संसद से पास SHANTI Bill में ऐसा क्या है, जो कांग्रेस ने ट्रंप का नाम लेकर PM मोदी को घेर लिया?
SHANTI Bill 2025: प्रधानमंत्री Narendra Modi ने इस बिल को 'बड़ा बदलाव' बताया, जबकि Congress का कहना है कि यह 2010 में बनी संसदीय सहमति को तोड़ता है और देश के राष्ट्रीय हित से समझौता करता है.

संसद से पास हुए ‘सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया बिल’ (SHANTI Bill) से सियासी शांति बिखरती नजर आ रही है. कांग्रेस ने इस बिल को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ऐसा आरोप लगाया है, जिससे दिल्ली का सियासी पारा हाई हो गया है. कांग्रेस का कहना है कि यह बिल देश के हित में नहीं, बल्कि किसी 'पुराने दोस्त' को खुश करने के लिए लाया गया. पुराने दोस्त का जिक्र कर कांग्रेस ने बिना नाम लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की तरफ इशारा किया.
कांग्रेस ने दावा किया कि इस बिल को जल्दबाजी में बुलडोजर चलाने की तरह संसद से पास करा दिया गया. कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने शनिवार, 20 दिसंबर को सीधे-सीधे मोदी सरकार पर हमला बोला. उन्होंने आरोप लगाया कि SHANTI Bill को संसद में बिना ठीक से चर्चा किए पास कराया गया. उन्होंने कहा कि इसके पीछे असली वजह अमेरिका के हित साधना है. अब जानते हैं कि SHANTI Bill क्या है.
SHANTI Bill की बड़ी बातें
- इस बिल का मकसद परमाणु ऊर्जा और अलग-अलग सेक्टर में इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देना है, जो 2047 तक 100 GW परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करने के देश के लक्ष्य के साथ मेल खाता है.
- प्राइवेट कंपनियों को सिविल न्यूक्लियर ऑपरेशंस में एंट्री मिलेगी, जो अब तक सिर्फ सरकारी संस्थाओं के लिए रिजर्व था. यह बिल प्राइवेट कंपनियों और जॉइंट वेंचर को न्यूक्लियर फैसिलिटीज बनाने और चलाने, साथ ही न्यूक्लियर फ्यूल ट्रांसपोर्ट करने के लिए ऑथराइजेशन लेने की इजाजत देता है.
- टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने बताया कि यूरेनियम एनरिचमेंट इस्तेमाल किए गए फ्यूल को हैंडल करने और हैवी वाटर मैन्युफैक्चरिंग जैसे संवेदनशील ऑपरेशन अभी भी पूरी तरह से केंद्र सरकार के कंट्रोल में रहेंगे.
- इसी तरह रेडियोएक्टिव मैटेरियल और रेडिएशन पैदा करने वाले उपकरणों की निगरानी भी केंद्र के तहत जारी रहेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सुरक्षा मानकों को बनाए रखा जाए.
- एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (AERB) को कानूनी दर्जा दिया जाएगा. इससे AERB को फैसिलिटीज का इंस्पेक्शन करने, घटनाओं की जांच करने, बाध्यकारी निर्देश जारी करने और सुरक्षा मानकों को पूरा ना करने वाले ऑपरेशंस को सस्पेंड या कैंसिल करने की शक्ति मिलेगी.
- एक साफ लाइसेंसिंग व्यवस्था यह तय करेगी कि कौन न्यूक्लियर फैसिलिटीज बना और चला सकता है, जिससे जवाबदेही मजबूत होगी.
- सुरक्षा निगरानी को न्यूक्लियर फैसिलिटीज के पूरे लाइफसाइकिल- निर्माण और संचालन से लेकर ट्रांसपोर्ट, स्टोरेज, डीकमीशनिंग और कचरा प्रबंधन तक में कानूनी तौर पर शामिल किया जाएगा. रेडिएशन एक्सपोजर वाली गतिविधियों के लिए ऑपरेशनल लाइसेंस के अलावा स्पष्ट सुरक्षा ऑथराइजेशन की जरूरत होगी. यह बिल विवादों को सुलझाने के लिए एक स्पेशल न्यूक्लियर ट्रिब्यूनल भी पेश करता है.
- बिल का एक और अहम पहलू निवेश को बढ़ावा देते हुए जोखिमों को सीमित करने के लिए न्यूक्लियर लायबिलिटी फ्रेमवर्क में बदलाव करना है. यह कानून न्यूक्लियर उपकरणों के सप्लायर की लायबिलिटी से संबंधित क्लॉज को हटाता है.
यह बिल भारत के सिविल न्यूक्लियर फ्रेमवर्क यानी नागरिक परमाणु ढांचे में बड़े बदलाव करता है. लोकसभा और राज्यसभा से पास यह बिल न्यूक्लियर एनर्जी सेक्टर को प्राइवेट कंपनियों के लिए खोलता है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, यह बिल दो बड़े कानूनों- एटॉमिक एनर्जी एक्ट, 1962 और सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट, 2010 को खत्म करता है.
यहीं से विपक्ष ने सवाल उठाया है. विपक्षी दलों का कहना है कि सप्लायर की जिम्मेदारी हटाने से अगर कभी कोई न्यूक्लियर हादसा हुआ, तो आम नागरिकों को इंसाफ मिलना मुश्किल हो जाएगा. विपक्ष की मांग थी कि इस बिल को संसदीय समिति के पास भेजा जाए, ताकि विस्तार से जांच हो सके. लेकिन सरकार ने यह मांग सिरे से खारिज कर दी. नतीजा यह हुआ कि लोकसभा में बिल पास हुआ और फिर राज्यसभा में भी बिना चर्चा, सिर्फ ध्वनि मत से यह बिल पास हो गया.
जयराम रमेश ने SHANTI Bill के जरिए मोदी सरकार पर ऐसे समय पर हमला किया, जब हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने वित्त वर्ष 2026 के यूएस नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन एक्ट (NDAA) पर साइन किए हैं. यह कानून करीब 3100 पन्नों का है और इसके पेज नंबर 1912 पर भारत-अमेरिका के बीच न्यूक्लियर लायबिलिटी नियमों को लेकर एक खास जिक्र है.
जयराम रमेश ने X पर उस पेज का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखा कि इसमें साफ तौर पर भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर लायबिलिटी नियमों पर जॉइंट असेसमेंट की बात कही गई है. उनके मुताबिक, यही असली वजह है कि SHANTI Bill को इतनी जल्दी और बिना बहस के पास कराया गया.
उन्होंने लिखा,
"राष्ट्रपति ट्रंप ने अभी-अभी US फिस्कल ईयर 2026 के लिए नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन एक्ट पर साइन किए हैं. यह एक्ट 3100 पन्नों का है. पेज 1912 पर न्यूक्लियर लायबिलिटी रूल्स पर सयुंक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच जॉइंट असेसमेंट का जिक्र है."

जयराम रमेश ने आगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया,
“अब हमें पक्का पता चल गया है कि प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) ने इस हफ्ते की शुरुआत में संसद में SHANTI बिल को क्यों पास करवाया, जिसमें, दूसरी बातों के अलावा, सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट, 2010 के मुख्य प्रावधानों को खत्म कर दिया गया था, जिसे संसद ने सर्वसम्मति से पास किया था. यह अपने पुराने अच्छे दोस्त के साथ SHANTI को बहाल करने के लिए था.”
इतना ही नहीं, कांग्रेस नेता ने तंज और भी तीखा कर दिया. उन्होंने कहा,
"SHANTI एक्ट को TRUMP एक्ट भी कहा जा सकता है - दी रिएक्टर यूज एंड मैनेजमेंट प्रॉमिस एक्ट."
अमेरिकी कानून के अनुसार, अमेरिकी विदेश मंत्री को दूसरे संबंधित विभागों के साथ मिलकर 2008 के सिविल न्यूक्लियर समझौतों के लागू होने का आकलन करने, भारत के घरेलू न्यूक्लियर लायबिलिटी फ्रेमवर्क को अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के साथ जोड़ने के अवसरों पर चर्चा करने और द्विपक्षीय और बहुपक्षीय राजनयिक जुड़ाव के लिए रणनीतियां बनाने के लिए भारत के साथ एक संयुक्त सलाहकार तंत्र बनाए रखना जरूरी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बिल को 'बड़ा बदलाव' बताया, जबकि कांग्रेस का कहना है कि यह 2010 में बनी संसदीय सहमति को तोड़ता है और देश के राष्ट्रीय हित से समझौता करता है.

जब ये बिल लोकसभा में पेश किया गया तो केंद्रीय साइंस और टेक्नोलॉजी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था कि यह बिल 'परमाणु नुकसान के लिए एक व्यावहारिक सिविल लायबिलिटी व्यवस्था' देता है. उन्होंने साफ किया था कि यह बिल पीड़ितों को मिलने वाले मुआवजे को कम नहीं करता है.
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