BLO Deaths: खबरें आती हैं इन BLOs के इस्तीफा देने, एक्सीडेंट होने, हार्ट अटैक पड़ने, यहां तक कि मौत होने की. उनकी और उनके परिवारों की तकलीफ तब और बढ़ जाती है जब सोशल मीडिया पर लोग कहते हैं- "जरा मेहनत क्या कर ली रोने-मरने लगे."

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what are the problems that booth level officers are facing during sir work
BLOs का काम इस वक्त बहुत बढ़ा हुआ है
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अदिति अग्निहोत्री
26 नवंबर 2025 (Updated: 26 नवंबर 2025, 08:18 PM IST)
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चुनाव आयोग ने जब से कई राज्यों में वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कराने की घोषणा की है, लाखों सरकारी कर्मचारियों की जिंदगी में तूफान मच गया है. आप बिल्कुल सही समझ रहे हैं. हम बूथ लेवल ऑफिसर्स यानी BLOs की बात कर रहे हैं, जो शायद इस समय अपने जीवन का सबसे अधिक काम कर रहे हैं. दिन में सैकड़ों लोगों से मिल रहे हैं. घर को समय नहीं दे पा रहे. रिश्तेदारियों में नहीं जा पा रहे. फोन 18-18 घंटे घनघनाता है. बीमारी में भी काम कर रहे हैं. वोटर्स बात नहीं सुनते. अधिकारी शिकायत नहीं सुनते. पुरुष फॉर्म लेकर नौकरियों पर चले जाते हैं. महिलाएं पिता के नाम की जगह ससुर का नाम लिख देती हैं. बच्चे फॉर्म्स के साथ खिलवाड़ कर देते हैं. लोगों के नंबर लग नहीं रहे. पड़ोसी जानकारी नहीं दे रहे. फॉर्म सबमिट करते समय कभी इंटरनेट दिक्कत देता है तो कभी मोबाइल एप्लिकेशन ठप पड़ जाती है.

इस बीच खबरें आती हैं इन BLOs के इस्तीफा देने, एक्सीडेंट होने, हार्ट अटैक पड़ने, यहां तक कि मौत होने की. उनकी और उनके परिवारों की तकलीफ तब और बढ़ जाती है जब सोशल मीडिया पर लोग कहते हैं- "जरा मेहनत क्या कर ली रोने-मरने लगे."

SIR का दूसरा चरण शुरू हुए अभी 22 दिन ही बीते हैं. लेकिन इन 22 दिनों में 6 राज्यों से कम से कम 15 BLOs की मौत की ख़बरें आ चुकी हैं. इनमें से कई ने खुद अपनी जान ले ली. कुछ अचानक बीमार पड़े तो कुछ रोड एक्सीडेंट में मारे गए. मौत, हार्ट अटैक या इस्तीफा, किसी भी वजह से हुए हों, सबके बैकग्राउंड में एक चीज साफ तौर पर सामने आती है- “वर्कलोड बहुत ज्यादा है.”

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सिर्फ 31 दिनों में 5 लाख 32 हज़ार BLOs को 51 करोड़ वोटर्स तक पहुंचना है 
SIR में लगे BLO क्यों परेशान हैं?

इस काम में चुनाव आयोग ने 5 लाख 32 हज़ार से ज़्यादा BLOs को लगाया है. इन्हें एक महीने के अंदर अपने-अपने पोलिंग एरिया के सभी वोटर्स तक पहुंचना है. उन्हें फॉर्म बांटने हैं. फॉर्म कैसे भरना है, ये समझाना है. फिर कुछ दिनों बाद, भरे हुए फॉर्म अपने पास जमा करने हैं. इसके बाद सारी जानकारी ऑनलाइन सिस्टम में अपलोड करनी है, ताकि वोटर लिस्ट को अपडेट किया जा सके.

SIR के फेज़-टू के तहत करीब 51 करोड़ वोटर्स को कवर किया जा रहा है. यानी सिर्फ 31 दिनों में 5 लाख 32 हज़ार BLOs को 51 करोड़ वोटर्स तक पहुंचना है. इतने कम टाइम में ये प्रोसेस पूरा करना पहली नजर में तो ‘नाकों चने चबाने’ जैसा ही लगता है. असंभव नहीं, लेकिन मुश्किल.

इसलिए लल्लनटॉप ने ज़मीनी हकीकत जानने की कोशिश की. कुछ Booth Level Officers से बात करके जाना कि उन्हें काम करने में किस तरह की दिक्कतें आ रही हैं. लोगों के स्तर पर, प्रशासन के स्तर पर उनकी परेशानियां क्या हैं.

फॉर्म समय पर नहीं मिले
4 नवंबर को SIR का दूसरा फेज़ शुरू हुआ. लेकिन कुछ जगहों पर BLOs को फॉर्म हफ्ते भर बाद मिले. ये बात कई BLO ने खुद बताई. किसी को 10 नवंबर को, तो किसी को 12 नवंबर को फॉर्म मिले. यानी उनके काम के इलाके में SIR की शुरुआत ही देर से हुई. इससे उन पर प्रेशर बढ़ गया. उन्हें कम टाइम में ज़्यादा काम करके देना है.

हर वोटर तक पहुंचना मुश्किल
लोग सुबह जल्दी अपने ऑफिस या खेतों में काम करने चले जाते हैं. ऐसे में या तो उनके घर सुबह जल्दी पहुंचा जाए या फिर रात में. अगर दोपहर में जाओ, तो कई बार दरवाज़ा ही नहीं खुलता. कभी-कभी घरों में सिर्फ बच्चे होते हैं. इस वजह से फॉर्म देने के लिए एक ही घर के 2–3 चक्कर लगाने पड़ते हैं. यही दिक्कत फॉर्म कलेक्ट करते समय भी आती है. लोग ही नहीं मिलते. BLOs को बार-बार उसी घर में जाना पड़ता है.

बाहर रहने वाले वोटर्स
कई वोटर अपने काम या पढ़ाई के लिए दूसरे राज्यों में चले गए हैं. कुछ लोग घूमने के लिए बाहर निकल गए. ऐसे में उनसे कॉन्टैक्ट करने में परेशानी आती है. उनके रिश्तेदार या पड़ोसी फोन नंबर भी नहीं देते. BLO को अकेले ही पता लगाना पड़ता है कि कौन घर में है, कौन बाहर.

मान लीजिए, एक गांव में सैकड़ों वोटर्स हैं. BLO को इन सब तक पहुंचना है. सोचिए कितना मुश्किल काम है! ट्रेनिंग सिर्फ BLO को मिली है. उसके साथ जो सहायक लगाए गए हैं, उन्हें कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई है. सारी ज़िम्मेदारी सिर्फ BLOs के कंधों पर डाल दी गई है. इस वजह से उनका तनाव बढ़ रहा है, जिससे उनकी तबीयत बिगड़ रही है. कभी वो गश खाकर गिर जाते हैं. कभी उनका बीपी बढ़ जाता है.

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एक फॉर्म भरने, उसके बारे में समझाने में ही 15-20 मिनट गुज़र जाते हैं 

लोग फॉर्म ही नहीं लेते या कहीं रखकर भूल जाते है
कई वोटर्स को डर है कि अगर उन्होंने फॉर्म ले लिया, तो वोटर लिस्ट से उनका नाम कटने का चांस बढ़ जाएगा. वहीं कुछ लोग फॉर्म तो ले लेते हैं, लेकिन फिर उसे घर में कहीं रखकर भूल जाते हैं. दूसरी जगह से आकर नई जगह पर बसे कई लोग 2003 वाली जानकारी न खोज पाने के कारण फॉर्म ही नहीं भरते. ऐसा ही वो पुरानी जगह से नाम हटाने के लिए फॉर्म 7 भरने को कहे जाने पर भी करते हैं. BLO को बार-बार समझाना पड़ता है कि ये काम कितना ज़रूरी है. ऐसे में उनका काफी टाइम बर्बाद होता है. वो फिज़िकली और मेंटली, दोनों तरह से थक जाते हैं.

फॉर्म भरने में बहुत वक्त लग रहा
एक घर में फॉर्म भरने में 15 से 20 मिनट लगते हैं. कई बार उससे भी ज़्यादा. BLO को हर दिन कई घर कवर करने हैं. फिर सारी जानकारी को ऑनलाइन अपलोड करना है. ज़्यादातर BLOs को आदेश दिया गया है कि वे एक दिन में 100 फॉर्म फीड करें. लेकिन इतनी दिक्कतों के बीच ये कैसे मुमकिन है? कई बार वोटर खुद ही फॉर्म के तीसरे कॉलम यानी जहां 2003 वाली जानकारी भरनी होती है, उसे लेकर कन्फ्यूज़ हो जाते हैं. ये कन्फ्यूज़न सबसे ज्यादा 'संबंधी का नाम' वाले हिस्से में आती है. BLO इसे बार-बार बताते हैं, लेकिन भरने वाले गलती कर ही बैठते हैं. 

लोकल न होने का प्रॉब्लम
कुछ BLO नए हैं या ट्रांसफर से आए हैं. वो अपने एरिया के लोगों को नहीं जानते. गांव या मोहल्ले में जान-पहचान न होने से काम और मुश्किल हो जाता है.

सारी जवाबदेही सिर्फ BLO की
BLOs के साथ सहायक के तौर पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को लगाया गया है. लेखपाल, पंचायत सचिव, प्रधान और बाकी कर्मचारी भी सहयोग कर रहे हैं. लेकिन उनके पास अपना बहुत काम है. उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं है, निलंबन का डर सिर्फ BLO को दिखाया जाता है.

कुछ एरिया में कम वोटर्स हैं, कुछ में ज़्यादा. जहां ज्यादा हैं, वहां एक्स्ट्रा मदद नहीं मिलती. लेकिन रोज़ पूछा जाता है कि इतना टाइम क्यों लग रहा है.

शादीशुदा महिलाओं के पैरेंट्स की जानकारी मिलना मुश्किल
कई शादीशुदा महिलाएं फॉर्म में अपने पिता के नाम वाली जगह पर अपने ससुर का नाम लिख रही हैं. BLO बताते हैं कि ये कई महिलाओं के मामले में हो रहा है. उनका पुराना रिकॉर्ड पता करना और फॉर्म में सही जानकारी भरना मुश्किल है. BLOs को उनके मायके से रिकॉर्ड जुटाना पड़ता है. कुछ महिलाओं को खुद अपनी डिटेल्स याद नहीं रहतीं. इस वजह से BLOs को काफी दिक्कत हो रही है.

ऑनलाइन फीडिंग में कठिनाई
ये शायद सबसे बड़ी समस्या है. फॉर्म ऑनलाइन अपलोड करना आसान नहीं है. कभी इंटरनेट धीमा होता है, कभी सर्वर डाउन हो जाता है. कई BLOs फीडिंग में घंटों फंसे रहते हैं. कुछ BLOs टेक्नो-फ्रेंडली नहीं हैं. इसलिए ज़िम्मेदारी भले एक व्यक्ति की हो, काम उनका पूरा परिवार करता है.

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महिला BLOs को घर भी संभालना है और काम भी करना है 

महिला BLOs का संघर्ष
ये समाज की सच्चाई है कि महिलाओं को घर और बाहर, दोनों जगह का काम करना पड़ता है. आपने अभी 9 दिक्कतें सुनी हैं. उनमें बच्चों की देखभाल करना, घरवालों के लिए खाना बनाना, अपने ससुराल वालों का ख़्याल रखना, पीरियड क्रैंप्स सहते हुए काम करना भी जोड़ लीजिए.

कुछ BLOs ऐसे हैं. जो ग्राम पंचायत और विधानसभा, दोनों में BLO हैं. वो पूछते हैं, ‘BLO का ही काम करते रहेंगे, तो अपना मूल काम यानी बच्चों को पढ़ाना, वो कब करेंगे?’

BLOs ने हमें सिर्फ चुनौतियां ही नहीं बताईं. चुनाव आयोग को एक सुझाव भी दिया. उनका कहना है कि काम के लिए और समय मिलना चाहिए था. चीज़ें स्टेप-बाय-स्टेप होनी चाहिए थीं. सब कुछ एक महीने में करना थोड़ी जल्दबाजी जैसा लगता है.

काम कैसे हो रहा?

इसके बाद भी BLO अपने काम में लगे हुए हैं. ट्रिक्स इस्तेमाल करते हैं. सोसायटी और गांवों के वॉट्सऐप ग्रुप्स में ऐड हो-होकर काम करा रहे हैं. बार-बार पूछे जाने वाले सवालों के जवाब खुद ही यूट्यूब चैनल पर वीडियो डाल-डालकर दे रहे हैं. वोटर्स को वॉट्सऐप पर वीडियो फॉरवर्ड करके काम में तेज़ी ला रहे हैं. कुछ BLO इतने सिद्धहस्त हो गए हैं कि वोटर्स की गलतियों से बचने के लिए पेंसिल से फॉर्म भरवा रहे हैं और उन्हें पेन से बाद में फाइनल करा रहे हैं.

वीडियो: लालू यादव के परिवार से उनका घर क्यों छीना जा रहा है, रोहिनी आचार्य ने क्या कहा?

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